लिवर से संबंधित रोगों में फैटी लिवर सबसे सामान्य बीमारियों में से है जिससे वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा लोग प्रभावित हैं। आंकड़ों के अनुसार लगभग प्रत्येक 10 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति फैटी लिवर की समस्या से ग्रस्त होता है। लिवर कोशिकाओं में अत्यधिक वसा बनने (लिवर के वजन से 10 फीसदी ज्यादा) के कारण लिवर में सूजन होने लगती है जिसकी वजह से फैटी लिवर की समस्या उत्पन्न होती है। फैटी लिवर के लक्षणों में उलझन में रहना, थकान, कमजोरी, वजन में कमी आना और पेट से संबंधित समस्याएं होना शामिल है। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो इसकी वजह से लिवर क्षतिग्रस्त (डैमेज) और लिवर सिरोसिस भी हो सकता है।
बहुत ज्यादा खाना खाने से फैटी लिवर का खतरा बढ़ जाता है। शराब भी एल्कोहोलिक फैटी लिवर रोग का एक कारण है। डायबिटीज, मोटापे, कुपोषण, कुछ दवाओं (जैसे एस्प्रिन) और लगातार वजन घटने के कारण नॉन-एल्कोहोलिक फैटी लिवर रोग हो सकता है।
फैटी लिवर और अधिकतर लिवर विकारों के आयुर्वेदिक उपचार में भूमि आमलकी और गुडूची के साथ पंचकर्म थेरेपी जैसे कि विरेचन (रेचक क्रिया) किया जाता है। आरोग्यवर्धिनी रस और वसा गुडूच्यादि कषाय जैसे आयुर्वेदिक मिश्रणों में लिवर को सुरक्षा देने वाले गुण होते हैं एवं ये लिवर के सामान्य कार्य में भी सुधार करते हैं इसलिए फैटी लिवर के इलाज में ये आयुर्वेदिक मिश्रण दिए जाते हैं। स्वस्थ और पौष्टिक आहार एवं शराब तथा धूम्रपान छोड़ने से इस बीमारी को ठीक एवं होने से रोका जा सकता है।
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