वैसे तो बच्चों का कान बहना एक सामान्य समस्या है लेकिन इसे साधारण समझकर हल्के में नहीं लेना चाहिए वरना बच्चे को गंभीर नुकसान हो सकता है। नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को वैसे भी वयस्कों की तुलना में कान से जुड़ी समस्याएं और संक्रमण ज्यादा होते हैं। फिर चाहे कान में दर्द हो, कान में संक्रमण हो या फिर कान बहना। साधारण भाषा में समझें तो जब कान से किसी तरह के तरल पदार्थ का रिसाव होने लगता है तो इसे कान बहना कहते हैं और मेडिकल भाषा में कान बहने की समस्या को otorrhea कहा जाता है।

ज्यादातर मौकों पर कान से जो रिसाव होता है वह ईयरवैक्स या कान का मैल होता है। यह एक तरह का तेल है जिसका हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से उत्पादन होता है। कान का मैल या वैक्स इस बात को सुनिश्चित करता है कि किसी तरह की धूल, बैक्टीरिया या कोई अन्य पदार्थ कान में न जाए। कान से निकलने वाला वैक्स रूपी रिसाव तो कान की हिफाजत करता है। लेकिन अगर कान से पस, मवाद, खून या पानी जैसा कोई तरल पदार्थ निकलने लगे तो यह किसी गंभीर समस्या का संकेत हो सकता है।

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नवजात शिशु या बच्चों का कान बहना कोई जन्मजात बीमारी नहीं है और इसके होने के कई कारण हो सकते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि बच्चों में कान से होने वाला रिसाव कितने तरह का होता है, बच्चों के कान बहने का कारण क्या है, इसका लक्षण और इलाज क्या है, इस बारे में यहां जानें।

  1. बच्चों के कान बहने का कारण - Causes of ear discharge in kids
  2. बच्चों में कान बहने के लक्षण - Symptoms of ear discharge
  3. बच्चे के कान बहने पर कब करें डॉक्टर से संपर्क - When to consult a doctor?
  4. बच्चे के कान बहने का इलाज और दवा - Treatment of ear discharge in kids
  5. बच्चों का कान बहने से बचाव - Bacchon ka Kan behne se bachav
बच्चों के कान बहने का कारण और इलाज के डॉक्टर

कान के पर्दे को नुकसान
ज्यादातर मौकों पर कान से बहने वाला किसी भी तरह का तरल पदार्थ कान का मैल होता है। लेकिन अगर बच्चे के कान के पर्दे में छेद हो जाए, ईयरड्रम को किसी तरह का नुकसान हो या अगर कान के पर्दे फट जाएं तो कान से सफेद या पीले रंग का रिसाव होने लगता है या फिर कई बार कान से खून भी आ सकता है। अगर बच्चे के तकिए पर सूखा पपड़ी जैसा कुछ नजर आए तो यह कान के पर्दों को हुए नुकसान का संकेत हो सकता है। कई कारणों से हो सकता है कान के पर्दे को नुकसान:

  • कर्ण नलिका (ईयर कैनल) में जब कोई बाहरी तत्व चला जाए। छोटे बच्चे अक्सर खेल-खेल में कान में कोई छोटी चीज डाल लेते हैं और अगर पैरंट्स का ध्यान न जाए तो इससे कान को नुकसान भी हो सकता है।
  • कई बार सिर में चोट लगने पर सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड लीक होने लगता है और यह कान के जरिए बाहर आने लगता है। हालांकि सिर की चोट की वजह से बच्चे का कान बहना सामान्य कारण नहीं है लेकिन बेहद गंभीर और जानलेवा जरूर साबित हो सकता है।
  • किसी बाहर तत्व के कारण, बहुत तेज आवाज या हवा के दबाव में अचानक ज्यादा बदलाव होने के कारण कान में चोट लगने की वजह से भी कान के पर्दे को नुकसान होता है जिसके बाद कान से रिसाव हो सकता है।
  • कान साफ करने के लिए ईयरबड्स की जगह किसी नुकीली चीज का इस्तेमाल करने से भी कान के पर्दे फट सकते हैं और रिसाव हो सकता है।
  • मध्य कान का संक्रमण या ओटिटिस मीडिया बच्चों में सब आम समस्या है और ये तब होता है जब कोई वायरस या बैक्टीरिया कान के पीछे के क्षेत्र में सूजन करता है। 
  • कर्ण नलिका में एक्जिमा के कारण भी कई बार कान से रिसाव होने लगता है।

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अगर छोटे बच्चे के कान में चला जाए दूध
जब छोटे बच्चों को मां लिटाकर दूध पिलाती है तो कई बार दूध की कुछ मात्रा कान तक भी पहुंच सकती है जिस कारण कान में इंफेक्शन हो जाता है और बच्चे के कान से रिसाव होने लगता है जिसे कान बहना कहते हैं। कई बार मांएं बच्चे को करवट दिलाकर भी दूध पिलाती हैं जिससे कई बार दूध शिशु के मध्यकान में पहुंचकर संक्रमण पैदा करता है जिससे कान में मवाद या पस बनने लगता है और कान बहने की समस्या शुरू हो जाती है।

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अगर बच्चे के कान से किसी तरह के तरल पदार्थ का रिसाव हो रहा हो तो रिसाव के कारणों के आधार पर बच्चे में निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं:

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  • अगर कान से बहने वाला तरल पदार्थ पीले रंग का हो या फिर अगर कान से खून निकल रहा हो।
  • अगर कान या सिर में कोई चोट लगने की वजह से कान से रिसाव हो रहा हो।
  • अगर कान से होने वाला रिसाव 5 दिन से ज्यादा समय तक जारी रहे।
  • कान बहने की वजह से बच्चे को हद से ज्यादा दर्द और तकलीफ हो रही हो।
  • कान बहने के साथ ही बुखार और सिरदर्द जैसे बाकी के लक्षण भी दिख रहे हों।
  • अगर कर्ण नलिका (ईयर कैनल) में लालिमा या सूजन हो गई हो।
  • कान से निकल रहे मवाद या पस में बदबू होना या खून आना गंभीर बीमारी के लक्षण हो सकते हैं इसलिए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
  • कान से मवाद आते रहने से बच्चे में बहरापन भी हो सकता है। इस समस्या को हल्के में लेने की बजाए चिकित्सक से बात जरूर करें।

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बच्चे के कान बहने का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि आखिर कान बहने का कारण क्या है। क्या कान के अंदर किसी तरह का संक्रमण हुआ है या चोट लगी है। इसके लिए कई बार डॉक्टर कान से हो रहे रिसाव का सैंपल लेकर उसकी भी जांच करते हैं ताकि पता चल सके कि संक्रमण का कारण क्या है और उसके हिसाब से सही इलाज किया जा सके। हर तरह के कान के संक्रमण को एंटीबायोटिक्स से ठीक नहीं किया जा सकता क्योंकि वायरस की वजह से होने वाले संक्रमण को एंटीबायोटिक्स से ठीक नहीं किया जा सकता।

अमेरिकन अकैडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की मानें तो कान से होने वाला सामान्य रिसाव कई बार 2 से 3 दिन में खुद ब खुद ठीक हो जाता है इसलिए डॉक्टर के पास बच्चे को ले जाने से पहले 48 घंटे का इंतजार करें। इसके अलावा अगर कान में किसी संक्रमण की वजह से कान बह रहा हो तो यह भी एक से दो हफ्ते में बिना किसी इलाज के ठीक होने लगता है।

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अगर आपका बच्चा 6 महीने से कम उम्र का है या फिर अगर उसे कान बहने के साथ-साथ 102 डिग्री फैरेनहाइट से ज्यादा बुखार हो तब डॉक्टर एंटीबायोटिक ईयर ड्रॉप्स की सलाह दे सकते हैं। अगर कान के पर्दे में हुए छेद या कान के पर्दे फटने के कारण कान बह रहा हो और यह प्राकृतिक रूप से ठीक न हो पाए तो कान के पर्दों को सही करने के लिए कई बार सर्जरी की भी जरूरत हो सकती है।

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बचाव इलाज से बेहतर होता है। आपने यह कहावत तो सुनी ही होगी। लिहाजा आपके शिशु या बच्चे को भी कान बहने की समस्या का सामना करना पड़े, इससे बेहतर है कि आप ऐसी परिस्थिति उत्पन्न ही न होने दें। इसके लिए बचाव के इन तरीकों को अपना सकती हैं:

  • बच्चे के कान में पानी न जाने दें और किसी भी तरह का तरल पदार्थ या तेल आदि शिशु के कान में न डालें।
  • 6 से 12 महीने तक के शिशु को मां का दूध ही पिलाएं क्योंकि मां के ब्रेस्ट मिल्क में मौजूद एंटीबॉडीज शिशु को कई दूसरी बीमारियों के साथ ही कान में होने वाले किसी भी तरह के संक्रमण से बचाने में भी मदद करते हैं। 
  • अपने शिशु या बच्चों को किसी भी तरह के सेकंडहैंड स्मोक यानी सिगरेट और धूम्रपान के धुएं से बचाकर रखें क्योंकि इससे भी कान में बार-बार गंभीर संक्रमण हो सकता है।
  • अगर आप अपने बच्चे को बोतल से दूध पिलाती हैं तो बच्चे के सिर को 45 डिग्री के कोण पर ऊंचा करके रखें ताकि बोतल का फॉर्मूला मिल्क कान में मौजूद यूस्टाचियन ट्यूब में वापस न चला जाए। इसके अलावा बच्चे को खुद अपनी निगरानी में अपने हाथ से दूध पिलाएं। दूध की बोतल को किसी चीज के सहारे लगाकर बच्चे के मुंह में न दें। इससे भी दूध के कान या नाक में जाने का खतरा रहता है।
  • जहां तक संभव हो बच्चे को सर्दी-जुकाम से बचाकर रखें। कई बार सर्दी की वजह से भी बच्चों का कान बहने लगता है।

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