मेडिकल एक्सपर्ट, महामारी विशेषज्ञ और सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े तीन बड़े संगठनों ने कोविड-19 संकट से निपटने के सरकार के अभी तक के तौर-तरीकों पर सख्त टिप्पणी की है। इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन, इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन और इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमियॉलजिस्ट द्वारा जारी किए गए एक साझा बयान में विशेषज्ञों ने यह भी साफ कहा है कि भारत में कोरोना वायरस का बड़े पैमाने पर कम्युनिटी ट्रांसमिशन पहले ही शुरू हो चुका है। यहां बता दें कि इन विशेषज्ञों में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टर और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर के दो शोधकर्ता भी शामिल हैं। 

अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के मुताबिक, बयान में कहा गया है कि सरकार ने लॉकडाउन जैसा सख्त कदम किसी प्रभावी संस्थान द्वारा तैयार किए मॉडल में लगाए गए अनुमान के बाद उठाया था। इस बारे में बयान कहता है, 'क्या सरकार ने महामारी विशेषज्ञों से राय ली थी, जिन्हें किसी बीमारी के ट्रांसमिशन की जानकारी मॉडल तैयार करने वालों की अपेक्षा ज्यादा होती है। अगर ऐसा किया जाता तो ज्यादा बेहतर होता।'

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अखबार की रिपोर्ट से पता चलता है कि इन विशेषज्ञों ने कोविड-19 संकट को लेकर सरकार के नीति निर्धारकों की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि सरकार ने महामारी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सामाजिक विज्ञान और प्रिवेंटिव मेडिसिन से जुड़े विशेषज्ञों के बजाय प्रशासन स्तर के सामान्य ब्यूरोक्रेट्स पर ज्यादा भरोसा जताया, जिसके कारण भारत को बीमारी के साथ-साथ मानवीय स्तर के संकट का भी नुकसान उठाना पड़ा है।

बयान में इन संगठनों ने यह भी कहा है कि कोविड-19 से जुड़े आंकड़ों को खुले और पारदर्शी तरीके से वैज्ञानिकों, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और आम लोगों के साथ अभी तक शेयर नहीं किया गया है, जबकि ऐसा काफी पहले कर दिया जाना चाहिए था। इसके अलावा, संगठनों ने लॉकडाउन की शुरुआत में प्रवासी मजदूरों को उनके घर नहीं जाने दिए जाने के फैसले का भी विरोध किया है। उनका कहना है कि अगर प्रवासियों को महामारी की शुरुआत में ही उनके घर जाने दिया जाता तो उनके जरिये कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं जा पाता, क्योंकि उस समय बीमारी बड़े पैमाने पर नहीं फैली थी। विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसा करके संक्रमण को देश के हर कोने में फैलने से रोका जा सकता था। उन्होंने चिंता जताई है कि अब प्रवासी मजदूरों के जरिये कोरोना वायरस देश के उन इलाकों (ग्रामीण और उपनगरीय क्षेत्र) तक पहुंच गया है, जहां का हेल्थ सिस्टम पहले ही बहुत कमजोर है।

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इसके अलावा, संगठनों ने सरकार को कुछ सलाह भी दी हैं। उनका कहना है कि चूंकि कोविड-19 के ज्यादातर मरीजों में इसके लक्षण बहुत कम या बिल्कुल नहीं दिखते हैं, इसलिए अधिकतर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने के बजाय उनका घरों में ही इलाज किया जाना चाहिए। वहीं, लॉकडाउन को लेकर उन्होंने कहा है कि इसे अनिश्चित काल के लिए लागू नहीं किया जा सकता। उनके मुताबिक, अभी तक के लॉकडाउन की वजह से नियमित स्वास्थ्य सेवाएं और लोगों की आजीविका पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जो कोविड-19 से अलग इस संकटकाल में लोगों के मारे जाने का एक प्रमुख कारण रहा है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह साक्ष्यों के आधार पर राज्य और जिला स्तर पर जरूरी कदम उठाए। ऐसा गरीबों की आजीविका को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें भारत में कोरोना वायरस का कम्युनिटी ट्रांसमिशन हो चुका है, सरकार ने नौकरशाहों पर भरोसा जताया: विशेषज्ञ है

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