हार्वर्ड मेडिकल स्कूल (एचएमएस) के वैज्ञानिक चूहों की आंखों की रोशनी वापस लाने में कामयाब हो गए हैं। उन्होंने रेटिना से जुड़ी पुरानी या बूढ़ी आई सेल्स को रिपेयर कर उनमें युवा जीन फंक्शन को रीकैप्चर कर यह कारनामा किया है। इससे जुड़ा शोधकार्य इसी हफ्ते मेडिकल पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन बताता है कि कैसे जटिल ऊतकों, जैसे आंखों की नर्व सेल्स, को सुरक्षित ढंग से पहले की तरह रीप्रोग्राम किया जा सकता है। इस काम के लिए शोधकर्ताओं ने ह्यूमन ग्लूकोमा (काला मोतियाबंद) से मिलती-जुलती मेडिकल कंडीशन को जानवरों पर अप्लाई किया और फिर इस कारण हुए विजन लॉस को सफलतापूर्वक रिवर्स किया। इस कामयाबी पर शोधकर्ताओं की टीम ने कहा है, 'यह अचीवमेंट ग्लूकोमा के कारण हुए विजन लॉस की केवल रोकथाम करने के बजाए उसे वापस लाने के सफल प्रयास को रीप्रेजेंट करता है।'

इस अध्ययन को लेकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित लेख में कहा है कि अगर आगे भी इस तरह के अध्ययन होते रहे तो इस अप्रोच के जरिये कई मानव अंगों में डैमेज टिशूज की रिपेयरिंग के लिए नई थेरेपी के रास्ते खुल सकते हैं और उनमें उम्र से संबंधित बीमारियों से निपटने में मदद मिल सकती है। इस पर एचएमएस में जेनेटिक्स के प्रोफेसर और अध्ययन के वरिष्ठ लेखक डेविड सिंक्लेयर ने कहा है, 'हमारा अध्ययन साबित करता है कि रेटिना जैसे जटिल ऊतकों की उम्र को सुरक्षित ढंग से रिवर्स करना और उनके युवावस्था वाले बायोलॉजिकल फंक्शन को रीस्टोर करना संभव है।' डेविड ने कहा कि अगर आगे के अध्ययनों में भी इसी तरह के परिणाम मिले तो ये ग्लूकोमा जैसे विजन संबंधी बीमारियों के इलाज में बड़े बदलाव कर सकते हैं।

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कैसे किया गया अध्ययन?
अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने एक एडीनो-सहायक वायरस (एएवी) का इस्तेमाल किया, जिसके जरिये चूहों के रेटिना में तीन यूथ-रीस्टोरिंग जीन्स - ऑक्ट4, सॉक्स2 और केएलएफ4 - को पहुंचाया जा सके। ये तीनों वंशाणु सामान्यतः भ्रूण के विकास के समय सक्रिय रहते हैं। इन तीनों जीन्स में जब एक और वंशाणु (जिसे इस अध्ययन में इस्तेमाल नहीं किया गया) को मिलाया जाता है तो इसे एकसाथ टयामानाका फैक्टर्सट कहा जाता है। बहरहाल, नए प्रयोगात्मक ट्रीटमेंट का चूहों की आंख पर कई प्रकार का लाभदायक प्रभाव पड़ा। इससे ऑप्टिक-नर्व इंजरी के बाद उसमें सुधार के लिए डैमेज नर्व के रीजेनरेशन में बढ़ोतरी हुई। साथ ही, जीन्स को रेटिना में पहुंचाने के कारण (ह्यूमन ग्लूकोमा से मिलती कंडीशन के चलते हुआ) विजन लॉस खत्म हो गया और आंखों की रोशनी वापस आ गई। इतना ही नहीं, बूढ़े चूहों में भी ग्लूकोमा की वजह से हुए विजन लॉस को इन जीन्स से रिवर्स कर दिया गया।

रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं की यह अप्रोच इस (सवालिया) थ्योरी पर आधारित है कि 'हम बूढ़े क्यों होते हैं'। ज्यादातर कोशिकाओं में एक ही प्रकार के डीएनए मॉलिक्यूल्स होते हैं, लेकिन फंक्शन काफी ज्यादा विविध होते हैं। विशेषज्ञता का लेवल प्राप्त करने के लिए कोशिकाओं को केवल अपने प्रकार की सेल्स के विशेष वंशाणुओं की रीडिंग करनी होगी। यह रेग्युलेटरी फंक्शन एपिजीनोम के तहत आता है, जो वंशाणुओं के विशेष पैटर्न में स्विच ऑन और ऑफ होने से जुड़ा सिस्टम है। इसमें एक वंशाणु के डीएनए सिक्वेंस के मूल सिक्वेंस से छेड़छाड़ नहीं होती है।

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हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों की यह थ्योरी इस कल्पना पर चलती है कि समय के साथ एपिजीनोम में बदलाव होने से कोशिकाएं गलत वंशाणुओं को रीड करने लगती हैं और उनके फंक्शन में भी खराबी आ जाती है। इस कारण बढ़ती उम्र से जुड़ी समस्याएं देखने को मिलती हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण बदलाव है डीएनए मेथाइलेशन। इस प्रक्रिया में मेथाइल ग्रुप्स डीएनए में अटक जाते हैं। समय के साथ इन ग्रुप्स के पैटर्न लुप्त होते जाते हैं और कोशिकाओं में जिन वंशाणुओं को सक्रिय रहना चाहिए, वे स्विच ऑफ हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, सेल्युलर फंक्शन में गड़बड़ी आ जाती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऐसे कुछ डीएनए मेथाइल परिवर्तनों का पहले से अनुमान लगाया जा सकता है और उन्हें किसी कोशिका या ऊतर की जैविक आयु बताने में इस्तेमाल किया गया है।

लेकिन यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि क्या डीएनए मेथाइलेशन के कारण कोशिकाओं में आयु संबंधी बदलाव होते हैं। नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि अगर डीएनए मेथाइलेशन से आयुवृद्धि नियंत्रित होती है तो इसके कुछ फुटप्रिंट मिटाकर कोशिकाओं की आयु को रिवर्स किया जा सकता है। इस तरह जीवित प्राणियों की युवावस्था रीस्टोर हो सकती है। पिछले शोधकार्यों के तहत प्रयोगशाला में विकसित की कोशिकाओं में ऐसा सफलतापूर्वक किया गया है। लेकिन जीवित प्राणियों में अभी तक यह सफलता नहीं मिली है। नए अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि इसमें अपनाई गई अप्रोच को जानवरों पर आजमाया जा सकता है।

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जीन थेरेपी की मदद
अध्ययन के प्रमुख लेखक और एचएमएस में जेनेटिक्स के रिसर्च फेलो युआनचेंग लू ने एक ऐसी जीन थेरेपी विकसित की है, जो जीवित जानवरों में कोशिकाओं की आयु को रिवर्स कर सकती है। उनका शोधकार्य नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक शिन्या यामानाका की उस खोज पर आधारित है, जिसमें उन्होंने चार ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर ऑक्ट4, सॉक्स2, केएलएफ4 और सी-एमवाईसी (यामानाका फैक्टर्स) की पहचान की थी। ये चारों जीन्स कोशिकाओं में एपिजेनेटिक्स मार्कर्स को मिटा सकते हैं और उन कोशिकाओं को वापस एम्ब्रियॉनिक स्टेट (जब भ्रूण विकसित हो रहा होता है) में पहुंचा सकते हैं, जहां से वे किसी भी अन्य प्रकार की सेल में डेवलेप हो सकती हैं। 

हालांकि कुछ अध्ययन इस संबंध में बाधाओं का जिक्र करते हैं। इनमें बताया गया है कि वयस्क चूहों पर इस्तेमाल करने पर यामानाका फैक्टर्स ट्यूमर ग्रोथ का कारण बन सकते हैं। इससे इस अप्रोच के असुरक्षित होने का संकेत मिलता है। दूसरी बाधा या खतरा यह है कि इनके प्रभाव में कोशिकाओं की आयु इतनी पीछे जा सकती है कि वे विकास की बिल्कुल आरंभिक स्टेज में पहुंच जाएं। यानी जीन थेरेपी के जरिये यामानाका फैक्टर्स कोशिका की आइडेंटिटी को ही मिटाने का काम कर सकते हैं।

हालांकि डॉ. लू और उनके सहयोगियों ने इन बाधाओं को दूर करने का प्रयास किया है। चूहों पर किए अध्ययन में उन्होंने इस अप्रोच में मामूली मोडिफिकेशन करते हुए चारों यामानाका फैक्टर्स न लेते हुए तीन वंशाणुओं को शामिल किया और सी-एमवाईसी को निकाल दिया। यह प्रयास सफल रहा और ट्यूमर बढ़े बिना और उसकी आइडेंडिटी खोए बगैर कोशिका की आयुवृद्धि कम हो गई। अध्ययन में अपनाए गए प्रयोगात्मक ट्रीटमेंट से चूहों की सर्वाइविंग रेटिनल गैंगलियन सेल्स दोगुना बढ़ गईं और नर्व की रीग्रोथ में पांच गुना इजाफा देखा गया। नतीजतन, उनकी देखने की क्षमता वापस आ गई।

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