बोवेनॉइड पैपुलोसिस - Bowenoid Papulosis in Hindi

Dr. Ajay Mohan (AIIMS)MBBS

December 15, 2020

December 15, 2020

बोवेनॉइड पैपुलोसिस
बोवेनॉइड पैपुलोसिस

बोवेनॉइड पैपुलोसिस (बीपी) एक असामान्य यौन संचारित रोग है जो कि पुरुषों और महिलाओं दोनों में पाया जाता है। लेकिन यह उन युवाओं को ज्यादा प्रभावित करता है जो सेक्सुअली ऐक्टिव होते हैं। यह बीमारी अगर महिला में हो तो इसे योनिमुख (वल्वा) में होने वाला 'वल्वर इंट्राएपिथीलियल नियोप्लासिया (वीआईएन)' कहा जाता है और पुरुषों में इसे लिंग से जुड़ी परेशानी 'पीनाइल इंट्राएपिथीलियल नियोप्लासिया (पीआईएन)' के रूप में जाना जाता है।

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हालांकि, इस बीमारी का वर्गीकरण काफी भ्रमित करने वाला है क्योंकि इसमें तीन बीमारियां शामिल हैं - बीपी यानी बोवेनॉइड पैपुलोसिस, बोवेन की बीमारी और एरिथ्रोप्लासिया ऑफ क्वैरेट। दरअसल बोवेनॉइड पैपुलोसिस, ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) द्वारा फैलता है। इसके बाद गुप्तांग के हिस्से में त्वचा के ही रंग के एक या कई दाने हो जाते हैं। यह बीमारी दो सप्ताह से लेकर कई वर्षों तक बनी रह सकती है।

बोवेनॉइड पैपुलोसिस के लक्षण - Bowenoid Papulosis Symptoms in Hindi

बोवेनॉइड पैपुलोसिस एक दुर्लभ यौन संचारित संक्रमण है जिसमें जननांग में घाव हो जाता है और यह घाव जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है 2 हफ्ते से लेकर कई सालों तक बना रह सकता है। 

महिलाओं में इस बीमारी के लक्षण योनि के अंदर दिखाई देते हैं। योनि के अंदरूनी भाग जैसे क्लिटोरिस, पेड़ू और जांघ के जोड़ वाला हिस्सा जो मुड़ता है, लेबिया मेजर, लेबिया माइनर और ऐनस (गुदा) जैसी जगहों पर घाव या दाने हो सकते हैं। वहीं पुरुषों में बीमारी के लक्षण पेनिस की फोरस्किन, ग्लैन्स, शाफ्ट के साथ ऐनस पर भी दिखायी दे सकते हैं। बोवेनॉइड पैपुलोसिस बीमारी में होने वाले मस्से या घाव आमतौर पर भूरे या बैंगनी रंग के छोटे, ठोस, चिकने और उभरे हुए होते हैं। महिलाओं में दिखने वाला यह घाव पुरुषों की तुलना में ज्यादा गहरे रंग का होता है।

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नैशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर रेयर डिजीज के मुताबिक बोवेनॉइड पैपुलोसिस से पीड़ित कई रोगियों में अक्सर पहले से ही अन्य प्रकार के वायरल संक्रमण होते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि इस बीमारी से पीड़ित कुछ रोगियों में पहले से ही हर्पीज सिम्प्लेक्स, ह्यूमन पैपलोमो वायरस, वायरल वार्ट्स (मस्से) और एचआईवी के संक्रमण की पुष्टि हुई है।

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बोवेनॉइड पैपुलोसिस के कारण - Bowenoid Papulosis Causes in Hindi

बोवेनॉइड पैपुलोसिस एक यौन संचारित विकार है जो कि ह्यूमन पैपिलोमा वायरस टाइप 16 के कारण होता है। अन्य वायरसों के साथ ही शरीर का कमजोर इम्यून सिस्टम भी बोवेनॉइड पैपुलोसिस बीमारी को फैलाने में अहम भूमिका निभाता है। रिपोर्ट के अनुसार बोवेनॉइड पैपुलोसिस रोग, औसतन 30 साल की उम्र के पुरुषों और 32 साल की उम्र की महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करता है। हालांकि, इस बीमारी से पीड़ित रोगियों की उम्र तीन साल से 80 साल तक हो सकती है और इस बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है।

बोवेनॉइड पैपुलोसिस का निदान - Diagnosis of Bowenoid Papulosis in Hindi

बोवेनॉइड पैपुलोसिस का क्लिनिकल आकार विशिष्ट प्रकार का होता है और इसे डायग्नोज करने के लिए डर्मोस्कोपी की मदद ली जाती है या फिर स्किन बायोप्सी के जरिए इसे डायग्नोज किया जाता है। इस बीमारी के ऐसे कई लक्षण और संकेत हैं जो दूसरी बीमारियों से मिलते जुलते हैं और इसलिए बोवेनॉइड पैपुलोसिस का सही डायग्नोसिस हो सके इसके लिए इसे दूसरी बीमारियों से अलग करने की जरूरत होती है और इस प्रक्रिया को डिफरेंशियल डायग्नोसिस कहते हैं। इसके तहत जिन बीमारियों के लक्षण बोवेनॉइड पैपुलोसिस से मिलते जुलते हैं वे हैं: 

बोवेनॉइड पैपुलोसिस का इलाज - Bowenoid Papulosis Treatment in Hindi

बोवेनॉइड पैपुलोसिस के इलाज का मुख्य उद्देश्य बीमारी को असाध्य बनने से रोकना और साथ ही सामान्य ऊत्तकों के कार्य को भी संरक्षित करना है। चूंकि यह बीमारी आमतौर पर युवाओं को होती है और अक्सर ही नियंत्रण के बाहर हो जाती है इसलिए बोवेनॉइड पैपुलोसिस बीमारी को मैनेज करना चुनौतीपूर्ण होता है। इलाज के बिना बोवेनॉइड पैपुलोसिस के घाव या मस्से औसतन 8 महीने में वापस आ सकते हैं।

उपचार के तरीकों में कई चीजें शामिल है,जैसे- स्थानीय रूप में घाव को अलग करना या फिर कुछ ऐसी थेरेपीज जो हानिकारक हो सकती हैं जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड लेजर वेपराइजेशन, क्रायोथेरेपी, इलेक्ट्रोकॉग्यूलेशन, 5-अमीनोविलेनिक एसिड मिडिऐट फोटोडायनामिक थेरेपी, काटकर हटा देने वाली सर्जरी और 5 फ्लोरोएसिल।

इसके अलावा, इमिक्वीमोड क्रीम 5% को घाव पर स्थानीय रूप से लगाया जा सकता है दिन में एक बार लेकिन रोजाना नहीं बल्कि 1 दिन छोड़कर 1 महीने तक। बीपी से जुड़े कुछ निश्चित घाव या मस्से पर इस क्रीम ने बेहतर नतीजे दिए हैं। हालांकि, इलाज का कोई भी तरीका अपनाने पर बीमारी के दोबारा होने का खतरा बना रहता है।

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