केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कोविड-19 महामारी से जुड़े कई अहम सवालों और मुद्दों पर चर्चा की है। रविवार को अपने साप्ताहिक सोशल मीडिया कार्यक्रम 'संडे संवाद' में उन्होंने कोविड-19 वैक्सीन के वितरण, कोरोना वायरस रीइन्फेक्शन और चर्चित फेलूदा टेस्ट के बाजार में आने आदि को लेकर जानकारियां दीं और अपनी राय रखी। खबरों के मुताबिक, स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा है कि भारत में कोविड-19 की संभावित वैक्सीन को विशेष रूप से दो बातों को ध्यान में रखते हुए लोगों में वितरित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि पहली प्राथमिकता श्रेणी में वे लोग आएंगे, जिनके कोविड-19 की रोकथाम में लगे होने के वजह से वायरस की चपेट में आने का अंदेशा है और जो संक्रमण के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं। यानी ऐसे लोग जो आसानी से वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। इनमें बुजुर्ग आयुवर्ग और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों का नाम अक्सर लिया जाता है। वहीं, दूसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं, जिनके सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित होने के बाद गंभीर रूप से बीमार होने और मरने का खतरा अधिक है। हर्षवर्धन ने कहा कि सरकार इन दोनों पहलुओं पर गौर करते हुए तय करेगी कि वैक्सीन सबसे पहले किसे लगाई जाए।

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सरकार और मेडिकल विशेषज्ञ यह काफी हद तक मान रहे हैं कि कोविड-19 वैक्सीन को शुरुआत में सीमित मात्रा में ही उपलब्ध कराया जा सकेगा। ऐसे में लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं। इन सवालों के जवाब स्वास्थ्य मंत्री अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिये हर रविवार को देते हैं। बीते संडे संवाद में उन्होंने कहा, 'भारत जैसे बड़े देश में यह तय करना बहुत जरूरी है कि वैक्सीन की डिलिवरी किस आधार पर की जाए। कई सारे फैक्टर्स हैं। जैसे वायरस के ज्यादा खतरे में कौन लोग हैं, अलग-अलग प्रकार की आबादी में कौन-कौन पहले से किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त है, कोविड मामलों में मृत्यु दर कितनी ज्यादा या कम है और अन्य दूसरे फैक्टर्स।' वहीं, वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी दिए जाने से संबंधित मुद्दे पर स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि इस बारे में अभी विचार किया जा रहा है। उन्होंने बताया, 'आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति देने के लिए वैक्सीन का सुरक्षित और सक्षम होना जरूरी है। इस बारे में आगे जो डेटा सामने आएगा, उसी को ध्यान में रखते हुए कदम उठाए जाएंगे।'

'रीइन्फेक्शन से जुड़े मामलें गलत तरीके से वर्गीकृत'
हर्षवर्धन ने भारत में सामने आए कोविड-19 रीइन्फेक्शन के मामलों पर भी बात की। उनका कहना है कि इन मामलों का क्लासीफिकेशन यानी वर्गीकरण सही तरीके से नहीं हुआ है। उन्होंने बताया कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) रीइन्फेक्शन के मामलों का विश्लेषण करेगा, जिसके लिए एक अध्ययन की शुरुआत की जा रही है। इस मुद्दे पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने अपने सोशल मीडिया संवाद में बताया, 'रीइन्फेक्शन के असल मामलों और गलत तरीके से वर्गीकृत किए गए रीइन्फेक्शन मामलों में अंतर करना जरूरी है। कई राज्यों में रीइन्फेक्शन के कुछ मामले सामने आए हैं, जिनका सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने की जरूरत है। आईसीएमआर के डेटाबेस से पता चलता है कि रीइन्फेक्शन के कई मामलों को मिसक्लासीफाई किया गया है।'

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स्वास्थ्य मंत्री ने संवाद में भाग लेने वाले लोगों को समझाते हुए कहा कि सार्स-सीओवी-2 का डायग्नॉसिस मुख्य रूप से आरटी-पीसीआर टेस्ट से किया जाता है, जिसकी वायरस को डिटेक्ट करने की सेंसिटिविटी काफी ज्यादा है। हर्षवर्धन के मुताबिक, यह टेस्ट उन वायरसों को भी डिटेक्ट कर लेता है, जो असल में मर चुके हैं, लेकिन काफी समय से शरीर में बने हुए हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण से रिकवर हुए मरीजों में डेड वायरस डिटेक्ट होते रहे हैं, जिसके चलते ऐसे मामलों को 'रीइन्फेक्शन' बता दिया गया है, जबकि असल में मरीज में एक्टिव वायरस की पहचान नहीं हुई होती। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, 'असल रीइन्फेक्शन का मामला तब बनता है जब बीमारी से पूरी तरह रिकवर हुए व्यक्ति के शरीर में समान या अलग स्ट्रेन का कोई नया वायरस घुसकर उसे संक्रमित करे।'

जल्दी ही फेलूदा टेस्ट से होगी कोविड-19 की पहचान
संडे संवाद में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने चर्चित कोविड-19 टेस्ट फेलूदा पर भी बात की। उन्होंने बताया कि ट्रायल के दौरान इस टेस्ट ने 96 प्रतिशत सेंसिटिविटी और 98 प्रतिशत स्पेसिफिटी के साथ वायरल को डिटेक्ट करने की क्षमता दिखाई है। हर्षवर्धन बताया कि यह ट्रायल इंस्टीट्यूट ऑफ जेनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी) में किया गया था। इसमें 2,000 से ज्यादा कोविड-19 मरीजों पर फेलूदा को आजमाया गया था। स्वास्थ्य मंत्री ने फेलूदा से कोरोना टेस्ट करने की शुरुआत की निश्चित तारीख नहीं बताई। लेकिन उन्होंने साफ कहा कि आने वाले कुछ हफ्तों में इस टेस्ट से कोविड-19 परीक्षण करना शुरू हो जाना चाहिए.

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फेलूदा कोविड-19 टेस्ट को दिल्ली स्थित वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और इसके तहत आने वाले आईजीआईबी ने टाटा समूह के साथ मिलकर विकसित किया है। इसका नाम भारत के महान फिल्मकार सत्यजीत राय द्वारा रचित एक जासूसी किरदार 'फेलूदा' के नाम पर रखा गया है। सीएसआईआर-आईजीआईबी के वैज्ञानिकों ने बताया है कि क्रिस्प्र तकनीक पर आधारित इस टेस्ट की कीमत मात्र 500 रुपये हैं और यह 45 मिनट में बता सकता है कि किसी व्यक्ति में सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस है या नहीं। इन एक्सपर्ट का कहना है कि परीक्षण करने पर फेलूदा नए कोरोना वायरस और अन्य कोरोना वायरसों में अंतर कर सकता है, तब भी जबकि उनके जेनेटिक वैरिएशन काफी सूक्ष्म हों। फेलूदा की वायरस को डिटेक्ट करने की क्षमता यानी सेंसिटिविटी 96 प्रतिशत है, जबकि शरीर में वायरस नहीं होने की पुष्टि करने की क्षमता (स्पेसिफिसिटी) 98 प्रतिशत है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, फेलूदा की किट किसी प्रेग्नेंसी टेस्ट किट जैसी होती है। इसकी स्ट्रिप वायरस को डिटेक्ट करते ही अपना रंग बदल लेती है। अच्छी बात यह है कि ऐसा करने के लिए टेस्ट को किसी भी प्रकार की मशीन की जरूरत नहीं है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: स्वास्थ्य मंत्री का 'संडे संवाद', जानें वैक्सीन वितरण से लेकर फेलूदा टेस्ट के इस्तेमाल में आने तक तमाम मुद्दों पर क्या बोले हर्षवर्धन है

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