एक बच्चे को जन्म देना शायद इस दुनिया की सबसे कठिन और लंबी प्रक्रियाओं में से एक है। गर्भवती महिलाओं की गर्भधारण की अवधि नौ महीने से कुछ अधिक होती है और प्रेगनेंसी के दौरान मां और गर्भ में पल रहे बच्चे दोनों को भरपूर देखभाल की आवश्यकता होती है। इसमें उचित आहार, व्यायाम, नियमित रूप से भ्रूण और गर्भवती महिला की सेहत की जांच और पर्याप्त आराम जैसी चीजें शामिल हैं। गर्भधारण की इस अवधि के अंत में शिशु (एक से अधिक बच्चे भी हो सकते हैं) की डिलीवरी होती है, हालांकि कई बच्चे समय से पहले यानी प्रीमैच्योर भी पैदा होते हैं।

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अगर समय से पहले लेबर पेन शुरू हो जाए या समय से पहले महिला की डिलिवरी हो जाए तो इसकी योजना तो पहले से नहीं बनाई जा सकती है, लेकिन आमतौर पर, गर्भवती महिला अपने बच्चे को किस तरह से जन्म देना चाहती है उसके विकल्प को चुन सकती है। मौजूदा समय में दुनियाभर में बच्चे को जन्म देने (बर्थिंग) के विभिन्न विकल्प उपलब्ध हैं। डिलिवरी के सबसे कॉमन तरीकों में निम्नलिखित शामिल हैं:

आप अपनी पसंद और अपने और आपके बच्चे की सेहत की स्थिति के आधार पर, अपनी डिलिवरी के तरीके को चुन सकती हैं। बहुत सी महिलाओं को लगता है नॉर्मल वजाइनल डिलिवरी के दौरान बहुत ज्यादा दर्द होता है, इसलिए वे सिजेरियन डिलिवरी के ऑप्शन को चुन लेती हैं। लेकिन हकीकत यही है कि हर मेथड के अपने फायदे और नुकसान दोनों हैं। इस आर्टिकल में हम बात करेंगे वॉटर बर्थ की। 

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भारत में भले ही बहुत कम लोग वॉटर बर्थ के बारे में जानते हों, लेकिन विदेशों में बच्चे को जन्म देने का यह तरीका काफी फेमस है। हालांकि बॉलिवुड ऐक्ट्रेस कल्कि कोचलिन और मॉडल-ऐक्ट्रेस ब्रूना अब्दुल्लाह जैसी सिलेब्रिटीज द्वारा बच्चे की डिलिवरी के लिए वॉटर बर्थ के ऑप्शन को चुनने के बाद अब कई महिलाएं ऐसी हैं जो डिलिवरी के लिए वॉटर बर्थ का चुनाव कर रही हैं। 

कई स्टडीज में भी वॉटर बर्थ को डिलिवरी के ट्रडिशनल तरीकों की ही तरफ सेफ माना गया है। हाल ही में वॉटर बर्थ को लेकर अमेरिका में हुई एक नई स्टडी में यह बात सामने आयी कि हॉस्पिटल में वॉटर बर्थ से जन्मे बच्चे को नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) या स्पेशल केयर नर्सरी में रखने का कोई उच्च जोखिम नहीं था उन बच्चों की तुलना में जो कंट्रोल ग्रुप में बिना वॉटर बर्थ के जन्मे थे। इस स्टडी को ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनैकॉलजी नाम के जर्नल में प्रकाशित किया गया है। तो आखिर क्या है वॉटर बर्थ और डिलिवरी के इस तरीके को चुनने के क्या फायदे, नुकसान या जोखिम हो सकते हैं, इस बारे में जानने के लिए यहां पढें।

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  1. वॉटर बर्थ डिलीवरी क्या है? - Water birth delivery kya hai?
  2. वॉटर बर्थ डिलीवरी के फायदे - Water birth delivery ke fayde
  3. वॉटर बर्थ डिलीवरी के जोखिम कारक - Water birth delivery ke risk factors
  4. वॉटर बर्थ डिलीवरी कब की जाती है? - Water birth delivery kab hoti hai?
  5. वॉटर बर्थ डिलीवरी कैसे की जाती है? - Water birth delivery kaise hoti hai?
  6. वॉटर बर्थ डिलीवरी का खर्च कितना आता है? - Water birth delivery ka cost kitna hota hai?
वाटर बर्थ डिलीवरी के डॉक्टर

यह वजाइनल बर्थ (योनि से जन्म लेना) का ही प्रकार है जिसमें गर्भवती महिला को बर्थिंग पूल या पानी के टब में बिठाया जाता है। वॉटर बर्थ बच्चे को जन्म देने का कोई नया तरीका नहीं बल्कि एक प्राचीन प्रथा है जिसका पालन मिस्र के लोग, यूनान के लोग, हवाई द्वीप के लोगों के बीच सदियों से किया जा रहा है। बच्चे को जन्म देने के इस तरीके में लेबर पेन और कई दूसरी कठिनाइयां प्राकृतिक रूप से कम हो जाती हैं। 

ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनैकॉलजी जर्नल में प्रकाशित स्टडी की मानें तो प्रसव या लेबर के दौरान गर्भवती महिला को पानी में डालने से उसे दर्द में कुछ राहत मिलती है, दर्दनाशक दवाइयां या एपिड्यूरल का भी कम उपयोग होता है, लेबर का समय कम हो जाता है और मरीज (यहां पर गर्भवती महिला) की संतुष्टि में भी वृद्धि होती है। इस स्टडी की मानें तो यही मुख्य कारण है जिसकी वजह से अमेरिका में अब वॉटर बर्थ काफी लोकप्रिय हो गया है। भारत में भी कई अस्पतालों में वॉटर बर्थ सेवाएं प्रदान की जाती हैं ताकि मरीज की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशन्स एंड गाइनेकॉलजिस्ट्स (ACOG), जो अमेरिका में प्रेगनेंसी और बच्चे के जन्म की देखभाल के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करता है, का कहना है कि लेबर के पहले चरण के दौरान वॉटर बर्थ से कुछ लाभ हो सकता है लेकिन लेबर के दूसरे चरण में यानी अपने बच्चे को पानी के अंदर ही डिलिवर करने को जोखिम के साथ एक प्रयोगात्मक प्रक्रिया के तौर पर माना जाना चाहिए। लेबर का पहला चरण वह है जब गर्भवती महिला को संकुचन (कॉन्ट्रैक्शन्स) शुरू हो जाते हैं लेकिन उसका गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) पूरी तरह से फैलता नहीं है।

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अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशन्स एंड गाइनेकॉलजिस्ट्स (ACOG) के अनुसार, लेबर के पहले स्टेज में गर्भवती महिला को पानी में डालने से लेबर की अवधि को कम किया जा सकता है। (लेबर का पहला चरण आमतौर पर सबसे लंबा होता और पहली बार मां बन रही महिलाओं के लिए, यह 12 से 19 घंटे तक का हो सकता है। वे महिलाएं जो पहले भी मां बन चुकी हैं उनके लिए 12-14 घंटे का हो सकता है।) ऐसे में लेबर के समय को कम करने के साथ ही पानी में लेबर का पहला स्टेज होने से महिला को एपिड्यूरल या रीढ़ की हड्डी में अन्य दर्दनिवारक दवाइयां देने की भी आवश्यकता कम हो सकती है।

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एक छोटे अध्ययन से पता चला है कि जिन महिलाओं का लेबर पानी में होता है, उनका सिजेरियन सेक्शन रेट भी कम हो जाता है (13.2 प्रतिशत बनाम 32.9 प्रतिशत)। इतना ही नहीं, बल्कि जिन महिलाओं का वॉटर बर्थ होता है, उन्हें डिलिवरी के 42 दिन बाद तनाव कम होता है, उन महिलाओं की तुलना में जिनकी डिलिवरी पानी के बाहर होती है- क्रमशः 6.1 प्रतिशत बनाम 25.5 प्रतिशत। इन निष्कर्षों की पुष्टि करने के लिए बड़े पैमाने पर और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।

वॉटर बर्थ डिलीवरी के फायदे मां के लिए - Water birth delivery ke fayde maa ke liye

  • गर्म पानी दर्द को कम करके आराम देने वाला, तसल्ली देने वाला और आरामदेह होता है।
  • लेबर के बाद के चरणों में, ऐसा देखा गया है कि पानी की वजह से महिला की ऊर्जा में बढ़ोतरी हो जाती है।
  • पानी में जाकर हल्केपन या उत्प्लावकता की वजह से मां के शरीर का वजन कम हो जाता है जिससे महिला की मूवमेंट्स फ्री हो जाती हैं।
  • हल्कापन या उत्प्लावकता (Buoyancy) अधिक कुशल गर्भाशय संकुचन और बेहतर रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देता है जिसके परिणामस्वरूप गर्भाशय की मांसपेशियों का बेहतर ऑक्सीकरण होता है, मां को दर्द कम होता है और बच्चे के लिए ऑक्सीजन अधिक बनता है।
  • अक्सर लेबर के दौरान चिंता के कारण महिला का जो रक्तचाप बढ़ जाता है वह पानी में जाने के बाद कम हो जाता है। (और पढ़ें- प्रेगनेंसी में हाई बीपी)
  • पानी तनाव से संबंधित हार्मोन को कम करता है जिससे मां का शरीर हैपी हार्मोन एंडोर्फिन का उत्पादन कर सकता है जो दर्द निवारक के रूप में काम करता है।
  • पानी के कारण पेरिनियम (गुदा और योनिमुख के बीच का भाग) अधिक लोचदार और शिथिल हो जाता है, जिससे योनि के चीरने की घटना और गंभीरता कम हो जाती है और टांके लगाने की जरूरत भी कम हो जाती है। (और पढ़ें- प्रसव के बाद टांके और उनकी देखभाल)
  • जब लेबर से गुजर रही महिला शारीरिक रूप से रिलैक्स हो जाती है तब वह मानसिक रूप से जन्म की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने में अधिक सक्षम होती है।

वॉटर बर्थ डिलीवरी के फायदे बच्चे के लिए - Water birth delivery ke fayde bacche ke liye

  • बच्चे को मां के गर्भ के अंदर मौजूद एमनियोटिक थैली के समान वातावरण मिलता है।
  • बच्चे का जन्म का तनाव मिट जाता है जिससे आश्वासन और सुरक्षा की भावना बढ़ती है।

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अगर गर्भवती महिला को इनमें से कोई भी जटिलता या समस्या है तब भी वॉटर बर्थ की सिफारिश नहीं की जा सकती:

वैसे तो बेहद दुर्लभ परिस्थितियों में ही वॉटर बर्थ से जन्मे बच्चों को इंफेक्शन या किसी और तरह की बीमारी होती है। उदाहरण के लिए, लिजिनेयर्स डिजीज- यह लिजिनेला बैक्टीरिया वाले पानी की बूंदों को सांस के जरिए शरीर के अंदर लेने की वजह से होती है। यह एक गंभीर और कभी-कभी घातक बीमारी साबित हो सकती है जिसमें बुखार, खांसी और निमोनिया के साथ ही कई दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं।

अन्य जोखिमों में शामिल हैं :

  • बच्चे के शरीर के तापमान को नियमित करने में परेशानी
  • गर्भनाल (अब्लिकल कॉर्ड) को क्षति पहुंचाने की आशंका (और पढ़ें - गर्भनाल को संक्रमण से कैसे बचाएं)
  • बच्चे को सांस की तकलीफ
  • सांस लेने में अवरोध उत्पन्न होना या दौरे

रॉयल कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशियन एंड गाइनैकॉलजिस्ट्स के एक लेख के अनुसार, वॉटर बर्थ के दौरान वॉटर इम्बोलिज्म का एक सैद्धांतिक जोखिम हो सकता है, जो तब होता है जब पानी मां के रक्तप्रवाह में प्रवेश करता है। हालांकि ब्रिटिश मेडिकल जर्नल वॉटर बर्थ की सुरक्षा में 95% विश्वास करता है, लेकिन वे इसमें सांस के द्वारा पानी को शरीर के अंदर लेने की घटना को संभावित खतरे की तरह देखते हैं। यदि शिशु जन्म के दौरान तनाव का अनुभव कर रहा है या फिर अगर डिलिवरी के वक्त गर्भनाल मुड़ जाती है तो बच्चे की ऑक्सीजन सप्लाई रूक जाती है, वह सांस के लिए हांफने लगता है और अगर बच्चे ने पानी के अंदर ही मुंह खोल दिया तो बच्चे द्वारा पानी को अंदर लेने का खतरा भी बढ़ जाता है।

(और पढ़ें - डिलीवरी के बाद की समस्याएं और उनके उपाय)

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ACOG का सुझाव है कि वॉटर बर्थ यानी पानी में लेबर की सुविधा सिर्फ उन्हीं महिलाओं को दी जानी चाहिए जो गर्भावस्था के 37वें हफ्ते से लेकर 41वें हफ्ते 6 दिन के बीच में हों। इसके अलावा कुछ अन्य दिशा निर्देश भी हैं जिसमें कम-जोखिम वाली प्रेगनेंसी, क्लियर एमनियोटिक फ्लूइड और बच्चे की सिर नीचे की पोजिशन होनी जरूरी है। वे महिलाएं जो समय से पहले लेबर में चली जाएं या फिर जिनकी पहले 2 या इससे अधिक सिजेरियन डिलिवरी हो चुकी है उन महिलाओं के लिए वॉटर बर्थ की सिफारिश नहीं की जा सकती। चूंकि यह नॉर्मल डिलीवरी का तरीका है इसलिए अगर किसी महिला को डॉक्टर ने सिजेरियन डिलिवरी के लिए कहा हो तो वो भी वॉटर बर्थ नहीं करवा सकतीं।

(और पढ़ें- नॉर्मल डिलीवरी के बाद क्या करें)

अमेरिकन प्रेगनेंसी एसोसिएशन की मानें तो वॉटर बर्थ, हल्के गर्म पानी के टब (पानी का तापमान शरीर के तापमान जितना) में बच्चे को जन्म देने की एक प्रक्रिया है। इस दौरान गर्भवती महिला को आमतौर पर किसी स्थिर या हवा वाले टब में बिठाया जाता है जिसमें हल्का गर्म पानी होता है। इसमें 2 चीजें होती हैं। पहला- कुछ महिलाएं लेबर की प्रक्रिया को पानी के अंदर करती हैं लेकिन बच्चे की डिलिवरी पानी से बाहर आकर करती हैं। यह एक अच्छा विकल्प हो सकता है उन महिलाओं के लिए जो अस्पताल में प्रसव के लाभों के साथ, हाइड्रोथेरेपी के लाभ भी चाहती हैं।

(और पढ़ें- प्रसव और डिलीवरी की जटिलताएं)

दूसरा- तो वहीं कुछ महिलाएं लेबर और डिलिवरी दोनों को पानी में रहकर ही करने का फैसला करती हैं यानी लेबर का पहला स्टेज भी पानी में और बच्चे का जन्म भी पानी में। वॉटर बर्थ के पीछे का सिद्धांत यह है कि चूंकि बच्चा पहले से ही नौ महीने मां के गर्भ के अंदर एमनियोटिक फ्लूइड की थैली में रहता है, इसलिए उससे मिलते जुलते वातावरण में अगर बच्चे का जन्म हो तो वह बच्चे के लिए भी कोमल माना जाता है और बर्थिंग का यह तरीका मां के लिए भी कम तनावपूर्ण होता है।

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पश्चिमी देशों में भले ही वॉटर बर्थ डिलिवरी काफी फेमस हो लेकिन भारत में यह अवधारणा अब भी पूरी तरह से विकसित नहीं हुई है और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो इसका प्रमुख कारण ये है कि भारत में मरीज के अनुपात में डॉक्टरों की संख्या बेहद कम है। भारत में, आबादी बहुत बड़ी है कि डॉक्टरों के पास हर मरीज को व्यक्तिगत ध्यान देने का समय नहीं है जबकी वॉटर बर्थ डिलिवरी के दौरान महिला के साथ हर समय एक डॉक्टर या मिडवाइफ का रहना बेहद जरूरी है क्योंकि यह प्रक्रिया लंबे समय तक खिंच सकती है। इसके अलावा वॉटर बर्थ डिलिवरी के दौरान इस्तेमाल होने वाले साफ और शुद्ध पानी और ट्रेन्ड सुपरवाइजर्स की भी भारत में कमी है।

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इतनी समस्याओं के बावजूद भारत में वॉटर बर्थ डिलिवरी का यह ट्रेंड धीरे-धीरे लोगों के बीच फेमस हो रहा है। इसके खर्च की बात करें तो वॉटर बर्थ डिलिवरी का खर्च वैसे तो अलग-अलग हॉस्पिटल या सेंटर में अलग-अलग हो सकता है लेकिन सामान्य रूप से इसकी कीमत 80 हजार से लेकर 1.25 लाख रुपये के बीच होती है।

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