पोट रोग (रीढ़ की हड्डी में टीबी) - Pott disease in Hindi

Dr. Ajay Mohan (AIIMS)MBBS

December 19, 2019

March 06, 2020

पोट रोग
पोट रोग

रीढ़ की हड्डी में टीबी क्या है?

मुख्य तौर पर टीबी (क्षय रोग) फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन कुछ मामलों में यह फेफड़ों से शरीर के अन्य भागों में भी फैला जाता है जैसे लिम्फ नोड्स व हड्डियां आदि। इस स्थिति को एक्स्ट्रापल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस (ETPB) कहा जाता है। ईपीटीबी में ज्यादातर मामले रीढ़ की हड्डी को ही प्रभावित करते हैं। रीढ़ की हड्डी में टीबी की स्थिति को पोट रोग (पोट्ट डिजीज) कहा जाता है। यदि टीबी आपकी हड्डियों तक फैल गया है, तो आपको पोट रोग होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।

रीढ़ की हड्डी में टीबी के क्या लक्षण होते हैं?

पोट रोग के शुरुआती लक्षण आमतौर पर बहुत धीमी गति से विकसित होते हैं। मरीज के संक्रमित होने के बाद इसके लक्षण दिखने में कुछ हफ्ते से सालों तक का समय लग सकता है। पीठ दर्द को रीढ़ की हड्डी में टीबी का सबसे आम लक्षण माना जाता है। इसके अलावा पोट रोग के लक्षण मुख्य रूप से रोग की गंभीरता और रीढ़ की हड्डी का कौन सा हिस्सा प्रभावित है आदि पर निर्भर करते हैं। इन स्थितियों के अनुसार निम्न लक्षण विकसित हो सकते हैं:

  • तंत्रिकाओं से संबंधित कार्य प्रभावित होना
  • प्रभावित जगह में घाव बनना
  • साइनस संबंधित समस्याएं होना

मरीज की शारीरिक स्थिति के अनुसार कुछ आम लक्षण भी विकसित हो सकते हैं, जैसे:

  • शारीरिक कमजोरी महसूस होना
  • भूख कम लगना (या भूख न लगना)
  • शरीर का वजन कम होना
  • शाम के समय शरीर का तापमान बढ़ना

रात के समय ज्यादा पसीने आना भी पोट रोग का एक लक्षण हो सकता है, जो आमतौर पर रीढ़ की हड्डी से संबंधित लक्षणों से पहले ही विकसित हो जाता है।

कुछ शोधों के अनुसार पैरापरेसिस (शरीर के निचले हिस्से में लकवा), कायफोसिस (रीढ़ की हड्डी में मोड़ आना) और आंतों व मूत्राशय संबंधी समस्याएं भी पोट रोग के लक्षणों से जुड़े हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि पोट्ट डिजीज के शुरुआती मामलों में यह लक्षण न दिखें लेकिन स्थिति गंभीर होने पर ये लक्षण विकसित होने लगते हैं।

रीढ़ की हड्डी में टीबी क्यों होता है?

टीबी मुख्य रूप से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सांस के द्वारा फैलता है। जब आप टीबी का कारण बनने वाले बैक्टीरिया (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) के संपर्क में आते हैं, तो यह मुंह या सांस द्वारा नाक से होते हुऐ फेफड़ों तक पहुंच जाता है।

कुछ मामलों में यह बैक्टीरिया फेफड़ों से लिम्फ नोड्स या हड्डियों तक भी फैल जाता है। रीढ़ की हड्डी में टीबी होना, बोन टीबी (हड्डी में टीबी) का एक प्रकार है। जब यह बैक्टीरिया फेफड़ों से रीढ़ की हड्डी तक पहुंच जाता है और परिणामस्वरूप पोट रोग विकसित हो जाता है।

पोट रोग की रोकथाम कैसे करें?

जैसा कि ऊपर बताया गया है, कि रीढ़ की हड्डी में विकसित होने वाला टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों से ही फैलता है। टीबी होने से बचाव करना ही पोट रोग की रोकथाम करने का सबसे पहला तरीका हो सकता है। जिन लोगों में पीपीडी टेस्ट (Purified Protein Derivative) का रिजल्ट पॉजिटिव आया है, लेकिन उनको टीबी नहीं है तो वे उचित दवाओं की मदद से यह रोग विकसित होने से बचाव कर सकते हैं।

यदि आप किसी टीबी के मरीज के आसपास रहते हैं, तो डॉक्टर के द्वारा बताई गई सभी सावधानियों का पालन करें। टीबी बहुत ही तेजी से फैलता है, इसलिए मरीज व उसके साथ रहने वाले व्यक्तियों को डॉक्टर के द्वारा बताए गए नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है।

रीढ़ की हड्डी में टीबी का परीक्षण कैसे किया जाता है?

पोट रोग का परीक्षण करने के लिए कुछ विशेष चिकित्सीय जांच (क्लिनिकल टेस्ट) किये जाते हैं और साथ ही साथ मरीज व बैक्टीरिया का संपर्क कैसे हुआ है आदि का पता लगाया जाता है। रीढ़ की हड्डी में होने वाले टीबी के परीक्षण में कुछ प्रकार के खून टेस्ट जैसे सीबीसी, ईएसआर, मोन्टेक्स टेस्ट), एलिसा टेस्ट और पीसीआर टेस्ट आदि किए जाते हैं। इसके अलावा कुछ अन्य प्रकार के स्किन टेस्ट व इमेजिंग टेस्ट भी हैं, जिनका प्रयोग पोट रोग का परीक्षण करने के लिए किया जा सकता है।

एसिड फास्ट बेसिली, एंटीबायोटिक सेंसिटिविटी और हिस्टोपैथोॉजी टेस्ट करने के लिए रीढ़ की हड्डी से सेंपल भी लिया जा सकता है।

पोट रोग का इलाज कैसे किया जाता है?

टीबी रोग का इलाज पूरी तरह से संभव है, हालांकि थोड़ा जटिल होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इलाज के दौरान दवाओं को बहुत ही ध्यानपूर्वक व उचित समय पर लेना पड़ता है और बीच में एक बार की दवा न लेने पर पूरी इलाज प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। टीबी के लिए दी जाने वाली दवाओं का कोर्स मुख्य रूप से 6 से 18 महीने तक चलता है। इसकी दवाओं में मुख्य रूप से रिफैम्पिसिन, आइसोनियाजिड, एथेमब्युटोल और पिराजिनेमाईड आदि शामिल है।

पोट रोग मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी को ही प्रभावित करता है, इसलिए इसके इलाज में कई बार रीढ़ की हड्डी की सर्जरी भी करनी पड़ सकती है। स्पाइनल सर्जरी में मुख्य रूप से लैमिनेक्टॉमी शामिल है, जिसमें कशेरुका के प्रभावित भाग को निकाल दिया जाता है।

पोट रोग से क्या जटिलताएं होती हैं?

रीढ़ की हड्डी में टीबी से होने वाली सबसे घातक जटिलता पैराप्लेजिया होती है। पैराप्लेजिया के कुछ प्रकार मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी में होने वाले टीबी की जटिलता के रूप में देखे जाते हैं। इस स्थिति में शरीर का निचला हिस्सा काम करना बंद कर देता है, जैसे पैर व टांगें न हिला पाना और मल-मूत्र त्याग करने की प्रक्रिया पर नियंत्रण होना।

(और पढ़ें - टीबी में परहेज)