सर्दी जुकाम को राइनाइटिस भी कहा जाता है। ये समस्‍या खासतौर पर एलर्जी या वायरल संक्रमण के कारण होती है एवं कई बीमारियों के सामान्‍य लक्षण के रूप में सर्दी जुकाम हो सकता है। इसे आयुर्वेद में प्रतिश्याय कहा गया है। इस स्थिति में नासिक श्‍लेष्‍म में सूजन, छींक, सिरदर्द, बहती नाक और बुखार रहता है। शरीर में वात दोष में असंतुलन आने पर सर्दी जुकाम की शिकायत हो सकती है।

शरीर में जमा श्‍लेष्‍म को बाहर निकालने के लिए पंचकर्म थेरेपी और अन्‍य चिकित्‍साओं जैसे कि नास्‍य (नासिका मार्ग से औषधि डालने की विधि), स्‍वेदन (पसीना लाने की विधि), वमन (औषधियों से उल्‍टी लाने की विधि), धूमपान (जड़ी बूटियों का धुआं देने की विधि) और बस्‍ती (एनिमा) का इस्‍तेमाल किया जाता है। इस प्रकार ये थेरेपियां शरीर में वात को संतुलित करती हैं। कई जड़ी बूटियां जैसे कि तुलसी, मारीच (काली मिर्च), अडूसा (वसाका), हरिद्रा (हल्‍दी) और अदरक भी सर्दी जुकाम के इलाज में बहुत असरकारी हैं।

ये जड़ी बूटियां विभिन्‍न रूप और खुराक में उपलब्‍ध हैं। पंचकर्म के साथ उचित निदान और नियमित औषधि एवं स्‍वस्‍थ जीवनशैली से सर्दी जुकाम की समस्‍या को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।

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  7. सर्दी जुकाम के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Sardi jukam ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
सर्दी जुकाम की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

सर्दी जुकाम या प्रतिश्याय एक ऐसी स्थि‍ति है जो श्‍वसन तंत्र को प्रभावित करती है और इसमें नाक की श्‍लेष्‍मा झिल्लियों में सूजन आ जाती है। इसके प्रमुख लक्षणों में बहती नाक, छींक आना, सिरदर्द, नाक से सफेद पानी आना, नाक और आंखों में खुजली होना एवं कभी-कभी बुखार होना शामिल है। ये स्थिति संक्रामक होती है लेकिन इसका इलाज संभव है।

आयुर्वेद के अनुसार इस स्थिति में कफ, पित्त या रक्‍त दोष, वात दोष की ओर जाने लगते हैं। इस वजह से वात दोष में असंतुलन के कारण प्रतिश्याय की समस्‍या उत्‍पन्‍न होती है। वात दोष में संतुलन लाकर इस स्थिति को ठीक या इससे बचा जा सकता है। लक्षण के आधार पर प्रतिश्याय को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:

  • वातज (वात के खराब होने के कारण): नाक से पानी और छींक आना
  • पित्तज (पित्त खराब होने के कारण): अत्‍यधिक सूजन जिसकी वजह से संक्रमण होना
  • फज (कफ के खराब होने के कारण): नाक से गाढ़ा और बदबूदार डिस्‍चार्ज होना और सिर में भारीपन महसूस होना
  • रक्‍तज (रक्‍त धातु के खराब होने के कारण): नाक से डिस्‍चार्ज होता है जिसमें खून के धब्‍बे भी होते हैं एवं आंखें लाल पड़ जाती हैं

(और पढ़ें - वात पित्त और कफ क्या हैं)

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सर्दी जुकाम के उपचार में इस स्थिति को नियंत्रित एवं दोबारा होने से रोका जाता है। सर्दी जुकाम अपक्‍व (शुरुआती स्थिति) या पुराना हो सकता है और जुकाम के प्रकार के आधार पर ही इसका उपचार निर्भर करता है। ये स्थिति पेट से शुरु होती है इसलिए इसमें सबसे पहले पाचन में सुधार लाने की सलाह दी जाती है। वाष्‍पशील तेलों (हवा में उड़ने वाले तेल) जैसे कि यू‍केलिप्‍टस को सूंघने से सर्दी जुकाम के सामान्‍य लक्षणों से राहत मिल सकती है। उपचार से श्‍वसन तंत्र में जमा श्‍लेष्‍म को हटाया और दोष को साफ किया जाता है।

  • लंघन
    • लंघन पाचन में सुधार लाने में मदद करता है। अपक्‍व प्रतिश्याय में पाचन तंत्र को साफ करने और शरीर में से खराब दोष को हटाने के लिए व्रत रखने की सलाह दी जा सकती है।
       
  • स्‍वेदन
    • स्‍वेदन, पंचकर्म की एक चिकित्‍सा है जिसमें पसीना लाने और प्रवाह को बढ़ाने के लिए स्‍वैट ग्‍लैंड्स को उत्तेजित किया जाता है। इस उपचार में लगभग 30 से 40 मिनट का समय लगता है। इसमें एक लकड़ी के चैंबर में कुछ औषधीय पौधों से बने काढ़े की भाप दी जाती है। स्‍टीम चैंबर में जाने से पहले स्‍वेदन कर्म किया जाता है। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने की विधि)
    • आमतौर पर अस्‍थमा, श्‍वसन संबंधित समस्‍याओं जैसे कि सर्दी जुकाम, जोड़ों में अकड़न और कई अन्‍य स्थितियों में स्‍वेदन का प्रयोग किया जाता है।
    • अगर किसी व्‍यक्‍ति की रूखी त्‍वचा है या उसे प्‍यास ज्‍यादा लगती है या वह व्‍यक्‍ति कमजोर है तो उसे स्‍वेदन की सलाह नहीं दी जाती है। गर्भवती महिलाओं के लिए भी स्‍वेदन कर्म हानिकारक साबित हो सकता है।
    • उपचार के बाद पर्याप्‍त आराम करने एवं शरीर को हाइड्रेट रखने की सलाह दी जाती है।
       
  • नास्‍य कर्म
    • इस उपचार का प्रमुख कार्य नाक की सूजन को कम करने और नाक से आने वाले चिपचिपे डिस्‍चार्ज को हटाना है।
    • नास्‍य दो तरह से किया जाता है: मार्ष नास्‍य में औषधीय तेल या घी को नाक में डाला जाता है। इसे प्रतिमार्ष नास्‍य कहा जाता है एवं यह नार्स्‍य कर्म रोज किया जाता है।
    • अवपीदक नास्‍य में पहले हर्बल दवाओं से तैयार पेस्‍ट या रस दिया जाता है और फिर उसके बाद नासिक मार्ग को साफ करने के लिए विरेचन नास्‍य किया जाता है।
    • आपको नास्‍य के साथ अपामार्ग बीज भी दिया जा सकता है जिसमें कटफल (कायफल) का अर्क मौजूद होता है। इसके पश्‍चात् अवपीदक नास्‍य किया जाता है। अणु तेल भी नाक में सूजन को कम करने में मददगार है।
    • सर्दी जुकाम के इलाज में षडबिंदु तेल (हर्बल रसों से युक्‍त), निर्गुण्डी तेल, शुंथि (सोंठ) नास्‍य या तुलस्‍यादि नास्‍य (तुलसी के अर्क से युक्‍त) भी दिया जा सकता है।
    • तेज बुखार और अपच से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को नास्‍य कर्म नहीं दिया जाता है। इसके अलावा जिस व्‍यक्‍ति ने हाल ही में व्रत रखा हो उस पर भी यह क्रिया नहीं की जाती है।
    • नास्‍य के बाद माथे, गालों, हथेलियों और गर्दन के पीछे हल्‍के हाथों से मालिश की जाती है। नास्‍य कर्म के बाद गर्म पानी से गरारे करने की भी सलाह दी जाती है।
       
  • धूमपान
    • धूमपान में विभिन्‍न औषधीय जड़ी बूटियों का धुआं नाक में दिया जाता है। नास्‍य कर्म के बाद जो दोष रह जाता है उसे धूमपान की मदद से साफ किया जाता है। इससे नासिका श्‍लेष्‍म सामान्‍य हो पाती हैं।
    • सर्दी जुकाम में इंगुदि और सत्तू (चने का पाउडर) के साथ धूमपान देना उपयोगी है।
    • नेबुलाइज़र (दवा डालने का उपकरण) के जरिए नाक में अदरक का अर्क भी डाला जा सकता है।
    • अगर आपको पित्तज प्रतिश्याय या त्‍वचा या आंखों में ड्राइनेस है तो धूमपान आपके लिए सही नहीं है।
       
  • बस्‍ती कर्म
    • प्रतिश्याय के लिए पंचकर्म थेरेपी में से बस्‍ती बहुत असरकारी है। बस्‍ती में औषधीय तेलों या अर्कों का एनिमा दिया जाता है।
    • ये वात दोष को संतुलित करने में मदद करता है। एनिमा आंतों और पाचन तंत्र के निचले हिस्‍सों में रहता है और शरीर से मल के जरिए सभी विषाक्‍त पदार्थों और असंतुलित वात दोष को बाहर निकाल देता है।
    • वातज प्रतिश्याय में अस्‍थापन (तेल के बिना) और अनुवासन (तेल के साथ) एनिमा दिया जाता है। रात के समय तेल या घी का एनिमा मरीज को दिया जाता है।
    • शिरोबस्‍ती में एक लयबद्ध तरीके से औषधीय तेल को माथे के ऊपर से डाला जाता है। सर्दी जुकाम में भी शिरोबस्‍ती की सलाह दी जाती है।
    • यह शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकालने की एक सुरक्षित प्रक्रिया है। बस्‍ती के बाद एक घंटे तक कुछ भी न खाने की सलाह दी जाती है।
    • गर्भवती महिलाओं, माहवारी, गुदा में सूजन और दस्‍त की स्थिति में बस्‍ती कर्म नहीं दिया जाता है।
       
  • नासप्रक्षालन
    • ये नासिका की सफाई करने वाली थेरेपी है। नासिक गुहाओं की वच क्‍वाथ (काढ़े) से सफाई की जाती है जिससे नासिक मार्ग में आ रही रुकावट दूर होती है। नासिक श्‍लेष्‍म से प्रदूषित हवा के प्रभाव को कम करने के लिए नियमित इस चिकित्‍सा का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
       
  • वमन कर्म
    • वमन कर्म में मुंह के जरिए शरीर से कफ और श्‍लेष्‍म को बाहर निकाला जाता है। इसमें उल्‍टी लाने के लिए विभिन्‍न जड़ी बूटियों के अर्कों को घी या मुलेठी और गन्‍ने के काढ़े में मिलाकर दिया जाता है।
    • ये उपचार सुबह के समय दिया जाता है।
    • कफज प्रतिश्याय की स्थिति में नमक के पानी से उल्‍टी लाई जाती है। इसे तिल और मश यवगु (अनाज का एक प्रकार) के साथ भी दिया जा सकता है।
    • उपचार के बाद व्‍यक्‍ति को तेज बात करने, अधिक खाने और शारीरिक थकान वाले कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है।
    • गर्भवती महिलाओं और ह्रदय से संबंधित समस्‍याओं एवं हाई बीपी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को वमन कर्म नहीं देना चा‍हिए। वृद्ध व्‍यक्‍ति और बच्‍चों को भी ये चिकित्‍सा नहीं देनी चाहिए।

सर्दी जुकाम के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • तुलसी
    • तुलसी की पत्तियां, जड़ और फूलों में औषधीय गुण पाए जाते हैं। तुलसी की कई किस्‍में मौजूद हैं।
    • सर्दी जुकाम के इलाज के लिए तुलसी की पत्तियों के अर्क या ताजे रस का शहद के साथ सेवन किया जाता है।
    • सभी उम्र के लोगों के लिए तुलसी का सेवन सुरक्षित है।
    • सूजन-रोधी और माइक्रोबियल-रोधी गुणों के कारण ये सर्दी जुकाम में होने वाली नाक में सूजन एवं संक्रमण से राहत दिलाने में मदद करती है।
    • इसमें इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण होते हैं जो कि हिस्‍टामाइन को रिलीज होने से रोकते हैं। हिस्‍टामाइन एलर्जी होने के दौरान पैदा होता है। तुलसी अपने इस गुण के कारण एलर्जिक राइनाइटिस में लाभकारी है।
       
  • अदरक
    • अदरक या शुंथि (सोंठ) का रस सर्दी जुकाम से राहत दिलाने में असरकारी है।
    • जुकाम के इलाज के लिए अदरक स्‍वरस (रस) को दूध या गन्‍ने के रस में मिलाकर ले सकते हैं। कई और चीजें बनाने में भी अदरक के रस का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • इसमें सूजन-रोधी और संक्रमण-रोधी गुण होते हैं जो कि सर्दी जुकाम के इलाज में असरकारी है।
    • अदरक से शररी में पित्त बढ़ सकता है और एसिड रिफलक्‍स हो सकता है। इकी वजह से पित्त प्रकृति वाले व्‍यक्‍ति में पित्त विकार हो सकते हैं इसिलए अदरक का सेवन सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
       
  • मारीच
    • सर्दी जुकाम में मारीच सूजन और जमे हुए कफ को कम करती है।
    • इसका इस्‍तेमाल पाउडर के रूप में शहद या पानी के साथ किया जाता है।
    • जुकाम के लक्षणों को कम करने के लिए मारीच के चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ ले सकते हैं।
    • इसमें माइक्रोबियल-रोधी और सूजन-रोधी गुण होते हैं जो कि सर्दी जुकाम के इलाज में मदद कर सकते हैं।
       
  • अडूसा
    • इस पौधे के कई हिस्‍सों जैसे कि पत्तियों, जड़ और फूलों में औषधीय गुण पाए जाते हैं।
    • अडूसा की पत्तियों का ताजा रस कफ निस्‍सारक कार्य करता है। ये श्‍वसन मार्ग में आ रही रुकावट को दूर कर बंद नाक से राहत दिलाता है।
    • इसके अर्क से बने वसकासव का इस्‍तेमाल पित्तज प्रतिश्याय में किया जाता है।
    • अडूसा के कारण गर्भपात हो सकता है इसलिए गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

सर्दी जुकाम के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • सितोपलादि चूर्ण
    • ये पांच जड़ी बूटियों जैसे कि मारीच, त्‍वक (दालचीनी), इला (इलायची), मिश्री और वंशलोचन का मिश्रण है।
    • इस चूर्ण को शहद या घी के साथ ले सकते हैं।
       
  • तालिसादि चूर्ण
    • इस चूर्ण को मारीच, पिप्‍पली, शुंथि, त्‍वक, इला और वंशलोचन से तैयार किया गया है।
    • सर्दी जुकाम से राहत पाने के लिए इस चूर्ण को शहद या घी के साथ भोजन से पहले लेना चाहिए।
       
  • व्‍योषादि वटी
    • सामान्‍य तौर पर इस औषधि का इस्‍तेमाल सभी प्रकार के प्रतिश्याय में किया जाता है। इसमें जीरक (जीरा), त्‍वक और इला मौजूद है।
    • बहती नाक, बंद नाक और सिरदर्द से राहत पाने के लिए इस वटी को खा सकते हैं।
       
  • त्रिकटु चूर्ण
    • इस चूर्ण में पिप्‍पली, मारीच और अदरक मौजूद है। ये सर्दी जुकाम की बेहतरीन दवा है।
    • इस मिश्रण को गुड़ या घी के साथ ले सकते हैं। हालांकि, इसका इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए क्‍योंकि इससे शरीर में पित्त बढ़ सकता है।
       
  • हरिद्रा खंड
    • छोटे-छोटे दानों के रूप में उपलब्‍ध हरिद्रा खंड की प्रमुख सामग्री हल्‍दी है। इसके अलावा इसमें पिप्‍पली, विडंग, त्रिवृत्त, मारीच, शुंथि और इलायची है।
    • हरिद्रा खंड एंटी-हिस्‍टामीनिक (एलर्जी का इलाज करने वाले) प्रभाव देती है जिससे सर्दी जुकाम में छींक कम आती है।
    • हल्‍दी में शक्‍तिशाली सूजन-रोधी और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण होते हैं जो कि सर्दी जुकाम के सभी लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
    • हरिद्रा खंड के दानों को गुनगुने पानी के साथ ले सकते हैं।
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क्‍या करें

क्‍या न करें

  • ठंडी और सूखी चीजें खाने से बचें।
  • शराब का सेवन न करें। (और पढ़ें - शराब पीने के नुकसान)
  • ठंडे मौसम एवं तापमान से दूर रहने की कोशिश करें।
  • ठंडे पानी से न नहाएं।
  • धूल-मिट्टी से दूर रहें।

एक अध्‍ययन में गंभीर रूप से जुकाम से ग्रस्‍त लोगों को कुछ समय के लिए रोज आयुर्वेदिक औषधियां और नास्‍य उपचार दिया गया। 3 महीने के भीतर सभी लोगों को जुकाम के लक्षणों से पूरी तरह से राहत मिली और नाक की श्‍लेष्‍मा झिल्लियां वापिस से ठीक हो गईं।

एक अन्‍य चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में सर्दी जुकाम से ग्रस्‍त 45 मरीजों को पचंकर्म उपचार में शादबिंदु घृत नस्य कर्म के साथ हरिद्रा खंड औषधि दी गई। प्रतिभागियों को एक महीने तक नास्‍य और नियमित दवा के सेवन से सर्दी जुकाम के लक्षणों से पूरी तरह से राहत मिली। अध्‍ययन में कहा गया है कि उपचार के इन तरीकों ने बीमारी को बढ़ने से रोकने और उसका इलाज करने का काम किया है।

आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की देख-रेख में ही पंचकर्म थेरेपी और आयुर्वेदिक औषधियों का इस्‍तेमाल असरकारी एवं सुरक्षित रहता है।

(और पढ़ें - सर्दी जुकाम होने पर क्या करना चाहिए)

जुकाम के लिए इस्‍तेमाल होने वाली अधिकतर औषधियां सुरक्षित हैं। हालांकि, अगर आयुर्वेदिक थेरेपी और औषधियों का सही तरह से इस्‍तेमाल न किया जाए तो इनके हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं।

  • छोटे बच्‍चों और कमजोर व्‍यक्‍ति को पंचकर्म थेरेपी नहीं देनी चाहिए। गर्भवती महिलाओं और माहवारी के दौरान भी आयुवेर्दिक थेरेपी एवं दवाएं नहीं लेनी चाहिए।
  • अगर लंबे समय तक स्‍वेदन चिकित्‍सा ली जाए तो इसके दौरान मरीज को चक्‍कर आ सकते हैं।
  • यदि वमन जैसे उपचारों को ठीक तरह से न लिया जाए तो इसकी वजह से उल्‍टी में झाग या खून आने की शिकायत हो सकती है।
  • अत्‍यधिक मात्रा में अदरक लेने से पित्त प्रकृति वाले व्‍यक्‍ति को एसिडिटी हो सकती है और त्रिकटु चूर्ण शरीर में पित्त का स्‍तर बढ़ा सकता है।
  • इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की देख-रेख में ही दवाओं और उपचार का प्रयोग बेहतर होता है।
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प्रतिश्याय या सर्दी जुकाम प्रमुख तौर पर एलर्जी या वायरल संक्रमण के कारण होता है। आयुर्वेदिक चिकित्‍सक द्वारा बताए गए उचित निदान और उपचार से इस स्थिति को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार बीमारी को बढ़ने से रोकते हैं और इसका इलाज करते हैं। सही समय पर बीमारी का पता चलने और डॉक्‍टर द्वारा बताए गए आहार का सख्‍ती से पालन करके रोग के लक्षणों को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है। पंचकर्म थेरेपी और सही खुराक में आयुर्वेदिक औषधियां सर्दी जुकाम के इलाज में असरकारी साबित हो सकती हैं।

(और पढ़ें - सर्दी जुकाम में क्या खाएं)

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