चीन से फैले नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 की चपेट में अब करीब पूरी दुनिया है। इसके संक्रमितों की संख्या तेजी से चार लाख के आकंड़े की तरफ बढ़ रही है। वहीं, इस वायरस से होने वाली बीमारी कोविड-19 से मरने वालों का आंकड़ा 16,500 को पार कर चुका है। हालात देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इसे पहले ही 'महामारी' घोषित कर चुका है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर यह किस प्रकार की महामारी है।

दरअसल, व्यापक स्तर पर फैली बीमारी के लिए हिंदी में केवल महामारी शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन अंग्रेजी में इसके लिए दो शब्द हैं। एक है एपिडेमिक और दूसरा पैंडेमिक। एपिडेमिक का मतलब है कि किसी बीमारी का सक्रिय रूप से फैलते जाना यानी लोगों को लगातार बीमार करना। मेडिकल विशेषज्ञ बताते हैं कि जब कोई बीमारी अनियंत्रित होकर तेजी से फैलने लगती है तो ऐसी स्थिति के लिए एपिडेमिक शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।

वहीं, पैंडेमिक का अर्थ अनियंत्रित हो चुकी बीमारी का व्यापक भौगोलिक रूप धारण कर लेना है। नया कोरोना वायरस इसकी मिसाल है। पिछले साल दिसंबर में जब इस वायरस ने लोगों को बीमार करना शुरू किया तो इससे होने वाली बीमारी कोविड-19 को पहले एपिडेमिक कहा गया था। उस समय इसका प्रभाव सिर्फ चीन और कुछ एशियाई देशों तक सीमित था। लेकिन जब कोविड-19 अनियंत्रित होने के बाद पूरी दुनिया में फैलती चली गई तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे 'पैंडेमिक' घोषित कर दिया। 

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कुछ उदाहरण
यह तो आप जान गए कि एपिडेमिक किसी बीमारी की सक्रियता के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है, जबकि पैंडेमिक के मायने इस बारे में है कि बीमारी के फैलाव या दायरे की स्थिति क्या है। अब इन दोनों के बीच के अंतर को और बेहतर समझने के लिए कुछ उदाहरण लेते हैं।

अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम विभाग (सीडीसी) के मुताबिक, किसी क्षेत्र विशेष में एक बीमारी के सामान्य से अधिक मामले सामने आना एपिडेमिक है। साल 2003 में चीन में सामने आए कोरोना वायरस सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम यानी सार्स ने एपिडेमिक का रूप लिया था। तब इससे दुनिया के 29 देशों में 8,000 से ज्यादा लोग बीमार हुए थे और 774 लोगों की मौत हुई थी। वहीं, साल 2016 और 2017 के बीच जीका वायरस का प्रकोप देखने को मिला था। यह वायरस ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में और उन इलाकों से आने वाले यात्रियों में मच्छरों के जरिये फैला था। सीडीसी के ही अनुसार, साल 2016 में अमेरिका में जीका के लक्षणों वाले 5,168 मामले सामने आए थे।

वहीं, साल 2014 से 2016 के बीच पश्चिम अफ्रीका में इबोला वायरस का प्रकोप बड़ी बीमारी के रूप में फैला था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, इस दौरान इबोला वायरस से जुड़े कुल 28,600 मामले सामने आए और इनमें से 11,325 मौतें हुईं। ध्यान रहे कि इतनी मौतें तीन सालों में हुईं।

इसके अलावा 1976 से 2013 के बीच सहारा रेगिस्तान क्षेत्र में करीब 24 बार इबोला सक्रिय हुआ। इस दौरान करीब 2,400 मामले ही सामने आए। हालांकि इनमें मरने वालों की मृत्यु दर 50 प्रतिशत से ज्यादा रही। यह बताता है कि कोरोना वायरस के मुकाबले इबोला कहीं ज्यादा जानलेवा है।

लेकिन इसके बावजूद इबोला, जीका या सार्स को पैंडेमिक घोषित नहीं किया गया और एपिडेमिक ही कहा गया। यानी इन दोनों शब्दों में भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर भी अंतर किया जाता है। कोरोना वायरस, इबोला जितना जानलेवा नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव का दायरा बहुत बड़ा है, इसीलिए कम जानलेवा होने के बावजूद डब्ल्यूएचओ को इसे पैंडेमिक घोषित करना पड़ा। वहीं, जीका या इबोला जैसे वायरसों ने भी हजारों लोगों को प्रभावित किया था, लेकिन इनका प्रकोप भौगोलिक रूप से सीमित था। यानी एक विशेष क्षेत्र के बाहर ये वायरस लोगों को बीमार नहीं कर पाए। इसीलिए इन महामारियों को एपिडेमिक कहा गया।

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कोई निश्चित पैमाना नहीं
यह स्पष्ट हो चुका है कि पैंडेमिक की स्थिति तब आती है, जब कोई बीमारी कई देशों में बहुत बड़ी संख्या में लोगों को बीमार करती है। हालांकि पैंडेमिक की घोषणा को लेकर सीडीसी और डब्ल्यूएचओ के पास कोई निश्चित या स्पष्ट पैमाना नहीं है। मतलब कितने देशों और कितने लोगों के प्रभावित होने को पैंडेमिक कहा जाए, इसे लेकर स्पष्टता नहीं है। कोविड-19 के मामले में ऐसा देखने को मिला है। डब्ल्यूएचओ ने जब इसे पैंडेमिक घोषित किया, तो साथ में यह भी कहा कि दुनियाभर की सरकारों ने इस बीमारी को रोकने में काफी सुस्ती दिखाई है, जबकि इसे रोकना संभव था।

फिर भी, इतिहास में कुछ ऐसे स्वास्थ्य संकट पैदा होते रहे हैं, जिन्हें पैंडेमिक कहा गया है। मसलन, एचआईवी-एड्स जिसने 1982 से लेकर अब तक करीब चार करोड़ लोगों की जान ली है। वहीं, इन्फ्लुएंजा यानी फ्लू की वजह से पैंडेमिक की स्थिति एक से ज्यादा बार आई है।

  • 1918 में स्पेनिश इन्फ्लुएंजा- इसमें 4 से 5 करोड़ (40-50 मिलियन) लोग मारे गए
  • 1957 में एशियाई इन्फ्लुएंजा- इससे 20 लाख लोगों की मौत हुई थी
  • 1968 में हांगकांग से फैले इन्फ्लुएंजा से 10 लाख लोग मारे गए

अन्य वजहें
पैंडेमिक की घोषणा तब की जाती है जब एक नए प्रकार के वायरस से लड़ने के लिए न तो इलाज उपलब्ध होता है और न ही लोगों का इम्युनिटी सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) इतना मजबूत होता कि वे वायरस से लड़ सकें। ऐसे में एक बड़ी आबादी के लिए खतरा पैदा हो जाता है। पैंडेमिक की स्थिति को लेकर डब्ल्यूएचओ ने कुछ चरणों का जिक्र किया है, जो कि इस प्रकार है-

  • पहला चरण: इस दौरान कोई वायरस पशु से मनुष्यों में नहीं फैलता है।
  • दूसरा चरण: यह खतरे की पहली स्टेज होती, जिसमें किसी जानवर के जरिए इंसानों में वायरस की पुष्टि होती है।
  • तीसरा चरण: इस स्टेज में बीमारी से जुड़े कुछ मामलों की पहचान होना शुरू होता है, लेकिन वायरस के व्यक्ति से व्यक्ति में फैलने की संभावना नहीं होती।
  • चौथा चरण: इसमें वायरस, व्यक्ति से व्यक्ति में फैलता है। इससे समुदाय स्तर पर संक्रमण फैलने का खतरा पैदा हो जाता है।
  • पांचवां चरण: जब कोई संक्रमण व्यक्ति से व्यक्ति के जरिए कम से कम दो देशों में फैल जाता है।
  • छठा चरण: आखिरी चरण में जब बीमारी एक देश से दूसरे देशों के लोगों में फैलने लगती है तो इसे पैंडेमिक यानी महामारी घोषित किया जाता है।

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महामारी को फैलने से रोकने और बचाव के उपाय
एपिडेमिक और पैंडमिक (महामारी) को रोकना आसान नहीं होता। वह भी तब, जब बीमारी के इलाज से जुड़ी कोई वैक्सीन या दवा उपलब्ध ना हो। हालांकि कुछ बीमारियों की रोकथाम के लिए टीके की उपलब्धता की गई है। इसलिए जरूरी है कि किसी प्रकार के फ्लू और वायरस से बचने के लिए टीकाकरण कराएं। इससे आप अपना और अपने परिवार की सेहत का ख्याल रख सकते हैं। इसके अलावा कुछ प्राथमिक उपाय हैं जो संक्रमण को फैलने से रोक सकते हैं, जैसे-

  • अपने हाथों को अक्सर साबुन और पानी से धोएं। अगर साबुन नहीं है तो ऐल्कहॉल आधारित हैंड क्लीनर या जेल सैनिटाइजर का उपयोग करें। अगर जेल का इस्तेमाल करते हैं, तो अपने हाथों को तब तक रगड़ें जब तक कि वे सूख न जाएं।
  • मुंह, नाक या आंखों को तब तक छूने से बचें, जब तक कि आपने अपने हाथों को धोया न हो।
  • खांसते या छींकते समय अपने मुंह और नाक को एक टिशू पेपर से ढक लें। फिर इस्तेमाल किए टिशू को कचरे में फेंक दें। इसके बाद अपने हाथ धो लें।
  • इसके अलावा, अगर बीमारी के लक्षण दिखते हैं तो भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जानें से बचें और जितना हो सके घर पर रहें।
  • महामारी की गंभीरता को देखते हुए मुंह पर मास्क पहनें और अगर आपको भीड़ वाले क्षेत्र में जाना पड़ रहा है तो दूसरों से 6 फीट की दूरी बनाएं।

इन स्थितियों में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें

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संदर्भ

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  2. World Health Organization [Internet]. Geneva (SUI): World Health Organization; Infection prevention and control of epidemic- and pandemic-prone acute respiratory diseases in health care
  3. Association for Professionals in Infection Control and Epidemiology [Internet]. US; Outbreaks, epidemics and pandemics—what you need to know
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  5. Madhav N, Oppenheim B, Gallivan M, et al. Pandemics: Risks, Impacts, and Mitigation. In: Jamison DT, Gelband H, Horton S, et al., editors. Disease Control Priorities: Improving Health and Reducing Poverty. 3rd edition. Washington (DC): The International Bank for Reconstruction and Developm
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