भांग शब्द सुनते ही जहन में नशे का ख्याल आने लगता है। लेकिन अगर कोई कहे कि भांग से कोविड-19 से जुड़े साइटोकिन स्टॉर्म को कम किया जा सकता है तो कई लोगों को आश्चर्य हो सकता है। दरअसल, डेंटल कॉलेज ऑफ जॉर्जिया और मेडिकल कॉलेज ऑफ जॉर्जिया के शोधकर्ताओं ने अपनी एक अध्ययन रिपोर्ट में कहा है कि भांग के पौधे से बनने वाली दवा कैनिबिडायॉल (सीबीडी) शरीर में ऑक्सीजन लेवल को बढ़ा सकती है और इन्फ्लेमेशन को कम कर सकती है। साथ ही, यह फिजिकल लंग डैमेज को भी ठीक करने में मददगार है। वैज्ञानिकों ने जानलेवा एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस या आर्ड्स) के आधार पर तैयार किए लैबोरेटरी मॉडल की मदद से किए अध्ययन में यह जानकारी हासिल की है। इसके परिणामों को जर्नल ऑफ सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है। गौरतलब है कि एआरडीएस कोविड-19 से जुड़ी एक गंभीर मेडिकल कंडीशन है, जो शरीर में साइटोकिन स्टॉर्म के पैदा होने के चलते देखने को मिलती है। चूंकि भांग के पौधे से बनने वाली सीबीडी दवा दर्द और इन्फ्लेमेशन को दूर करने के लिए जानी जाती है, इसलिए इससे कोविड-19 के इलाज में मदद मिलने की बात वैज्ञानिकों की तरफ से कही गई है।

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अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चूहों को पॉली नामक डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए के सिंथैटिक कंपाउंड की मदद से एआरडीएस से ग्रस्त किया। बीमारी के प्रभाव में जब चूहों में इम्यून रेस्पॉन्स की अतिसक्रियता के चलते सांस और लो ब्लड प्रेशर की समस्या पैदा हुई तो इलाज के लिए उनके पेट में सीबीडी के शॉट दिए गए। दूसरे दिन पॉली कंपाउंड देने के दो घंटे बाद फिर एक सीबीडी डोज दिया गया। यह प्रक्रिया चौथे और छठवें दिन भी दोहराई गई। जांच के दौरान पता चला कि भांग के पौधे से बनने वाली इस दवा से चूहों के क्लिनिकल लक्षण तुरंत खत्म हो गए थे। इतना ही नहीं, उनके ऑक्सीजन लेवल में सुधार हुआ और इन्फ्लेमेशन के चलते साइटोकिन प्रोटीनों की संख्या में भी कमी हुई। विस्तृत निरीक्षण में यह भी सामने आया कि सीबीडी ने चूहों के फेफड़ों को हुई क्षति को आंशिक या पूर्ण रूप से रिवर्स कर दिया था।

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हाल में एक अन्य शोध में भी सीबीडी के इस्तेमाल से इसी तरह के परिणाम मिले थे। इसमें बताया गया था कि वायरल इन्फेक्शन के दौरान सीबीडी देने से फेफड़ों में एपेलिन (एक प्रकार का प्रोटीन रिसेप्टर या पेप्टाइड) का लेवल कम हो गया था, जिससे लंग्स को नुकसान पहुंचा था। एपेलिन एक पेप्टाइड है, जिसका निर्माण हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क, फैट टिशू और रक्त द्वारा किया जाता है। यह प्रोटीन रिसेप्टर एसीई2 रिसेप्टर के साथ मिलकर ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने का काम करता है, साथ ही इन्फ्लेमेशन को कम करता है। एआरडीएस होने पर सामान्यतः एपेलिन का स्तर फेफड़ों के उस हिस्से में बढ़ना चाहिए, जहां संक्रमण के चलते इन्फ्लेमेशन होने लगती है। एपेलिन का लेवल बढ़ने पर ब्लड और ऑक्सीन फ्लो सुधरने लगता है। इस दूसरे अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया था कि चूहों को सीबीडी देने पर उनमें एपेलिन का लेवल 20 प्रतिशत तक बढ़ गया था। जांच में उन्होंने पाया कि इससे फेफड़ों की कार्यक्षमता में उल्लेखनीय सुधार हुआ था।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 से जुड़े साइटोकिन स्टॉर्म को कम कर सकती है भांग से बनी सीबीडी दवा - वैज्ञानिक है

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