इन्फ्लूएंजा, जिसे फ्लू के रूप में जाना जाता है, दुनिया भर में लोगों द्वारा अनुभव किए जाने वाले सबसे आम श्वसन संक्रमणों में से एक है। आंकड़ों की बात करें तो हर साल करीब 30 लाख से 50 लाख लोग फ्लू से संक्रमित होते हैं। इनमें से ज्यादातर मामलों में, फ्लू की यह समस्या अपने आप ही ठीक हो जाती है लेकिन कभी-कभी कुछ दुर्लभ मामलों में फ्लू भी गंभीर और जानलेवा स्थिति में बदल सकता है।

21 सितंबर 2020 को पीएनएएस नाम की पत्रिका में हाल के दिनों में हुई एक स्टडी को प्रकाशित किया गया जिससे यह पता चला कि गर्भवती महिलाओं में इन्फ्लूएंजा ए वायरस संक्रमण के कारण होने वाली मां और अजन्मे बच्चे दोनों को गंभीर नुकसान हो सकता है।

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गर्भवती महिलाओं में फ्लू संक्रमण
वैसे तो इन्फ्लूएंजा वायरस प्लेसेंटा के माध्यम से सीधे तौर पर (वर्टिकली) मां से बच्चे तक ट्रांसमिट नहीं होता है लेकिन यह देखने में आया है कि गर्भवती महिलाओं पर इन्फ्लूएंजा का गंभीर प्रभाव गर्भ में पल रहे भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है। इस बारे में इससे पहले जितने भी अध्ययन हुए से उनसे पता चलता है कि जिन गर्भवती महिलाओं को इन्फ्लूएंजा हो जाता है उन महिलाओं में निमोनिया होने का खतरा अधिक होता है जिस कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की आशंका बढ़ जाती है। साथ ही, इन गर्भवती महिलाओं में मिसकैरेज, समय से पहले प्रसव या बच्चे का जन्म और गर्भस्थ शिशु की वृद्धि में रुकावट का भी खतरा अधिक होता है।

अब तक, यह माना जाता था कि गर्भवती महिलाओं के लिए फ्लू एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या हो सकती है क्योंकि गर्भावस्था के इन 9 महीनों की अवधि में गर्भवती महिला की इम्यूनिटी यानी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिस कारण उनके लिए संक्रमण से लड़ना मुश्किल हो जाता है। हालांकि, अमेरिका के कोलंबिया स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ मिसौरी के वैज्ञानिकों के नए शोध में कहा गया है कि इन्फ्लूएंजा ए वायरस का गर्भवती और गैर-गर्भवती शरीर पर अलग-अलग तरह का प्रभाव पड़ता है, जिससे गर्भावस्था के दौरान यह एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा बन जाता है।

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गर्भवती चूहों में इन्फ्लूएंजा ए वायरस
अपने इस सिद्धांत को साबित करने के लिए, वैज्ञानिकों ने चूहों के दो अलग-अलग समूहों पर प्रयोग किया; पहला ग्रुप 12 दिन के भ्रूण वाली गर्भवती चूहिया का (इंसानों में गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के बराबर) और दूसरा- गैर-गर्भवती चूहिया का। दोनों समूहों में 6 से 8 चूहे थे। इसके बाद दोनों समूहों की चूहियों को इन्फ्लूएंजा ए वायरस के मध्यम रोगजनक स्ट्रेन (नस्ल) से संक्रमत किया गया। गैर-गर्भवती चूहियों में जहां मौसमी फ्लू के सामान्य लक्षण दिखे और उनका संक्रमण फेफड़ों तक सीमित रहा, वहीं गर्भवती चूहियों के शरीर में
इन्फ्लूएंजा ए वायरस के कारण ओवरऑल इन्फ्लेमेशन में वृद्धि हुई और साथ ही उनके खून में न्यूट्रोफिल्स, लिम्फोसाइट्स और प्लेटलेट्स में भी बढ़ोतरी देखने को मिली।

स्टडी के नतीजे क्या रहे?
वैज्ञानिकों ने पाया कि गर्भावस्था के दौरान इन्फ्लूएंजा ए वायरस संक्रमण शरीर के वास्कुलेचर (रक्त वाहिकाओं से संबंधित) में आंतरिक सूजन (इन्फ्लेमेशन) को उत्तेजित करता है, जिससे शरीर में रक्त का संचार (ब्लड सर्कुलेशन) बाधित होता है। शरीर में इस उत्तेजक (इन्फ्लेमेटरी) प्रतिक्रिया के बाद, इम्यून सिस्टम इन्फ्लेमेशन से निपटने के लिए जन्मजात (इन्नेट) प्रतिरक्षा कोशिकाओं और सफेद रक्त कोशिकाओं को भेजता है। इसके अलावा इन्फ्लूएंजा ए वायरस के जवाब में रक्त वाहिकाओं में इन्फ्लेमेटरी साइटोकीन्स (जैसे इंटरल्यूकिन-1 बीटा और टीएनएफ अल्फा), इन्फ्लेमेटरी आसंजन (adhesion) अणु और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस मीडिएटर का अतिरिक्त उत्पादन भी होता है।

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इस क्षति के कारण हृदय की महाधमनी में इन्फ्लेमेशन यानी आंतरिक सूजन और जलन की समस्या होने लगती है। महाधमनी ही वह मुख्य धमनी है जो हृदय से खून को लेकर शरीर के बाकी हिस्सों तक पहुंचाने का काम करती है। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि गर्भवती महिलाओं में हृदय संबंधी क्षति को रोकने के लिए और गर्भवती महिलाओं में इन्फ्लूएंजा ए वायरस का क्या प्रभाव है इसे और स्थापित करने के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।

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