आयुर्वेद में डेंगू को दंडक ज्‍वर कहा गया है। इसमें एडीज एजिप्‍टी मच्‍छर के काटने पर बहुत तेज मौसमी बुखार होता है। डेंगू के लक्षणों में तेज बुखार, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द एवं प्‍लेटलेट्स की संख्‍या में कमी शामिल हैं। रोग की स्थिति के आधार पर अन्‍य लक्षण जैसे कि चकत्ते, जी मितली, उल्‍टी, ब्‍लीडिंग, ऐंठन आदि भी देखने को मिलते हैं।

(और पढ़ें - प्लेटलेट्स क्या है) 

डेंगू बुखार को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेद में विभिन्‍न उपचारों का उल्‍लेख किया गया है जिसमें लंघन (व्रत), दीपन (भूख बढ़ाने की विधि), पाचन (पाचक) और मृदु स्‍वेदन (पसीना लाने की विधि) शामिल हैं। डेंगू के इलाज के लिए जड़ी बूटियों में पपीते के बीज, गुडूची, आमलकी, गेहूं के जवारे, रसोनम (लहसुन), तुलसी और नीम का इस्‍तेमाल किया जाता है।

आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां मच्‍छर के डंक से बचाती हैं और प्रतिरक्षा तंत्र के कार्य को बढ़ाती हैं जिससे डेंगू से बचाव एवं इलाज में मदद मिलती है। डेंगू को नियंत्रित करने के लिए औषधियों में त्रिभुवन कीर्ति रस, गुडूच्‍यादि कषाय, संजीवनी वटी, वसंत सुकुमार, सूतशेखर, सुदर्शन चूर्ण, वासावलेह, लाक्षा गोदंती चूर्ण और पद्मकादि तेल का इस्‍तेमाल किया जाता है। 

(और पढ़ें - वायरल बुखार में क्या करें)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से डेंगू - Ayurveda ke anusar Dengue
  2. डेंगू का आयुर्वेदिक उपचार - Dengue ka ayurvedic ilaj
  3. डेंगू की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Dengue ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार डेंगू में क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Dengue kam karne ke liye kya kare kya na kare
  5. डेंगू की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Dengue ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. डेंगू की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Dengue ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. डेंगू की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Dengue ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
डेंगू बुखार की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद के अनुसार ज्‍वर (बुखार) एक सामान्‍य समस्‍या है जोकि अपने आप में एक रोग या किसी अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या के लक्षण के रूप में हो सकती है। ये शरीर और मन दोनों को ही प्रभावित करता है। बुखार शरीर के सभी धातुओं और दोषों को प्रभावित करता है।

(और पढ़ें - वात पित्त और कफ क्या हैं

डेंगू एक सन्निपातज रोग है जो कि पित्त बढ़ने के कारण होता है। इसे प्रमुख तौर पर तेज बुखार और रक्‍त धातु के बढ़ने के रूप में देखा जाता है। डेंगू में वात के लक्षणों में जोड़ों और बदन में दर्द जबकि कफ के लक्षणों में खांसी एवं सर्दी-जुकाम होता है। डेंगू के फैलने का प्रमुख कारण शहरीकरण, पानी की अव्यवस्थित आपूर्ति, बढ़ती जनसंख्‍या और कीटनाशक प्रतिरोधी मच्छरों के बढ़ने की वजह से अधिक मात्रा में मच्‍छरों का पैदा होना है।

डेंगू बुखार से पहले निम्‍नलिखित विभिन्‍न लक्षण और संकेत सामने आते हैं:

दंडक ज्‍वर के लक्षाणें में हड्डियों के टूटने जैसा दर्द या जोड़ों में तेज दर्द, गले में खराश, खांसी, कमर दर्द, आंखों में दर्द, उल्‍टी, सिरदर्द, चकत्ते एवं सर्दी-जुकाम शामिल हैं। डेंगू के सबसे महत्‍वपूर्ण लक्षणों में से एक प्‍लेटलेट्स का कम होना भी है और कुछ लोगों के मुंह या रोमछिद्रों से खून भी आता है जिसकी वजह से प्लेटलेट्स की संख्‍या कम होने लगती है। 

(और पढ़ें - प्लेटलेट्स बढ़ाने के उपाय)

डेंगू एक गंभीर स्थिति है जिसके कारण व्‍यक्‍ति को बहुत ज्‍यादा कमजोरी हो जाती है। तेज बुखार, कमजोरी और दुबर्ल व्‍यक्‍ति में डेंगू बुखार को नियंत्रित करने के लिए पंचकर्म थेरेपी में से विरेचन (शुद्धिकरण), वमन (औषधियों से उल्‍टी), बस्‍ती (एनिमा), नास्‍य (नाक से औषधि डालना) और रक्‍तमोक्षण (खून निकालने की विधि) की सलाह नहीं दी जाती है। डेंगू के इलाज में निम्‍न आयुर्वेदिक उपचारों का इस्‍तेमाल किया जाता है:

  • लंघन
    • ज्‍वर के प्रमुख उपचारों में से एक लंघन भी है। लंघन में व्‍यक्‍ति को व्रत पर रखा जाता है या दीपन (भूख बढ़ाने वाली) औषधियों के साथ कम खाना या हल्‍का भोजन दिया जाता है। किसी भी रोग के इलाज के लिए व्‍यक्‍ति की प्रकृति के आधार पर लंघन प्रक्रिया का चयन किया जाता है। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने का तरीका
    • इस प्रक्रिया के दौरान व्‍यक्‍ति को तब तक व्रत पर रखा जाता है जब तक कि उसे भूख का अहसास न होने लगे। इसके बाद उसे हल्‍के और आसानी से पचने वाले भोजन के साथ अदरक या पिप्‍पली से युक्‍त उबला पानी दिया जाता है।  
    • अधिकतर मामलों में बुखार का कारण अमा (विषाक्‍त पदार्थ) और खराब दोष ही होता है एवं लंघन में शरीर में मौजूद अमा एवं खराब दोष का पाचन किया जाता है। बुखार के कारण का इलाज कर लंघन से शरीर में हल्‍कापन लाने में मदद मिलती है।
       
  • दीपन और पाचन
    • डेंगू के कारण मरीज़ का शरीर कमजोर हो जाता है एवं उसकी पाचन क्षमता और पाचन अग्‍नि भी घट जाती है। दीपन और पाचन जड़ी बूटियों एवं औषधियों से भूख में सुधार तथा पाचन को उत्तेजित किया जाता है। इससे शरीर को पर्याप्‍त पोषण मिलता है और संपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य में भी सुधार आता है। (और पढ़ें - पाचन शक्ति बढ़ाने के उपाय
    • घृत (क्‍लैरिफाइड मक्‍खन: वसायुक्त मक्खन से दूध के ठोस पदार्थ और पानी को निकालने के लिए दूध के वसा को हटाना) पाचन अग्नि को उत्तेजित करता है और खाने को ठीक तरह से पचाता है। भूख बढ़ाने एवं पाचन में सुधार के लिए शुंथि घृत, दशमूलारिष्‍ट, पिपल्‍यादि घृत, चित्रकादि वटी आदि औषधियों की सलाह दी जाती है।
       
  • मृदु स्‍वेदन
    • स्‍वेदन (पसीना लाने की विधि) में विभिन्‍न प्रक्रियाओं से पसीना लाया जाता है। डेंगू की वजह से मरीज़ बहुत कमजोर हो जाता है इसलिए डेंगू की स्थिति में स्‍वेदन की किसी कठोर प्रक्रिया का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए। (और पढ़ें - कमजोरी कैसे दूर करें
    • मृदु स्‍वेदन का मतलब है हल्‍का एवं सौम्‍य स्‍वेदन जिसमें चादर या ऊनी कपड़े का इस्‍तेमाल कर पसीना लाया जाता है।
    • मृदु स्‍वेदन में गर्म पानी पीने की भी सलाह दी जाती है।
    • डेंगू बुखार के इलाज में शुंथि (सोंठ) लेप को माथे पर लगाया जाता है। 

डेंगू के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • पपीते की पत्तियां
    • पपीते की पत्तियां डेंगू के प्रमुख कारणों में से एक डीईएन-2 वायरस पर वायरस रोधी प्रभाव डालती हैं।
    • पपीते की पत्तियों के रस को प्‍लेटलेट की संख्‍या बढ़ाने के लिए जाना जाता है। डेंगू के लक्षणों से राहत पाने के लिए भी इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है। पपीते की पत्तियां विटामिन ए, विटामिन सी और विटामिन ई का बेहतरीन स्रोत हैं जो डेंगू के मरीज़ को जल्‍दी ठीक होने में मदद करते हैं एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर शरीर को पोषण प्रदान करते हैं। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए क्या खाएं
       
  • गुडूची
  • गेहूं के जवारे
    • गेहूं के जवारे शरीर में नमी के स्‍तर को प्रभावित किए बिना तरल एवं डेंगू वायरस को खत्‍म करते हैं। इस वायरस के खत्‍म होने से मरीज़ की हालत में जल्‍दी सुधार आता है।
       
  • आमलकी
    • आमलकी पाचन, परिसंचरण और श्‍वसन प्रणाली पर कार्य करती है। ये शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करता है।
    • आमलकी में उच्‍च मात्रा में चिकित्‍सकीय कार्य करने वाला विटामिन सी मौजूद होता है। ये खून, हड्डियां, को‍शिकाएं और ऊतक बनाने में मदद करती है एवं बुखार, लिवर और प्‍लीहा की कमजोरी एवं ऊतकों की कमी को नियंत्रित करने में उपयोगी है। ये जड़ी बूटी खून में लाल रक्‍त कोशिकाओं को भी बढ़ाती है।
    • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली आमलकी डेंगू के मरीज़ों में होने वाले संक्रमण से भी बचाती है।
       
  • रसोनम
    • रसोनम शरीर के विभिन्‍न तंत्रों जैसे कि तंत्रिका, श्‍वसन, परिसंचरण, पाचन और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करता है। ये अमा को साफ कर शरीर की प्रणाली को ऊर्जा प्रदान करता है।
    • लहसुन डेंगू वायरस को बढ़ने से रोकता है। खांसी, दौरे पड़ने, बवासीर, लकवा और गठिया जैसे रोगों को नियंत्रित करने में भी लहसुन कारगर है।
       
  • तुलसी
    • तुलसी पाचन, श्‍वसन और तंत्रिका तंत्र पर कार्य करती है। इसमें जीवाणुरोधी, ऐंठनरोधी, दर्द निवारक और रोगाणुरोधक गुण मौजूद होते हैं।
    • ये बुखार, खांसी और जुकाम की उत्तम दवा है क्‍योंकि ये अमा को खत्‍म कर इम्‍युनिटी को बढ़ाती है। (और पढ़ें - बच्चों की इम्यूनिटी कैसे बढ़ाएं
    • तुलसी दर्द और सूजन को भी कम करती है। इसे जूस, अर्क, पाउडर या घृत के रूप में ले सकते हैं।
       
  • नीम
    • नीम पाचन, मूत्र, परिसंचरण और श्‍वसन प्रणाली पर कार्य करती है। ये खून को साफ और शुद्ध भी करती है। ये मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द एवं सूजन को नियंत्रित करने में उपयोगी है। बुखार, जी मितली और उल्‍टी में भी इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • ये लिवर को साफ करती है और डेंगू वायरस को बढ़ने से रोकती है।
    • डेंगू के साथ-साथ नीम का इस्‍तेमाल मेलरिया और पीलिया के इलाज में भी उपयोगी है। (और पढ़ें - पीलिया का आयुर्वेदिक इलाज

डेंगू के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • त्रिभुवनकीर्ति रस
    • ये एक हर्बो-मिनरल औषधि है जिसमें विभिन्‍न सामग्रियां मौजूद हैं। ये तुलसी, धतूरा और अदरक आदि जड़ी बूटियों का मिश्रण है।
    • प्रधान दोष के आधार पर अन्‍य औषधि के साथ इसका इस्‍तेमाल किया जाता है जैसे कि कफ प्रधान रोग में त्रिभुवन कीर्ति रस के साथ गोदंती की भस्‍म (ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई), श्रृंग या अभ्रक एवं पित्त प्रधान में अभ्रक भस्‍म के साथ दिया जा सकता है।
    • त्रिभुवन कीर्ति रस पसीना लाकर और दर्द को दूर कर बुखार का इलाज करता है। इसके अलावा ये विभिन्‍न रोगों जैसे कि फैरिंजाइटिस (गले में सूजन), निमोनिया, ब्रोंकाइटिस, माइग्रेन, इंफ्लुएंजा, लैरिंजाइटिस (गले में दर्द), खसरा और टॉन्सिलाइटिस को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकता है। (और पढ़ें - गले में दर्द का होम्योपैथिक इलाज
       
  • गुडूच्‍यादि कषाय
    • इस मिश्रण में गुडूची, बकम, नीम, धनिया, रक्‍तचंदन मौजूद है।
    • ये बुखार और उल्‍टी को नियंत्रित करने में उपयोगी है इसलिए गुडूच्‍यादि रस डेंगू पर चिकित्‍सकीय प्रभाव दिखाने में असरकारी है।
       
  • संजीवनी वटी
    • ये एक आयुर्वेदिेक गोली है जिसमें शुंथि, त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण), गुडूची, यष्टिमधु (मुलेठी), भल्लातक और वत्‍सनाभ जैसी सामग्रियां मौजूद हैं।
    • संजीवनी वटी में बुखार को कम करने वाले गुण होते हैं और इस वजह से ये बुखार, सिरदर्द और पेट से जुड़ी परेशानियों को दूर करने में उपयोगी है। (और पढ़ें - पेट के रोग कारण और उपचार
       
  • सुदर्शन चूर्ण
    • सुदर्शन चूर्ण 48 जड़ी बूटियों से तैयार पाउडर है। इस औषधि की प्रमुख जड़ी बूटी चिरायता है। यह आयुर्वेदिक औषधि सभी प्रकार के बुखार के इलाज में लाभकारी मानी जाती है।
    • सुदर्शन चूर्ण थोड़े-थोड़े समय में होने वाले बुखार और दोष एवं धातु में असंतुलन के कारण होने वाले बुखार को ठीक करने में उपयोगी है। ये मलेरिया के इलाज में भी असरकारी है।
    • ये हर्बल मिश्रण सुदर्शन घन वटी के रूप में भी उपलब्‍या है जिसमें इस औषधि को गोली के रूप में इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • वासावलेह
    • ये एक पारंपरिक आयुर्वेदिक मिश्रण है जिसमें वासा, पिप्‍पली, चीनी, घृत और शहद प्रमुख सामग्रियों के रूप में मौजूद हैं।
    • ये प्‍लेटलेट की संख्‍या को बढ़ाता है और इस प्रकार ये डेंगू के लक्षणों में सुधार लाने के लिए उपयोगी है। ये डेंगू के मरीज़ों की संपूर्ण सेहत में भी सुधार लाता है।
       
  • सूतशेखर
    • सूतशेखर को विभिन्‍न सामग्रियों जैसे कि ताम्र (तांबा), शंख और लौह (आयरन) की भस्‍म, शुंथि, गंधक एवं दालचीनी से तैयार किया गया है।
    • सूतशेखर में हृदय को शक्‍ति देने वाले गुण मौजूद होते हैं। ये दोष को साफ करती है और परिसंचरण नाडियों एवं हृदय से दबाव को कम करती है। इस प्रकार डेंगू के मरीज़ को कमजोरी से राहत मिलती है।
    • सूतशेखर उन्‍माद (बेहोशी) से संबंधित बुखार को कम करने में उपयोगी है। ये खासतौर पर पित्त दोष बढ़ने के कारण हुए तेज बुखार के इलाज में असरकारी है, जैसे कि डेंगू।
       
  • वसंत कुसुमाकर
    • वसंत कुसुमाकर को सुवर्ण (सोना), रौप्‍य (चांदी), नाग (सीसा), अभ्रक, मौक्‍तिक (मोती) की भस्‍म और हरिद्रा, चंदन एवं वासा जैसी जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है।
    • वसंत कुसुमाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और शरीर को मजबूती प्रदान करता है। ये धातुओं में कमजोरी पैदा करने वाले रोगों के इलाज में उपयोगी है। चूंकि डेंगू रस और रक्‍त धातु को प्रभावित एवं शरीर को कमजोर बनाता है इसलिए मरीज़ को जल्‍दी ठीक होने के लिए वसंत कुसुमाकर औषधि दी जा सकती है।
    • ये विभिन्‍न रोगों जैसे कि टीबी, खांसी, डायबिटीज और वात रोगों को नियंत्रित करने में भी उपयोगी है।
       
  • लाक्षा गोदंती चूर्ण
    • डेंगू के मरीज़ों में ब्‍लीडिंग को रोकने के लिए पदमकादि तेल के साथ लाक्षा गोदंती चूर्ण दिया जाता है। (और पढ़ें - ब्लीडिंग कैसे रोकें

व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।

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क्‍या करें

  • अपने नियमित आहार में हल्‍के और पौष्‍टिक खाद्य पदार्थों को शामिल करें। (और पढ़ें - पौष्टिक आहार के फायदे)
  • रोज़ दूध पीएं क्‍योंकि इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
  • मूंग दाल का सूप और चिकन सूप पीएं क्‍योंकि इससे पर्याप्‍त मात्रा में प्रोटीन और एनर्जी मिलती है।(और पढ़ें - एनर्जी बढ़ाने का उपाय)
  • पानी की कमी से बचने के लिए नारियल पानी पीएं। इससे शरीर से विषाक्‍त पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं।
  • लिवर की सफाई के लिए जौ का पानी पीएं।
  • विटामिन सी के लिए रोज़ संतरे का जूस पीएं।
  • घर में तुलसी, लहसुन, पुदीना, मेहंदी जैसे मच्‍छरों को भगाने वाले पौधे लगाएं।
  • घर में कहीं भी पानी जमने न दें और कहीं से पानी रिसता है तो उसे भी ठीक करवा लें, इससे मच्‍छर पैदा नहीं होते हैं।

क्‍या न करें

डेंगू के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए पपीते की पत्तियों के रस के प्रभाव की जांच के लिए डेंगू से ग्रस्‍त मरीज़ों पर एक अध्‍ययन किया गया। इन सभी प्रतिभागियों को दिन में तीन बार 6-6 घंटे के अंतराल में पपीते की पत्तियों का रस दिया गया।

(और पढ़ें - डेंगू के घरेलू उपाय

उपचार से पहले और बाद में खून की जांच की गई, इसमें पाया गया कि पपीते की पत्तियों के रस के सेवन से प्‍लेटलेट की संख्‍या 8000 से बढ़कर 11000 हो गई। इसके अलावा जूस पीने के 24 घंटे के अंदर ही मरीज़ों की सेहत में महत्‍वपूर्ण सुधार भी देखा गया। अध्‍ययन के अनुसार डेंगू बुखार को नियंत्रित करने के लिए पपीते की पत्तियां असरकारी एवं सुरक्षित हैं। 

(और पढ़ें - डेंगू में क्या खाना चाहिए

आयुर्वेदिक औषधियां बिलकुल सुरक्षित होती हैं और इनका सेहत पर कोई दुष्‍प्रभाव नहीं पड़ता है। हालांकि, रोग की स्थिति या प्रधान दोष के कारण किसी व्‍यक्‍ति पर कोई जड़ी बूटी, औषधि या उपचार अनुपयुक्‍त हो सकता है।

आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की सलाह पर ही आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्‍तेमाल करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, अधिक वात वाले व्‍यक्‍ति को रसोनम और तुलसी में थोड़ा बदलाव कर देना चाहिए। ऐसे व्‍यक्‍ति को तुलसी या लहसुन सीधा देने पर किसी प्रकार का दुष्‍प्रभाव देखने को मिल सकता है। हाइपरएसिडिटी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को भी रसोनम का इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए। 

(और पढ़ें - डेंगू कैसे फैलता है

मच्‍छर के काटने पर डेंगू होता है और वेक्टर को नियंत्रित कर इससे बचने में मदद मिलती है। डेंगू की वजह से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और शरीर में कमजोरी महसूस होने लगती है जिसकी वजह से व्‍यक्‍ति को अन्‍य रोग एवं संक्रमण होने का खतरा रहता है।

(और पढ़ें - बच्चों में डेंगू के लक्षण

आयुर्वेद में डेंगू बुखार के इलाज के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और वायरस-रोधी जड़ी बूटियों एवं औषधियों का उल्‍लेख किया गया है। ये पारंपरिक उपाय न सिर्फ डेंगू के लक्षणों को ठीक करते हैं बल्कि डेंगू होने की वजह का भी इलाज करते हैं। 

(और पढ़ें - डेंगू टेस्ट क्या है

Dr Bhawna

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संदर्भ

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