कोविड-19 महामारी कब खत्म होगी, इस सवाल का जवाब इस समय किसी के पास नहीं है। हालांकि यह जरूर मालूम है कि जब इस महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस को जीवित रहने के लिए पर्याप्त संख्या में कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग नहीं मिलेंगे तो यह संकट खत्म हो जाएगा। इस जानकारी के साथ ही हर्ड इम्यूनिटी या सामूहिक रोग प्रतिरक्षा प्रणाली की बहस सामने आती है, क्योंकि जब तक एक बड़ी आबादी में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा नहीं होंगे, तब तक कोरोना वायरस संकट खत्म नहीं होगा। हालांकि हर्ड इम्यूनिटी को लेकर शोध और शोधकर्ता बंटे हुए हैं। कुछ का दावा है कि हर्ड इम्यूनिटी को हासिल करना लगभग असंभव है और इसके भरोसे कोविड-19 से नहीं निपटा जा सकता। वहीं, दूसरी ओर ऐसे वैज्ञानिक और शोधकर्ता भी हैं, जिनका मानना है कि कोरोना वायरस के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी की कल्पना न सिर्फ हकीकत बन सकती है, बल्कि दुनिया धीरे-धीरे इस ओर बढ़ भी रही है।

प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस बाबत कई विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं से बात की है। इनमें से कुछ का कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी के लिए आबादी के 70 प्रतिशत हिस्से में वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी पैदा करना जरूरी है, चाहे ऐसा वैक्सीन की मदद से किया जाए या संक्रमण को प्राकृतिक रूप से मात देकर। वहीं, कुछ विशेषज्ञ 10 से 20 प्रतिशत इम्यूनिटी रेट को ही हर्ड इम्यूनिटी की संभावना से जोड़ते हैं। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी विकसित होने का समय और कम होता जा रहा है, जो कि एक अच्छा संकेत है। वे यह भी कहते हैं कि अगर 50 प्रतिशत या उससे थोड़ी कम मात्रा में सामूहिक प्रतिरक्षा जनरेट हो जाए तो वायरस को ज्यादा जल्दी हराया जा सकता है।

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हर्ड इम्यूनिटी को लेकर अलग-अलग मॉडलों के तहत किए गए अध्ययनों से यह साफ नहीं हुआ है कि दुनिया के किसी देश या क्षेत्र की आबादी में कोरोना वायरस के खिलाफ सामूहिक प्रतिरक्षा विकसित हुई है। हालांकि एनवाईटी की रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का कहना है कि न्यूयॉर्क, लंदन और मुंबई जैसे बड़े शहरों के कुछ इलाकों में संभवतः संतोषजनक इम्यूनिटी जनरेट हो गई है। हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के महामारी विशेषज्ञ बिल हैनेज कहते हैं, 'मैं इस बात पर यकीन करने के लिए तैयार हूं कि न्यूयॉर्क और लंदन के इलाकों में मजबूत इम्यूनिटी पैदा हो चुकी है। आगामी सर्दी के सीजन में इसका असर दिखेगा।'

न्यूयॉर्क में कोरोना वायरस मार्च महीने में फैलना शुरू हुआ था। संक्रमण के मामले सामने आने के बाद शहर के स्कूल और एक धर्म विशेष से जुड़े धार्मिक स्थलों को बंद कर दिया गया था। हालांकि ऐसा किए जाने तक काफी देर हो चुकी थी। अप्रैल महीने तक न्यूयॉर्क के ब्रूकलिन इलाके में हजारों केस सामने आ चुके थे और सैकड़ों लोगों की कोविड-19 से मौत हो गई थी। न्यूयॉर्क में नर्स के रूप में काम करने वाली ब्लिमी मार्कस का कहना है कि उस समय हालात काफी डराने वाले थे, लेकिन अब उनमें बदलाव आया है। वे कहती हैं, 'अब यहां आत्मसंतोष से जुड़ी आम भावना यह है कि हमारे पास यह (हर्ड इम्यूनिटी) है और हम सुरक्षित हैं।'

एनवाईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूयॉर्क के स्थानीय क्लिनिकों में होने वाले टेस्टों से भी हर्ड इम्यूनिटी के संकेत मिलते हैं। रिपोर्ट बताती है कि न्यूयॉर्क के कुछ क्लिनिकों में कोविड-19 के टेस्ट के लिए जितने लोग आए, उनमें से 80 प्रतिशत में कोरोना वायरस को खत्म करने वाले एंटीबॉडी मिले हैं। इसके अलावा, मुंबई में हुए उस सेरो सर्वे का भी जिक्र किया गया है, जिसके परिणामों से पता चला था कि शहर के झोपड़-पट्टी वाले इलाकों में 51 से 58 प्रतिशत लोगों में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी मिले हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि मुंबई से जुड़े आम शहरी इलाकों के 11 से 17 प्रतिशत लोगों में सार्स-सीओवी-2 वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा हो गए हैं, जबकि झुग्गी-बस्ती इलाकों के लोगों में इम्यूनिटी जनरेट होने की दर कम से कम 50 प्रतिशत थी।

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हालांकि ज्यादातर शोधकर्ता सावधानी बरतते हुए यह निष्कर्ष निकालते हैं कि ब्रूकलिन और मुंबई जैसे बड़ी आबादी वाले शहरों के कुछ इलाके हर्ड इम्यूनिटी तक पहुंच गए हैं और भविष्य में संक्रमण से बचे रहेंगे। वहीं, डॉ. ब्रिटन द्वारा तैयार किए गए मॉडल संकेत देते हैं कि हर्ड इम्यूनिटी हासिल करना असंभव नहीं है। कुछ शोधकर्ताओं ने तो 10 से 20 प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी पाए जाने पर हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने की बात कही है। हालांकि ये आशंकाएं विवादित रही हैं। ऐसा ही एक दावा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की महामारी विशेषज्ञ सुनेत्रा गुप्ता ने किया था, जिस पर काफी बहस हुई थी। एक इंटरव्यू में सुनेत्रा ने कहा था कि लंदन और न्यूयॉर्क के लोग पहले ही हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने वायरस के प्रति लोगों की विविधता और सामान्य सर्दी-जुकाम देने वाले कोरोना वायरसों के खिलाफ पहले से विकसित इम्यूनिटी को इसकी वजह बताया। सुनेत्रा का कहना था, 'यह एक कारण हो सकता है कि न्यूयॉर्क के इलाकों में आपको मामले बढ़ते नहीं दिखते।'

सुनेत्रा गुप्ता के इस विचार को कई अन्य विशेषज्ञों ने खारिज किया है। उनका कहना है कि अगर लंदन या न्यूयॉर्क में हर्ड इम्यूनिटी जनरेट हो चुकी है तो इन शहरों के हालात महामारी से पहले जैसे क्यों नहीं हुए हैं। अलग-अलग अध्ययनों के हवाले से ये विशेषज्ञ कहते हैं कि सीजनल कोरोना वायरस से होने वाले इन्फेक्शन के चलते पैदा हुए इम्यून सेल्स नए कोरोना वायरस को भी पहचान सकते हैं, लेकिन इस बात के सबूत कहां हैं कि वे इससे सुरक्षा भी दे सकते हैं। दूसरी तरफ, ब्रिटेन की स्ट्रेचक्लेड यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ गैब्रिएला गोम्स जैसे विशेषज्ञ भी हैं, जो अपने मॉडल से मिले परिणामों के आधार पर कहते हैं कि बेल्जियम, इंग्लैंड, पुर्तगाल और स्पेन में 10 से 20 प्रतिशत आबादी हर्ड इम्यूनिटी के नजदीक पहुंच गई है। लेकिन कोलंबिया यूनिवर्सिटी के महामारी विशेषज्ञ डॉ. जैफ्री शैमन जैसे एक्सपर्ट उन मॉडलों को दोषपूर्ण बताते हैं, जिनके आधार पर 10 से 20 प्रतिशत इम्यूनिटी रेट को हर्ड इम्यूनिटी बताया जाता है।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें वैज्ञानिकों को क्यों लगता है कि दुनिया के कुछ इलाकों में कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो गई है और क्यों दूसरे वैज्ञानिक इसे खारिज करते हैं? है

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