बारिश के मौसम में डायरिया और उल्टी की समस्या बेहद कॉमन है क्योंकि नमी के वातावरण की वजह से बैक्टीरिया और वायरस को पनपने और तेजी से फैलने में मदद मिलती है। जब किसी व्यक्ति को डायरिया और उल्टी की समस्या होती है तो शरीर में मौजूद इलेक्ट्रोलाइट्स और खनिज पदार्थों की शरीर से तेजी से हानि होने लगती है जिससे शरीर में डिहाइड्रेशन की समस्या हो जाती है। डिहाइड्रेशन या शरीर में पानी की कमी की समस्या से निपटने का सबसे अच्छा तरीका है कि मरीज को अतिरिक्त तरल पदार्थ दिए जाएं फिर चाहे सादे पानी के रूप में या फिर ओआरएस के घोल के रूप में ताकि शरीर के खोए हुए इलेक्ट्रोलाइट के संतुलन को वापस पाया जा सके।

हर साल 29 जुलाई को ओआरएस डे मनाया जाता है ताकि ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्ट (ओआरएस) की कई जानलेवा बीमारियों से लड़ने में क्या अहमियत है, इसके बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलायी जा सके।

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ओआरएस आखिर है क्या?
ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्ट जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में ओआरएस का घोल कहा जाता है, यह पावर-बूस्टिंग यानी शक्ति को बढ़ाने वाला ग्लूकोज-इलेक्ट्रोलाइट का मिश्रण है जो खोए हुए इलेक्ट्रोलाइट्स को पुनः प्राप्त करने में मदद करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, ओआरएस में 4 मूल घटक होते हैं जिन्हें 1 लीटर साफ पीने के पानी में घोलने की जरूरत होती है। वे घटक हैं-

  • सोडियम क्लोराइड जो सामान्य नमक है (3.5 ग्राम)
  • ट्राईसोडियम साइट्रेट, डीहाइड्रेट (2.9 ग्राम)
  • पोटैशियम क्लोराइड (1.5 ग्राम)
  • ग्लूकोज, यानी चीनी (20 ग्राम)

वैसे तो ओआरएस का घोल व्यावसायिक रूप से बाजार में आसानी से मिल जाता है लेकिन अगर आप मार्केट जाकर इन्हें खरीद नहीं सकते तो आप इसे घर पर भी बना सकते हैं। इसके लिए आपको चाहिए आधा चम्मच नमक, 6 चम्मच चीनी (1 चम्मच=ग्राम) और 1 लीटर पीने का साफ पानी। आप इस पानी को इस्तेमाल करने से पहले उबाल लें। फिर चीनी और नमक और पानी में अच्छी तरह से घोल लें और आपका घर पर तैयार ओआरएस का घोल बन जाएगा।

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शरीर में कैसे काम करता है ओआएस का घोल?
यह माना जाता है कि ओआरएस का घोल शरीर के पुनर्जलीकरण यानी डिहाइड्रेशन की वजह से शरीर के खनिजों की जो हानि होती है उसे पूरा करने में मदद करता है, लेकिन इसके पीछे एक तरह से कहें तो प्रक्रिया का एक बड़ा तंत्र काम करता है। आमतौर पर स्वस्थ आंत में, आंतों की दीवारों के माध्यम से पानी का निरंतर आदान-प्रदान होता रहता है। हर 24 घंटे के समय के दौरान आंतों द्वारा करीब 20 लीटर तक पानी डिस्चार्ज किया जाता है और उसे दोबारा अवशोषित भी किया जाता है। इस प्रक्रिया के द्वारा मेटाबोलाइट्स (भोजन के मेटाबॉलिज्म के दौरान बनने वाले घटक) को खून में अवशोषित होने में मदद मिलती है।

डायरिया होने पर पानी का संतुलन बिगड़ जाता है
जब किसी व्यक्ति को डायरिया की समस्या होती है शरीर में पानी का यह संतुलन बिगड़ जाता है। आंत के जरिए जितना पानी दोबारा अवशोषित किया जाता है उससे कहीं ज्यादा पानी डिस्चार्ज होने लगता है जिससे शरीर में पानी की कमी होने लगती है। इस दौरान न केवल पानी बल्कि सोडियम की एक बड़ी मात्रा की भी हानि होती है। इंसान का शरीर सोडियम (सोडियम आयन Na + के रूप में उपलब्ध) को शरीर के तरल पदार्थों और रक्त के प्लाज्मा में स्टोर करके रखता है, जबकि शरीर के कुल पोटैशियम (K+) का 98% कोशिकाओं के भीतर (इंट्रासेलुलर) जमा होता है। 

10% से ज्यादा तरल पदार्थ कम हो जाएं तो मृत्यु का खतरा
यह बेहद जरूरी है कि सोडियम का गाढ़ापन या जमाव शरीर के कार्यों को बनाए रखने के लिए सीमित मात्रा में होना चाहिए। वैसे सामान्य तौर पर तो किडनी शरीर में सोडियम की मात्रा को नियंत्रित करती है लेकिन डिहाइड्रेशन की स्थिति में, सोडियम का रेग्युलेशन या विनियमन प्रभावी नहीं होता है। जब डायरिया लगातार जारी रहता है तो शरीर से पानी और सोडियम की तेजी से कमी होने लगती है। ऐसे स्थिति में अगर शरीर के 10 प्रतिशत से अधिक तरल पदार्थ की हानि हो जाए तो व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।

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सिर्फ सलाइन के घोल की जगह उसमें ग्लूकोज भी मिलाना है जरूरी
ऐसे में अगर मरीज को सिर्फ सलाइन का घोल यानी पानी प्लस सोडियम दिया जाता है, तो शरीर सोडियम को अवशोषित नहीं पाता है क्योंकि डायरिया की स्थिति में आंतों की दीवारें दुर्बल हो जाती हैं। इसके अलावा, यह नमक का घोल आंत के ल्युमेन में अतिरिक्त सोडियम रिलीज करने लगता है, जिससे शरीर से पानी बाहर निकलना बढ़ जाता है और डायरिया की स्थिति और बिगड़ जाती है। जब ग्लूकोज को नमक के घोल के साथ मिलाया जाता है, तो डायरिया के बावजूद, ग्लूकोज के अणु आंतों की दीवारों के माध्यम से अवशोषित हो जाते हैं। इसके बाद सोडियम-ग्लूकोज कोट्रांसपोर्टर की मदद से सोडियम, आंतों की दीवारों द्वारा अवशोषित हो जाता है। सोडियम-ग्लूकोज कोट्रांसपोर्टर, कोशिका की परतों में सोडियम और ग्लूकोज के परिवहन में मदद करते हैं।

इस पूरी प्रक्रिया की मदद से महज कुछ घंटों के अंदर ही डिहाइड्रेशन यानी पानी की कमी की समस्या से शरीर को छुटकारा मिल जाता है।

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पुनर्जलीकरण (रिहाइड्रेशन) के बाकी तरीकों से कैसे बेहतर है ओआरएस?
ओआरएस का घोल हल्के और मध्यम श्रेणी के डिहाइड्रेशन की समस्या के इलाज का सबसे आसान, सस्ता और प्रभावी तरीका है। रिहाइड्रेशन के अन्य तरीके (जैसे इंट्राविनिस के जरिए ग्लूकोज की डिलिवरी) के मुकाबले ओआरएस के घोल के कई फायदे हैं:

  • ओआरएस डिहाइड्रेशन से निपटने का सबसे सस्ता तरीका है। आप इसे बाजार से खरीद सकते हैं या फिर घर पर भी इसे बना सकते हैं।
  • मरीज को ओआरएस देने के लिए इंजेक्शन की जरूरत नहीं होती, इसे मौखिक रूप से आसानी से दिया जा सकता है।
  • मरीज को ओआरएस देने के लिए किसी डॉक्टर या मेडिकल सुपरवाइजर की जरूरत नहीं होती।
  • ओआरएस का सेवन सभी उम्र के लोगों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित माना जाता है, यहां तक की नवजात शिशु के लिए भी।
  • ओआरएस का सेवन करने के महज कुछ मिनट के अंदर ही इसके फायदे शरीर पर नजर आने लगते हैं।
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