नवजात शिशु के जन्म के बाद का पहला महीना माता-पिता के लिए बेहद भावुक और नाजुक होता है। इस दौरान बच्चा भी नई दुनिया में आकर तालमेल बिठाने की कोशिश करता है। अब जब आपका बच्चा 1 महीने का हो चुका है तो आपके और बच्चे के बीच एक बॉन्डिंग बननी शुरू हो चुकी है। मुश्किलों से भरे शुरुआती कुछ हफ्तों में आपने सफलतापूर्वक अपने बच्चे का पूरा ध्यान रखा है और इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं। अब आप चाहें तो थोड़ा रिलैक्स हो सकती हैं क्योंकि बच्चे का दूसरा महीना आपके लिए कुछ आसान और स्मूथ होने वाला है। 

जन्म के बाद दूसरे महीने में भी बच्चे के शरीर में आपको कई तरह के बदलाव और नए विकास नजर आएंगे जैसे- बच्चे का लालसा से अपनी मां की तरफ देखना, मां को देखते ही बच्चे के चेहरे पर मुस्कुराहट आना, अपने सिर को ऊपर उठाने की कोशिश करना आदि। जन्म के दूसरे महीने में बच्चा अपनी इसी तरह की नई-नई हरकतों से आपके मन को खुशियों से भर देगा।

जन्म के बाद दूसरे महीने में बच्चे का कितना विकास होता है, इस दौरान बच्चा कितना सोता है, टीकाकरण से जुड़ी बातें और बच्चे की सुरक्षा से जुड़ी अहम बातों के बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।

  1. दूसरे महीने में शिशु का विकास - second month me baby ka vikas
  2. 5 से 8 सप्ताह के शिशु को दूध पिलाना - 5 -8 week ke shishu ko doodh pilana
  3. 2 महीने का बच्चा कितना सोता है? - kitna sota hai 2 mahine ka bachha
  4. 2 महीने के बच्चे का टीकाकरण चार्ट - do mahine ke shishu ka vaccination chart
  5. 2 महीने के बच्चे के लिए सुरक्षा से जुड़ी सावधानियां - 2 mahine ke bachhe ki safety precautions
  6. 2 महीने के बच्चे संग मां अपना ध्यान कैसे रखें? - taking care of yourself with 2 month old baby
जन्म के बाद दूसरे महीने में शिशु के विकास से सम्बंधित जरुरी बातें के डॉक्टर

अब आपका बच्चा 2 महीने का हो गया है और इस दौरान बच्चा धीरे-धीरे अपने शरीर पर कंट्रोल करना सीखने लगता है। बच्चे की गर्दन की मांसपेशियां मजबूत होने लगती हैं जिस वजह से बच्चा खुद से अपने सिर को ऊपर उठा पाता है, खासकर पेट के बल लेटने के दौरान। इतना ही नहीं, वैसी चीजें जो बच्चे की आंखों को पसंद आती हैं बच्चा उन चीजों और सामानों को अपनी आंखों के जरिए फॉलो भी करने लगता है। साथ ही इस दौरान बच्चे के हाथ और पैर की गतिविधियां भी पहले से ज्यादा होने लगती हैं।

दूसरे महीने में बच्चे की सुनने की क्षमता भी विकसित होने लगती है और बच्चा आवाजों को पहचानने लगता है और उसके अनुसार प्रतिक्रिया देना भी शुरू कर देता है। हालांकि इस दौरान भी मां की आवाज और मां का चेहरा ही बच्चे को सबसे ज्यादा पसंद होता है। इस दौरान जितना हो सके अपने बच्चे से ढेर सारी बातें करें और फिर देखें वह कैसे अपनी प्यार भरी आवाज से आपकी बातों पर प्रतिक्रिया देता है। दूसरा महीना आते-आते बच्चे के सिर में मौजूद नरम स्थान जिसे फोंटनेले भी कहते हैं वह भी बंद हो जाता है। अगर फोंटनेले बंद न हो तो डॉक्टर से इस बारे में जरूरी सुझाव लें।

बच्चे के विकास की बात करें तो 2 महीने के बच्चा का वजन अपने जन्म के वजन से करीब 1 से 2 किलोग्राम अधिक हो जाता है और लंबाई भी जन्म के वक्त की लंबाई से करीब आधा इंच अधिक हो जाती है। साथ ही सिर की परिधि भी करीब 4 सेंटीमीटर तक बढ़ जाती है। शरीर में मांसपेशियां बढ़ने के साथ ही बच्चे के गाल फूलने शुरू हो जाते हैं और आपका बच्चा पहले से भी ज्यादा क्यूट लगने लगता है।

साथ ही इस दौरान आपका बच्चा चीजों को पकड़ना सीख जाता है जैसे- उसके झुनझुने वाले खिलौने और चमकदार और चटक रंग वाली चीजों के लिए प्रति भी बच्चे को आकर्षण होने लगता है। इस दौरान बच्चे के दिमाग का विकास भी बहुत तेज गति से होता है और इस दौरान आपको बच्चे के व्यक्तित्व की कुछ झलकियां भी नजर आ सकती हैं। 

बच्चा आपके हाव-भाव और संकेतों के हिसाब से प्रतिक्रिया देने लगता है और साथ ही अपने आसपास मौजूद लोगों और चीजों को लेकर ज्यादा सतर्क हो जाता है। हर दिन के साथ ही बच्चे की फोकस करने की क्षमता भी बढ़ने लगती है और बच्चे लंबे वक्त तक किसी चीज पर ध्यान लगाना सीख जाता है। इतना ही नहीं, बच्चा आपकी नकल उतारने की भी कोशिश करता है और चाहता है कि आप हर वक्त बस उसके पास ही रहें। बच्चे द्वारा अपने हाथ और पैर की उंगलियों को चूसना भी अलग लेवल तक पहुंच जाता है। 

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जन्म के 5 सप्ताह बाद आपके बच्चे की भूख में एकरूपता आ जाती है। अगर आप बच्चे को अपना दूध पिलाती हैं तो आप यह फर्क महसूस कर पाएंगी कि बच्चा अब ज्यादा देर तक ब्रेस्टफीडिंग कर रहा है। हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि बच्चा आपके एक ब्रेस्ट को पूरी तरह से खाली करने के बाद ही दूसरे ब्रेस्ट का दूध पीने जाए। ऐसा करने से बच्चे को हाइन्डमिल्क यानी फैटी ब्रेस्टमिल्क का पूरा फायदा मिल पाएगा। 

वैसे बच्चे जो डिब्बे वाले फॉर्मूला दूध का सेवन करते हैं उन्हें 5वें हफ्ते से हर बार दूध पीने के दौरान 5 से 6 आउंस दूध की जरूरत पड़ती है। दिन में कम से कम 3 से 4 बार आपको बच्चे को दूध पिलाने की जरूरत होती है। अब रात के समय भी आपका बच्चा ज्यादा देर तक चैन से सो पाएगा। ऐसे में रात के समय बच्चे को 4 से 6 घंटे के बीच दूध पिलाने की जरूरत पड़ती है। हालांकि हर बच्चा एक दूसरे से अलग होता है और हो सकता है कि आपके बच्चे को रात में ज्यादा दूध की जरूरत हो। बच्चे द्वारा दिए जा रहे संकेतों को फॉलो करें और बच्चे को उसकी जरूरत और मांग के हिसाब से दूध जरूर पिलाएं।

अगर आप जल्द ही बच्चे को बॉटल से दूध पिलाने का विचार कर रही हैं तो दूसरा महीना बच्चे को बॉटल लगाने के लिहाज से एकदम सही है। (नई मांओं के पास बच्चे को बॉटल से दूध पिलाने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे- आपकी मटरनिटी लीव खत्म होने वाली है, आप बच्चे को स्तनपान नहीं कराना चाहतीं या फिर बच्चे की जरूरत के हिसाब से आप उतना दूध उत्पन्न नहीं कर पा रही हैं। बच्चे को अपना दूध पिलाना जारी रखना या न पिलाना पूरी तरह से मां का फैसला होता है) आप चाहें तो सुबह के वक्त पंप की मदद से ब्रेस्ट मिल्क को निकाल सकती हैं क्योंकि इस दौरान आपके ब्रेस्ट पूरी तरह से दूध से भरे होते हैं। हो सकता है शुरुआत में बच्चा बॉटल को पूरी तरह से अस्वीकार कर दे। लेकिन परेशान न हों और कोशिश करते रहें। आप चाहें तो पहली बार बच्चे को बॉटल लगाते वक्त परिवारवालों की मदद ले सकती हैं।

जन्म के बाद पहले महीने में बच्चे को दूध पिलाना जितना मुश्किल काम था वह दूसरी महीने में काफी आसान हो जाएगा। अगर आप बच्चे को बॉटल से दूध पिला रही हैं तो इन बातों का ध्यान रखें:

  • बॉटल को अच्छी तरफ से गर्म पानी में डालकर स्टर्लाइज करें। बॉटल की निप्पल को समय-समय पर बदलें।
  • कभी भी बच्चे को जरूरत से ज्यादा दूध न पिलाएं और बॉटल में जो फॉर्मूला मिल्क बच जाए उसे दोबारा इस्तेमाल न करें।
  • बच्चे को किसी भी तरह का इंफेक्शन या स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या न हो इसके लिए फॉर्मूला मिल्क और दूसरी चीजों की एक्सपायरी डेट चेक करते रहें।
  • जैसे-जैसे बच्चा बड़ा हो रहा है उसकी दूध की मांग बढ़ेगी। लिहाजा बच्चे द्वारा दिए जा रहे संकेतों को समझें और बच्चे को उसकी मांग के अनुसार दूध जरूर पिलाएं।

चूंकि अब बच्चा हर बार दूध पीने के बाद सूसू-पॉटी नहीं करेगा इसलिए बार-बार डायपर या लंगोटी चेंज करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मां का दूध पीने वाले बच्चों के लिए हफ्ते-हफ्ते भर तक पॉटी न करना भी बेहद सामान्य सी बात है। अगर आपके बच्चे की पॉटी सामान्य से ज्यादा हार्ड है या फिर अगर पॉटी निकालते वक्त बच्चा रो रहा है या असहज महसूस कर रहा हो तो डॉक्टर से संपर्क करें। अगर आप बच्चे को अपना दूध पिला रही हैं तो अपनी डायट पर भी नजर रखें। आपके लिए जरूरी है कि आप हेल्दी और पोषण से भरपूर चीजों और तरल पदार्थों का सेवन करें ताकि आपके बच्चे को जरूरी और बेस्ट पोषण मिल सके।

थोड़ी-थोड़ी देर के लिए सोने की बजाए अब आपका बच्चा दिन के समय कम और रात में ज्यादा देर तक सोएगा। हालांकि अब भी पूरी रात सोने के लिए बच्चे को 1 महीने का वक्त और लगेगा। बच्चे के बेडटाइम रूटीन को जारी रखें। ऐसा करने से आप बच्चे में नींद की अच्छी आदत को विकसित कर पाएंगी। साथ ही बच्चे को हमेशा पीठ के बल सुलाएं ताकि सडेन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (SIDS) के खतरे को कम से कम किया जा सके। बच्चे को सोते वक्त नींद में दूध न पिलाएं और दूध पिलाने के बाद बच्चे को डकार जरूर दिलाएं और उसके बाद ही बच्चे को उसके झूले या बिस्तर में सुलाएं।

2 महीने के बच्चे को आप सोते समय चुसनी या पैसिफायर्स भी दे सकती हैं क्योंकि शोधों की मानें तो पैसिफायर्स की मदद से SIDS के खतरे को कम करने में मदद मिलती है। हालांकि अगर बच्चा चुसनी नहीं लेना चाहता तो बच्चे को जबरन चुसनी देने की जरूरत नहीं। साथ ही 1 महीने से छोटे बच्चे को चुसनी बिलकुल नहीं देनी चाहिए।

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इस समय तक बच्चे को टीबी और हेपेटाइटिस बी से बचने के लिए बीसीजी का टीका दिया जा चुका है। अगर आपके बच्चे को अब तक बीसीजी का इंजेक्शन नहीं लगा है तो उसे अब जरूर लगवा दें। इस इंजेक्शन को आप 1 साल तक कभी भी लगवा सकते हैं लेकिन जितना जल्दी लगवाएंगे बच्चे की सेहत के लिए उतना ही अच्छा होगा। गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशु और बच्चों के लिए बने भारत के नैशनल इम्यूनाइजेशन शेड्यूल (NIS) के मुताबिक, 6 से 8 हफ्ते के बच्चे को निम्नलिखिती टीके दिए जाने चाहिए:

  • पोलियो से बचने के लिए ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) के 2 ड्रॉप्स
  • बच्चे को 5 तरह की बीमारियों से बचाने के लिए पेंटावेलेंट वैक्सीन- डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस, हेपेटाइटिस बी और हेमोफिलिस इन्फ्लूएंजा टाइप बी
  • बच्चे को गंभीर डायरिया और रोटावायरस इंफेक्शन से बचाने के लिए रोटावायरस वैक्सीन
  • कई तरह के बैक्टीरियल इंफेक्शन, कान में होने वाला संक्रमण और मेनिनजाइटिस से बचाने के लिए न्योमोकॉकल कॉन्जूगेट वैक्सीन (पीसीवी)
  • पोलियो से सुरक्षा के लिए इनऐक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन (आईपीवी)

जन्म के 5 हफ्ते बाद आप यह बात समझ जाएंगे कि आपका बच्चा कॉलिकी यानी उदरशूल से पीड़ित है या नहीं। कॉलिक से पीड़ित बच्चे हर दिन 3 घंटे से ज्यादा, हर सप्ताह 3 दिन से ज्यादा और 3 सप्ताह तक या इससे ज्यादा रोते रहते हैं। यहां तक की पेट भरा होने पर और डायपर चेंज की जरूरत न होने पर भी रोते रहते हैं। 

उदरशूल से पीड़ित बच्चों को संभालना मुश्किल होता है। बच्चा अगर स्वस्थ है और उसके बावजूद 3 घंटे तक लगातार रोता रहे और वह भी खासकर शाम के समय तो यह परिस्थिति माता-पिता के लिए काफी परेशान करने वाली हो सकती है। बच्चे के कॉलिक का इलाज करने के लिए ग्राइप वाटर का इस्तेमाल बिलकुल न करें। इससे बच्चे को कोई आराम नहीं मिलेगा। साथ ही इस दौरान बच्चे को बहुत ज्यादा न हिलाएं क्योंकि इससे बच्चे को चोट लगने का खतरा रहता है जिसे शेकेन बेबी सिंड्रोम भी कहते हैं। बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाएं अगर:

  • बच्चे को बुखार हो
  • बच्चे को कब्ज हो
  • दूध पीने में बच्चे की दिलचस्पी न हो
  • बच्चा हद से ज्यादा आलसी और थका हुआ लग रहा हो

इस दौरान बच्चे की साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखें। बच्चे के नाखूनों को काटकर रखें और स्किन जिस हिस्से से मुड़ रही हो उस हिस्से को साफ और सूखा बनाए रखें। इस समय बच्चे को आसानी से डायपर रैश की समस्या भी हो सकती है इसलिए हर 2 घंटे में बच्चे का डायपर बदलते रहें। बच्चे की स्किन अच्छी तरह से सांस ले पाए इसके लिए उसे दिन में एक या दो बार नैपी-फ्री टाइम भी दें। बच्चे को साफ करने के लिए रुई या साफ कपड़े का इस्तेमाल करें। सेंटेड वेट वाइप्स यूज न करें क्योंकि इससे बच्चे की स्किन में इरिटेशन हो सकती है।

अगर गर्मी का मौसम तो बच्चे को हर दिन जरूर नहलाएं। इस दौरान ज्यादातर बच्चों को पानी में रहना पसंद आता है। हालांकि बच्चे के पहले महीने में बच्चे को नहलाते वक्त स्वास्थ्यकर्मी साबुन इस्तेमाल न करने की सलाह देते हैं लेकिन अब जब बच्चा 2 महीने का हो गया है आप उसके लिए सौम्य बेबी सोप और दूसरे बेबी केयर प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल कर सकती हैं।

दूसरे महीने में आपका बच्चा हर दिन करीब 16 घंटे तक सोता है। बच्चे की स्लीप रूटीन को लेकर एकरूपता बनाए रखें ताकि बच्चे में नींद से जुड़ी बेहतर आदतें विकसित हो पाएं। आप चाहें तो बच्चे को सुलाने के दौरान गाना या लोरी गा सकती हैं, बच्चे को हल्के से मसाज कर सकती हैं या फिर कोई सॉफ्ट या सूदिंग म्यूजिक भी लगा सकती हैं। बच्चे को सुलाने के लिए उसे दूध पिलाने की आदत बिलकुल न डालें। जब बच्चे को ऊंघाई आ रही हो तो आप उसे उसके झूले या पालने में अगर अकेला छोड़ दें तो इससे भी बच्चे को खुद से सोने की आदत पड़ जाएगी।

 

अगर आप वर्किंग मदर है और आपको अपने काम पर वापस जाना है तो बच्चे को छोड़कर काम पर वापस लौटना आपके लिए मुश्किल साबित हो सकता है। वहीं, कई मांओं के पास घर में बुजुर्ग भी होते हैं जिनके पास वे अपने बच्चों को छोड़ सकती हैं और फिर काम पर वापस लौट सकती हैं। इस दौरान बच्चे का ध्यान रखने के लिए आप अपने पार्टनर और परिवार के बाकी सदस्यों की मदद ले सकती हैं ताकि आप वो सब कर सकें जो आपको करना पसंद है। मातृत्व के 1 साल के समय के दौरान किसी भी वक्त मांओं को पोस्टपार्टम डिप्रेशन का खतरा हो सकता है। ऐसे में संकेतों पर नजर रखें और एक्सपर्ट्स की मदद लें ताकि अपने साथ साथ आप बच्चे का भी ध्यान रख पाएं।

अपनी सेहत को नजरअंदाज न करें और जरूरी विटामिन और कैल्शियम का सेवन जारी रखें। इस समय तक ज्यादातर डॉक्टर्स महिलाओं को अपनी सेक्शुअल ऐक्टिविटी जारी रखने की परमिशन भी दे देते हैं। हालांकि अपनी सेक्स लाइफ शुरू करने के लिए किसी तरह का प्रेशर या हड़बड़ी न दिखाएं। आपको जो अच्छा लगे उसी पर फोकस करें।

Dr. Mayur Kumar Goyal

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संदर्भ

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  2. Kurzewski K. and Gardner J.M. Breastfeeding patterns among six-week-old term infants at the University Hospital of the West Indies. West Indian Medical Journal [online], 2005; 54(1): 28-33.
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