भारतीय फार्मास्यूटिकल कंपनी भारत बायोटेक (बीबीआईएल) अपनी कोविड-19 वैक्सीन 'कोवाक्सिन' से पैदा होने वाले इम्यून रेस्पॉन्स को और बढ़ाने के लिए एक एजुवेंट का इस्तेमाल करेगी। इस इम्यूनोलॉजिकल एजेंट का नाम एलहाइड्रोक्सीक्विम-II है, जिसे अमेरिका के कनसास स्थित साइंटिफिक रिसर्च फर्म वाइरोवैक्स बनाती है। भारत बायोटेक ने इसके लिए वाइरोवैक्स के साथ लाइसेंसिंग एग्रीमेंट किया है, जिसके तहत अमेरिकी फर्म के एजुवेंट को कोवाक्सिन के साथ फॉर्म्युलेट किया जाएगा। गौरतलब है कि कोवाक्सिन को सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस के डेड पार्टिक्स स्ट्रेन से तैयार किया जाता है। इस कारण इसे इनएक्टिवेटिड वैक्सीन भी कहा जाता है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की अनुमति के बाद कंपनी कोवाक्सिन के दूसरे चरण के ट्रायल कर रही है।

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वैक्सीन के प्रभाव को बढ़ाने के लिए बीबीआईएल को एजुवेंट के रूप में एलहाइड्रोक्सीक्विम-II की जरूरत क्यों पड़ी? इस सवाल को लेकर जानकारी देते हुए कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर कृष्णा एला ने कहा है कि एजुवेंट्स के इस्तेमाल से वैक्सीन एंटीजन्स के खिलाफ और ज्यादा एंटीबॉडी रेस्पॉन्स पैदा करती हैं। उन्होंने कहा कि इससे रोगाणुओं के खिलाफ दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित होती है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कृष्णा एला ने बताया, 'अपने एंटीजन-स्पेयरिंग प्रभाव के चलते एजुवेंट्स वैक्सीन की वैश्विक आपूर्ति की निरंतरता को भी बढ़ाने में मददगार होते हैं। सुरक्षित और प्रभावी होने के साथ दीर्घकालिक इम्यूनिटी देने वाली वैक्सीन बनाने के हमारे प्रयासों के मद्देनजर वाइरवैक्स के साथ भारत बायोटेक की साझेदारी सहज ही समझ आती है।'

बीबीआईएल के चेयरमैन के मुताबिक, एल्युमिनियम हाइड्रोक्साइड एजुवेंट सार्स-सीओवी-2 वैक्सीन के डेवलपमेंट में काफी इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने बताया कि यह एजेंट शरीर में टीएच2 आधारित रेस्पॉन्स पैदा करने का काम करता है, जो एक्स्ट्रासेल्युलर पैरासाइट्स और बैक्टीरियल संक्रमण को खत्म करने के लिए जरूरी है। कृष्णा एला ने कहा, 'वैक्सीन से टीएच-2 आधारित रेस्पॉन्स पैदा होने के अनुमानित खतरे होते हैं। इन्हें वैक्सीन एसोसिएटिड इनहैंस्ड रेस्पिरेटरी डिसीजेज या वीएईआरडी (या एडीई- एंटबॉडी डिपेंडेंट एनहेंसमेंट) कहते हैं। इस खतरे को ध्यान में रखते हुए हमने इमिडैजोक्विनोलाइन श्रेणी के एजुवेंट का इस्तेमाल किया है, जो टीएच-1 आधारित रेस्पॉन्स को कम करने के लिए जाने जाते हैं, जिससे एडीई का खतरा और कम हो जाता है।' एला के मुताबिक, प्रीक्लिनिकल ट्रायलों और एनीमल आधारित अध्ययन मॉडलों में कोवाक्सिन ने सीरियन हैम्स्टर (चूहे की एक प्रजाति) और बंदरों में टीएच-1 रेस्पॉन्स पैदा किया था। ऐसा एलजेल-आईएमडीजी नामक एजुवेंट के कारण हुआ था।

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क्या है कोवाक्सिन?
कोरोना वायरस को खत्म करने के प्रयासों के तहत कई वैक्सीन तैयार की गई हैं। इनमें कोवाक्सिन भारत में तैयार हुई पहली कोविड-19 वैक्सीन है। इसे 'असक्रिय वैक्सीन' कैंडिडेट बताया जाता है। दरअसल, कोवाक्सिन को तैयार करने में वैज्ञानिकों ने नए कोरोना वायरस के डेड पार्टिकल्स का इस्तेमाल किया है। इसी कारण यह वैक्सीन किसी को संक्रमित नहीं कर सकती। वायरस अपने मृत कणों के जरिये अपनी कॉपियां नहीं बना सकता है। लेकिन यही पार्टिकल्स शरीर में जाकर सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ इम्यूनिटी पैदा करते हैं, ऐसा भारत बायोटेक का दावा है। इसके मुताबिक, कोवाक्सिन मृत विषाणु के खिलाफ एंटीबॉडी तैयार करने में शरीर की मदद करती है।

कोवाक्सिन के मानव परीक्षण इस साल जुलाई के मध्य में शुरू हुए थे। सितंबर महीने में डीसीजीआई ने कंपनी को दूसरे चरण के ट्रायल करने की अनुमति दी है, जो फिलहाल चल रहे हैं। इससे पहले किए गए पहले चरण के ट्रायलों में वैक्सीन के सुरक्षित होने पर फोकस किया गया था। अब दूसरे स्टेज में इसकी क्षमता को परखा जा रहा है, जिसके लिए वैक्सीन और ज्यादा प्रतिभागियों पर आजमाई जा रही है। अगर ये चरण भी कामयाब रहा तो वैक्सीन को व्यापक रूप से प्रभावी साबित करने के लिए तीसरे चरण के ट्रायल के तहत बड़ी संख्या में लोगों को लगाया जाएगा। यहां चलते-चलते बता दें कि कोवाक्सिन का निर्माण भारत बायोटेक ने देश की सर्वोच्च मेडिकल रिसर्च एजेंसी आईसीएमआर के साथ मिलकर किया है।

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