विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि इबोला वायरस ने हजारों लोगों की जिंदगी ली है। लेकिन क्या यह वायरस ब्रेन ट्यूमर के रोगियों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है? इस संबंध में शोधकर्ताओं को एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। दरअसल, एक शोध के जरिये वैज्ञानिकों को पता चला है कि इन्सानों के लिए जानलेवा इबोला वायरस में कुछ ऐसे टिशूज हैं, जो ब्रेन ट्यूमर के बेहतर इलाज में कारगर साबित हो सकते हैं। अमेरिका में येल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने शोध के आधार पर यह जानकारी दी है। इसके बाद आने वाले समय में ब्रेन ट्यूमर के इलाज के लिए एक बेहतर विकल्प की उम्मीद की जा रही है।

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इस जानलेवा ट्यूमर को रोक सकता है इबोला का ऊतक
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में एक गंभीर और जानलेवा ट्यूमर हो सकता है जिसे ग्लियोब्लास्टोमा कहा जाता है। यह ट्यूमर मस्तिष्क को सहारा देने वाले ऊतकों में बनता है। यूं तो ग्लियोब्लास्टोमा मस्तिष्क के किसी भी हिस्से में हो सकता है, लेकिन आमतौर पर यह दिमाग के सामने और निचले हिस्से में बनता है। यह ट्यूमर अधिकतर व्यस्कों को ही होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें इबोला वायरस के कुछ हिस्सों में ग्लियोब्लास्टोमा से लड़ने की क्षमता दिखी है। उनकी मानें तो यह ब्रेन ट्यूमर के इलाज में आने वाली रुकावटों को दूर करने में मदद कर सकता है।

कैसे किया गया शोध?
येल यूनिवर्सिटी में न्यूरोसर्जरी के प्रोफेसर एंथोनी वेन डेन पोल और उनकी टीम ने इबोला वायरस के एक वंशाणु को मिलाकर बनाए गए एक विशेष वायरस को एक समूह में शामिल चूहों के दिमाग में डाला। सूक्ष्मजीवों और अणुओं को मिलाकर बना गए ऐसे विषाणु को किमेरिक वायरस कहा जाता है। शोध में जो किमेरिक वायरस चूहों को दिया गया, उसमें ग्लाइकोप्रोटीन और म्यूकोइन-लाइन डोमेन (एमएलडी) भी मिलाया गया था।

रिपोर्टों के मुताबिक, इस प्रयोग के परिणाम शोधकर्ताओं की उम्मीद के मुताबिक रहे। इनमें उन्होंने पाया कि किमेरिक वायरस में शामिल इबोला वायरस के जीन ने चूहों को बिना नुकसान पहुंचाए कैंसर के ब्रेन ट्यूमर को खत्म करने में मदद की थी। वहीं, ग्लाइकोप्रोटीन और एमएलडी ने प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने और इबोला वायरस को फैलने से रोकने का काम किया। इस आधार पर अध्ययनकर्ताओं ने अपने प्रयोग को सफल बताया है।

उनका यह भी अनुमान है कि इस तरह के ट्यूमर के इलाज के लिए इबोला जीन युक्त किमेरिक वायरस अन्य वायरसों की तुलना में अधिक प्रभावशाली है। वे बताते हैं कि इबोला जीन धीमी गति से असर करता है जिससे रोगी (अन्य वायरसों की तुलना में) इसके गलत प्रभाव से ज्यादा सुरक्षित रहेगा। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस तरह कैंसर के रोगियों को ब्रेन ट्यूमर से छुटकारा दिलाने में इबोला काम आ सकता है।

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कैंसर ट्यूमर की कमजोरी का फायदा उठाया
प्रोफेसर एंथोनी वेन डेन पोल का कहना है कि दरअसल उनकी टीम ने कैंसर के ट्यूमर की एक बुनियादी कमजोरी के चलते शोध में इबोला वायरस का इस्तेमाल किया। उन्होंने बताया कि वायरस से प्रतिरक्षा करते हुए कैंसर कोशिकाएं खुद का बचाव करने में असमर्थ होती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं ने किमेरिक वायरस में इबोला वायरस का उपयोग किया। शोधकर्ताओं का कहना है कि बेशक यह जोखिम भरा है, क्योंकि इबोला वायरस कैंसर रोगियों में खतरनाक संक्रमण पैदा कर सकता है। लेकिन इसी खतरे को कम करने के लिए ही तो शोधकर्ताओं ने कृत्रिम किमेरिक वायरस का सहारा लिया था, ताकि मिश्रण में शामिल अन्य तत्व वायरस के प्रभाव को रोक सकें। 

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क्या है इबोला वायरस?
इबोला और मारबर्ग वायरस एक जैसे वायरस हैं जिनके संक्रमण से रक्तस्राव वाला (हेमरेजिक) बुखार हो सकता है। इनसे होने वाली बीमारी में अत्यधिक रक्तस्राव होता है, शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं और ज्यादातर रोगियों की मृत्यु हो सकती है। इबोला वायरस जानवरों के शरीर में रहते हैं और संक्रमित जानवर के संपर्क में आने से यह बीमारी हो सकती है। इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति के खून और पसीना के संपर्क में आने पर दूसरे व्यक्ति को भी यह बीमारी हो सकती है।

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