आयुर्वेद में दर्द को शूल के नाम से जाना जाता है। दर्द एक लक्षण के रूप में शरीर के किसी भी हिस्‍से जैसे कि गर्दन, कमर, पेल्विस, पेट, छाती, नसों, मांसपेशियों, जोड़ों, टांगों, पैरों, घुटनों और सिर को प्रभावित कर सकता है।

आयुर्वेद में पूरे शरीर को प्रभावित करने वाले दर्द को अंगमर्द कहा गया है। दर्द के सामान्‍य कारणों में अत्‍यधिक थकान, मोच और फ्रैक्‍चर शामिल है। ये किसी अंतर्निहित कारण जैसे कि गाउटी आर्थराइटिस, रूमेटाइड आर्थराइटिस, ऑस्टियोआर्थराइटिस, साइटिका, डायबिटिक न्‍यूरोपैथीट्रायजेमिनल न्यूरालजिया (नसों में होने वाला दर्द), दाद और एड़ी के हड्डी बढ़ने से भी हो सकता है। किस वजह से दर्द हो रहा है, इसी आधार पर इसका इलाज निर्भर करता है।

दर्द के इलाज के लिए आयुर्वेदिक उपचार में स्‍नेहन (तेल लगाने की विधि), स्‍नेहन (पसीना लाने की विधि), नास्‍य (नाक से औषधि डालने की विधि), वमन (औषधियों से उल्‍टी करवाने की विधि), विरेचन (दस्‍त की विधि), बस्‍ती (एनिमा) और रक्‍तमोक्षण की सलाह दी जाती है। दर्द को नियंत्रित करने में उपयोगी जड़ी बूटियों और औषधियों में अरंडी, गुडूची, बड़ी कटेरी, मेषशृंगी (गुड़मार), शल्‍लाकी, सिंहनाद गुग्‍गुल, योगराज गुग्‍गुल, दशमूल कषाय, बृहद वात चिंतामणि रस और लाक्षा गुग्‍गुल का नाम शामिल है।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से दर्द - Ayurveda ke anusar Dard
  2. दर्द का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Pain ka ayurvedic upchar
  3. दर्द की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Dard ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar dard hone par kya kare kya na kare
  5. दर्द में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Dard ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Pain ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. दर्द के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Dard ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
दर्द की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद के अनुसार सभी प्रकार के दर्द का प्रमुख कारण वात का बढ़ना है। इसका संबंध कफ या पित्त के असंतुलन से हो भी सकता है और नहीं भी। किसी अन्‍य दोष के खराब होने से वात में भी असंतुलन आ सकता है जिस कारण दर्द पैदा हो सकता है।

उदाहरण के लिए, पित्त और कफ में गड़बड़ी वात की गतिशीलता में बाधा पैदा करते हैं जिससे दर्द महसूस होने लगता है। अमा (विषाक्‍त पदार्थों) के जमाव के कारण वात के सामान्‍य स्राव में रुकावट आ सकती है और इस वजह से दर्द हो सकता है।

इसके अलावा विभिन्‍न स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से संबंधित लक्षण के रूप में भी दर्द हो सकता है। इसमें वातज पांडु (आयरन की कमी वाला एनीमिया), आमवात (रूमेटाइड आर्थराइटिस), संधिवात (ऑ‍स्टियोआर्थराइटिस), वात रक्‍त (गाउटी आर्थराइटिस), गृधरसि (साइटिका), ज्‍वर (बुखार), एड़ी की हड्डी बढ़ने, कमर और टांगों के हिस्‍से में खून के अपर्याप्‍त संचार की वजह से क्लॉडिकेशन होना, शिरा कौटिल्‍य (वैरिकोज वेन्स), ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्‍चर शामिल हैं।

  • स्‍नेहन
    • स्‍नेहन में दर्द से राहत दिलाने के लिए हर्बल तेलों को लगाकर प्रभावित हिस्‍से को चिकना किया जाता है।
    • ये शरीर को बाहर से चिकना करता है। पंचकर्म थेरेपी में से एक स्‍नेहन आयुर्वेदिक चिकित्‍सा का प्रारंभिक तरीका होता है।
    • स्‍नेहन वात को संतुलित करने में मदद करता है। इस प्रकार ये दर्द से राहत दिलाने की सबसे उपयोगी चिकित्‍साओं में से एक है।
    • ये अमा को पतला कर उसे जठरांत्र मार्ग में लेकर आता है जहां से उसे आसानी से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। स्‍नेहन रक्‍त प्रवाह में सुधार और जोड़ों एवं मांसपेशियों में अकड़न को कम करता है।
    • स्‍नेहन का एक तरीका है अभ्‍यंग (तेल मालिश) जो कि दर्द से राहत दिलाने में उपयोगी है।
       
  • स्‍वेदन
    • इसमें गर्म धातु की वस्‍तु, गर्म हाथों, भाप या गर्म कपड़े से शरीर या प्रभावित हिस्‍से पर पसीना लाया जाता है।
    • ये शरीर की विभिन्‍न नाडियों से अमा को पतला कर उसे पाचन मार्ग में लाती है। यहां से अमा को आसानी से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
    • वात प्रधान बीमारियों में प्रमुख थेरेपी के तौर पर स्‍वेदन का उपयोग किया जाता है।
    • ये शरीर में अकड़न और भारीपन से राहत दिलाता है और दर्द को कम करने में भी असरकारी है।
       
  • नास्‍य
  • वमन
    • वमन एक आयुर्वेदिक थेरेपी है जिसमें विभिन्‍न जड़ी बूटियों की मदद से मरीज को उल्‍टी करवाई जाती है।
    • ये पेट से सभी विषाक्‍त पदार्थों और दूषित कफ एवं पित्त को साफ करने में मदद करता है।
    • वमन रोग पैदा करने वाले कफ को भी हटाने में असरकारी है। ये शरीर की नाडियों को साफ करता है जिससे वात की गति ठीक होती है।
    • मरीज की स्थिति और सहनशक्‍ति के आधार पर वमन कर्म में उल्‍टी लाने के लिए विभिन्‍न जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए, खांसी और ब्रोंकाइल अस्‍थमा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में असंतुलित कफ को हटाने के लिए पिप्‍पली दी जा सकती है। असंतुलित कफ को हटाने से अपच के इलाज में भी मदद मिलती है।
       
  • विरेचन
    • इस चिकित्‍सा में विभिन्‍न औषधीय जड़ी बूटियों से दस्‍त करवाए जाते हैं। ये प्रमुख तौर पर बढ़े हुए पित्त को ठीक करने में उपयोगी है।
    • अन्‍य खराब हुए दोष और शरीर से अमा को भी साफ करने में विरेचन उपयोगी है।
    • ये खासतौर पर रूमेटाइड आर्थराइटिस के इलाज में मददगार है जो कि एक ऑटोइम्‍यून स्थिति है जिसमें जोड़ों में दर्द और सूजन हो जाती है।
       
  • बस्‍ती
    • बस्‍ती एनिमा का एक आयुर्वेदिक रूप है जिसमें जड़ी बूटियों से बने औषधीय तेलों और काढ़े को गुदा मार्ग के जरिए आंतों तक पहुंचाया जाता है।
    • ये आंतों, शरीर से बढ़े हुए दोष और अमा को साफ करने में मददगार है।
    • बस्‍ती चिकित्‍सा गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल, जोड़ों और न्‍यूरोमस्‍कुलर विकारों (कई चिकित्‍सकीय स्थितियां जिनकी वजह से मांसपेशियों के कार्य में दिक्‍कत आती है) को नियंत्रित करने में असरकारी है।
       
  • रकतमोक्षण
    • रक्‍तमोक्षण एक खून निकालने की विधि है जिसमें धातु के उपकरण या जोंक, गाय के सींग या सूखे करेले की मदद से शरीर की विभिन्‍न नाडियों से दूषित खून को निकाला जाता है।
    • प्रमुख तौर पर रक्‍तमोक्षण की सलाह वात और पित्त की स्थितियों के इलाज में दी जाती है।
    • रक्‍तमोक्षण बढ़े हुए दोष और अमा को साफ करने में मदद करता है जिससे दर्द से राहत मिलती है।

दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • अरंडी
    • अरंडी मूत्राशय, तंत्रिका, स्‍त्री प्रजनन तंत्र और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, ठंडक देने वाले और रेचक गुण होते हैं।
    • अरंडी का तेल लगाने से बढ़े हुए और दूषित वात को खत्‍म करता है और दर्द एवं सूजन से आराम दिलाता है। अरंडी का तेल पीने से दस्‍त बहुत जल्‍दी आते हैं।
    • अरंडी का इस्‍तेमाल आर्थराइटिस और साइटिका को नियंत्रित करने में किया जा सकता है।
    • इसे “वात विकारों के राजा” के रूप में जाना जाता है क्‍योंकि ये अधिकतर वात रोगों के इलाज में असरकारी है।
       
  • गुडूची
    • गुडूवी परिसंचरण और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। इम्‍यून को बढ़ाने वाली प्रमुख जड़ी बूटियों में से एक गुडूची भी है।
    • गुडूची खून को साफ और संपूर्ण सेहत में सुधार लाती है। इसलिए ये एड्स, कैंसर, गठिया, रूमेटाइड आर्थराइटिस, टीबी और लंबे समय से हो रहे मलेरिया के बुखार को नियंत्रित करने में असरकारी है। इन सभी स्थितियों के कारण शरीर के विभिन्‍न हिस्‍सों में दर्द और कमजोरी हो सकती है।
    • गुडूची को अर्क या पाउडर के रूप में इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • बृहती
    • बृहती श्‍वसन, मूत्राशय, परिसंचरण और प्रजनन अंगों पर कार्य करती है। इसमें संकुचक (ऊतकों को एकसाथ रखने), कामोत्तेजक, वायुनाशक (पेट फूलने से राहत), हृदय के लिए शक्‍तिवर्द्धक और मूत्रवर्द्धक गुण होते हैं।
    • ये खांसी, अस्‍थमा और छाती में दर्द को नियंत्रित करने में प्रभावकारी है।
    • ये गैस को दूर करती है और इसीलिए बृहती पेट फूलने के कारण हुए पेट दर्द के इलाज में उपयोगी है।
    • बृहती का इस्‍तेमाल पाउडर या काढ़े के रूप में किया जा सकता है।
       
  • मेषशृंगी
    • मेषशृंगी मूत्राशय, परिसंचरण और प्रजनन तंत्र पर कार्य करती है। डायबिटीज मेलिटस के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली प्रमुख जड़ी बूटियों में से एक मेषशृंगी भी है।
    • ये बुखार, खांसी और ग्रंथियों में सूजन जैसी स्थितियों के इलाज में भी उपयोगी है। इन स्थितियों से डायबीटिक न्‍यूरोपैथी और बदन दर्द (डायबिटीज और बुखार के कारण हुए) से राहत एवं इन्‍हें रोकने में मदद मिल सकती है।
    • मेषशृंगी को काढ़े या पाउडर के रूप में ले सकते हैं।
    • मेषशृंगी की पत्तियां हृदय पर उत्तेजक प्रभाव डाल सकती हैं इसलिए इनका इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

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  • शल्‍लाकी
    • शल्‍लाकी जोड़ों और हड्डियों में सूजन, अकड़न एवं दर्द को दूर करती है। इस वजह से यह आर्थराइटिस से संबंधित स्थितियों के इलाज में असरकारी है।
    • ये बढ़े हुए वात दोष को खत्‍म करती है और वात बढ़ने के कारण पैदा हुई विभिन्‍न स्थितियों को नियंत्रित करने में मददगार है।
    • शरीर को मजबूती देने वाले गुणों के कारण इस जड़ी बूटी को जाना जाता है। ये हड्डियों और जोड़ों को मजबूती देती है एवं इसमें सूजन-रोधी और हृदय को सुरक्षा देने वाले गुण होते हैं।

दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • सिंहनाद गुग्‍गुल
    • इस औषधि में मौजूद कुछ सामग्रियों में आमलकी, विभीतकी, शुद्ध गुग्‍गुल, हरीतकी, शुद्ध गंधक और अरंडी मूल यानी जड़ शामिल है।
    • ये मिश्रण आर्थराइटिस के दर्द को कम करने में असरकारी है।
    • सिंहनाद गुग्‍गुल पाचन अग्नि को उत्तेजित करता है जिससे अमा के पाचन में सुधार आता है और कफ का बनना कम होता है।
    • ये परिसंचरिण नाडियों में आई रुकावट को भी दूर करती है।
       
  • योगराज गुग्‍गुल
    • योगराज गुग्‍गुल एक पॉलीहर्बल मिश्रण (कई जड़ी बूटियों से बना) है जिसे चित्रक, विडंग, पिप्‍पलीमूल, त्‍वक (दालचीनी), पार्सिक यावनी, रसना, गोक्षुरा, गुडूची, गुग्‍गुल, शतावरी और अन्‍य विभिन्‍न जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है।
    • ये सभी प्रकार के वात विकारों को नियंत्रित करने में असरकारी है। रूमेटाइड आर्थराइटिस के इलाज में खासतौर पर इसकी सलाह दी जाती है।
    • महायोगराज गुग्‍गुल के अन्‍य मिश्रण की सलाह लंबे समय से हो रहे रूमेटाइड आर्थराइटिस के इलाज में दी जाती है।
    • योगराज गुग्‍गुल वात दोष और अमा को भी साफ करती है एवं इसी वजह से यह गाउटी आर्थराइटिस के इलाज में असरकारी है।
       
  • दशमूल कषाय
    • दशमूल कषाय एक तरल मिश्रण है जिसे शलिपर्णी, कष्‍मारी, पृश्‍निपर्णी, अग्निमांथ, गोक्षुरा और अन्‍य विभिन्‍न जड़ी बूटियों से तैयार किया जाता है।
    • इसका इस्‍तेमाल प्रमुख तौर पर वात विकारों के इलाज में किया जाता है लेकिन अन्‍य असंतुलित दोषों को ठीक करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
    • ये मिश्रण गर्दन और कमर में अकड़न, अस्‍थमा एवं खांसी जैसी स्थितियों के इलाज में मददगार है।
    • ये अनुबंधाय वात, परतंत्र वात और अवरुत्त वात (असंतुलित वात के प्रकार) के कारण पैदा हुई अधिकतर स्थितियों को नियंत्रित करने में असरकारी है। चूंकि, प्रमुख तौर पर वात दोष के कारण दर्द पैदा होता है इसलिए दर्द के इलाज में दशमूल क्‍वाथ का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
       
  • बृहद वात चिंतामणि रस
    • इस रस को रौप्‍य (चांदी), लौह (आयरन), अभ्रक, प्रवाल (लाल मूंगा) और स्‍वर्ण (सोना) की भस्‍म को एलोवेरा में मिलाकर तैयार किया गया है।
    • ये सभी प्रकार के वात रोगों जैसे कि स्लिप डिस्‍क और ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में उपयोगी है।
    • ये औषधि सिरगतवात जैसी स्थितियों के इलाज में भी मदद कर सकती है जिनमें असंतुलित वात शरीर की रक्‍त वाहिकाओं और नाडियों को प्रभावित करता है।
       
  • लाक्षा गुग्‍गुल
    • इस मिश्रण में लाक्षा (लाख), अश्‍वगंधा, नागबाला, अस्थिसंहारक, अर्जुन और गुग्‍गुल प्रमुख तत्‍व हैं।
    • लाक्षा गुग्‍गुल जोड़ों में अकड़न, दर्द और छूने पर होने वाले दर्द से राहत दिलाती है।
    • ये किसी हिस्‍से से चटकने की आवाज आने और एडिमा के इलाज में भी मददगार है।
    • इस औषधि को बनाने के लिए जिन सामग्रियों का इस्‍तेमाल किया गया है उनमें दर्द निवारक, हड्डियों को ठीक करने वाले और ऊतकों को रिपेयर एवं पुर्नजीवित करने वाले गुण हैं। इस वजह से यह औषधि दर्द की विभिन्‍न स्थितियों के इलाज में लाभकारी है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और प्रभावित दोष जैसे कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

क्‍या करें

क्‍या न करें

आमवात यानी गठिया से ग्रस्‍त 24 मरीजों पर एक तुलनात्‍मक अध्‍ययन किया गया। इस अध्‍ययन में अंगमर्द से राहत दिलाने में सिंहनाद गुग्‍गुल और शिव गुग्‍गुल के प्रभाव की जांच की गई।

प्रतिभागियों को दो हिस्‍सों में बांटकर, पहले समूह को सिंहनाद गुग्‍गुल दिया गया जबकि दूसरे समूह को शिव गुग्‍गुल। दोनों ही समूह के लोगों को 8 सप्‍ताह तक प्रतिदिन 6 ग्राम दवा दी गई। अध्‍ययन के अंत तक दोनों समूह के लोगों के लक्षणों में सुधार देखा गया लेकिन शिव गुग्‍गुल की तुलना में सिंहनाद गुग्‍गुल को इस स्थिति के इलाज और बदन दर्द, खाने में अरुचि, आलस और भारीपन से राहत दिलाने में ज्‍यादा असरकारी पाया गया।

अगर सही खुराक और मात्रा एवं अनुभवी चिकित्‍सक की देखरेख में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों लिया जाए तो कोई हानिकारक प्रभाव देखने को नहीं मिलता है। हालांकि, व्‍यक्‍ति की प्रकृति और बीमारी की स्थिति के आधार पर कुछ लोगों को इन दवाओं के गंभीर दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। व्‍यक्‍ति की प्र‍कृति और रोग एवं मरीज की स्थिति को ध्‍यान में रखकर ही डॉक्‍टर कोई दवा लेने की सलाह देते हैं। अपनी मर्जी से किसी जड़ी बूटी, औषधि या आयुर्वेदिक थेरेपी का सेवन न करें। आइए जानते हैं कुछ आयुर्वेदिक चिकित्‍साओं और औषधियों से संबंधित कुछ सामान्‍य हानिकारक प्रभावों के बारे में।

  • तेज बुखार में नास्‍य नहीं दिया जाता है।
  • बच्‍चों, कमजोर और वृद्ध व्‍यक्‍ति एवं गर्भवती महिला को विरेचन की सलाह नहीं दी जाती है।
  • आंतों में रुकावट या छेद, गुदा में जलन और एनीमिया से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को बस्‍ती कर्म नहीं देना चाहिए।
  • बच्‍चों, बुजुर्ग व्‍यक्‍ति, गर्भवती महिला और मासिक धर्म के दौरान रक्‍तमोक्षण की सलाह नहीं दी जाती है। एनीमिया या ल्‍यूकेमिया (ब्लड कैंसर) में भी ये चिकित्‍सा नहीं करनी चाहिए।

दर्द एक सामान्‍य लक्षण है जो कि कई शारीरिक समस्‍याओं एवं स्थितियों के कारण उत्‍पन्‍न हो सकता है। डॉक्‍टर की सलाह के बिना कई दवाओं की मदद से कुछ समय के लिए दर्द से आराम पाया जा सकता है लेकिन दवा का असर खत्‍म होने पर दर्द दोबारा शुरु हो जाता है इसलिए दर्द का कारण बनी बीमारी या स्थिति का इलाज करवाना जरूरी है।

आयुर्वेदिक थेरेपी न सिर्फ दर्द को रोकती हैं बल्कि दर्द के कारण का भी इलाज करती हैं। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां और औषधियां शरीर एवं इम्‍यून सिस्‍टम को मजबूती देती हैं जिससे दर्द से लंबे समय तक छुटकारा मिलता है।

(और पढ़ें - पेट दर्द का आयुर्वेदिक इलाज)

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संदर्भ

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