केंद्र सरकार ने इस साल के बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के आवंटन में बढ़ोतरी की है। पिछले बजट में हेल्थ सेक्टर के लिए 62,659 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी। इसे इस वर्ष 3.75 प्रतिशत बढ़ा कर 65,011 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

बजट में राज्य विभागों में पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप) मॉडल के तहत अस्पतालों की स्थापना की नीति को भी दोहराया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा कि सरकार इस मॉडल के तहत उन जिलों में अस्पताल खोलेगी जहां अभी तक ये सुविधाएं शुरू नहीं हुई हैं। इन अस्पताओं में डॉक्टरों की मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए इन्हें आसपास के मेडिकल कॉलेजों से जोड़ा जाएगा।

बजट के बाद स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने 3.75 प्रतिशत की वृद्धि को 'सराहनीय' बताया था। उनके मुताबिक यह स्वास्थ्य क्षेत्र पर सरकार के मजबूत दृष्टिकोण का संकेत है।

लेकिन बजट को लेकर विश्लेषकों और विशेषज्ञों की अलग-अलग राय देखने को मिल रही है। कई जानकारों का कहना है कि चार प्रतिशत से कम की वृद्धि 'कोई वृद्धि नहीं' है। इन विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि सरकार द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में निर्धारित लक्ष्यों को पूरा नहीं किया गया है।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अस्पतालों पर होने वाले खर्च से जुड़े दो सरकारी कार्यक्रमों और राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य से जुड़े केंद्रों के लिए पैसा नहीं बढ़ाया गया है। वहीं, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में स्वास्थ्य अर्थशास्त्र के निदेशक सक्थिवेल सेल्वाराज ने कहा, 'अगर आप महंगाई के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो चार प्रतिशत की बढ़ोतरी कोई बढ़ोतरी नहीं है।'

बजट में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) के लिए 6,400 करोड़ रुपये दिए गए हैं। यह राशि पिछले साल भी इतनी ही थी। जानकारों की राय है कि यह रकम इससे काफी ज्यादा होनी चाहिए थी। उनके मुताबिक इस योजना में उम्मीद के मुताबिक काम नहीं हो रहा है जिसे समझने की जरूरत है।

वहीं, कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञ मौजूदा सरकार की 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की ओर ध्यान दिलाते हैं। इसके मुताबिक, सरकार का लक्ष्य है कि देश की जीडीपी का 2.5 प्रतिशत हिस्सा हेल्थ सेक्टर पर खर्च किया जाए। इस आधार पर वे नई बजट घोषणा की आलोचना करते हैं। उनका कहना है कि बजट आवंटन की रकम सरकार के लक्ष्य से मेल नहीं खाती।

इसके अलावा पीपीपी मॉडल को लेकर भी स्वास्थ्य विशेषज्ञ आशंकित हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों का प्रबंधन कॉर्पोरेट क्षेत्र के हवाले करना सही नहीं है। उनके मुताबिक इस नीति से गरीबों को फायदा नहीं होगा। आईएमए ने कहा कि वह पीपीपी मॉडल से सहमत नहीं है और सरकार को इस विषय पर फिर से विचार करना चाहिए।

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