न्यूजीलैंड कोरोना वायरस से अपनी दूसरी जंग भी जीतता दिख रहा है। यहां हाल के दिनों में कोविड-19 के नए मामलों की संख्या न के बराबर रही है। सबसे ज्यादा आबादी वाले शहर ऑकलैंड में पिछले दस दिनों से एक भी मामला सामने नहीं आया है। इसके चलते न्यूजीलैंड की सरकार ने बीमारी को फैलने से रोकने के लिए शहर में लगाए अंतिम प्रतिबंधों को भी हटाने का फैसला किया है। चर्चा है कि सरकार लोगों को इकट्ठा होकर मिलने और सोशल डिस्टेंसिंग तथा मास्क के बिना घूमने की अनुमति देने वाली है।

कोविड-19 संकट से निपटने के अपने तरीकों को लेकर पूरी दुनिया में प्रशंसा बटोर चुकीं प्रधानमंत्री जेसिंडा ऑर्डर्न अगले हफ्ते री-इलेक्शन की परीक्षा देने जा रही हैं। इससे पहले उन्होंने कहा कि देश में लगी पाबंदियों का हटना कोरोना संकट के खिलाफ न्यूजीलैंड की मजबूत और तीव्र प्रतिक्रिया का नतीजा है। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) ने बताया कि जेसिंडा ऑर्डर्न की सरकार ने तीव्र वैज्ञानिक आधारित नीति को अपनाते हुए न्यूजीलैंड को वायरस से मुक्त करने की रणनीति बनाई थी। इसके तहत न्यूजीलैंड में कई हफ्तों के लिए सख्त लॉकडाउन लगाया गया और आपातकाल के मद्देनजर आर्थिक गतिविधियों की भी कुर्बानी दी गई। इस हफ्ते मीडिया से बातचीत में प्रधानमंत्री जेसिंडा ने कहा कि उनके देश के पचास लाख नागरिकों ने किसी राष्ट्रीय टीम की तरह काम किया। इसके साथ ही उन्होंने न्यूजीलैंड की पूरी आबादी पर लगे प्रतिबंधों को कम करने की घोषणा की। इस दौरान उन्होंने कहा कि इसकी 95 प्रतिशत संभावना है कि उनके देश ने कोरोना वायरस के स्थानीय ट्रांसमिशन को 95 प्रतिशत तक खत्म कर दिया है।

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दूसरी तरफ, विशेषज्ञों का कहना है कि न्यूजीलैंड की आबादी इतनी कम है और उसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वह महामारी से निपटने की स्थिति में हमेशा से था। लेकिन उसकी सफलता कई अन्य देशों की ओर ध्यान जरूर खींचती है, जहां कोरोना वायरस से मारे गए लोगों की संख्या बहुत ज्यादा हो चुकी है। एनवाईटी ने अपनी रिपोर्ट में भारत, अमेरिका और ब्राजील का उदाहरण दिया है। अखबार ने कहा है कि अर्थव्यवस्था को फिर से शुरू करने के चक्कर में भारत में वायरस बहुत तेजी से फैला है। वहीं, अमेरिका और ब्राजील के नेताओं ने महामारी को हल्के में लिया है, जबकि वे खुद वायरस से संक्रमित हो चुके हैं।

जानकारों का कहना है कि दरअसल वायरस को खत्म करने की बात कई नेताओं के गले नहीं उतरी। न्यूजीलैंड की ओटागो यूनिवर्सिटी के महामारी विशेषज्ञ माइकल बेकर कहते हैं, 'वायरस को खत्म करने की बात कुछ नेताओं के गले में फंस जाती है, क्योंकि यह बहुत मुश्किल काम लगता है। लेकिन न्यूजीलैंड में हम देखते हैं कि इसे एक उद्देश्य बना लिया गया है, क्योंकि आप (सरकार) स्वीकार करते हैं कि आपके यहां महामारी फैल सकती है।'

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प्रोफेसर माइकल उन विशेषज्ञों में शामिल हैं, जिन्होंने न्यूजीलैंड को कोरोना वायरस से मुक्त करने की सरकारी रणनीति पर काम किया है। वे कहते हैं कि लॉकडाउन के चलते अर्थव्यवस्था को अपूरणीय क्षति होने का खतरा था, लेकिन न्यूजीलैंड की सरकार ने साबित किया कि वायरस के खिलाफ सबसे कारगर रेस्पॉन्स एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया है, जिसमें आक्रामक तरीके से टेस्टिंग करना, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और क्वारंटीन संबंधी नीतियां शामिल हैं। माइकल का कहना है कि बाकी दुनिया के ज्यादा देशों ने कोविड-19 को लेकर 'अपवाद' की नीति अपनाई। यानी इन देशों के राजनीतिक नेतृत्व ने माना कि उनके देश वायरस के प्रभाव से अछूते रहेंगे, लिहाजा उन्होंने शुरू में रोकथाम व नियंत्रण की नीति नहीं अपनाई। 

लेकिन न्यूजीलैंड ने ऐसा नहीं किया। इसका नतीजा यह है कि बुधवार देर रात से यहां लोगों के इकट्ठा होकर मिलने और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर करते समय मास्क पहनने से जुड़े नियमों में ढील दे दी गई है। अब न्यूजीलैंड के सबसे ज्यादा आबादी वाले शहर ऑकलैंड में लोगों को सार्वजनिक रूप से मास्क पहनना अनिवार्य नहीं है। हालांकि बाहर निकलने के बाद उन्हें अपनी लोकेशन के रिकॉर्ड रखने होंगे, साफ-सफाई का ध्यान रखना होगा और बीमार महसूस होने पर घर में रह कर टेस्ट कराना होगा। एनवाईटी के मुताबिक, न्यूजीलैंड के नागरिक नई घोषणाओं से खुश हैं, लेकिन वे तुरंत पहले की तरह सामान्य जीवन को ओर लौटने में जल्दबाजी नहीं करना चाहते। लॉकडाउन की वजह से इन लोगों को आर्थिक नुकसान के साथ मानसिक नुकसान भी हुए हैं। हालांकि तमाम समस्याओं के बीच एक सुखद बात यह है कि न्यूजीलैंड में अब तक केवल 1,866 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं। इनमें से केवल 25 की मौत हुई है, जबकि 1,800 को बचा लिया गया है।

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