सोयाबीन खाने के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं। हाल के सालों में शोधकर्ताओं ने अध्ययनों के आधार पर यह साबित किया है कि स्वास्थ्य लाभों के अलावा सोयाबीन या कहें इसके कंपाउंड कई बीमारियों के खतरे को कम करने में भी सहायक है। इनमें हृदय रोग, मोटापा और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां शामिल हैं। इसके अलावा हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए भी सोयाबीन का सेवन उपयुक्त विकल्प माना जाता है। अमेरिका की वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी (डब्ल्यूएसयू) के शोधकर्ताओं ने इस सिलसिले में एक नया अध्ययन किया है, जो बताता है कि हड्डी के कैंसर (बोन कैंसर) के ऑपरेशन के बाद चलने वाले इलाज में सोयाबीन फायदेमंद है।

डब्ल्यूएसयू का यह अध्ययन हाल में 'ऐक्टा बायोमटीरियलिया' नामक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसके मुताबिक, सोयाबीन आधारित केमिकल कंपाउंड बोन कैंसर सेल्स को कम करने में मददगार हैं। यह भी ज्ञात हुआ है कि फली आधारित यह पौधा हानि पहुंचाने वाली इन्फ्लेमेशन को भी कम करता है और स्वस्थ कोशिकाओं में बढ़ोतरी करता है।

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जानकार बताते हैं कि बायोमेडिकल डिवाइसेज की मदद से प्राकृतिक औषधीय पदार्थों को लेकर काफी ज्यादा शोधकार्य नहीं किया गया है। डब्ल्यूएसयू के स्कूल ऑफ मकैनिकल एंड मटीरियल्स इंजीनियरिंग की प्रोफेसर और इस अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता सुष्मिता बोस बताती हैं, 'इन कंपाउंड्स को लेकर ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है। इन प्राकृतिक दवाओं का इस्तेमाल कर मानव स्वास्थ्य को कम से कम या बिना किसी दुष्प्रभाव के बेहतर किया जा सकता है। हालांकि इस काम में (दवा का) कंपोजीशन कंट्रोल एक जटिल मुद्दा रहेगा।'

बोन कैंसर (ऑस्टियोसर्कोमा) की बात करें तो यह अपनेआप में एक दुर्लभ बीमारी है। यह ज्यादातर बच्चों और युवा वयस्कों को शिकार बनाती है। मेडिकल साइंस में हुई तमाम प्रगतियों के बावजूद बोन कैंसर और मेटास्टेटिक बोन कैंसर से पीड़ित होने पर मरीज के ठीक होने की संभावना कम होती है। बच्चों में कैंसर से होने वाली मौतों के लिए दूसरे नंबर ऑस्टियोसर्कोमा को जिम्मेदार बताया जाता है। इसके इलाज के लिए ट्यूमर की सर्जरी करनी पड़ती है। साथ ही, ऑपरेशन के पहले और बाद में कीमोथेरेपी चलती है। सर्जरी में कैंसरग्रस्त हड्डियों के बड़े हिस्से को निकालकर रिपेयर करना होता है। इस दौरान मरीजों को अक्सर ज्यादा मात्रा में इन्फ्लेमेशन का सामना करना पड़ता है। इससे इलाज की गति धीमी होती है। वहीं, सर्जरी के पहले और बाद में कीमोथोरेपी के तहत मिलने वाले हाई डोज भी कई प्रकार के साइड इफेक्ट दे सकते हैं।

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ऐसे में वैज्ञानिक इलाज के ज्यादा उदार या कहें कम तकलीफदेह विकल्प तलाश रहे हैं, खासतौर पर सर्जरी के बाद वाले ट्रीटमेंट के लिए। इस अवधि में मरीज क्षतिग्रस्त हड्डी से रिकवर होने की कोशिश कर रहे होते हैं। उसी दौरान वे ट्यूमर की ग्रोथ को रोकने के लिए ज्यादा भारी दवाएं लेते हैं। सुष्मिता बोस और उनकी टीम इसके लिए बोन टिशू इंजीनियरिंग को एक वैकल्पिक रणनीति के तौर पर देख रहे हैं और इसका अध्ययन कर रहे हैं। उनका प्रयास एडवांस मैन्युफैक्चरिंग तकनीकों की मदद से प्रभावी बायोमेडिकल डिवाइस तैयार करने का है, जोकि बोन रिपेयरिंग में एक अहम भूमिका निभाए।

इसके लिए अध्ययन के तहत 3डी प्रिंटिंग की मदद ली गई ताकि विशेष मरीजों के हिसाब से उनकी हड्डियों जैसे मटीरियल (या स्केफोल्ड) तैयार किए जा सकें। इस काम में सोया कंपाउंड्स की मदद ली गई। इन पदार्थों को धीरे-धीरे बोन कैंसर से प्रभावित और सामान्य रूप से स्वस्थ हड्डियों वाले सेल्स सैंपलों में डाला गया। सोयाबीन में आइसोफ्लेवन्स (पारदर्शी कंपाउंड) और पेड़-पौधों से मिलने वाले एस्ट्रोजन्स होते हैं। अध्ययन में पता चला है कि कैंसर सेल की ग्रोथ को रोकने में आइसोफ्लेवन मददगार हैं। साथ ही बोन हेल्थ को बढ़ाने और ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों की कमजोरी) के इलाज में भी लाभदायक हैं।

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अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि सोयाबीन का एक कंपाउंड (जिसका नाम ज्ञात नहीं है) बोन कैंसर कोशिका की जीवनक्षमता को 11 दिनों में 90 प्रतिशत तक कम करने में सक्षम है। वहीं, दो अन्य सोया पदार्थों या कंपाउंड स्वस्थ अस्थि कोशिकाओं को बढ़ाने में मददगार हैं। जानवरों पर आधारित मॉडलों के तहत किए परीक्षणों में यह भी जानने में आया कि सोया कंपाउंडों के इस्तेमाल से इन्फ्लेमेशन को कम किया जा सकता है, जोकि बोन हेल्थ के साथ-साथ संपूर्ण रिकवरी के लिहाज से लाभदायक है।

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