कोविड-19 के खिलाफ शरीर में पैदा होने वाली इम्यूनिटी को लेकर अब तक का सबसे बड़ा दावा सामने आया है। एक अध्ययन के हवाले से वैज्ञानिकों ने कहा है कि नए कोरोना वायरस का संक्रमण होने पर विकसित होने वाली इम्यूनिटी महीनों ही नहीं, बल्कि सालों और दशकों तक बनी रह सकती है। अमेरिका के ला जोला इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी ने कोविड-19 से स्वस्थ होने वाली लोगों के ब्लड सैंपलों की जांच करने के बाद यह दावा किया है। इस अध्ययन के डेटा के मुताबिक, कोरोना वायरस से संक्रमित होने के आठ महीने बाद भी प्रतिभागी रिकवर्ड मरीजों के शरीर में इम्यून सेल्स इतनी संख्या में मौजूद थे कि वे आसानी से वायरस को रोककर उन्हें बीमार होने से बचा सकते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा है कि कोरोना वायरस की रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं के लुप्त होने की रफ्तार धीमी होने के चलते वे शरीर में काफी ज्यादा लंबे समय तक बनी रह सकती हैं। हालांकि इस नए अध्ययन और इसके डेटा की अभी तक दूसरे मेडिकल शोधकर्ताओं ने समीक्षा नहीं की है और न ही किसी मेडिकल जर्नल ने इन्हें प्रकाशित किया है। लेकिन कोविड-19 की इम्यूनिटी से जुड़े इस दावे ने पूर्व में आए कई अध्ययनों को चुनौती दी है, जिनमें कहा गया है कि सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण के खिलाफ पैदा होने वाली इम्यूनिटी ज्यादा समय तक कायम नहीं रहती।

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अमेरिकी अखबार दि न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) ने इस अध्ययन से जुड़े एक प्रमुख शोधकर्ता और ला जोला इंस्टीट्यूट के वाइरोलॉजिस्ट शेन क्रॉटी से बातचीत की है। इसमें उन्होंने बताया है, '(संक्रमण के खिलाफ पैदा होने वाली इम्यून) मेमरी ज्यादातर लोगों को सालोंसाल कोविड-19 के कारण अस्पताल में भर्ती होने और गंभीर रूप से बीमार होने से बचा लेगी।' डॉ. शेन का यह बयान मेडिकल एक्सपर्ट के लिए भी बड़ी राहत देने वाला साबित हो सकता है, जो अब तक इस तथ्य से चिंतित रहे हैं कि कोरोना संक्रमण से संबंधित इम्यूनिटी थोड़े समय के लिए ही विकसित होती है और उसे बनाए रखने के लिए लोगों को बार-बार वैक्सीन लगानी होगी ताकि महामारी नियंत्रण में रहे।

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यह नया दावा उस हालिया अध्ययन की ओर भी ध्यान आकर्षिक करता है, जिसमें बताया गया था कि कैसे 2003 में आए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-1 से फैली सार्स महामारी के खिलाफ पैदा हुई इम्यूनिटी से जुड़े महत्वपूर्ण इम्यून सेल्स 17 साल बाद अभी भी कुछ लोगों में पाए गए हैं। वहीं, पिछले हफ्ते ही प्रकाशित हुई एक अन्य स्टडी में भी पता चला है कि कोविड-19 से रिकवर हुए लोगों में एंटीबॉडी डिटेक्ट नहीं होने के बाद भी कोरोना वायरस को मारने वाले ताकतवर इम्यून सेल्स मौजूद थे। गौरतलब है कि अन्य मेडिकल विशेषज्ञों ने भी कहा है कि किसी वायरस के खिलाफ पैदा हुई इम्यूनिटी और एंटीबॉडी में काफी फर्क होता है। उनकी मानें तो एंटीबॉडी एक समय के बाद लुप्त हो सकते हैं, लेकिन इम्यूनिटी लंबे वक्त तक बनी रहती है।

इन सभी अध्ययनों और इनके परिणामों पर एनवाईटी से बातचीत में यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना की इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. दीप्ता भट्टाचार्य कहती हैं, 'ये तमाम अध्ययन यही तस्वीर पेश करते हैं कि एक बार (कोविड-19 होने पर) अगर आप शुरुआती मुश्किल भरे हफ्ते गुजार लें तो बाकी बचा इम्यून रेस्पॉन्स व्यावहारिक तरीके से काम करता है।'

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अखबार ने बताया है कि अध्ययन में बहुत कम रिकवर कोरोना मरीजों की इम्यूनिटी दीर्घकालिक नहीं पाई गई। एक्सपर्ट का कहना है कि शायद ऐसा वायरल लोड कम होने के कारण हुआ हो। यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो की इम्यूनोलॉजिस्ट जेनिफर गॉमरमैन ने बताया, 'संक्रमित लोगों की बहुत कम संख्या थी जिनमें रिकवरी के बाद दीर्घकालिक इम्यूनिटी नहीं पाई गई। शायद ऐसा वायरस के अलग-अलग मात्रा में फैलने के कारण हुआ होगा। लेकिन ऐसे लोगों के लिए वैक्सीन काम आ सकती है।'

नोट: इस रिपोर्ट की शुरुआत में हमने बताया है कि यह अध्ययन और इसके परिणामों की समीक्षा अभी तक नहीं की गई है और न ही किसी मेडिकल जर्नल ने इन्हें प्रकाशित किया है। कोविड-19 इम्यूनिटी से जुड़ी इन नई जानकारियों को मेडिकल शोधपत्र ऑनलाइन मुहैया कराने वाले प्लेटफॉर्म बायोआरकाइव पर प्रकाशित किया गया है। हम इनका समर्थन और विरोध दोनों ही नहीं करते हैं। पाठक ऐसा करते हुए अपने विवेक का इस्तेमाल करें।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 इम्यूनिटी को लेकर वैज्ञानिकों का अब तक का सबसे बड़ा दावा, 'सालोंसाल बनी रह सकती है' रोग प्रतिरोधक क्षमता है

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