लासा फीवर - Lassa fever in Hindi

written_by_editorial

September 05, 2020

November 05, 2020

लासा फीवर
लासा फीवर

लासा फीवर, लासा नामक वायरस के कारण होने वाली बीमारी है जो चूहों के माध्यम से फैलती है। पश्चिमी अफ्रीका के ज्यादातर हिस्सों में यह काफी आम है। हालांकि, इसके गंभीर मामले कई बार जानलेवा भी हो सकते हैं। आमतौर पर संक्रमित मास्टोमिस चूहों के मूत्र या मल से दूषित भोजन या घरेलू वस्तुओं के संपर्क में आने से लासा वायरस इंसानों तक पहुंच जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह एक रक्तस्रावी वायरस है, जिसका अर्थ है कि यह इंसानों में रक्तस्राव का कारण बन सकता है। हालांकि, वायरस से संक्रमित 10 में से 8 लोगों में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते है, ऐसे में इसकी पहचान कर पाना काफी कठिन हो जाता है। यदि वायरस यकृत, गुर्दे या प्लीहा जैसे अंगों को प्रभावित करता है, तो यह घातक भी हो सकता है।

पश्चिमी अफ्रीका के कई देशों में लासा फीवर काफी आम है। एक अनुमानित आंकड़े पर गौर करें तो पता चलता है कि पश्चिमी अफ्रीका में हर साल करीब एक से तीन लाख लोगों को लासा फीवर होता है। इसी के चलते हर साल यहां लगभग 5,000 मौतें भी हो जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय यात्राओं के चलते एक देश से दूसरे देश में इस बीमारी के फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

इस लेख में हम आपको लासा फीवर के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में बताएंगे।

लासा फीवर के लक्षण - Lassa fever symptoms in hindi

लासा फीवर के 80 फीसदी मामलों में लक्षण नजर नहीं आते हैं। हालांकि, रोगी को सामान्य अस्वस्थता, सिरदर्द और हल्का बुखार हो सकता है। बाकी के 20 फीसदी लोगों में यह खतरनाक हो सकता है। इसके संभावित लक्षण निम्न हो सकते हैं।

लक्षणों की पहचान कर समय रहते अगर उपचार नहीं कराया जाता है तो संक्रमण के कारण कई अंग खराब होने लगते हैं, ऐसे में लक्षण दिखने के आमतौर पर दो हफ्तों में व्यक्ति की मौत हो जाती है। लासा फीवर की सबसे आम जटिलताओं में से एक है सुनाई न देना। लासा के तीन में से एक संक्रमित को यह समस्या हो सकती है।

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लासा फीवर के कारण - Lassa fever causes in hindi

लासा वायरस मुख्य रूप से चूहों के माध्यम से फैलता है। एक बार चूहे के संक्रमित होने के बाद उसके मल और मूत्र के माध्यम से वायरस दूसरों तक पहुंच सकता है। चूहे के मल और मूत्र के संपर्क में आने वाली वस्तुओं के प्रयोग के जरिए यह वायरस इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं। इसके अलावा शरीर में कट या खुले घावों के माध्यम से भी वायरस अंदर प्रवेश कर सकते हैं। आमतौर पर चूहे घरों में खाद्य पदार्थों को दूषित कर देते हैं। उन पदार्थों के सेवन से भी संक्रमण फैलने का खतरा रहता है।

यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे में भी रक्त और ऊतकों के माध्यम से फैल सकता है। हालांकि, यह एक-दूसरे को स्पर्श करने से नहीं फैलता है। इसके अलावा संक्रमित व्यक्ति में इस्तेमाल की गई सूई को दूसरे किसी व्यक्ति पर प्रयोग में लाने पर भी वायरस फैल सकता है। कई रिपोर्ट इसके यौन संबंधों के माध्यम से भी फैलने की पुष्टि करते हैं।  जिन अस्पतालों में लासा फीवर के रोगियों का इलाज होता है, अगर वहां साफ-सफाई की कमी है और एक दूसरे के सामानों को प्रयोग में लाया जाता है तो रोगी के माध्यम से वायरस, अस्पताल के दूसरे कर्मचारियों को भी संक्रमित कर सकता है।

लासा फीवर में संक्रमण का अनुमानित असर छह दिनों से तीन सप्ताह तक रह सकता है। अधिकांश लोगों में हल्के या कोई लक्षण नहीं होते हैं। ब्रिटिश शोधकर्ताओं का मानना है कि सामान्य रूप से इसका असर सात से 10 दिनों का होता है। हालांकि, कुछ लोगों में लगभग 21 दिनों तक इसका असर रह सकता है। ऐसे में बीमारी के पूरी तरह से ठीक होने के लिए डॉक्टर द्वारा बताए गए उपायों के कोर्स को पूरा करना चाहिए।

लासा फीवर से बचाव के तरीके - Prevention of Lassa fever in hindi

चूंकि वायरस का संक्रमण चूहों के माध्यम से होता है ऐसे में चूहों की आबादी को रोकने के लिए सामुदायिक स्वच्छता बहुत आवश्यक है। इसके अलावा कुछ बातों का पालन करके भी लासा वायरस के संक्रमण से खुद को सुरक्षित रखा जा सकता है।

  • नियमित रूप से हाथ धोना
  • खाद्य पदार्थों को कंटेनर अथवा ऐसे डिब्बों में रखें, जिससे वह चूहों के संपर्क में न आने पाएं
  • घर में कचरा न इकट्ठा होने दें
  • घर में पालतू बिल्लियां रखें
  • बीमार रिश्तेदारों की देखभाल के दौरान रक्त और अन्य शारीरिक तरल पदार्थों से बचें
  • रोगी की देखभाल करते हुए पीपीई किट जैसे सुरक्षात्मक उपायों को प्रयोग में लाएं

मास्टोमिस चूहे दुनियाभर में पाए जाते हैं, ऐसे में इन्हें पूरी तरह से खत्म कर पाना मुश्किल है। बचाव के तौर पर इन्हें घरों में आने से रोकें ताकि यह घरेलू वस्तुओं को संक्रमित न कर सकें।

लासा फीवर का निदान - Diagnosis of Lassa fever in hindi

लासा फीवर के लक्षणों की पहचान कर पाना ​कठिन होता है। इबोला वायरस, मलेरिया और टाइफाइड सहित अन्य वायरल रक्तस्रावी बुखार के तरह ही इसके भी लक्षण दिखाई देते हैं, ऐसे में इनमें फर्क कर पाना काफी कठिन होता है। प्रयोगशालाओं में परीक्षण के आधार पर ही लासा फीवर का निदान किया जा सकता है। चूंकि वायरस के निदान के लिए जिन नमूनों का परीक्षण किया जाता है, उनकी रखरखाव भी अन्य लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है। ऐसे में केवल विशेष संस्थानों को ही इसके परीक्षण की अनुमति दी जाती है।

सामान्य रूप से एंजाइम लिंक्ड इम्युनोएसे (एलिसा) के माध्यम से लासा फीवर का निदान किया जाता है। इनके माध्यम से आईजीएम और आईजीजी एंटीबॉडी के साथ लासा एंटीजन का पता लगाया जाता है। इसके अलावा बीमारी के शुरुआती चरणों में रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) का इस्तेमाल करके भी बीमारी का निदान किया जा सकता है।

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लासा फीवर का इलाज -Treatment of Lassa fever in hindi

लासा फीवर के लक्षणों का पता अगर शुरुआती चरणों में लग जाए तो इलाज के माध्यम से इसे नियंत्रित करके इंसान की जान बचाई जा सकती है। कुछ देशों में इसके इलाज के लिए एक विशेष एंटीवायरल ड्रग को प्रयोग में लाया जा चुका है। डॉक्टरों का दावा है कि यह दवा लासा वायरस से लड़ने में उपयोगी साबित हुई है, लेकिन यह कैसे काम करती है, इस बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है। इलाज के अन्य माध्यमों में बीमारी के लक्षणों को कम करने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए शरीर में द्रव के स्तर को नियंत्रित रखने, इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाने, ऑक्सीजन की आवश्यकताओं की पूर्ति और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने का प्रयास किया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में लासा बुखार से बचाव के लिए कोई लाइसेंस प्राप्त टीका नहीं है, लेकिन कई संभावित टीकों पर काम जारी है। लासा फीवर के इलाज के रूप में लाइसेंस प्राप्त नहीं होने के बावजूद एंटीवायरल ड्रग रिबाविरिन को कई देशों में प्रयोग में लाया जा चुका है। य​ह कितना प्रभावी है, इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है। फिलहाल इसके इलाज के लिए सुरक्षित उपायों को लाने पर काम चल रहा है।

अप्रैल 2018 में द लांसेट में प्रकाशित एक लेख में बताया गया था कि महामारी संबंधी सजगता नवोन्मेष गठबंधन (सीईपीआई) और थिसिस बायोसाइंस ने मिलकर एक वैक्सीन तैयार की है जो नैदानिक परीक्षणों के दूसरे चरण में है। वैक्सीन के अनुसंधान और विकास पर तेजी से काम किया जा रहा है।



संदर्भ

  1. World Health Organization, Geneva [Internet]. Lassa fever.
  2. Fisher-Hoch S, McCormick JB, Sasso D, Craven RB. Hematologic dysfunction in Lassa fever. J Med Virol. 1988 Oct;26(2):127-35.
  3. Johnson KM, Webb PA, Kuns ML, Valverde L. On the mode of transmission of Bolivian hemorrhagic fever Jpn J Med Sci Biol. 1967 Dec;20 Suppl:153-9. PMID: 5301560.
  4. McCormick JB. Kansenshogaku Zasshi. 1988