डीजेनेरेटिव डिस्क डिजीज (डिस्क कमजोर होना) - Degenerative Disc Disease in Hindi

Dr. Nadheer K M (AIIMS)MBBS

January 04, 2020

March 06, 2020

डीजेनेरेटिव डिस्क डिजीज
डीजेनेरेटिव डिस्क डिजीज

डीजेनेरेटिव डिस्क डिजीज क्या है?

डीजेनेरेटिव डिस्क डिजीज (डीडीडी) को अपकर्षक कुंडल रोग भी कहा जाता है। रीढ़ की हड्डी में मौजूद एक या एक से ज्यादा डिस्क के कमजोर होने पर यह स्थिति उत्पन्न होती है। डीडीडी कोई बीमारी नहीं बल्कि समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ने वाली स्थिति है, ये किसी चोट या किसी अन्य कारण से हो सकती है। डिस्क, रीढ़ की हड्डी के वर्टिब्रा के बीच में होती हैं। वर्टिब्रे को कशेरुका भी कहा जाता है।
यह डिस्क शॉक एब्जॉर्बर (चोट या झटकों से बचाने वाला) और कुशन की तरह काम करती हैं। यह पीठ को लचीला बनाए रखने में मदद करती हैं, जिससे कि आप झुक व मुड़ सकें। इसके अलावा यह सीधा खड़े होने में भी मदद करती हैं। कुछ लोगों में डिस्क टूटने लगती हैं या ठीक तरह से काम नहीं कर पाती है। समय के साथ डीडीडी की समस्या और खराब हो सकती है, जिसकी वजह से हल्के से लेकर तेज दर्द हो सकता है जो कि रोजमर्रा के काम करने में भी दिक्कत पैदा कर सकता है।

डीजेनेरेटिव डिस्क डिजीज के लक्षण

डीडीडी से ग्रस्त व्यक्ति को पीठ और गर्दन पर बहुत तेज या लगातार दर्द महसूस होगा। हालांकि इसके सटीक लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि कमजोर डिस्क कहां पर है। डीडीडी में निम्न जगहों पर दर्द महसूस हो सकता है:

  • पीठ के निचले हिस्से, कूल्हों या जांघ के ऊपरी हिस्से में दर्द
  • दर्द थोड़ी-थोड़ी देर में होता रहता है। दर्द होने पर टीस उठ सकती है या तेज दर्द भी हो सकता है जो कि कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों तक प्रभावित कर सकता है।
  • बैठने पर दर्द बढ़ जाता है लेकिन चलने और हिलने पर बेहतर महसूस होता है
  • झुकने, उठने और मुड़ने पर दर्द बढ़ जाता है
  • पोजीशन बदलने या लेटने पर बेहतर महसूस होता है

कुछ मामलों में डीडीडी की स्थिति में हाथ और पैरों में सुन्नता और झुनझुनी जैसी समस्या हो सकती है। इसकी वजह से आपके पैर की मांसपेशियां भी कमजोर हो सकती हैं। इसका मतलब है कि क्षतिग्रस्त डिस्क रीढ़ के पास की नसों को प्रभावित कर सकती हैं।

डीजेनेरेटिव डिस्क डिजीज का कारण

डीडीडी का प्रमुख कारण उम्र के साथ प्राकृतिक रूप से स्पाइनल डिस्क को नुकसान पहुंचना है। समय के साथ ये डिस्क अपने आप ही सूखने लगती हैं और अपना सपोर्ट एवं क्रियाशीलता खो देती हैं। इसकी वजह से दर्द और डीडीडी के अन्य लक्षण सामने आ सकते हैं। डीडीडी की समस्या 30 या 40 वर्ष की उम्र में विकसित होना शुरू हो सकती है और फिर धीरे-धीरे स्थिति खराब होती चली जाती है। यह स्थिति किसी चोट या किसी खेल या एक ही तरह का काम बार-बार करने की वजह से डिस्क के अधिक प्रयोग के कारण हो सकती है। एक बार डिस्क के क्षतिग्रस्त होने पर ये अपने आप ठीक नहीं हो सकती है।

डीजेनेरेटिव डिस्क डिजीज का इलाज

  • दवाइयां:
    एस्पिरिन और इबुप्रोफेन जैसी ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक दवाइयां (डॉक्टर के पर्चे के बिना सीधे मेडिकल स्टोर से ली जाने वाली दवाइयां) सूजन को ठीक करने में मदद कर सकती हैं। यदि जरूरत हो तो डॉक्टर दर्द के लिए एक हाई डोज वाली दवा भी दे सकते हैं।
     
  • फिजिकल थेरेपी:
    कुछ विशेष प्रकार की गतिविधियां करने से गर्दन और पीठ की मांसपेशियां मजबूत एवं अधिक लचीली होती हैं। इससे रीढ़ की हड्डी को सपोर्ट मिलता है। ज्यादातर मामलों में, फिजिकल थेरेपी और दर्द निवारक दवा लंबे समय तक राहत दिलाने के लिए काफी हैं।
     
  • स्टेरॉयड दवाएं: दर्द, जलन और सूजन को कम करने के लिए इन दवाओं का उपयोग किया जाता है। ये दवाएं तेजी से असर करती हैं।
     
  • सर्जरी: यदि डीडीडी के मामले में अन्य उपचार काम नहीं करते हैं, तो डॉक्टर सर्जरी करने की सलाह दे सकते हैं। इसमें जो सर्जरी की जाती है उसे डिसेक्टॉमी कहते हैं। इसमें डिस्क के क्षतिग्रस्त हिस्से को निकाल दिया जाता है, जिससे नसों पर दबाव पड़ना बंद हो जाता है।

कुछ गंभीर मामलों में पूरी डिस्क निकालने की जरूरत पड़ सकती है और इसकी जगह एक आर्टिफिशियल डिस्क लगा दी जाती है। अगर आप बढ़ती उम्र में इस स्थिति से बचना चाहते हैं तो नियमित व्यायाम करते रहें और संतुलित आहार लें। इन दो चीजों के मेल से कई बीमारियों से बचा जा सकता है।



डीजेनेरेटिव डिस्क डिजीज (डिस्क कमजोर होना) के डॉक्टर

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