अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ अलाबामा के वैज्ञानिकों ने क्रोन रोग के इलाज के लिए तैयार किए गए एक नए ट्रीटमेंट मेथड का डेमोन्स्ट्रेशन करके दिखाया है। उन्होंने चूहों में इस मेथड के जरिये इम्यून-रिएक्टिव टी सेल्स का इस्तेमाल कर सकारात्मक परिणाम हासिल करने का दावा किया है। अध्ययन में शामिल एक शोधकर्ता चार्ल्स ओ एल्सन ने क्रोन रोग के इलाज के लिए नए मेथड के तहत टी सेल्स के एक सबसेट पर फोकस किया है, जिसे टी मेमरी या टीएम सेल्स कहते हैं। खबर के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने क्रोन रोग से ग्रस्त चूहों में या तो टीएम सेल्स हटा दिए या उनमें टी रेग्युलेटरी अथवा ट्रेग सेल्स नाम की कोशिकाओं की वृद्धि कर दी। अध्ययन रिपोर्ट कहती है कि इन दोनों प्रकार के ट्रीटमेंट से टी सेल में कोलाइटिस को रोकने में कामयाबी मिली है। वहीं, वैज्ञानिकों ने जब क्रोन रोग के पीड़ितों के ब्लड सैंपलों पर यह मेथड आजमाया तो उनमें भी मौजूद इम्यून-रिएक्टिव टी सेल्स सीडी4-पॉजिटिव में इसी प्रकार के सकारात्मक प्रभाव दिखाई दिए हैं।

इन परिणामों को अध्ययन समेत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान व मेडिकल पत्रिका साइंस इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। रिपोर्ट में परिणामों पर बात करते हुए प्रोफेसर एल्सन का कहना है कि इनसे आंत में इन्फ्लेमेशन पैदा करने वाली इस बीमारी को रोकने या इसमें सुधार करने वाली संभावित इम्यूनोथेरेपी को तैयार करने में मदद मिल सकती है। इसके लिए यह समझने की जरूरत है कि ट्रिपल-पंच ट्रीटमेंट इस बीमारी के खिलाफ कैसे और क्यों काम करता है। बता दें कि अध्ययन में चूहों के शरीर से टीएम सेल्स निकालने या ट्रेग सेल्स बढ़ाने के लिए इसी ट्रीटमेंट की मदद ली गई थी। 

टी सेल्स को मानव शरीर के इम्यून सिस्टम की सबसे महत्वपूर्ण कोशिका माना जाता है। इन सेल्स के कई प्रकार होते हैं, जो अलग-अलग समस्याएं होने पर अलग-अलग भूमिका निभाते हैं। इन कोशिकाओं की आयु या जीवनकाल भी अलग-अलग होता है। मसलन, संक्रमणों से लड़ने वाले टी इफेक्टर सेल्स का जीवनकाल कम होता है। वहीं, टी मेमरी सेल्स की आयु ज्यादा होती है। ये कोशिकाएं हमारे लिए पहरेदार की तरह काम करती हैं और पिछली बार बीमारी के दौरान घातक प्रोटीनों से हुई लड़ाई को याद रखती हैं। मेडिकल जानकार और विशेषज्ञ टी मेमरी सेल्स को शांत कोशिकाएं बताते हैं, जिनका मेटाबॉलिज्म लेवल कम होता है। अगर किसी रोगाणु से जुड़े प्रोटीन (फ्लेजलिन) के साथ उनका नया सामना होता है तो वे एक गहरे मेटाबॉलिक ट्रांजिशन में चले जाते हैं और तेजी के साथ बड़ी संख्या में रोगजनक टी इफेक्टर सेल्स को फैला देते हैं।

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नए अध्ययन के मुताबिक, इस मेटाबॉलिक स्विच को एमटीओआर नाम के एक सिग्नलिंग प्रोटीन द्वारा कंट्रोल किया जाता है, जो टीएम सेल में पाया जाता है। यानी टी सेल के फैलने के लिए एमटीओआर की सक्रियता जरूरी है। ऐसा होने पर शरीर में एक ऐसा मेटाबॉलिक चेकपॉइंट क्रिएट होता है, जो सक्रिय टीएम सेल्स को पैदा करने का काम करता है। इस चेकपॉइंट पर टी नेइव सेल्स का भी निर्माण होता है, जो क्रोन रोग को बढ़ा रहे फ्लेजलिन प्रोटीन को रोकने का काम पहली बार कर रहा होता है। इस जानकारी के आधार पर प्रोफेसर एल्सन और उनकी टीम ने अनुमान लगाया कि फ्लेजलिन एंटीजन्स के कारण सीडी4-पॉजिटिव टीएम या टी नेइव सेल्स के एक्टिवेट होने पर एक विशेष एंटीजन के चलते पैदा होने वाले सामान्य इम्यून रेस्पॉन्स की मौत हो जाती है या वह शांत हो जाता है। अध्ययन रिपोर्ट में इस एंटीजन का नाम 'एनर्जी' बताया गया है।

नए मेथड के तहत शोधकर्ताओं ने मेटाबॉलिक चेकपॉइंट को बंद करने का फैसला किया। इसके लिए वैज्ञानिकों ने दो मौजूदा ड्रग्स रैपामाइसिन और मेटफॉर्मिन का इस्तेमाल किया। उन्होंने बताया कि रैपामाइसिन एमटीओआर को सीधे तौर पर रोकता है और मेटफॉर्मिन, एमपीएके नाम के काइनेस (एक एंजाइम) को एक्टिवेट कर इस अवरोध को एक तरह से बूस्ट करने का काम करता है। शोधकर्ताओं की मानें तो यह एंजाइम एमटीओआर की गतिविधि को नकारात्मक रूप से नियंत्रित करता है।

क्रोन रोग के इलाज के लिए तैयार किए गए इस ट्रीटमेंट मेथड को प्रोफेसर एल्सन ने 'सेल एक्टिवेशन विद कॉन्कोमिटेंट मेटाबॉलिक चेकपॉइंट इनहिबिशन' या सीएएमसीआई का नाम दिया है। अध्यय के तहत किए गए प्रयोग में चूहों पर यह मेथड सफल हुआ है। इसमें विशेष माइक्रोबायोटा फ्लेजलिन सीडी4-पॉजिटिव टी सेल्स को सफलतापूर्वक टार्गेट किया गया है, जिससे एंटीजन से पैदा होने वाले विशेष सीडी4-पॉजिटिव टी सेल्स की मौत हो गई, बीमारी के डेवलेपमेंट में रुकावट हुई और सीडी4-पॉजिटिव इम्यून रेस्पॉन्स का रीएक्टिवेशन भी गड़बड़ा गया। वहीं, सीडी4-पॉजिटिव ट्रेग सेल रेस्पॉन्स की शुरुआत हुई, जो बीमारी के खिलाफ इस मेथड का एक सकारात्मक पहलू है। इससे वैज्ञानिकों को चूहों में कोलाइटिस को रोकने में मदद मिली है। साथ ही, क्रोन रोग के मरीजों के शरीर से आइसोलेट किए गए ब्लड सैंपलों में मौजूद माइक्रोबायोटा-फ्लेजलिन-स्पेसेफिक सीडी4-पॉजिटिव टी सेल्स पर भी इसी तरह के प्रभाव दिखे हैं।

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