अभिमस्तिष्कता - Anencephaly in Hindi

Dr. Archana NirulaMBBS,PG Diploma

November 19, 2020

November 20, 2020

अभिमस्तिष्कता
अभिमस्तिष्कता

ऐनिन्सेफली एक जन्मजात दोष है, जिसमें गर्भ के दौरान बच्चे का मस्तिष्क और खोपड़ी ​की हड्डियां पूरी तरह से निर्मित नहीं हो पाती हैं। नतीजतन बच्चे का मस्तिष्क, विशेष रूप से सेरिबैलम का विकास बहुत ही कम हो पाता है। सेरिबैलम मस्तिष्क का वह हिस्सा है जो मुख्यरूप से सोचने, कार्य करने और संवेदनाओं को नियंत्रित करता है। विशेषज्ञ ऐनिन्सेफली को न्यूरल ट्यूब से संबंधित दोष मानते हैं। न्यूरल ट्यूब एक संकीर्ण शाफ्ट होता है जो सामान्य रूप से भ्रूण के विकास के दौरान बंद हो जाता है और मस्तिष्क तथा रीढ़ की हड्डी के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गर्भावस्था के चौथे सप्ताह तक इनका निर्माण हो जाता है, वहीं अगर इसका निर्माण न हो सके तो शिशु को ऐनिन्सेफली की समस्या होने का खतरा रहता है।

ऐनिन्सेफली, एक दुर्लभ समस्या है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) के आंकड़ों के अनुसार औसतन हर साल अमेरिका में 10,000 में से तीन शिशुओं में ऐनिन्सेफली का निदान होता है। ऐनिन्सेफली से ग्रसित लगभग 75 प्रतिशत मामलों में, बच्चे का जन्म मृत अवस्था में होता है। इसके अलावा जो बच्चे जीवित पैदा भी हो जाते हैं, वह केवल कुछ घंटे या कुछ दिनों तक ही जीवित रह पाते हैं। ज्यादातर मामलों में न्यूरल ट्यूब दोष की समस्या के कारण गर्भपात हो जाता है।

इस लेख में हम ऐनिन्सेफली नामक इस दुर्लभ विकार के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

ऐनिन्सेफली के लक्षण - Anencephaly Symptoms in Hindi

ऐनिन्सेफली से प्रभावित बच्चों में इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। ऐनिन्सेफली के कुछ लक्षण स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं की तरह होते हैं। इसके कुछ सामान्य लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं।

  • सिर के पीछे के हिस्से में कोई भी हड्डी न होना
  • सिर के सामने और किनारों ​के हिस्से में कोई भी हड्डी न होना
  • मस्तिष्क का एक बड़ा हिस्सा गायब होना
  • कानों का मुड़ा होना
  • मुंह के तालु का बंटा होना (क्लेफ्ट प्लेट)
  • जन्मजात हृदय दोष
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ऐनिन्सेफली का कारण - Anencephaly Causes in Hindi

ऐनिन्सेफली किन कारणों से होता है इस बारे में कोई विशिष्ट जानकारी नहीं है। कुछ शिशुओं में यह जीन या गुणसूत्र में परिवर्तन से संबंधित हो सकता है। ज्यादातर मामलों में, बच्चे के माता-पिता में इस रोग से संबंधित कोई पारिवारिक इतिहास नहीं होता है, ऐसे में विशेषज्ञ इसे फैमिली हिस्ट्री से संबंधित नहीं मानते हैं। चूंकि ऐनिन्सेफली की समस्या गर्भावस्था के दौरान विकसित होती है ऐसे में डॉक्टरों का मानना है कि गर्भवती का पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों और कुछ दवाओं के संपर्क में आने के कारण यह समस्या हो सकती है। हालांकि, अब तक हुए शोध में इन संभावित जोखिम कारकों के बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। हां, विशेषज्ञों का यह जरूर मानना है कि यदि मां किसी उच्च तापमान वाली चीजों जैसे गर्म टब का इस्तेमाल करती है या गर्भावस्था के दौरान उसे बहुत तेज बुखार होता है तो यह न्यूरल ट्यूब संबंधी दोष का खतरा बढ़ा सकती है।

कुछ शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि मधुमेह के इलाज अथवा कुछ अन्य बीमारियों के लिए दी जाने वाली दवाएं भी ऐनिन्सेफली का खतरा बढ़ा देती हैं। मधुमेह और मोटापा, गर्भावस्था में कुछ जटिलताएं उत्पन्न कर सकती हैं, इसलिए गर्भावस्था के दौरान ऐसी किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें। कुछ विशेषज्ञों को मानना है कि फॉलिक एसिड की अपर्याप्तता भी ऐनिन्सेफली की समस्या विकसित कर सकती है। इस प्रमुख पोषक तत्व की कमी के कारण ऐनिन्सेफली के अलावा शिशुओं को स्पाइना बिफिडा जैसे कई अन्य न्यूरल ट्यूब संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान आहार में बदलाव और फोलिक एसिड के पूरक लेकर इस खतरे को कम किया जा सकता है।

यहां एक बात और ध्यान रखने की आवश्यकता है कि यदि गर्भावस्था के दौरान शिशु को ऐनिन्सेफली की समस्या है तो दूसरे बच्चे में भी ऐनिन्सेफली या अन्य प्रकार के न्यूरल ट्यूब दोष होने का खतरा 4 से 10 फीसदी तक बढ़ जाता है। वहीं यदि दो गर्भावस्था के दौरान बच्चों में ऐनिन्सेफली की समस्या देखी जाए तो अगले बच्चे में इसका खतरा 10 से 13 फीसदी बढ़ जाता है।

ऐनिन्सेफली का निदान- Diagnosis of anencephaly in Hindi

गर्भावस्था के दौरान या बच्चे के जन्म के तुरंत बाद ऐनिन्सेफली का निदान किया जा सकता है। वैसे भी जन्म के समय खोपड़ी की असामान्यताएं आसानी से नजर आने लगती हैं। शिशुओं में खोपड़ी का कुछ हिस्सा और कुछ में खोपड़ी का अधिकांश हिस्सा भी गायब दिखाई दे सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक गर्भावस्था के 14 से 18वें सप्ताह के दौरान हुए टेस्ट में ऐनिन्सेफली का पता लगाया जा सकता है।

ऐनिन्सेफली के निदान के लिए आमतौर पर निम्न प्रकार के परीक्षणों को प्रयोग में लाया जाता है।

खून की जांच : लिवर प्रोटीन (अल्फा-फीटोप्रोटीन) का उच्च स्तर ऐनिन्सेफली को इंगित करता है।

एमिनोसेंथिसिस : भ्रूण के आसपास के एमनियोटिक थैली से निकाले गए द्रव को परीक्षण के लिए भेजकर कई प्रकार के मार्करों और असामान्य विकास का पता लगाया जाता है। अल्फा-फीटोप्रोटीन और एसिटाइलकोलिनेस्टरेज़ की बढ़ी हुई मात्रा न्यूरल ट्यूब दोष से जुड़ी मानी जाती है।

अल्ट्रासाउंड : उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों का उपयोग करते हुए भ्रूण की तस्वीर (सोनोग्राम) प्राप्त की जाती है। इस टेस्ट की मदद से ऐनिन्सेफली का पता लगाया जा सकता है।

भ्रूण का एमआरआई स्कैन : इस परीक्षण के माध्यम से चुंबकीय क्षेत्र और रेडियो तरंगें उत्पन्न करके भ्रूण की तस्वीर प्राप्त की जाती है। अल्ट्रासाउंड की तुलना में एमआरआई स्कैन की मदद से भ्रूण और स्पष्ट तस्वीर प्राप्त की जा सकती है।

ऐनिन्सेफली का इलाज - Anencephaly Treatment in Hindi

ऐनिन्सेफली का कोई इलाज नहीं है। जिन बच्चों का जन्म ऐनिन्सेफली की स्थिति में होता है उन्हें गर्म और आरामदायक वातावरण में रखा जाता है। यदि बच्चे के खोपड़ी का कोई हिस्सा गायब है, तो उस हिस्से को कवर किया जाता है। ऐनिन्सेफली की स्थिति के साथ जन्म लेने वाले शिशुओं का जीवन कुछ घंटे से कुछ दिनों का ही होता है। ऐसे बच्चे ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाते हैं, ऐसे में बच्चों को सिर्फ सहायक उपचार दिया जाता है।

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