आपको जानकर हैरानी होगी कि मछली के तेल का सेवन, जो ओमेगा 3 फैटी एसिड से भरपूर होता है, अस्थमा के खतरे को लगभग 70 प्रतिशत तक कम करने में मदद करता है। दक्षिण अफ्रीका के एक छोटे से गाँव के मछली प्रसंस्करण कारखाने में काम करने वाले 600 से अधिक लोगों पर परीक्षण के बाद वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है। 

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मछली के तेल को पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (PUFAs) या एन-3 में समृद्ध माना जाता है और इसमें ओमेगा फैटी एसिड 3 और 6 होते हैं, जो मस्तिष्क तथा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के सामान्य विकास और कामकाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ऑस्ट्रेलिया में जेम्स कुक यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक एंड्रियास लोपाटा ने बताया, "दुनिया भर में लगभग 334 मिलियन लोगों को अस्थमा है और हर साल लगभग एक लाख लोग इससे मर जाते हैं।" 

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वे आगे बताती हैं, "वैश्विक स्तर पर अस्थमा की घटना पिछले 30 वर्षों में लगभग दोगुनी हो गई है और लगभग आधे अस्थमा रोगियों को इसके इलाज में दवाओं के उपयोग से कोई लाभ नहीं मिलता है। इसलिए गैर-दवा उपचार के विकल्पों में लगातार शोधकर्ताओं की रुचि बढ़ रही है।" 

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प्रोफेसर लोपाटा ने कहा कि वनस्पति तेलों में पाए जाने वाले एन-6 पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (पीयूएफए) की खपत लगातार बढ़ रही है और एन-3 पीयूएफए की खपत में गिरावट हो रही है, जो कि मुख्य रूप से समुद्री तेलों में पाया जाता है। 

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अध्ययन में पाया गया कि कुछ प्रकार के एन-3 (समुद्री तेलों से) अस्थमा या अस्थमा जैसे लक्षणों के जोखिम में 62 प्रतिशत तक की कमी से काफी हद तक जुड़े थे, जबकि उच्च मात्रा में एन-6 की खपत (वनस्पति तेलों से) अस्थमा  के 67 प्रतिशत तक बढ़े हुए जोखिम के साथ जुड़ी हुई थी। 

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प्रोफेसर लोपाटा ने कहा कि यह अस्थमा के विकास में एन-6 की संदिग्ध भूमिका का एक बड़ा सबूत है और इस बात का भी सबूत है कि एन-3 के सेवन से अस्थमा के खिलाफ सुरक्षा मिली। वे यह भी कहती हैं ​​कि अगर आप कुछ मछलियों में पाए जाने वाले पारे जैसे प्रदूषण के जोखिम को देखते हैं, तो भी मछली और समुद्री भोजन के सेवन से होने वाला लाभ इस संभावित जोखिम से कहीं अधिक है। 

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हालांकि, किस विशिष्ट प्रकार के एन-3 के क्या प्रभाव हैं और उनकी लाभकारी भूमिका को कैसे प्रभावशाली बनाया जा सकता है तथा एन-6 के नकारात्मक प्रभावों को कैसे कम किया जा सकता है, इस पर उन्होंने और अधिक काम करने पर बल दिया। 

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