अवसाद एक मूड सम्बन्धित विकार है जिसमें व्‍यक्‍ति को लगातार निराशा या दुख महसूस होता है। इससे एनर्जी के स्‍तर में कमी आती है और व्‍यक्‍ति अपनी सेहत पर भी ध्‍यान नहीं दे पाता है। अवसाद की वजह से रोजमर्रा के कार्यों को करने में भी दिक्‍कत आती है।

वर्तमान समय में लगभग 80 प्रतिशत अवसाद से ग्रस्‍त लोग इलाज नहीं करवाते हैं और कुछ जगहों पर तो अवसाद को एक सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है। आयुर्वेद में दिमाग से संबंधित विकारों को प्रमुख महत्‍व दिया गया है। आयुर्वेद में अवसाद या अवसाद की स्थिति को मानसिक व्‍याधि (दिमाग का विकार) और मानसिक भाव (भावनात्‍मक) बताया गया है।

(और पढ़ें - एनर्जी कैसे बढ़ाएं)

मानसिक तनाव के इलाज के लिए आयुर्वेदिक उपचार जैसे कि शिरोधारा (सिर से तरल या तेल डालने की विधि), वमन (औषधियों से उल्‍टी करवाने की विधि) और रसायन (ऊर्जादायक) का प्रयोग किया जाता है। ये विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकालते हैं और दिमाग को आराम पहुंचाते हैं।

आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों जैसे कि अश्‍वगंधा, वच, यष्टिमधु (मुलेठी), ब्राह्मी और शतावरी के साथ आयुवेर्दिक औषधियां जैसे कि सारस्वतारिष्ट और चंदनासव से अवसाद का इलाज किया जाता है। इसके साथ ही अवसाद की समस्‍या को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने के लिए योग की मदद भी ली जाती है।

आयुर्वेद के अनुसार खानपान में कुछ बदलाव जैसे कि आहार में साबुत खाद्य पदार्थों, ताजी सब्जियों को शामिल कर अवसाद को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा मांसाहारी भोजन और डिब्‍बाबंद खाना खाने से बचें। इस तरह अवसाद को बेहतर तरीके से नियंत्रित करके संपूर्ण सेहत में सुधार लाया जा सकता है।

(और पढ़ें - मांसाहारी या शाकाहारी)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से अवसाद - Ayurveda ke anusar Avsaad
  2. अवसाद का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Avsad ka ayurvedic ilaj
  3. अवसाद की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Avsad ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार अवसाद होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Avsad me kya kare kya na kare
  5. अवसाद में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Depression ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. अवसाद की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Depression ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. अवसाद की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Avsad ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
अवसाद की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेदिक सिद्धांत के अनुसार मानसिक दोष, पाचन अग्‍नि, ज्ञानेंद्रिय (बाहरी विषयों का ज्ञान कराने वाली इंद्रियां), शारीरिक दोष (शरीर में कोई विकार) और ओजस (जीवन के लिए आवश्‍यक तत्‍व) जैसे कारक अवसाद के इलाज में महत्‍वूपर्ण भूमिका निभाते हैं।

डिप्रेशन को विभिन्‍न प्रकार में वर्गीकृत किया गया है जैसे कि कम या सौम्‍य डिप्रेशन, प्रमुख डिप्रेशन, मौसम से प्रभावित विकार, मैनिक डिप्रेशन (कभी बहुत उदास या ज्‍यादा खुश रहना) और डिस्‍थीमिया या क्रोनिक डिप्रेशन (लंबे समय तक रहने वाला डिप्रेशन जिसमें नियमित रूप से स्‍वभाव खराब रहता है) आदि। शिक्षा या आर्थिक समस्‍या, किसी लंबी बीमारी जैसे कि डायबिटीज और कैंसर के कारण अवसाद हो सकता है। आयुर्वेद के अनुसार वात या कफ दोष के असंतुलित होने के कारण डिप्रेशन हो सकता है।

डिप्रेशन से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में असिद्धि भय (चिंता या फेल होने का डर), चित्तोद्वेग (चिंता), अवसाद (निराशा), दुखिता (दुख या तनाव में डूबे रहना), मन का भटकना और विषण्ण (दुख या उदासीनता) जैसे कुछ मानसिक लक्षण नजर आते हैं। त्‍वक परिदाह (त्‍वचा में जलन महसूस होना), सिदांतिगत्रानि (थकान), रोम हर्ष (रोंगटे खड़े होना), प्रस्वेद (बहुत ज्‍यादा पसीना आना), वेपथु (कांपना) और मुख शोष (मुंह का सूखना) जैसे कुछ शारीरिक लक्षण डिप्रेशन से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में देखे जाते हैं।

डिप्रेशन को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक समाधि (अवसाद के कारण से दिमाग को दूर करना और आत्‍म-संयम विकसित करना), स्‍मृति (अपने अनुभव साझा करना), धैर्य (आश्‍वासन) और विज्ञान (vijnana) की सलाह देते हैं। इसके अलावा ज्ञान बांटने (व्यक्तिगत जागरूकता), हर्षन (उत्‍साह बढ़ाने) और सत्वावजय (परामर्श) की मदद से भी डिप्रेशन को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।

डिप्रेशन के लक्षणों में सुधार के लिए शिरोधारा, विरेचन (मल निष्‍कासन की विधि), बस्‍ती (एनिमा) और अन्‍य चिकित्‍साओं के साथ औषधीय तेलों एवं मिश्रण की सलाह दी जाती है। जड़ी-बूटियों जैसे कि ब्राह्मी, अश्‍वगंधा और शतावरी दिमाग को शक्‍ति प्रदान करने का कार्य करती हैं एवं अवसाद को नियंत्रित करने में ये मददगार होती हैं।

(और पढ़ें - एनिमा लेने की विधि)

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  • शिरोधारा
    • शिरोधारा पंचकर्म चिकित्सा का एक हिस्‍सा है जिसका प्रयोग दिमाग, नाक, कान और आंखों से संबंधित रोगों के इलाज में किया जाता है। शिरोधारा से अवसाद के लक्षणों जैसे कि अत्‍यधिक पसीना आना और अनिद्रा का इलाज किया जाता है।
    • इस प्रक्रिया में गर्म औषधीय तेल को सिर के ऊपर से डाला जाता है। इससे व्‍यक्‍ति को आराम एवं दिव्‍य अहसास की अनुभूति होती है। थेरेपी के दौरान बेहतर इलाज के लिए हल्‍के रंगों, खुशबू और अगरबत्ती एवं मन को शांति देने वाले संगीत का प्रयोग कर आरामदायक और शांत वातावरण बनाया जाता है।
    • अवसाद से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति पर शिरोधारा में प्रमुख तौर पर छाछ का इस्‍तेमाल किया जाता है। अवसाद के इलाज में औषधीय तेलों से शिरो अभ्‍यंग (सिर की मालिश) करने की सलाह भी दी जाती है। (और पढ़ें - मालिश करने की विधि)
       
  • शोधन (शुद्धिकरण) 
    अवसाद से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में निम्नलिखित शोधन उपचारों की सलाह दी जाती है:
    • नास्‍य: 
      • अवसाद के इलाज के लिए नार्स्‍य कर्म में तीक्ष्‍ण (तीखा) गुणों से युक्‍त जड़ी-बूटियों को हिंगु घृत (हींग और क्‍लैरिफाइड मक्‍खन [ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई] से बना मिश्रण) और पंचगव्‍य घृत दिया जाता है। (और पढ़ें - हींग के औषधीय गुण)
      • आयुर्वेद में अवसाद के इलाज के लिए नास्‍य कर्म की सलाह दी जाती है। सिर और इंद्रियों को प्रभावित करने वाले रोगों जैसे कि ऐंठन, लकवा, बोलने से संबंधित विकार, माइग्रेन और अवसाद से राहत पाने में नास्‍य कर्म मदद कर सकता है। सिर और इंद्रियों को मजबूती देने के लिए भी नास्‍य थेरेपी का प्रयोग किया जाता है।
         
    • वमन : 
      • वमन पेट से अमा (विषाक्‍त पदार्थों) और नाडियों से बलगम को बाहर निकालने में मदद करती है। सिर और साइनस रोगों, उन्‍माद (पागलपन) जी मिचलाना और सांस लेने में दिक्‍कत की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को वमन क्रिया से राहत मिलती है।
      • अवसाद के इलाज में पंचगव्‍य घृत के साथ स्‍नेहपान (तेल या घी पीना) की प्रक्रिया पूरी होने के बाद तोरई (नेनुआ) का प्रयोग कर वमन कर्म की सलाह दी जाती है।
         
    • विरेचन: 
      • ​विरेचन कर्म में रेचक (जुलाब) जड़ी-बूटियों जैसे कि मिश्री, सेन्‍ना, रूबर्ब और शुंथि के इस्‍तेमाल से विषाक्‍त पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाता है। ये मल आने में रुकावट, ब्‍लीडिंग विकार, तेज बुखार और दर्द जैसी समस्‍याओं से भी राहत दिलाता है। (और पढ़ें - ब्लीडिंग क्या है)
      • अवसाद के इलाज में विरेचन के साथ त्रिवृत (भारतीय जलप) लेह और अविपत्तिकर पाउडर लाभकारी है।
         
    • बस्‍ती :   
      • बस्ती कर्म एनिमा का उपयोग कर पेट के कार्य को मजबूत और सुधारने में उपयोगी है। इस चिकित्सा में शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए एवं विभिन्‍न रोगों का इलाज कर शरीर को ऊर्जा देने के लिए हर्बल टॉनिक और मिश्रण दिया जाता है। 
      • कई मानसिक विकारों जैसे कि अल्‍जाइमर, इंद्रियों से जुड़े विकार, मानसिक मंदता (दिमाग का धीरे चलना) और अवसाद को नियंत्रित करने के लिए बस्‍ती का प्रयोग किया जाता है।
      • अवसाद से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को विशेष तौर पर यपन बस्‍ती (मांस का सूप, दूध और अन्‍य सामग्रियों से युक्‍त औषधीय एनिमा) और शिरोबस्‍ती (सिर के लिए तेल चिकित्‍सा विधि) की सलाह दी जाती है। (और पढ़ें - सूप कैसे बनाते हैं)
         
    • रसायन:
      • रसायन जड़ी-बूटियों का प्रयोग शरीर को ऊर्जा देने, आयु बढ़ाने और जीवन के स्‍तर को बेहतर करने के लिए किया जाता है।
      • रोग प्रतिरोधक शक्ति में सुधार एवं इसे बढ़ाने और एंडोक्राइन, मानसिक और स्नायविक प्रणाली के कार्यों को संतुलित करने के लिए चिकित्‍सा में रयासन का इस्‍तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय)
      • अवसाद से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में शिलाजीत रसायन कल्‍प, ब्राह्मी घृत, पंचगव्‍य घृत और आमलकी रसायन कल्‍प का इस्‍तेमाल रसायन के तौर पर किया जाता है।

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अवसाद के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • अश्‍वगंधा
    • आयुर्वेद में अश्‍वगंधा को दिमाग के लिए शक्‍तिवर्द्धक के रूप में जाना जाता है। इस जड़ी-बूटी में पीड़ा दूर करने और ऊर्जा देने वाले गुण मौजूद होते हैं जोकि शरीर को ताजगी और आराम पाने में मदद करते हैं।
    • ये मांसपशियों के लिए ऊर्जादायक और उत्तेजक के रूप में भी कार्य करती है।
    • अश्‍वगंधा में ऐसे सक्रिय घटक होते हैं जो मानसिक विकारों जैसे कि अल्‍जाइमर और अवसाद को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इस पौधे में प्राकृतिक रूप से कोशिकाओं को नुकसान से बचाने वाले रसायन मौजूद होते हैं जो कि तनाव को कम करने में मदद करते हैं। इस तरह अश्‍वगंधा बेहतर तरीके से अवसाद को  नियंत्रित करती है। इसके अलावा अश्‍वगंधा ओजस को भी बढ़ाती है।
    • अश्‍वगंधा काढ़े और पाउडर जैसे कई रूपों में उपलब्‍ध है। आप घृत (घी) के साथ अश्‍वगंधा चूर्ण या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने का तरीका)
       
  • ब्राह्मी
    • आयुर्वेद के अनुसार अश्‍वगंधा मष्तिष्‍क की कोशिकाओं को ऊर्जा देने वाली बेहतरीन जड़ी-बूटियों में से एक है। ये बौद्धिक क्षमता में सुधार करती है। ब्राह्मी रक्‍त को साफ करने का भी कार्य करती है।
    • ब्राह्मी उत्तेजक के तौर पर भी कार्य करती है। ये शरीर को साफ करने और उसे पोषण देने एवं याददाश्त बढ़ाने में मदद करती है। ये तनाव के स्‍तर को कम करती है और इसी वजह से मानसिक या भावनात्‍मक तनाव से गुजर रहे लोगों में ये एक उपयोगी जड़ी-बूटी है। ब्राह्मी में चिंतारोधी और तनावरोधी गुण भी मौजूद होते हैं। (और पढ़ें - याददाश्त बढ़ाने के उपाय)
    • ब्राह्मी तेल, काढ़े, अर्क और पाउडर के रूप में उपलब्‍ध है। आप घृत या दूध के साथ ब्राह्मी चूर्ण या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • वच
    • वच में उत्तेजक और डिटॉक्सिफाइंग (विषाक्‍त पदार्थ निकालना) गुण होते हैं। ये मस्तिष्‍क में रक्‍त संचार को बेहतर करती है और दिमाग को ऊर्जा प्रदान करती है। कई बीमारियों जैसे कि उन्‍माद, न्यूरेल्जिया (नसों का दर्द) के इलाज और दिमाग को तेज एवं याददाश्त बढ़ाने में वच मदद करती है।
    • वच पेस्‍ट, काढ़े और पाउडर के रूप में उपलब्‍ध है। आप वच चूर्ण शहद के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं। 
       
  • शतावरी
    • शतावरी में पोषक गुण मौजूद होते हैं एवं यह शरीर के लिए टॉनिक (शक्‍तिवर्द्धक) के रूप में कार्य करती है। इससे व्‍यक्‍ति के मन में प्रेम और भक्‍ति की भावना बढ़ती है।
    • शतावरी काढ़े और पाउडर के रूप में उपलब्‍ध है।
       
  • यष्टिमधु (मुलेठी)
    • आयुर्वेद में मुलेठी को दिल के लिए उत्तम टॉनिक के रूप में जाना जाता है। ये रक्‍त संचार में सुधार करती है और कई रोगों जैसे कि सूजन, अल्‍सर, मांसपेशियों में ऐंठन और वात से संबंधित रोगों के इलाज में उपयोगी है।
    • यष्टिमधु मस्तिष्‍क को पोषण देती है और दिमाग को शांत रखती है। ये मन में संतोष और शांति की भावना पैदा कर अवसाद के इलाज में मदद करती है।
    • यष्टिमधु पाउडर के रूप में उपलब्‍ध हैं एवं इसे तेल या घी के साथ मिलाकर इस्‍तेमाल कर सकते हैं। यष्टिमधु काढ़े के रूप में भी आती है।
       
  • चंदन
    • आयुर्वेद में आध्‍यात्मिक कार्यों के लिए चंदन का प्रयोग किया जाता है। इसे मन और मस्तिष्‍क को शांति प्रदान करने के लिए जाना जाता है। इसलिए ये अवसाद से ग्रस्‍त लोगों के लिए लाभकारी होता है।
    • ये ध्‍यान करने और व्‍यक्‍ति के मन में भक्‍ति बढ़ाने में मदद करता है।
    • चंदन को शक्‍तिवर्द्धक के रूप में भी जाना जाता है। ये कई रोगों जैसे कि ब्रोंकाइटिस, नेत्र संबंधित विकार और अवसाद से राहत दिलाने में मदद करता है।
    • ये परिचंरण, तंत्रिका, श्‍वसन और पाचन तंत्र को आराम देने एवं इसके कार्यों में सुधार लाता है।

अवसाद के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • सारस्वतारिष्ट
    • सारस्वतारिष्ट में अदरक, सौंफ, शतावरी, हरीतकी, ब्राह्मी और अन्‍य जड़ी-बूटियों से युक्‍त है। इन सभी चीज़ों को काढ़े के रूप में सारस्वतारिष्ट में डाला गया है।
    • ये मिश्रण बल (शक्‍ति) और ह्रदय को शक्‍ति प्रदान करता है एवं इसमें दर्द निवारक और ऊर्जादायक गुण मौजूद होते हैं। ये याद्दाश्‍त, रोग प्रतिरोधक क्षमता और आयु को बढ़ाता है एवं नाडियों की सफाई करता है।
    • ये औषधि हर उम्र के लोगों की शक्‍ति, आवाज और रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार लाती है और तीनों दोषों को संतुलित करती है। मानसिक विकारों जैसे कि उन्‍माद, मिर्गी और अवसाद के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है। वात दोष के असंतुलन के कारण हुए अवसाद को नियंत्रित करने के लिए विशेष तौर पर इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • कल्‍याण घृत
    • इसमें इंद्रवारुणी (चित्रफल), विभीतकी, आमलकी, तगार (बूरा), हरीद्रा (हल्‍दी), मंजिष्‍ठा, चंदन और अन्‍य जड़ी-बूटियां मौजूद हैं।
    • कुष्‍ठ रोग, उन्‍माद (मानसिक विकार), पांडु रोग (एनीमिया) और प्रमेह (गोनोरिया) के इलाज में इस मिश्रण का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • अवसाद के कारण उन्‍माद (पागलपन) से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति के इलाज में कल्‍याण घृत का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • आप गर्म दूध के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार कल्‍याण घृत ले सकते हैं।
       
  • चंदनासव
    • चंदनासव में कमल, मंजिष्‍ठा, कंचनार, यष्टिमधु, द्रक्ष (अंगूर), रसना और अन्‍य जड़ी-बूटियां होती हैं।
    • इसमें चंदन के अवसादरोधी और दिमाग को शांत करने वाले गुण मौजूद हैं इसलिए चंदनासव का प्रयोग अवसाद के इलाज में किया जा सकता है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें। 

(और पढ़ें - मानसिक रोग के उपाय)

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क्‍या करें

  • अनार, आमलकी, नारियल, अंगूर, क्‍लैरिफाइड मक्‍खन, काले चने, मौसमी फल, कद्दू, लौकी और ताजी सब्जियों को अपने आहार में शामिल करें।
  • विशेषत: रात के समय हल्‍का भोजन लें।
  • ध्‍यान और प्राणायाम करें।
  • सामाजिक कार्यों में हिस्‍सा लें।
  • अपने आहर में मांसाहारी चीजें न लें।
  • पर्याप्‍त नींद लें, निजी साफ-सफाई का ध्‍यान रखें और खुद में आत्‍म–संयम विकसित करने की कोशिश करें। (और पढ़ें - उम्र के हिसाब से कितना सोना चाहिए)

क्‍या न करें

  • बार-बार न खाएं।
  • ज्‍यादा न सोचें।
  • शराब से दूर रहें। (और पढ़ें - शराब छुड़ाने के उपाय)
  • बासी और मसालेदार खाने से बचें। (और पढ़ें - मसालेदार भोजन का नुकसान)
  • रात को समय पर सोएं।
  • डिब्‍बाबंद खाद्य पदार्थों से दूरी बनाकर रखें।
  • अत्‍यधिक तनाव न लें।
  • पेशाब और मल त्‍याग जैसी प्राकृतिक इच्‍छाओं को न रोकें। भूख लगने पर तुरंत कुछ हैल्‍दी खाएं और ज्‍यादा भावुक न हों।
  • ऐसे खाद्य पदार्थों को खाने से बचें जिनमें कैलोरी की मात्रा अधिक हो। (और पढ़ें - कैलोरी क्या है)

अश्‍वगंधा के अवसादरोधी प्रभाव की जांच के लिए एक अध्‍ययन किया गया था। इस अध्‍ययन में पाया गया कि अश्‍वगंधा में मूड को स्थिर रखने और चिंता दूर करने वाले गुण होते हैं और इससे अवसाद और तनाव से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति की सेहत में सुधार किया जा सकता है। मनुष्य ब्राह्मी को भी आसानी से सहन कर सकता है एवं अध्‍ययन में इसका चिंता दूरने करने वाला प्रभाव देखा गया।

(और पढ़ें - डिप्रेशन के लिए योग)

ब्राह्मी के अर्क के प्रभाव की जांच के लिए एक अन्‍य अध्‍ययन किया गया था जिसमें पाया गया कि ब्राह्मी सीखने की क्षमता और याददाश्त को बढ़ाती है। अध्‍ययन के दौरान चूहों पर ब्राह्मी ने एंटीऑक्‍सीडेंट को उत्तेजित करने का काम किया जिससे बौद्धिक शक्‍ति बेहतर हुई। 

(और पढ़ें - एंटीऑक्सीडेंट भोजन)

अवसाद की आयुर्वेदिक औषधि के निम्नलिखित नुकसान हो सकते हैं:

  • मोटापे, अत्‍यधिक वात दोष, हाई ब्‍लड प्रेशर और उल्‍टी की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को वमन चिकित्‍सा नहीं देनी चाहिए। गर्भवती महिलाओं को भी इस चिकित्‍सा से बचना चाहिए। वृद्ध और कमजोर व्‍यक्‍ति को भी वमन चिकित्‍सा नहीं लेनी चाहिए। (और पढ़ें - कमजोरी कैसे दूर करें)
  • कैंसर जैसे गंभीर रोगों से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को अश्‍वगंधा और शतावरी की कम खुराक लेनी चाहिए।
  • ब्राह्मी की अत्‍यधिक खुराक नहीं लेनी चाहिए क्‍योंकि इसकी वजह से खुजली हो सकती है।
  • ब्‍लीडिंग विकार जैसे कि बवासीर के रोगी को वच नहीं देनी चाहिए। पित्त दोष के असंतुलन के कारण हुई समस्‍याओं जैसे कि त्‍वचा पर चकत्ते पड़ना और जी मिचलाने से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को भी ये जड़ी-बूटी नहीं देनी चाहिए।
  • यष्टिमधु के हानिकारक प्रभाव भी हो सकते हैं जैसे कि सोडियम के स्‍तर का बढ़ना, सूजन और पोटेशियम के स्‍तर का घटना आदि। 6 सप्‍ताह से अधिक समय तक यष्टिमधु लेने पर इस तरह के दुष्‍प्रभाव सामने आ सकते हैं। ब्‍लड प्रेशर लेवल नियमित रूप से चैक करते रहें और पोटेशियम युक्‍त आहार लें क्‍योंकि इससे मुलेठी के दुष्‍प्रभावों से बचने में मदद मिलती है।
  • अत्‍यधिक कफ की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को चंदन नहीं लेना चाहिए। 

(और पढ़ें - डिप्रेशन के उपाय)

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आयुर्वेदिक चिकित्‍साओं के अनुसार अवसाद के इलाज में चिकित्‍सा के साथ ध्‍यान, योग और विशेषज्ञ से परामर्श महत्‍वूपर्ण भूमिका निभाते हैं।

अवसाद के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली औषधियां और जड़ी-बूटियां शरीर को ऊर्जा देती हैं, मस्तिष्‍क के कार्यों और रक्‍त संचार में सुधार करती हैं एवं शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकालती हैं।

ये जड़ी-बूटियां व्‍यक्‍ति के मन में प्रेम और भक्‍ति भाव को बढ़ाती हैं और सकारात्‍मक विचारों को विकसित करने में मदद करती हैं। इस तरह अवसाद को नियंत्रित करने में उपरोक्‍त जड़ी-बूटियां एवं औषधियां प्रभावी हैं। 

(और पढ़ें - मानसिक रोग के लक्षण)

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संदर्भ

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