स्टिकलर सिंड्रोम - Stickler Syndrome in Hindi

Dr. Ajay Mohan (AIIMS)MBBS

September 30, 2020

January 21, 2021

स्टिकलर सिंड्रोम
स्टिकलर सिंड्रोम

स्टिकलर सिंड्रोम एक आनुवंशिक विकार है, जिसमें देखने, सुनने और जोड़ों से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। इसे 'हेरेडिटरी प्रोग्रेसिव आर्थ्रो ऑप्थाल्मोपैथी' के रूप में भी जाना जाता है। आमतौर पर स्टिकलर सिंड्रोम का निदान शिशु अवस्था या बचपन में किया जाता है।

जिन बच्चों को स्टिकलर सिंड्रोम होता है, उनके चेहरे की बनावट असामान्य होती है जैसे हल्की बाहर निकली हुई आंखें, धंसी हुई ठोड़ी इत्यादि। अक्सर ऐसे लोगों के मुं​ह के अंदर तालू में जन्मजात कट का निशान होता है, जिसे क्लेफ्ट पैलेट के नाम से जाना जाता है।

स्टिकलर सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है, इसके उपचार का लक्ष्य लक्षणों को नियंत्रित करना और जटिलताओं को रोकना है। कुछ मामलों में, स्टिकलर सिंड्रोम से जुड़ी कुछ शारीरिक असामान्यताओं को ठीक करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।

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स्टिकलर सिंड्रोम के संकेत और लक्षण - Stickler Syndrome Symptoms in Hindi

स्टिकलर सिंड्रोम के संकेत और लक्षण व उनकी गंभीरता एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न हो सकती है, यहां तक कि यदि परिवार के अन्य सदस्य भी स्टिकलर सिंड्रोम से ग्रसित हैं तो भी लक्षणों में भिन्नता पाई जा सकती है।

  • आंखों की समस्या : दूर की नजर कमजोर होना, जिन बच्चों को स्टिकलर सिंड्रोम होता है, उनमें अक्सर मोतियाबिंदग्लूकोमा और रेटिना डिटैचमेंट की समस्या हो सकती है।
  • हियरिंग लॉस : स्टिकलर सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों में सुनने में कठिनाई की समस्या हो सकती है। आमतौर पर इसमें हाई ​फ्रीक्वेंसी सुनने की क्षमता प्रभावित होती है।
  • हड्डी और जोड़ों की असामान्यताएं : जिन बच्चों को स्टिकलर सिंड्रोम होता है, उनके जोड़ अक्सर लचीले होते हैं और रीढ़ का आकार असामान्य होना जैसे स्कोलियोसिस के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। किशोरावस्था में ऑस्टियोआर्थराइटिस की शुरुआत हो सकती है।
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स्टिकलर सिंड्रोम का कारण क्या है? - Stickler Syndrome Causes in Hindi

स्टिकलर सिंड्रोम इन छह जीनों में से एक में आनुवंशिक परिवर्तन (एक तरह से गड़बड़ी) के कारण होता है: COL2A1, COL11A1, COL11A2, COL9A1, COL9A2, या COL9A3।

ये जीन कोलेजन का उत्पादन करने के लिए शरीर को निर्देश प्रदान करते हैं। कोलेजन एक प्रोटीन है जो शरीर (हड्डियां, त्वचा, टेंडन और स्नायुबंधन) को संरचना प्रदान करता है। जब स्टिकलर सिंड्रोम से जुड़े किसी भी जीन में रोगजनक परिवर्तन होते हैं, तो यह शरीर में कोलेजन को ठीक से नहीं बनने या संसाधित होने देता है, जिस कारण स्टिकलर सिंड्रोम से जुड़े संकेत और लक्षण विकसित होने लगते हैं।

(और पढ़ें - मोतियाबिंद की सर्जरी कैसे होती है)

स्टिकलर सिंड्रोम का निदान कैसे होता है? - Stickler Syndrome Diagnosis in Hindi

स्टिकलर सिंड्रोम का कभी-कभी बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री (चिकित्सक द्वारा पिछली बीमारियों व उनके इलाज से जुड़े प्रश्न पूछना) और एक शारीरिक परीक्षा के आधार पर निदान किया जा सकता है। हालांकि, लक्षणों की गंभीरता और उपचार के प्रकार को निर्धारित करने के लिए कुछ अतिरिक्त परीक्षणों की आवश्यकता हो सकती है। इन टेस्ट में शामिल हो सकते हैं :

  • इमेजिंग टेस्ट : एक्स-रे के जरिए जोड़ों और रीढ़ में असामान्यताओं या किसी समस्या के बारे में पता चल सकता है।
  • आई एग्जाम : आंख की जांच करके डॉक्टरों को विट्रीयस में गड़बड़ी का पता लगाने में मदद मिल सकती है। विट्रीयस जेल जैसा पदार्थ है, जो आंख में भरा होता है। इसके अलावा आंख की जांच से मोतियाबिंद का भी पता लगाया जा सकता है।
  • हियरिंग टेस्ट : इस परीक्षण के जरिए सुनने की क्षमता कितनी प्रभावित हुई है इस बात का पता लगाया जा सकता है।

स्टिकलर सिंड्रोम का इलाज कैसे किया जाता है? - Stickler Syndrome Treatment in Hindi

स्टिकलर सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है, लेकिन लक्षणों को प्रबंधित किया जा सकता है।

थेरेपी

  • स्पीच थेरेपी : कुछ निश्चित शब्दों को सही तरह से बोलने या सुनने में दिक्कत को दूर करने के लिए स्पीच थेरेपी की जरूरत होती है।
  • फिजिकल थेरेपी : इसके जरिये जोड़ों में दर्द और अकड़न को दूर करने में मदद मिल सकती है। हालांकि, ब्रेसिज, कैन और आर्क सपोर्ट जैसे उपकरण भी मदद कर सकते हैं।
  • हियरिंग एड : यदि बच्चे को सुनने में समस्या है, तो 'हियरिंग एड डिवाइस' पहनकर वह सामान्य लोगों की तरह जीवन जी सकता है।
  • स्पेशल एजुकेशन : ठीक से सुनाई या दिखाई न देने की वजह से स्कूल में सीखने में कठिनाई हो सकती है, ऐसे में स्पेशल एजुकेशन की मदद से वह पढ़ाई लिखाई में आगे बढ़ सकता है।

इसके अलावा कुछ सर्जरी विकल्प भी हैं जैसे :

  • ट्रेकियोस्टोमी : बहुत छोटे जबड़े और असामान्य जीभ वाले नवजात शिशुओं के गले में एक छेद बनाने के लिए ट्रेकियोस्टोमी की आवश्यकता हो सकती है ताकि वे सांस ले सकें।
  • जबड़े की सर्जरी : सर्जन निचले जबड़े की हड्डी को तोड़कर उसे लंबा कर सकते हैं। इस दौरान वे एक उपकरण को इंप्लांट यानी प्रत्यारोपित करते हैं जो धीरे-धीरे हड्डी के आकार को सामान्य रूप देने में मदद करता है।
  • इसके अलावा ईयर ट्यूब सर्जरी, आई सर्जरी, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी की भी जरूरत पड़ सकती है।

(और पढ़ें - सुनने में परेशानी के घरेलू उपाय)

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