पलकों का लटकना - Drooping Eyelids in Hindi

Dr. Ajay Mohan (AIIMS)MBBS

August 19, 2020

December 18, 2023

पलकों का लटकना
पलकों का लटकना

पलकों के नीचे की ओर लटकने की समस्या को चिकित्सीय भाषा में टोसिस (ptosis) पलकों का पक्षाघात या ब्लेफेरोप्टोसिस (blepharoptosis) कहा जाता है। जब किसी व्यक्ति को यह समस्या हो जाती है तो उसकी आंखों की ऊपरी पलक की सीमा सामान्य से ज्यादा नीचे तक झुक जाती है या लटक जाती है। टोसिस के गंभीर मामलों में, लटकती पलकें आंखों की पुतली (आंख का केंद्र भाग) के आधे या पूरे हिस्से को इस तरह से ढक लेती हैं कि इससे व्यक्ति की दृष्टि बाधित होने लगती है। 

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टोसिस की समस्या जन्म के समय ही यानी जन्मजात भी हो सकती है या जीवन के बाद के सालों में भी विकसित हो सकती है। कंजेनिटल या जन्मजात टोसिस, मांसपेशियों की एक असामान्यता के कारण होता है जो पलक (उन्नयनी या लेवेटर मांसपेशी) को ऊपर उठाता है। लटकती पलकें या ड्रूपिंग आइलिड की समस्या से पीड़ित व्यक्ति में कई और लक्षण भी उपस्थित होते हैं जैसे- पलकों और आइब्रो के बीच सिलवट या क्रीज न होना, आंखों में उभार या सूजन होना, आंखों के नीचे काले घेरे होना, सूखी आंखें या आंखों में ज्यादा पानी आना और दृष्टि संबंधी समस्याएं शामिल हैं।   

पलकों के लटकने की समस्या कई और कारणों से भी हो सकती है जैसे- उम्र बढ़ना, आंखों में संक्रमण होना, आंखों में ट्यूमर की समस्या, पेरिफेरल या परिधीय नस को नुकसान होना, मस्तिष्क धमनी विस्फार, थायराइड हार्मोन का सही तरीके से काम न करना, डायबिटीज, तंत्रिका संबंधी बीमारियां जैसे- मायस्थेनिया ग्रेविस और ऑक्यूलोफैरिंजियल मस्कुलर डिस्ट्रॉफी। आंख या पलकों का अचानक गिरना या लटकना स्ट्रोक का संकेत हो सकता है जिसका अगर समय पर इलाज न हो तो यह जानलेवा साबित हो सकता है।

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आमतौर पर, अगर मरीज को कोई परेशानी नहीं हो रही है तो टोसिस का इलाज नहीं किया जाता है। इलाज तब किया जाता है जब लटकती पलकों की वजह से दृष्टि बाधित हो रही हो या फिर आपके बाहरी रंग-रूप को यह समस्या प्रभावित कर रही हो। इस बीमारी के इलाज में सर्जरी के जरिए लटकती पलकों को वापस ऊपर उठाया जाता है।

जो बच्चे गंभीर टोसिस की समस्या के साथ पैदा होते हैं उन बच्चों में स्थायी दृष्टि क्षति को रोकने के लिए डॉक्टर तुरंत सुधारात्मक सर्जरी करते हैं। जिन बच्चों में टोसिस की हल्की समस्या होती है और जिनमें टोसिस की वजह से दृष्टि बाधित नहीं होती उन बच्चों में या तो सर्जरी या गैर-सर्जिकल उपाय जैसे- बोटॉक्स या फिलर्स का इस्तेमाल कर इलाज किया जाता है। अंतर्निहित समस्या या स्थिति के अनुसार बाकी के उपचार किए जाते हैं।

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पलकों का लटकना के लक्षण - Drooping Eyelids Symptoms in Hindi

कोई भी व्यक्ति सीधे आइने में देखकर इस स्थिति को स्वयं ही डायग्नोज कर सकता है। टोसिस की समस्या से पीड़ित व्यक्ति की आंखें संकीर्ण हो जाती हैं और सही तरीके से नहीं खुल पातीं जिस कारण आंखें सामान्य से छोटी नजर आने लगती हैं। पलकों के लटकने की समस्या के साथ ही कुछ अन्य लक्षण भी मौजूद हो सकते हैं, जैसे:

  • पलक और आइब्रो के बीच जगह की कमी
  • जिस आंख में पलकों के लटकने की समस्या हो उस तरफ की आइब्रो का अचानक या अनजाने में ऊपर उठना
  • निचली पलकों पर अतिरिक्त त्वचा की उपस्थिति के कारण आंखों में उभार या सूजन महसूस होना
  • ऊपरी पलकों के लटकने के कारण देखने में या दृष्टि में रुकावट आना
  • सूखी आंखें या आंखों में बहुत पानी आने की समस्या
  • किसी चीज को बेहतर तरीके से देखने के लिए सिर को पीछे की ओर झुकाना

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अगर आपको खुद में निम्नलिखित में से कोई भी लक्षण नजर आए तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए:

  • आंखों की पलकों का अचानक लटक जाना
  • लटकती पलकों की वजह से दृष्टि बाधित होना
  • प्रभावित आंख में तेज दर्द होना
  • पलकों के हाशिये से परे फैली हुई सूजन
  • सोते समय आंखों का पूरी तरह से बंद न होना
  • आंखों की पलकें अगर आंख के अंदर ही चुभने लग जाएं (और पढ़ें - आंख में फंसी पलकें)

पलकों का लटकना के कारण - Drooping Eyelids Causes in Hindi

लटकती पलकों की समस्या के विभिन्न कारण हैं:

  • जन्मजात दोष - कभी-कभी कोई नवजात शिशु लटकती पलकों की समस्या के साथ ही पैदा होता है जिसे चिकित्सीय भाषा में जन्मजात टोसिस कहा जाता है। पलकों की लटकने की यह समस्या दोनों आंखों में भी हो सकती है या फिर सिर्फ एक आंख में भी। हालांकि यह किसी अज्ञात वजह से भी हो सकता है लेकिन कभी-कभी यह किसी अंतर्निहित बीमारी का संकेत भी हो सकता है जैसे- एक्सट्रा-ओक्यूलर मांसपेशी में जन्मजात फाइब्रोसिस
  • उम्र बढ़ना - जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है पलकों (आइलिड) को पकड़कर रखने वाली मांसपेशियां जिन्हें लेवेटर पैल्पेब्रे सुपिरोयोसिस कहते हैं वह कमजोर होने लगती है। इस कारण पलकें धीरे-धीरे समय के साथ नीचे की ओर लटकने लगती हैं।
  • आंख की चोट - आंखों में अगर किसी तरह की चोट या आघात लगे, आंखों को लगातार रगड़ा जाए, आंखों में तेज झटका लगे या फिर लंबे समय तक कॉन्टैक्ट लेंस पहनने के कारण भी आंखों की लेवेटर पैल्पेब्रे सुपिरोयोसिस मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है। 
  • आंखों में संक्रमण- आंखों से जुड़े संक्रमण जैसे- कंजंक्टिवाइटिस और स्टे के कारण भी आंखों में सूजन हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप पलकें नीचे की और लटकने लगती हैं। हालांकि, ऐसे संक्रमण में 1-2 सप्ताह में आंखें सामान्य हो जाती हैं। (और पढ़ें - कंजंक्टिवाइटिस का घरेलू उपाय)
  • आंखों की सर्जरी - आंखों से जुड़ी कुछ सर्जरी जैसे मोतियाबिंद, ग्लूकोमा या लैसिक सर्जरी (आंखों की रोशनी में सुधार के लिए) के बाद भी कई बार मरीज की आंखों की पलकें लटक जाती हैं। यह समस्या ज्यादातर अस्थायी होती है और अपने आप ही कुछ दिनों में ठीक हो जाती है।
  • नसों को नुकसान - पेरिफेरल या परिधीय तंत्रिकाएं वे हैं जो शरीर के विभिन्न अंगों को मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से जोड़ती हैं। इन परिधीय नसों में लगने वाली किसी भी तरह की चोट जो पलकों के कामकाज में मदद करती है, उसके परिणामस्वरूप भी पलकें नीचे की ओर लटक सकती हैं।
  • मस्तिष्क धमनी विस्फार - मस्तिष्क धमनी विस्फार (मस्तिष्क में रक्त वाहिका का एक बड़ा हिस्सा) ओक्यूलोमोटर तंत्रिका पर नीचे की ओर दबाव डाल सकता है, यह वह तंत्रिका है जो आंख और पलक को रक्त की आपूर्ति करती है। इस कारण पलकों के लटकने की समस्या होती है और साथ ही में आंख और पुतली की गतिविधि धीमी हो जाती है।
  • आंखों में ट्यूमर - पलकों में अगर किसी तरह का ट्यूमर हो जाए तो वह आपकी पलकों को नीचे की ओर झुकने पर मजबूर कर देता है। सबसे सामान्य नेत्र ट्यूमर में से एक है- न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप1 (एनएफ1)। यह कैंसरकारी नहीं होता लेकिन यह पलकों को मोटा बना देता है जिस कारण ये नीचे की ओर लटकने लगती हैं।
  • मायस्थेनिया ग्रेविस - मायस्थेनिया ग्रेविस एक तंत्रिकापेशीय बीमारी है जिसमें इम्यून सिस्टम नसों और मांसपेशियों पर ही हमला करने लगता है, जिससे आंखे, चेहरा और गले की मांसपेशियां प्रभावित होती हैं। इस कारण मरीज को दोहरी दृष्टि, लटकती पलकें, बात करने में परेशानी और चलने में परेशानी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
  • हॉर्नर्स सिंड्रोम - हॉर्नर्स सिंड्रोम (ओक्यूलोसिम्प्थैटिक पैरेसिस) एक ऐसी स्थिति है जिसमें तंत्रिका मार्ग में कुछ विकार होता है जो चेहरे और आंखों के एक तरफ के हिस्से को मस्तिष्क से जोड़ता है। चेहरे के प्रभावित हिस्से में पलकों का लटकना, छोटे पुतली और चेहरे के प्रभावित हिस्से पर कोई पसीना न आना जैसी स्थितियां हो सकती हैं।
  • स्ट्रोक - जब किसी व्यक्ति को स्ट्रोक आता है, तो मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो जाती है- या तो रक्त वाहिका के फटने के कारण या फिर खून का थक्का जम जाने के कारण। स्ट्रोक के कारण अचानक ही पलकें और चेहरा लटक जाता है, कमजोरी महसूस होने लगती है, बोलने और चलने में कठिनाई हो सकती है।
  • डायबिटीज - डायबिटीज की समस्या अगर लंबे समय तक बनी रहे तो इसके कारण आंखों के आसपास की रक्त वाहिकाओं और नसों को नुकसान पहुंचता है। इस कारण व्यक्ति को पलकों की लटकने की समस्या के साथ ही दोहरी दृष्टि की समस्या भी हो सकती है। यह एक चिकित्सीय स्थिति भी है जिसे डायबिटिक थर्ड नर्व पाल्सी (ओक्यूलोमोटर नर्व पाल्सी) भी कहा जाता है।
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  • थायराइड का सही तरीके से काम न करना - थायराइड हार्मोन का निम्न स्तर, जैसा कि हाइपोथायरायडिज्म में देखा जाता है के परिणामस्वरूप भी पलकें लटकने लगती हैं और चेहरे में सूजन आ जाती है।
  • न्यूरोमस्कुलर (तंत्रिकापेशीय) स्थिति - नसों और मांसपेशियों को प्रभावित करने वाली स्थितियां जैसे ओक्यूलोफैरिंजियल मस्कुलर डिस्ट्रोफी के कारण पलकों की लटकने की समस्या हो सकती है, निगलने में कठिनाई और बोलने में कठिनाई भी हो सकती है।

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पलकों का लटकना के बचाव के उपाय - Prevention of Drooping Eyelids in Hindi

पलकों की लटकने की समस्या को होने से रोका नहीं जा सकता क्योंकि इस समस्या में पहले से कोई पूर्व संकेत नहीं मिलता है।

पलकों का लटकना का निदान - Diagnosis of Drooping Eyelids in Hindi

इस समस्या को डायग्नोज करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले प्रभावित आंख या आंखों की शारीरिक जांच करते हैं। उसके बाद एक विस्तृत लक्षण संबंधी हिस्ट्री ली जाती है जिसमें न केवल आंखों से संबंधित लक्षण शामिल होते हैं बल्कि अन्य लक्षण भी शामिल होते हैं जैसे- दोहरी दृष्टि की समस्या है या नहीं, मांसपेशियों की कमजोरी, बोलने में परेशानी या निगलने में परेशानी, लगातार सिरदर्द रहना और शरीर के किसी भी हिस्से में सुन्नता महसूस होना।

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इसके अलावा डॉक्टर अन्य संबंधित लक्षणों के आधार पर कुछ स्कैन और ब्लड टेस्ट भी लिख सकते हैं। उदाहरण के लिए, सीटी स्कैन और एमआरआई स्कैन की सलाह दी जाएगी यदि व्यक्ति में न्यूरोलॉजिकल संकेत भी नजर आएं या फिर अगर मरीज की आंख के सॉकेट के भीतर अज्ञात द्रव्यमान हो। अगर मरीज आंख के लक्षणों के साथ ही मांसपेशियों की कमजोरी की भी शिकायत करता है तो डॉक्टर ब्लड टेस्ट और टेन्सिलॉन टेस्ट भी लिख सकते हैं। टेन्सिलॉन टेस्ट में, व्यक्ति को एड्रोफोनियम क्लोराइड इंजेक्ट किया जाता है, जो उन लोगों में कुछ मिनटों के लिए मांसपेशियों की कमजोरी को पूरी तरह से ठीक कर देता है जिन्हें मायस्थेनिया ग्रेविस की समस्या है।

पलकों का लटकना का उपचार - Drooping Eyelids Treatment in Hindi

पलकों की लटकने की समस्या का इलाज उसके अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, अगर पलकों की लटने की समस्या हाइपोथायरायडिज्म के कारण है, तो डॉक्टर शरीर में थायराइड हार्मोन के स्तर को बनाए रखने के लिए दवाएं देंगे। इसी तरह से अगर टोसिस की समस्या मस्तिष्क धमनी विस्फार के कारण हो रही हो तो डॉक्टर टोसिस का इलाज करने के लिए धमनी विस्फार का इलाज करेंगे। 

हालांकि जन्मजात टोसिस या अज्ञात कारणों से होने वाले टोसिस के मामलों के लिए, ऐसे कई बिना सर्जरी वाले विकल्प मौजूद हैं जिसमें फिलर्स, लेजर प्रक्रिया और शल्य चिकित्सा प्रक्रिया का इस्तेमाल कर प्रभावित आंख के हिस्से से अतिरिक्त त्वचा या मांसपेशियों को निकाल दिया जाता है।

1. लटकती पलकों की समस्या का सर्जरी से उपचार
टोसिस की सर्जरी आमतौर पर तभी की जाती है जब यह दृष्टि को बाधित कर रही हो या व्यक्ति के बाहरी रूप-रंग में सुधार करना हो। इस सर्जरी के जरिए लेवेटर या ऊपर उठाने वाली मांसपेशी सही तरीके से काम करने लगेगी इसकी कोई गारंटी नहीं होती। अधिकांश वयस्क रोगियों में, यह सर्जरी आउट पेशेंट प्रक्रिया के तहत लोकल ऐनेस्थीसिया देकर की जाती है। हालांकि, बच्चों में अगर पलकों की यह सर्जरी हो रही हो तो इसे सामान्य ऐनेस्थीसिया के तहत किया जाता है।

पलकों के आसपास जमा फैट और मांसपेशियों को हटाकर और आंखों के आसपास की त्वचा को टाइट करके, ऊपरी और निचली पलकों पर पलक लिफ्ट सर्जरी की जा सकती है। सबसे कॉमन सर्जरी हैं:

  • ब्लेफेरोप्लास्टी - ब्लेफेरोप्लास्टी सर्जिकल उपचार है जिसमें सर्जन ऊपरी पलकों से अतिरिक्त त्वचा को हटाता है और निचली पलकों से ढीलेपन को हटाता है ताकि आंखों को सही तरीके से खोला जा सके। इस प्रक्रिया को आई लिफ्ट भी कहा जाता है।
  • लेवेटर रीसेक्शन - लेवेटर रिसेक्शन की प्रक्रिया में लेवेटर पैल्पेब्रे सुपिरिओरिस की कुछ मांसपेशियों को हटाना शामिल है, जिससे यह छोटा हो जाता है। ऐसा करने से पलकें छोटी हो जाती हैं इसलिए यह दूसरी आंख के समान ही दिखने लगती है।
  • ललाट या माथे पर पट्टी लगाना - अगर लेवेटर मांसपेशी का कोई बचा हुआ काम नहीं होता है, तो पलकों के लटकने की समस्या को ठीक करने के लिए पलकों की मार्जिन को माथे या ललाट में मौजूद मांसपेशी से जोड़ा जाता है। इसके लिए टांका, सिलिकॉन या पट्टी (संयोजी ऊतकों की एक शीट) का उपयोग किया जाता है। इसके लिए या तो किसी डोनर की मदद ली जाती है या फिर मरीज की मांसपेशियों का ही इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार ललाट की मांसपेशी के कामकाज के अनुसार ही पलकें भी कार्य करने लगती हैं।

2. लटकती पलकों की समस्या का गैर-सर्जिकल उपचार
पलकों के लटकने की समस्या का बिना सर्जरी के निम्नलिखित तरीकों से इलाज किया जाता है:

  • बोटॉक्स - चेहरे की झुर्रियों को ठीक करने जैसी कॉस्मेटिक प्रक्रियाओं में बोटॉक्स का उपयोग किया जाता है। लेकिन इसका इस्तेमाल आइब्रो लिफ्ट करने के लिए भी किया जा सकता है ताकि प्रभावित आंख की आइब्रो सामान्य आंख की तरह ही उसी स्थान पर टिकी रहे।
  • फिलर्स - फिलर्स का उपयोग निचली पलकों में किया जाता है ताकि आंखों को एक भरा हुआ लुक दिया जा सके जिससे लटकती पलकों वाला लुक नजर नहीं आता।
  • लेजर ट्रीटमेंट - प्रभावित आंख को दूसरी आंख के समान दिखाने के लिए डॉक्टर पलक के नीचे की त्वचा को कसने के लिए एक लेजर प्रक्रिया का उपयोग भी कर सकते हैं।