उम्र बढ़ने पर जब महिला के पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं, तो इस स्थिति को रजोनिवृत्ति यानि मेनोपॉज कहा जाता है। आमतौर पर मेनोपॉज 45 से 50 की उम्र के बीच शरीर में एस्‍ट्रोजन लेवल में गिरावट आने की वजह से होता है। हालांकि, कुछ महिलाओं में इससे पहले भी मेनोपॉज हो सकता है जिसे प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज कहते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं :

  • ओवरी निकालना
  • गर्भाशय निकालना
  • कीमोथेरेपी जैसी कुछ ट्रीटमेंट
  • कुछ ऑटोइम्‍यून बीमारियां जैसे कि लुपस और रुमेटाइड आर्थराइटिस
  • अर्ली मेनोपॉज की फैमिली हिस्‍ट्री रही हो या यह अनुवांशिक हो
  • टर्नर सिंड्रोम या मिर्गी जैसी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं
  • धूम्रपान
  • बहुत ज्‍यादा पतला होना : एस्‍ट्रोजन फैट के अंदर स्‍टोर होता है और बहुत पतली महिला में इसका लेवल कम हो सकता है।
  • बहुत कम ही टीबी, मलेरिया की वजह से अर्ली मेनोपॉज हो सकता है

प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज का मतलब है 40 की उम्र में पहुंचने से पहले ही पीरियड्स आना बंद हो जाना और अर्ली मेनोपॉज का अर्थ है 45 से पहले पीरियड्स बंद होना।

हार्ट और हड्डियों पर एस्‍ट्रोजन का सुरक्षात्‍मक प्रभाव पड़ता है। एक रिसर्च में सामने आया कि जो महिलाएं 40 से पहले ही मेनोपॉज में आ जाती हैं, उनमें 60 की होने तक 50 से 51 की उम्र में मेनॉपाज होने वाली महिलाओं की तुलना में कई बीमारियां होने का खतरा दोगुना होता है।

प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज के दौरान लो एस्‍ट्रोजन लेवल, अर्ली मेनोपॉज या मेनोपॉज से गर्मी लगने और योनि में सूखापन महसूस होने की दिक्‍कत हो सकती है। इससे हड्डियां कमजोर और वजन भी बढ़ सकता है। थायराइड से ग्रस्‍त महिलाओं में प्रीमैच्‍योर और अर्ली मेनोपॉज या मेनोपॉज के लक्षण गंभीर हो सकते हैं।

मेनोपॉज एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके लिए इलाज की जरूरत नहीं होती है। अगर दिक्‍कत हो रही है, तो हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी, कॉग्‍नीटिव बिहेवरियल थेरेपी, एस्‍ट्रोजन क्रीम और ल्‍यूब्रिकेंट्स से कभी-कभी लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। जिन महिलाओं को प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज होता है, डॉक्‍टर उन्‍हें हार्ट और हड्डियों को स्‍वस्‍थ रखने के लिए हार्मोनल रिप्‍लेसमेंट थेरेपी की सलाह देते हैं।

  1. प्रीमैच्‍योर या अर्ली मेनोपॉज की उम्र
  2. प्रीमैच्‍योर और अर्ली मेनोपॉज के संकेत
  3. प्रीमैच्‍योर और अर्ली मेनोपॉज के कारण
  4. नॉर्मल मासिक चक्र कैसे होता है
  5. प्रीमैच्‍योर और अर्ली मेनोपॉज के साइड इफेक्‍ट्स
  6. प्रीमैच्‍योर और अर्ली मेनोपॉज की ट्रीटमेंट और टिप्‍स
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आमतौर पर महिलाओं को 45 साल और 55 साल की उम्र में मेनोपॉज होता है। रिसर्च में सामने आया है कि भारतीय महिलाओं को 46.2 साल के आसपास मेनोपॉज होता है और इसमें 4.9 साल का समय लग सकता है।

40 और 45 के बीच अर्ली मेनोपॉज होता है प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज का मतलब है 40 वर्ष की आयु से पहले पीरियड्स का नॉर्मल न होना। 2016 में बेंगलुरु में इंस्‍टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज में सामने आया कि 4 पर्सेंट भारतीय महिलाओं को 29 से 34 साल की उम्र के बीच और 8 पर्सेंट महिलाओं को 35 से 39 साल की उम्र में मेनोपॉज होता है।

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अर्ली और प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज के लक्षण एक-दूसरे से काफी मिलते-जुलते हैं। अर्ली या प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज के निम्‍न कुछ लक्षण हैं :

  • अनियमित माहवारी : अगर पहले आपका मासिक चक्र ठीक रहता है और फिर अनियमित पीरियड्स आने लगे हैं, तो यह पेरिमेनोपॉज के शुरू होने का संकेत हो सकता है। आपको कम या ज्‍यादा ब्‍लीडिंग हो सकती है। अगर आपको लगातार हर महीने सात दिनों से ज्‍यादा दिनों के लिए पीरियड्स आ रहे हैं, तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि आपका अर्ली मेनोपॉज शुरू होने वाला है। वहीं दो बार से ज्‍यादा बार पीरियड्स न आने का मतलब है आप मेनोपॉज के आखिरी स्‍टेज की ओर हैं।
    यूएस के नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ एजिंग के अनुसार मासिक चक्र में बदलाव आना नॉर्मल बात है लेकिन फिर भी अगर आपको हैवी ब्‍लीडिंग, स्‍पॉटिंग, एक हफ्ते से ज्‍यादा पीरियड्स रहने और एक साल के गैप के बाद अचानक से पीरियड्स आने जैसे लक्षण दिख रहे हैा, तो डॉक्‍टर से बात करें।
  • गर्मी लगना और रात में पसीना आना : मेनोपॉज, अर्ली और प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज के सबसे जाने-माने लक्षण में गर्मी लगना शामिल है। हार्मोन के स्‍तर में बदलाव या मस्तिष्‍क में थर्मोरेगुरेट्री केंद्रों में बदलाव की वजह से गर्मी लगना यानि हॉट फ्लैशेज हो सकते हैं। इसमें अचानक खासतौर पर शरीर के ऊपरी हिस्‍सों जैसे कि गर्दन, चेहरे और सिर पर गर्मी लग सकती है। उन्हें बहुत पसीना आ सकता है और शरीर का तापमान थोड़ा अधिक हो सकता है। ये लक्षण 30 सेकंड से लेकर 5 से 10 मिनट के लिए एक दिन या हफ्तों में दिन में कई बार या एक घंटे में ही कई बार दिख सकते हैं।
    वहीं जब रात को हॉट फ्लैशेज होते हैं, तो इसे नाइट स्‍वैट कहा जाता है। इसमें रात को सोते समय पसीने आते हैं। यह परेशानी मेनोपॉज के कई सालों बाद तक रह सकती है।
  • सोने में दिक्‍कत : महिला देर से सोती या जल्‍दी उठ सकती है। नाइट स्‍वैट से अनिद्रा हो सकती है और अच्‍छी नींद आने में दिक्‍कत हो सकती है।
  • वैजाइनल एट्रोफी और संबंधित लक्षण : लो एस्‍ट्रोजन की वजह से योनि की म्‍यूकस झिल्‍ली पतली, सूखी और कम लचीली हो सकती है। इससे सेक्‍स के दौरान दर्द, खुजली और जलन हो सकती है।
  • मूत्राशय संबंधी समस्‍या : इसमें पेशाब न रोक पाना, मूत्र मार्ग में बार-बार संक्रमण होना या मूत्राशय में इंफेक्‍शन, डिस्‍यूरिया और तुरंत पेशाब करने की इच्‍छा होना शामिल है।
  • सेक्‍स ड्राइव कम होना : मेनोपॉज के बाद महिला प्रेगनेंट नहीं हो सकती है। एस्‍ट्रोजन लेवल गिरने की वजह से सेक्‍स ड्राइव कम हो जाती है।
  • एंग्‍जायटी या मूड खराब होना : मेनोपॉज के दौरान मूड खराब होने के सटीक कारण का पता नहीं चल पाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा हार्मोनल बदलावों की बजाय जिंदगी की आम टेंशन की वजह से होता है।
  • अन्‍य लक्षण : मेनोपॉज के अन्‍य लक्षणों में बोन डेंसिटी कम होना, मसल मास घटना, बॉडी फैट बढ़ना, मांसपेशियों में अकड़न आना और जोड़ों में दर्द, ध्‍यान न लगा पाना और याद्दाश्‍त कमजोर होना शामिल है। पोस्‍टमेनोपॉज पीरियड में हॉट फ्लैशेज और नाइट स्‍वैट जैसे लक्षण धीरे-धीरे कम होते जाते हैं।

प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज और प्राइमरी ओवेरियन इनसफिशिएंसी को लेकर बहुत उलझन है। 40 की उम्र से पहले मेनोपॉज के लिए इन दोनों टर्म का इस्‍तेमाल किया जाता है। हालांकि, यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार प्राइमरी ओवेरियन इनसफिशिएंसी में कभी-कभी मासिक चक्र शुरू हो जाते हैं जिससे महिला के प्रेगनेंट होने की उम्‍मीद होती है। इसके बावजूद दोनों स्थितियों के कुछ एक-जैसे लक्षण हैं :

  • अर्ली मेनोपॉज या प्राइमरी ओवेरियन इनसफिशिएंसी के ज्‍यादातर मामले इडियोपैथिक होते हैं और इनका कारण पता नहीं होता है।
  • जेनेटिक स्थितियों जैसे कि टर्नर सिंड्रोम, फ्रेजाइल एक्‍स सिंड्रोम, गैलेक्‍टोसेमिया से अर्ली या प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज के साथ-साथ प्राइमरी ओवेरियन इनसफिशिएंसी हो सकती है।
  • ऑटोइम्‍यून डिजीज जैसे कि लुपस, क्रोह्न डिजीज और रुमेटाइड आर्थराइटिस का दोनों से संबंध है।
  • सिगरेट पीने से
  • वायरल इंफेक्‍शन जैसे कि साइटोमाइगेलोवायरस इंफेक्‍शन को कुछ महिलाओं में प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज का कारण माना जाता है।
  • इंड्यूस्‍ड मेनोपॉज : ओवरी या गर्भाशय निकालने की सर्जरी या फिर रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी की वजह से इंड्यूस्‍ड मेनोपॉज हो सकता है। कीमोथेरेपी या दवा की वजह से मेनोपॉज होने पर थेरेपी बंद करने के बाद फिर से पीरियड्स हो सकते हैं।
 
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नॉर्मल मासिक चक्र जब अचानक से बंद हो जाता है, तो उसे अर्ली और प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज कहते हैं। यहां हम आपको बता रहे हैं कि नॉर्मल चक्र में क्‍या होता है।

एक लड़की की ओवरी में जन्‍म के समय करोड़ों ओवेरियन फॉलिकल होते हैं। प्‍यूबर्टी के बाद हर महीने मासिक चक्र के दौरान किसी एक ओवरी से एक एग रिलीज होता है। मासिक चक्र के निम्‍न चरण हैं :

  • फॉलिक्‍यूलर फेज
  • ओवुलेशन
  • ल्‍यूटियल फेज
  • मेंस्‍ट्रयुएशन

फॉलिक्‍यूलर फेज में फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन यानि एफएसएव और ल्‍यूटिनाइजिंग हार्मोन यानि एलएच, दो हार्मोन रिलीज मस्तिष्‍क की पिट्यूटरी ग्रंथि से रिलीज होते हैं जो ओवेरियन फॉलिकलों के मैच्‍योर होने को बढ़ावा देते हैं। एलएच एस्‍ट्राडिओल के उत्‍पादन को बढ़ाता है। एस्‍ट्राडिओल एफएसएच और एलएच दोनों के लेवल को कम कर देता है लेकिन एफएसच में गिरावट ज्‍यादा आती है।

ओवुलेशन फेज में, एस्‍ट्रोडिओल का लेवल सबसे ऊंचा पहुंच जाता है। इससे एलएच का लेवल बढ़ता है जिससे ओवेरियन फॉलिकल की बाहरी दीवार के टूटने को बढ़ावा मिलता है। इससे ओवुलेशन की प्रक्रिया में ओवरी से एग को रिलीज करने में मदद मिलती है। प्रोजेस्‍टेरोन का लेवल भी ओवुलेशन फेज में बढ़ना शुरू हो जाता है।

ल्‍यूटिअल फेल में एक रिलीज होने के बाद जो बच जाता है, फॉलिकल खुद को कोरपस ल्‍यूटिअम में बदल लेता है और प्रोजेस्‍टेरोन का स्राव शुरू करता है। प्रोजेस्‍टेरोन गर्भाशय को संभावित प्रेग्‍नेंसी के लिए तैयार करना शुरू करता है। इसमें गर्भाशय की दीवार में खून का प्रवाह बढ़ना शामिल है। यदि प्रेग्‍नेंसी नहीं होती है, एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍टेरान लेवल कम होता है और कोरपस ल्‍यूटिअम नष्‍ट होता है और कोरपस एल्बिकंस में बदल जाता है।

इस समय मेंस्‍ट्रुएशन शुरू होता है जिसमें गर्भाशय अपनी मोटी दीवार से गिरने लगता है। स्‍वस्‍थ महिला में मासिक चक्र जिंदगी में 450 से 500 बार होता है। हालांकि, अर्ली या प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज में यह कम होता है।

प्राकृतिक रूप से मेनोपॉज धीरे-धीरे होता है जो एक समय के अंतराल में होता है। इसके चरण हैं :

  • प्री-मेनोपॉज, रजोनिवृत्ति से 10 साल पहले शुरू हो सकता है। इस स्‍टेज में हार्मोनल उतार-चढ़ाव होता है लेकिन यह बदलाव शायद ही कभी लक्षणों के रूप में महसूस या देखा जाता है।
  • पेरिमेनोपॉज या मेनोपॉज की ओर आने वाला स्‍टेज तीन से चार साल तक चल सकता है। कुछ महिलाओं के लिए पेरिमेनोपॉज कुछ महीनों के लिए हो सकता है। ये स्‍टेज मेनोपॉज से बिलकुल पहले आता है। इस पीरियड में ओवरियां धीरे-धीरे एफएसएच और एलएच हार्मोनों को प्र‍तिक्रिया देना कम कर देती हैं जिससे फॉलिक्‍यूलर फेज छोटा हो जाता है, ओवुलेशन कम होता है और प्रोजेस्‍टेरोन घट जाता है। पेरिमेनोपॉज के बढ़ने पर धीरे-धीरे एस्‍ट्रोजन भी घट जाता है। महिलाओं को अनियमित माहवारी और मेनोपॉज के लक्षण जैसे कि पेरिमेनोपॉज के दौरान हॉट फ्लैशेज हो सकते हैं।
  • समय के साथ कुछ फॉलिकलों की संख्‍या घट जाती है और बाकी बचे हुए फॉलिकल हार्मोंनों को प्रतिक्रिया देना बंद कर देते हैं। मेनोपॉज तब कहा जाता है जब महिला को लगातार 12 महीनों तक पीरियड्स न हों।
  • प्रीमैच्‍योर या अर्ली मेनोपॉज एक ही स्‍टेज में या अचानक से हो सकता है। यह खासतौर पर सर्जरी के बाद होता है।

अर्ली और लेट मेनोपॉज दोनों से ही कुछ फायदे और जोखिम जुड़े हुए हैं।

  • अर्ली मेनोपॉज से कुछ प्रकार के कैंसरों जैसे कि ब्रेस्‍ट कैंसर का खतरा कम होता है। वहीं दूसरी ओर, जो महिलाएं अर्ली मेनोपॉज और प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज से गुजर रही हैं, उनमें न्‍यूरोलॉजिकल समस्‍याओं जैसे कि डिमेंशिया, मानिसक तनाव, एंग्‍जायटी और नींद से संबंधी परेशानियों, हार्ट प्रॉब्‍लम, लो बोन डेंसिटी, ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्‍चर और ऑस्टियोपोरोसिस जल्‍दी होने, सेक्‍सुअल हेल्‍थ के खराब होने और जल्‍दी मरने का खतरा ज्‍यादा होता है। अध्‍ययन भी घबराहट, कब्‍ज, दर्द, अकड़न, ऑस्टियोपोरोसिस और मस्‍कुलोस्‍केलेटल डिजीज से इंड्यूस्‍ड मेनोपॉज का संबंध बताते हैं।
  • लेट मेनोपॉज लंबे समय तक एस्‍ट्रोजन का सुरक्षात्मक प्रभाव देता है जिससे गुड कोलेस्‍ट्रोल बढ़ता है और बैड कोलेस्‍ट्रोल कम होता है। इससे उन महिलाओं में हार्ट डिजीज का खतरा कम होता है, जिन्‍हें अभी भी मासिक चक्र हो रहा हो। वहीं दूसरी ओर, ब्रेस्‍ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर आदि का भी खतरा कम हो जाता है।

मेनोपॉज के लिए हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी के साथ प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज का इलाज किया जाता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि हार्मोनल थेरेपी लेने से कम उम्र में रजोनिवृत्ति का खतरा टल जाता है। हालांकि, सभी महिलाओं को अर्ली मेनोपॉज के लिए ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं होती है।

जिनमें किसी लक्षण की वजह से कोई परेशानी हो रही है, उन्‍हें लक्षणों को ठीक करने वाली ट्रीटमेंट दी जाती है। अर्ली मेनोपॉज और मेनोपॉज के इलाज में लाइफस्‍टाइल से जुड़े बदलाव और दवाएं शामिल हैं। कुछ वैकल्‍पिक नुस्‍खे इस्‍तेमाल करती हैं, जैसे कि :

  • लाइफस्‍टाइल में बदलाव : मेनोपॉज, अर्ली और प्रीमैच्‍योर मेनोपॉज के कई लक्षणों के इलाज के लिए जीवनशैली में निम्‍न बदलाव करने के लिए कहा जाता है :
    • हॉट फ्लैशेज : हेल्‍दी डाइट, नियमित वर्कआउट, ब्रीदिंग एक्‍सरसाइज, हल्‍के और आरामदायक कपड़े पहनना, पंखे या ए.सी में रहना या ठंडी जगह पर रहना, मसालेदार खाने से दूर रहना, ज्‍यादा इमोशनल और तेज रोशनी से दूर रहना।
    • नाइट स्‍वैट : तकिये के नीचे आईस पैक लगाकर सोएं। इससे आप ठंडक महसूस करेंगे। ठंडा पानी पिएं।
    • योनि में सूखापन और यौन असहजता : नियमित सेक्‍स से योनि में रक्‍त प्रवाह बना रह सकता है। योनि में सूखेपन को कम करने के लिए आप वॉटर-बेस ल्‍यूब्रिकेंट्स का इस्‍तेमाल कर सकती हैं। डॉक्‍टर के बताए वैजाइनल मॉइश्‍चराइजर, ल्‍यूब्रिकेंट्स से बेहतर होते हैं। योनि में खुजली और सूखेपन को कम करने के साथ ये वैजाइना में पीएच को भी बनाए रखने में मदद करते हैं।
    • पेशाब न रोक पाना : कीगल एक्‍सरसाइज से पेशाब न रोक पाने की प्रॉब्‍लम को कंट्रोल और कम किया जा सकता है। दिनभर खूब पानी पिएं और कैफीनयुक्‍त पेय पदार्थों से दूर रहें।
    • सोने में दिक्‍कत : स्‍लीप शेड्यूल अच्‍छा बनाने से नींद से जुड़ी दिक्‍कतों को दूर करने में मदद मिल सकती है। सोने से बिलकुल पहले फोन या स्‍क्रीन न देखें और रात को कैफीन भी न लें। आप रात को दूध पी सकते हैं, रिलैक्सिंग टेक्निक आजमा सकते हैं या संगीत सुन सकते हैं।
    • मूड स्विंग्‍स : नियमित एक्‍सरसाइज, योगा और ताई ची जैसे कुछ तरीकों से तनाव को कम और मूड स्विंग्‍स को मैनेज करने में मदद मिलती है।
    • कमजोर हड्डियां : विटामिन डी के सप्‍लीमेंट के साथ कैल्शियम, हेल्‍दी डाइट और एक्‍सरसाइज और कुछ समय धूप में बैठने से हड्डियों को मजबूत बनाए रखने में मदद मिल सकती है। कोई भी सप्‍लीमेंट लेने से पहले डॉक्‍टर से पूछें।
  • वैकल्पिक ट्रीटमेंट : कुछ वैकल्पिक थेरेपियां जैसे कि माइंडफुलनेस और एक्‍यूपंक्‍चर को मेनोपॉज के कुछ लक्षणों से आराम पाने में मददगार माना जाता है। मूड स्विंग्‍स और नींद से जुड़ी दिक्‍कतों के लिए जिनसेंग और एंग्‍जायटी के लिए कावा होती है। मेनोपॉज के लक्षणों को कम करने के लिए ज्‍यादातर बूटियों के लाभ की पुष्टि के लिए और अध्‍ययन किए जाने की जरूरत है।
    इस बात का ध्‍यान रखें कि सारी बूटियां हर इंसान को सूट नहीं करती हैं, किसी का नुकसान भी हो सकता है। डॉक्‍टर से पूछने के बाद ही कोई दवा या बूटी लेना शुरू करें।
  • दवाएं : अर्ली मेनोपॉज और मेनोपॉज के लक्षणों को ठीक करने के लिए कई दवाएं आती हैं, जैसे कि :
    • गाबापेंटिन : दौरे पड़ने से रोकने के लिए यह दवा दी जाती है। हॉट फ्लैशेज के बार-बार आने और इसकी गंभीरता को कम करने के लिए कभी-कभी गाबापेंटिन है। इससे नींद में भी सुधार होता है। मतली, चक्‍कर आना, थकान और वजन बढ़ना इसके कुछ साइड इफेक्‍ट्स हैं।
    • क्‍लोनिडिन : ब्‍लड प्रेशर को कम करने के लिए इस दवा का इस्‍तेमाल किया जाता है। इससे हॉट फ्लैशेज भी ठीक होता है। इस दवा के लो बीपी, मुंह में सूखापन और थकान जैसे कुछ साइड इफेक्‍ट्स भी हैं।
    • डिप्रेशनरोधी : ये दवाएं एंग्‍जायटी, मूड स्विंग्‍स और चिड़चिड़ेपन को कम करने के लिए दी जाती है।
    • पैरोक्‍सेटिन : यह सेरोटोनिन रिअप्‍टेक इनहिबिटर है जिसे यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्‍ट्रेशन ने साल 2013 में मेनोपॉज में हॉट फ्लैशेज के इलाज के लिए मंजूरी दी थी। सेरोटोनिन रिअप्‍टेक इनहिबिटर डिप्रेशन के इलाज में इस्‍तेमाल होते हैं। ये दवाएं सेरोटोनिनल लेवल को बढ़ा देती हैं जिससे डिप्रेशन कम होने लगता है।
    • डुआवी : इसमें एस्‍ट्रोजन और बैजेडोक्‍स‍िफेन होता है जिसे साल 2013 में एफडीए द्वारा गर्भाशय के साथ पोस्‍टमेनोपॉजल महिलाओं में हॉट फ्लैशेज के इलाज के लिए स्‍वीकृति मिली थी। यह ऑस्टियोपोरोसिस से भी बचाती है।
    • ओस्पिमिफेन : यह एस्‍टोजन एगोनिस्‍ट/एंटागोनिस्‍ट है जो मेनोपॉज होने के बाद सेक्‍स के दौरान दर्द का इलाज करती है।
    • प्रास्‍टेरोन : इसे भी मेनोपॉज होने के बाद सेक्‍स के दौरान दर्द का इलाज करने के लिए एफडीए ने स्‍वीकृति दी थी।
  • रैलोक्सिफेन और कैलसिटोनिन जैसी दवाओं से ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज किया जाता है।
  • गर्भ निरोधक गोलियां : पेरिमेनोपॉजल पीरियड में गर्भ निरोधक पिल्‍स, अर्ली मेनोपॉज और मेनोपॉज के लक्षणों को मैनेज करने के लिए दी जाती है। इन पिल्‍स को स्किन पैच या वैजाइनल रिंग के रूप में ले सकते हैं। ये पिल्‍स हाई बीपी और खून के थक्‍के बनने के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। डॉक्‍टर की सलाह के बिना इन्‍हें न लें।
  • मेनोपॉजल हार्मोन थेरेपी : मेनोपॉज के लक्षणों को ठीक करने में इसे बहुत असरकारी माना जाता है। इस थेरेपी में वो हार्मोंस दिए जाते हैं, जिनमें मेनोपॉज के दौरान महिला में कमी आ जाती है - एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍टेरोन।
    आमतौर पर एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍टेरान एकसाथ दिए जाते हैं। हालांकि, खाली एस्‍ट्रोजन वाली ट्रीटमेंट उन महिलाओं को दी जाती है, जिनका गर्भाशय निकाला जा चुका हो। मासिक चक्र में हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी दी या नहीं दी जा सकती है। इसमें टैबलेट, जेल, वैजाइनल रिंग, स्किन पैचेज और वैजाइनल क्रीम दी जाती है।
  • इस थेरेपी के कुछ साइड इफेक्‍ट्स भी हो सकते हैं। कई अध्‍ययनों में सामने आया है कि इस थेरेपी से स्‍ट्रोक, हार्ट अटैक और ब्रेस्‍ट कैंसर, एंडोमेट्रियल कैंसर और ओवेरियन कैंसर का खतरा कम हो सकता है। हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी के साइड इफेक्‍ट्स हो सकते हैं जैसे कि मतली, पेट फूलना, ब्‍लीडिंग और मूड में बदलाव होना। थेरेपी शुरू करने से पहले आप डॉक्‍टर से संभावित फायदों और दुष्‍प्रभावों के बारे में पूछ लें।
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