इन्सानों की त्वचा उनमें भावी हृदय संबंधी समस्याओं का पहले ही पता लगाने में मददगार हो सकती है। शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम की मानें तो एक दुर्लभ स्किन डिसऑर्डर की वजह बनने वाले एक विशेष वंशाणु में होने वाले बदलाव गंभीर हृदय रोग का भी कारण बन सकते हैं। इस नई जानकारी से जुड़े अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं ने कहा है कि जेनेटिक विश्लेषण की मदद से स्किन भावी मेडिकल कंडीशनंस के बारे में अनुमान लगाने में मदद कर सकती है। इस जानकारी पर अमेरिका के थॉमस जेफर्सन यूनिवर्सिटी यूनिवर्सिटी में डर्मिटोलॉजी एंड क्यूटेनियस बायोलॉजी के प्रोफेसर और प्रमुख शोधकर्ता जोनी यूटो ने कहा है, 'नवजात शिशुओं की स्किन की जांच कर हम आगे चलकर होने वाले किसी घातक हृदय रोग का अनुमान लगा सकते हैं। यह बेहतरीन भावी सूचक मेडिसिन की तरह काम करती है।' यहां बता दें कि इस जानकारी को अध्ययन समेत मेडिकल पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।

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जाने-माने स्किन डिजीज एक्सपर्ट के रूप में डॉ. यूटो बीते तीन दशकों से पारिवारिक रूप से होने वाले जेनेटिक स्किन डिसऑर्डर से जुड़े म्यूटेशन्स का पता लगाने में लगे हुए हैं। बीते पांच सालों में उन्होंने दुनियाभर में करीब 1,800 परिवारों में इस प्रकार के म्यूटेशन का विश्लेषण किया है, जो एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (ईबी) जैसी स्किन से जुड़ी समस्याओं के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार होते हैं। नए रिसर्च पब्लिकेश में लेखकों ने बताया कि वैज्ञानिकों ने ईबी के 360 से ज्यादा मरीजों के डीएनए की जांच की। इनमें ब्लड सैंपलों से आइसोलेट किए गए डीएनए का विशेष विश्लेषण किया गया था, जो 21 जीन्स के अलग-अलग सीक्वेंस वैरिएंड से संबद्ध था। ये वंशाणु उन म्यूटेशन को एक प्रकार का शरण देने के लिए जाने जाते हैं, जो ईबी का कारण बनते हैं। इस जांच में पता चला कि दो मरीजों के एक जीन जेयूपी में मिला म्यूटेशन बिल्कुल एक जैसा था।

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रिपोर्ट में बताया गया है कि इन मरीजों में स्किन कंडीशन से जुड़े लक्षण पैदा होने के बाद शुरुआती शिशु अवस्था में ही दिखे थे। इनमें त्वचा की कमजोरी, हथेली पर त्वचा का मोटा होना और पैरों के तलवों का मोटा होना और बाल झड़ने जैसे लक्षण शामिल थे, जो बाद में आंखों की पलकों और भौहों तक पहुंच गए थे। इनके अलावा, ढाई साल के एक बच्चे में केवल स्किन एनोमलीज (विषमताओं) का भी पता चला। वहीं, 22 साल की एक महिला में एआरवीसी (एरिदमोजेनिक राइट वेंट्रिक्यूलर कार्डियोमायोपैथी) नाम की हार्ट कंडीशन का भी पता चला है। शोधकर्ताओं का कहना है कि एआरवीसी एक गंभीर बीमारी है, जिसमें हार्ट ट्रांसप्लांट की नौबत आ सकती है और मरीज की मौत भी हो सकती है।

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जांच के समय शोधकर्ताओं को ढाई साल के बच्चे में हृदय रोग की समस्याएं नहीं मिलीं, लेकिन उसके जेनेटिक परिणामों से पता चला कि उसमें आगे चलकर ये लक्षण पैदा होंगे। इस पर डॉ. यूटो ने कहा है, 'इसका मतलब है कि जन्म के समय ईबी के मरीजों का म्यूटेशन एनालिसिस कर आप यह जान सकते हैं कि उनमें आगे चलकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होंगी या नहीं। हृदय रोगों के मद्देनजर इन मरीजों की निगरानी किए जाने की जरूरत है।' वहीं, स्किन के जरिये बीमारियों का पता लगाने से जुड़ी अपनी कोशिशों को लेकर यूटो ने कहा, 'हम ऐसे नए वंशाणुओं का पता लगा रहे हैं जो ईबी या इक्थियोसिस जैसी स्किन डिजीज के लिए जिम्मेदार होते हैं। मरीजों के लक्षण और उनके पारिवारिक इतिहास के बारे में पता कर हमने पूरी तरह अप्रत्याशित तथ्यों पर से पर्दा उठाया है। इन अध्ययन से पता चलता है कि कैसे हमारी त्वचा गंभीर मेडिकल प्रॉब्लम्स का अनुमान लगाने में मदद कर सकती है।'

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