• हिं
  • हिं

लिवर से संबंधित रोगों में फैटी लिवर सबसे सामान्‍य बीमारियों में से है जिससे वैश्विक स्‍तर पर सबसे ज्‍यादा लोग प्रभावित हैं। आंकड़ों के अनुसार लगभग प्रत्‍येक 10 व्‍यक्‍तियों में से एक व्‍यक्‍ति फैटी लिवर की समस्‍या से ग्रस्‍त होता है। लिवर कोशिकाओं में अत्‍यधिक वसा बनने (लिवर के वजन से 10 फीसदी ज्‍यादा) के कारण लिवर में सूजन होने लगती है जिसकी वजह से फैटी लिवर की समस्‍या उत्‍पन्‍न होती है। फैटी लिवर के लक्षणों में उलझन में रहना, थकान, कमजोरी, वजन में कमी आना और पेट से संबंधित समस्‍याएं होना शामिल है। अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो इसकी वजह से लिवर क्षतिग्रस्‍त (डैमेज) और लिवर सिरोसिस भी हो सकता है।

बहुत ज्‍यादा खाना खाने से फैटी लिवर का खतरा बढ़ जाता है। शराब भी एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग का एक कारण है। डायबिटीज, मोटापे, कुपोषण, कुछ दवाओं (जैसे एस्प्रिन) और लगातार वजन घटने के कारण नॉन-एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग हो सकता है।

फैटी लिवर और अधिकतर लिवर विकारों के आयुर्वेदिक उपचार में भूमि आमलकी और गुडूची के साथ पंचकर्म थेरेपी जैसे कि विरेचन (रेचक क्रिया) किया जाता है। आरोग्‍यवर्धिनी रस और वसा गुडूच्यादि कषाय जैसे आयुर्वेदिक मिश्रणों में लिवर को सुरक्षा देने वाले गुण होते हैं एवं ये लिवर के सामान्‍य कार्य में भी सुधार करते हैं इसलिए फैटी लिवर के इलाज में ये आयुर्वेदिक मिश्रण दिए जाते हैं। स्‍वस्‍थ और पौष्‍टिक आहार एवं शराब तथा धूम्रपान छोड़ने से इस बीमारी को ठीक एवं होने से रोका जा सकता है।

(और पढ़ें - शराब की लत छुड़ाने के घरेलू उपाय)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से फैटी लिवर - Ayurveda ke anusar Fatty Liver
  2. फैटी लिवर का आयुर्वेदिक उपचार - Fatty Liver ka ayurvedic ilaj
  3. फैटी लिवर की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Fatty Liver ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार फैटी लिवर में क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Fatty Liver kam karne ke liye kya kare kya na kare
  5. फैटी लिवर की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Fatty Liver ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. फैटी लिवर की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Fatty Liver ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. फैटी लिवर की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Fatty Liver ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
फैटी लिवर की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग के शुरुआती चरण में कफ मेदो दुष्टि (कफ और मेद का खराब होना) की समस्‍या पैदा होती है। पित्त के मामले में सूजन संबंधित समस्‍याएं होती हैं जिसकी वजह से स्टीटोहेपेटाइटिस (लिवर में वसा का जमाव होने से धीरे धीरे लिवर का नष्ट होना) हो सकता है। पैथोजींस में वात के लिप्‍त होने पर ये फाइब्रोसिस के रूप में शरीर में रहता है और सिरोसिस का रूप ले सकता है। अग्नि वैगुण्य (पाचन तंत्र में असामान्‍यता) को घटाकर, कफ और मेद को संतुलित कर एवं स्रोतोरोध (परिसंचरण नाडियों में रुकावट) में सुधार कर फैटी लिवर की समस्‍या को ठीक तरह से नियंत्रित किया जा सकता है।

नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग के सही कारण का तो अब तक पता नहीं चल पाया लेकिन भोजन में मौजूद कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन के अत्‍यधिक सेवन के कारण ये बीमारी हो सकती है और इसके रोगजनन एवं रोग की वजह से संबंधित कारण स्‍थौल्‍य (मोटापे) के समान होते हैं। नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग के शुरुआती लक्षण अजीर्ण (अपच) से मिलते-जुलते होते हैं। इसकी वजह से पेट फूलने, भारीपन, भूख बढ़ने या घटने, दस्‍त, डकार, कब्‍ज और बेचैनी होती है। बीमारी के बढ़ने पर अम्‍लपित्त (एसिडिटी) से संबंधित लक्षण सामने आते हैं जिनमें स्‍वाद में कमी आना, सीने और पेट में जलन, खट्टी डकारें आना, पेट फूलना और पतला मल आना शामिल है।

(और पढ़ें - सीने में जलन के उपाय)

फैटी लिवर बढ़ने पर सिरोसिस या फाइब्रोसिस हो जाता है जो कि गंभीर लिवर विकारों जैसे कि पांडु (एनीमिया), रक्‍तपित्त (नाक और मुंह से खून आना) और कामला (पीलिया) रोग का रूप ले सकता है। आयुर्वेद के अनुसार खराब जीवनशैली और खानपान से संबंधित गलत आदतों की वजह से व्‍यक्‍ति और पारिस्थितिकी तंत्र के बीच में असंतुलन पैदा होना चयापचय समस्‍याओं जैसे कि नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग होने के प्रमुख कारणों में से एक है। अत: योग, प्राणायाम के साथ-साथ संतुलित आहार एवं जीवनशैली से फैटी लिवर रोग से बचा एवं इसे नियंत्रित किया जा सकता है। 

(और पढ़ें - नाक से खून आने पर क्या करना चाहिए)

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Yakritas Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को लिवर से जुड़ी समस्या (फैटी लिवर, पाचन तंत्र में कमजोरी) में सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
  • विरेचन
    • विरेचन कर्म में दस्‍त के ज़रिए शरीर की सफाई की जाती है। इसका इस्‍तेमाल खासतौर पर शरीर से अतिरिक्‍त पित्त को साफ करने के लिए किया जाता है। पित्त के साथ-साथ ये अतिरिक्‍त वात और कफ को भी साफ करता है।
    • अस्‍थमा, बड़ी आंत से संबंधित विकारों, रक्‍त धातु के खराब होने के कारण हुए विकारों, उन्‍माद, जठरांत्र में दिक्‍कत और पित्त से संबंधित समस्‍याओं का इलाज विरेचन कर्म से किया जा सकता है।
    • गरम तरल या ठोस पदार्थ, मांस के सूप और खाद्य पदार्थों में फैटी चीज़ें होती हैं जिन्‍हें विरेचन से पहले मरीज़ को दिया जाता है।
    • इस प्रक्रिया में इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों का चयन मरीज़ की स्थिति के अनुसार किया जाता है।
    • विरेचन के बाद व्‍यक्‍ति को शरीर में हल्‍कापन और भूख में सुधार महसूस होता है।
    • लिवर से संबंधित रोगों के इलाज में विरेचन को शोधन कर्म के रूप में जाना जाता है इसलिए कामला (पीलिया) और फैटी लिवर के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
       
  • वमन
    • वमन कर्म में अत्‍यधिक पित्त और कफ दोष को मुंह के ज़रिए शरीर से बाहर निकाला जाता है।
    • एनोरेक्सिया (असामान्य रूप से शरीर का कम वज़न व वज़न बढ़ने का अत्यधिक डर), अस्‍थमा, पेप्टिक अल्‍सर, साइनस और कफ से संबंधित रोगों के इलाज में वमन की सलाह दी जाती है।
    • वमन से पहले शरीर में कफ को बढ़ाने के लिए दूध, तैलीय खाद्य पदार्थ, पशु का मांस और वसायुक्‍त खाद्य पदार्थ दिए जाते हैं।
    • वजन घटाने, कुल कोलेस्ट्रॉल लेवल और कुल ट्राईग्‍लिसराइड्स में भी वमन लाभकारी है। इसलिए फैटी लिवर के कारण हुए मोटापे के इलाज में वमन क्रिया मदद कर सकती है। (और पढ़ें - कोलेस्ट्रॉल कितना होना चाहिए)
    • इस प्रक्रिया में यूरिया और सीरम क्रिएटिनाइन का स्‍तर घटता है एवं लिवर के कार्य में सुधार आता है।

(और पढ़ें - लिवर बढ़ने के लक्षण)

फैटी लिवर के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • गुडूची
    • गुडूची परिसंचरण और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। ये स्‍वाद में खट्टी होती है और इसमें शक्‍तिवर्द्धक गुण पाए जाते हैं जो शरीर की संपूर्ण प्रणाली को मजबूती प्रदान करते हैं। गिलोय नए ऊतकों के निर्माण में भी मदद करता है।
    • यह शरीर में प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को उत्तेजित करती है। मलेरिया के बुखार, बवासीर, त्‍वचा विकारों, पीलिया, पेचिश, कब्‍ज और गठिया के इलाज में गुडूची उपयोगी है। (और पढ़ें - मलेरिया बुखार होने पर क्या करें)
    • गुडूची को नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग में दोष की सफाई के लिए उत्तम जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। (और पढ़ें - दोष क्या है)
    • आप गुडूची को पाउडर, अर्क या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • भूमि आमलकी
    • भूमि आमलकी का असर मूत्र, पाचन और प्रजनन प्रणाली पर पड़ता है।
    • इसका इस्‍तेमाल पीलिया, मूत्रजननांगी रोग, गोनोरिया, अपच, कोलाइटिस (बड़ी आंत में सूजन), पेचिश, अल्‍सर, त्‍वचा विकारों, टॉन्सिलाइटिस और मसूड़ों से खून आने की स्थिति में किया जाता है। (और पढ़ें - पीलिया का आयुर्वेदिक उपचार)
    • भूमि आमलकी में संकुचक और भूख बढ़ाने वाले गुण होते हैं जो इसे बीमारियों के इलाज में उपयोगी बनाते हैं। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने का उपाय)
    • लिवर रोगों जैसे कि पीलिया और नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग के इलाज में खासतौर पर भूमि आमलकी की सलाह दी जाती है।
    • आप भूमि आमलकी को गोली, अर्क, पाउडर, पुल्टिस या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • कुटकी
    • कुटकी में रेचक, पित्त को साफ करने और भूख बढ़ाने वाले गुण मौजूद हैं। ये उत्‍सर्जन, पाचन, तंत्रिका, स्‍त्री प्रजनन और परिसंचरण प्रणाली पर कार्य करती है।
    • ये जड़ी बूटी त्‍वचा विकारों, धातु विषाक्तता (कुछ धातुओं का जहरीला असर), पित्त से होने वाले बुखार और छोटी आंत में होने वाली कब्‍ज एवं मलेरिया के इलाज में उपयोगी है। (और पढ़ें - कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज)
    • इसमें लिवर को सुरक्षा देने वाले गुण होते हैं जो कि इसे लिवर संबंधित रोगों जैसे कि पीलिया, वायरल हेपेटाइटिस और नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग के इलाज में उपयोगी बनाते हैं।
    • आप कटुकी को गोली, पाउडर, अर्क, रस या चिकित्‍सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • हरीतकी
    • हरीतकी का प्रभाव स्‍त्री प्रजनन, पाचन, श्‍वसन और उत्‍सर्जन प्रणाली पर पड़ता है।
    • इसमें रेचक, ऊर्जादायक, नसों को राहत देने वाले, शक्‍तिवर्द्धक और संकुचक गुण होते हैं। इसे आयु, याददाश्‍त, बुद्धि और पाचन शक्‍ति बढ़ाने के लिए जाना जाता है। (और पढ़ें - पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए क्या करें)
    • हरीतकी का इस्‍तेमाल पेट फूलने, पीलिया, ट्यूमर, रुमेटिज्‍म, अस्‍थमा, उदरशूल (स्‍वस्‍थ शिशु का लगातार रोना), बवासीर, मसूड़ों में छाले, खुजली, दस्‍त, प्‍लीहा और लकवे के इलाज में किया जाता है।
    • नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग जैसे लिवर से संबंधित रोगों को नियंत्रित करने में भी हरीतकी असरकारी है।
    • मोटापे से ग्रस्‍त लोगों पर भी हरीतकी का चिकित्‍सकीय प्रभाव पड़ता है। इसलिए मोटापे के कारण हुए फैटी लिवर के इलाज में हरीतकी उपयोगी है।
    • हरीतकी का इस्‍तेमाल पाउडर, गरारे, पेस्‍ट, काढ़े या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार कर सकते हैं।
       
  • पिप्‍पली
    • इसमें कामोत्तेजक और दर्द निवारक गुण मौजूद हैं। ये श्‍वसन, पाचन और प्रजनन प्रणाली पर असर करती है। (और पढ़ें - कामेच्छा बढ़ाने के घरेलू नुस्खे)
    • इस जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल खांसी, कफ से संबंधित विकारों, साइटिका, लकवा, अस्‍थमा, मिर्गी और कृमि (कीड़ों) संक्रमण के इलाज में किया जाता है। (और पढ़ें - बच्चों के पेट में कीड़े के लक्षण)
    • लिवर को सुरक्षा देने वाले गुणों से युक्‍त होने के कारण विभिन्‍न आयुर्वेदिक मिश्रणों में पिप्‍पली का इस्‍तेमाल किया जाता है। इसमें पेपराइन जैसे एल्‍केलॉइड्स होते हैं जो कि लिवर कोशिकाओं के पुन: निर्माण में मदद करते हैं। ये कई लिवर रोगों जैसे कि हेप्‍टोबाइलरी विकारों (यकृत, पित्ताशय की थैली, पित्त नलिकाएं और पित्त से संबंधित विकार), लिवर सिरोसिस और फैटी लिवर के इलाज में भी असरकारी है।
    • आप पिप्‍पली को तेल, अर्क, पाउडर या चिकित्‍सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

फैटी लिवर के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • वसा गुडूच्यादि कषाय
    • ये एक आयुर्वेदिक मिश्रण है जिसे त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण), नीम, गुडूची एवं आठ अन्‍य हर्बल साम्रग्रियों से तैयार किया गया है।
    • इस औषधि का इस्‍तेमाल पीलिया और एनीमिया के इलाज में किया जाता है। (और पढ़ें - एनीमिया का आयुर्वेदिक इलाज)
    • इसमें लिपिड का स्‍तर कम करने, खून बढ़ाने वाले और लिवर को सुरक्षा देने वाले गुण मौजूद हैं जो कि लिवर से संबंधित समस्‍याओं जैसे नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
       
  • पिपल्यासव
    • इस मिश्रण को एला (इलायची), विडंग, हल्‍दी, पिप्‍पली, मारीच (काली मिर्च), गुड़, जटामांसी और आमलकी जैसी 26 जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है।
    • ये बवासीर, प्‍लीहा से संबंधित विकारों, टीबी, सीलिएक रोग, एनोरेक्सिआ, थकान और पेट फूलने की समस्या के इलाज में उपयोगी है एवं भूख बढ़ाने में भी मदद करती है।
    • लिवर को सुरक्षा देने वाले गुणों के कारण इस जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग जैसे लिवर से संबंधित रोगों के इलाज में किया जाता है।
       
  • आरोग्‍यवर्धिनी रस
    • आरोग्‍यवर्धिनी रस के नाम से ही पता चलता है कि इसे शरीर को आरोग्‍य यानि स्‍वस्‍थ करने के लिए बनाया गया है।
    • ये त्रिदोष में संतुलन लाती है और कुष्‍ठ (त्‍वचा रोगों) एवं यकृत (लिवर) विकारों के संदर्भ में भी इसका उल्‍लेख किया गया है।
    • इस हर्बो-मिनरल (जड़ी बूटी एवं खनिज पदार्थों से बना) मिश्रण में पारद (पारा), गंधक, शिलाजीत, ताम्र भस्‍म (तांबे को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई), चित्रक, कटुकी, अभ्रक भस्‍म (अभ्रक को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई), गुग्‍गुल और अन्‍य सामग्रियां मौजूद हैं।
    • ये औषधि कृमि संक्रमण, अग्निमांद्य (कमजोर पाचन अग्‍नि), प्‍लीहादोष (प्‍लीहा से संबंधित विकार), मेदोरोग (मेद धातु का रोग) और प्रमेह (डायबिटीज) के इलाज में उपयोगी है।
    • आरोग्‍यवर्धिनी रस में एंटीऑक्‍सीडेंट गुण होते हैं जो कि लिवर के कार्यों में सुधार और पीलिया एवं नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग जैसी समस्‍याओं को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Medarodh Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को वजन कम करने के लिए सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।

क्‍या करें

क्‍या न करें

एक परीक्षण के दौरान नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग से ग्रस्‍त 32 मरीज़ों को दो भागों में बांटा गया। इसमें एक समूह को आरोग्‍यवर्धिनी वटी और त्रिफला गुग्‍गुल के साथ शारीरिक एवं आहार से संबंधित कुछ परहेज़ करने के लिए कहा गया। वहीं दूसरे समूह के प्रतिभागियों को सिर्फ शारीरिक एवं आहार से संबंधित कुछ परहेज़ करने के निर्देश दिए गए।

(और पढ़ें - फैटी लिवर में क्या खाएं)

अध्‍ययन में पता चला कि पहले समूह के लोगों के लिपिड प्रोफाइल टेस्‍ट, बॉडी मास इंडेक्‍स (शरीर की ऊंचाई और वजन के आधार पर शरीर में अनुमानित फैट) और लिवर के कार्य करने की जांच में दूसरे समूह की तुलना में ज्‍यादा सुधार देखा गया। अध्‍ययन में ये बात कही गई है कि औषधियों और साथ ही शारीरिक एवं आहार से संबंधित कुछ परहेज करने से नॉन एल्‍कोहोलिक फैटी लिवर रोग को प्रभावी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। 

(और पढ़ें - बॉडी मास इंडेक्स क्या है)

फैटी लिवर की आयुर्वेदिक औषधि के निम्नलिखित नुकसान हो सकते हैं:

  • विरेचन के दौरान बहुत ज्‍यादा दस्‍त के कारण गुदा से खून आने, कमजोरी, पेट दर्द, सुस्‍ती और बेहोशी हो सकती है।
  • बच्‍चों, वृद्धों और हृदय रोगों, खून की उल्‍टी करने वालों एवं किसी बीमारी के कारण कमजोर हुए व्‍यक्‍ति को वमन कर्म की सलाह नहीं दी जाती है। गर्भवती महिला और ज्‍यादा दुर्बल व्‍यक्‍ति को भी वमन नहीं लेना चाहिए। (और पढ़ें - कमजोरी कैसे दूर करें)
  • पिप्‍पली के कारण शरीर में पित्त बढ़ सकता है।
  • अधिक मात्रा में हरीतकी लेने की वजह से बहुत ज्‍यादा थकान, पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) और कमजोरी हो सकती है। 

(और पढ़ें - फैटी लिवर के घरेलू उपाय)

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Hridyas Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याओं में सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।

शरीर के प्रमुख अंगों में से एक लिवर है। लिवर के कार्यों को प्रभावित करने वाली बीमारियां पूरे शरीर के कार्यों और सेहत पर गहरा असर डालती हैं। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और मिश्रणों का इस्‍तेमाल फैटी लिवर के इलाज में किया जाता है क्‍योंकि इनमें लिवर को सुरक्षा देने वाले गुण मौजूद होते हैं जो न सिर्फ लिवर रोगों से बचाव एवं उन्‍हें नियंत्रित करते हैं बल्कि लिवर के सामान्‍य कार्यों में भी सुधार लाते हैं।

पंचकर्म थेरेपी में से एक विरेचन द्वारा शरीर से खराब वात दोष को साफ किया जाता है जो कि फैटी लिवर का प्रमुख कारण है। आहार संबंधित अच्‍छी आदतों को अपनाकर एवं रोज़ व्‍यायाम कर फैटी लिवर को सही तरह से नियं‍त्रित तथा संपूर्ण सेहत में सुधार लाया जा सकता है। 

(और पढ़ें - लिवर को साफ करने वाले जूस)

Dr. Komal Modha

Dr. Komal Modha

आयुर्वेद
15 वर्षों का अनुभव

Dr. Pooja Kohli

Dr. Pooja Kohli

आयुर्वेद
10 वर्षों का अनुभव

Dr. Sunil Kaushik

Dr. Sunil Kaushik

आयुर्वेद
10 वर्षों का अनुभव

Dr. Asha Shah

Dr. Asha Shah

आयुर्वेद
3 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. Better health channel. Department of Health and Human Services [internet]. State government of Victoria; Liver - fatty liver disease
  2. Remya. E. Non Alcoholic Fatty Liver Disease- An Ayurvedic Pragmatic Approach with Its Management. International Journal of Ayurvedic and Herbal Medicine 7:6 (2017) 2948–2955
  3. Hindu Janajagruti Samiti. Blood and liver disorders. Protection of the Nation and Uniting Hindus. [internet]
  4. Bharti Gupta et al. Physiological and biochemical changes with Vamana procedure. Ayu. 2012 Jul-Sep; 33(3): 348–355. PMID: 23723640
  5. Sapna N. Shetty. A study of standardized extracts of Picrorhiza kurroa Royle ex Benth in experimental nonalcoholic fatty liver disease. J Ayurveda Integr Med. 2010 Jul-Sep; 1(3): 203–210. PMID: 21547049
  6. Purnendu Panda et al. PIPPALI: A POTENT DRUG USED FOR HEPATIC Disorder. Central Research Institute for Hepatobiliary Disorders; Odisha
  7. A Govt of Kerala. Amruthotharam Kashayam. oushadhi; [Internet]
ऐप पर पढ़ें