लॉक्ड-इन सिंड्रोम - Locked In Syndrome in Hindi

Dr. Nabi Darya Vali (AIIMS)MBBS

October 08, 2020

November 05, 2020

लॉक्ड-इन सिंड्रोम
लॉक्ड-इन सिंड्रोम

लॉक्ड-इन सिंड्रोम एक दुर्लभ स्थिति है, जिसमें आंखों को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियों को छोड़कर शरीर पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो जाता है। इस स्थिति में रोगी जागृत और सतर्क रहता है, इतना ही नहीं उसका मस्तिष्क भी ठीक तरीके से कार्य कर रहा होता है। हालांकि, रोगी न तो किसी प्रकार की गतिविधि कर सकता है और न ही बोलने में समर्थ होता है। रोगी के लिए आंखों से इशारे करके ही अपनी बातों को बता पाना एकमात्र रास्ता होता है।

विशेषज्ञों के मुताबिक भले ही रोगी का शरीर किसी प्रकार की गतिविधि में समर्थ नहीं होता है फिर भी उसकी संज्ञानात्मक कार्य शक्ति अप्रभावित ही रहती है। लॉक-इन सिंड्रोम, मुख्यरूप से पोन्स के क्षतिग्रस्त होने के कारण होता है। पोन्स ब्रेनस्टेम का एक हिस्सा है, जिसमें तंत्रिका फाइबर होते हैं जो मस्तिष्क के अन्य हिस्सों में सूचनाओं का संचार करते हैं। एमआरआई और आंखों की गतिवि​धियों के माध्यम से लॉक्ड-इन सिंड्रोम की समस्या का पता लगाया जा सकता है। लॉक्ड-इन सिंड्रोम के लिए कोई भी​ विशेष इलाज मौजूद नहीं है। सहायक देखभाल के माध्यम से रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने की कोशिश की जाती है।

इस लेख में हम लॉक्ड-इन सिंड्रोम के लक्षण, कारण और इसके इलाज के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

लॉक्ड-इन सिंड्रोम के लक्षण - Locked In Syndrome symptoms in Hindi

लॉक्ड-इन सिंड्रोम के रोगी संज्ञानात्मक कार्यों को ठीक ढंग से कर सकते हैं। इसके अलावा सामान्य लोगों की तरह सोने-जागने और आंखों को खोलने की प्रक्रिया में भी उन्हें कोई समस्या नहीं होती है। लॉक्ड-इन सिंड्रोम के रोगियों को निम्न प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं।

लॉक्ड-इन सिंड्रोम के रोगियों को आंखों की गतिविधियों को करने में कोई समस्या नहीं होती है। आंखों को खोलने-बंद करने और पलकों को झपकाने के अलाव उनके पास संचार का और दूसरा कोई माध्यम नहीं होता है। रोगी पूरी तरह से सतर्क होने के साथ चीजों को समझ सकते हैं। उनके लिए बात करना या अन्य कोई गतिविधि करना कठिन होता है।

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लॉक्ड-इन सिंड्रोम का कारण - Locked In Syndrome causes in Hindi

लॉक्ड-इन सिंड्रोम एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल विकार है जो पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करता है। इसके अलावा यह समस्या बच्चों सहित किसी भी उम्र के व्यक्तियों को हो सकती है। हालांकि, अक्सर यह समस्या उन वयस्कों में देखी जाती है जिनको ब्रेन स्ट्रोक या रक्तस्राव का जोखिम हो।

लॉक्ड-इन सिंड्रोम, मुख्यरूप से ब्रेनस्टेम के पोन्स नामक हिस्से को क्षति पहुंचने के कारण होता है। लॉक-इन सिंड्रोम में, मस्तिष्क से मेरुदंड के माध्यम से शरीर की मांसपेशियों तक चलने वाले सभी मोटर फाइबर में रुकावट आ जाती है। इसके अलावा मस्तिष्क में बोलने और चेहरे को नियंत्रित्त करने वाले हिस्से को क्षति पहुंचने के कारण यह समस्या उत्पन्न हो सकती है।

ज्यादातर मामलों में रक्त के प्रवाह में कमी (इंफ्राक्ट) या रक्तस्राव के कारण पोन्स को क्षति पहुंचती है। यह स्थिति किसी चोट के कारण हो सकती है। वहीं कई अलग-अलग स्थितियों जैसे रक्त का थक्का बनने या स्ट्रोक के कारण रक्त प्रवाह में कमी आ सकती है। इसके अलावा मस्तिष्क के किसी हिस्सों में संक्रमण, ट्यूमर, प्रोटेक्टिव इन्सुलेशन की क्षति (मेलिन), नसों में सूजन (पॉलीमियोसाइटिस) और एमयोट्रोफिक लेट्रल स्केलरोसिस (एएलएस) जैसे विकारोंं के कारण भी लॉक्ड-इन सिंड्रोम का खतरा रहता है।

लॉक्ड-इन सिंड्रोम का निदान - Diagnosis of Locked In Syndrome in Hindi

आमतौर पर लॉक-इन सिंड्रोम के निदान के लिए कई तरह के परीक्षणों की आवश्यकता होती है। मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) के माध्यम से पोन्स को हुई क्षति जबकि मैग्नेटिक रेज़ोनेंस एंजियोग्राफी की मदद से मस्तिष्क की धमनियों में रक्त के थक्का बनने की स्थिति का पता लगाया जाता है। इन परीक्षणों के माध्यम से मस्तिष्क के अन्य हिस्सों में भी किसी प्रकार की क्षति का पता लगाया जा सकता है। एमआरआई टेस्ट के दौरान चुंबकीय क्षेत्र और रेडियो तरंगों का उपयोग करते हुए अंगों की क्रॉस सेक्शन छवि प्राप्त की जाती है।

इसके अलावा इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी) परीक्षण के माध्यम से मस्तिष्क की विद्युत गतिविधि को मापा जाता है। मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को होने वाले नुकसान का पता लगाने के लिए इलेक्ट्रोमोग्राफी टेस्ट किया जाता है।

लॉक्ड-इन सिंड्रोम का इलाज - Treatment of Locked In Syndrome in Hindi

लॉक-इन सिंड्रोम के लिए कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। सहायक उपचार पद्धतियों को प्रयोग में लाकर स्थिति और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने का प्रयास किया जा सकता है। इसके अलावा कई प्रकार की थेरपी विधियों को प्रयोग में लाकर भी रोगी की स्थिति को सुधारने का प्रयास किया जा सकता है। रोगी की स्थिति में थोड़ा सुधार लाने के लिए स्पीच थेरपी मददगार हो सकती है। स्पीच थेरेपिस्ट आंखों के झपकने या अन्य इशारों के माध्यम से रोगी को अपनी बातें समझाने के बारे में बता सकते हैं।

तकनीक ने ऐसे रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास किया है। लॉक-इन सिंड्रोम वाले रोगी आंखों के इशारों और अन्य साधनों द्वारा नियंत्रित कंप्यूटर टर्मिनल का उपयोग करके इंटरनेट के माध्यम से एक-दूसरे के साथ संवाद करते हैं। इसके अलावा ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस ने भी ऐसे रोगियों के संवाद करने की समस्या को दूर करने का प्रयास किया है।

इन सबके अलावा रोगी के लिए सहायक देखभाल बहुत आवश्यक होती है।

  • अच्छा पोषण प्रदान करना
  • अंगों के संकुचन को रोकने के लिए फिजिकल थेरपी।
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