वैसे लोग जिन्होंने अपने जीवन में कभी एक सिगरेट तक नहीं पी होती है, उन्हें भी फेफड़ों का कैंसर हो सकता है। अब तक दुनियाभर में तेजी से बढ़ते वायु प्रदूषण या सेकंड हैंड स्मोकिंग को इसके लिए सबसे अहम जोखिम कारक माना जा रहा था। लेकिन अब एक नई रिसर्च का सुझाव है हमारे मुंह में मौजूद खास तरह के बैक्टीरिया इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

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नॉन स्मोकर्स में लंग कैंसर का खतरा मुंह के बैक्टीरिया से जुड़ा है
यह अपने तरह की पहली स्टडी है जिसे साइंटिफिक जर्नल थोरैक्स में प्रकाशित किया गया है। इसमें बताया गया है कि नॉन स्मोकर्स यानी कभी भी धूम्रपान न करने वालों में लंग कैंसर के खतरे का लिंक मुंह में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के प्रकार और प्रचूरता के साथ है। स्टडी के नतीजे बताते हैं कि मुंह में पाए जाने वाले किसी खास तरह के बैक्टीरिया की बहुत अधिक संख्या, लंग कैंसर के बढ़े हुए जोखिम से जुड़ी हो सकती है।

लंग कैंसर का 4 में से 1 मामला धूम्रपान न करने वाले व्यक्ति से जुड़ा है
अनुसंधानकर्ताओं की मानें तो लंग कैंसर का हर 4 में से 1 मामला नॉन स्मोकर्स यानी धूम्रपान न करने वालों में देखने को मिलता है। अब तक तंबाकू का सेकंड हैंड धुंआ (कोई और धूम्रपान करे और उसका धुंआ आपके शरीर के अंदर जाए) रेडियोऐक्टिव गैस का एक्सपोजर, वायु प्रदूषण और फेफड़ों के कैंसर के पारिवारिक इतिहास को इसके लिए सबसे अहम जोखिम कारक माना जा रहा था, लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि ये फैक्टर्स इन आंकड़ों को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं। 

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मुंह में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का प्रकार और मात्रा कई अलग-अलग तरह के कैंसर के बढ़े हुए जोखिम से जुड़ा हुआ है जिसमें- खाने की नली का कैंसर, सिर और गर्दन का कैंसर और अग्नाशय का कैंसर शामिल हैं। और इसलिए अनुसंधानकर्ता ये जानना चाहते थे कि क्या यह संबंध फेफड़ों के कैंसर के लिए भी सही साबित हो सकता है क्योंकि मुंह, उन सभी बैक्टीरिया का एंट्री पॉइंट है जो फेफड़ों तक पहुंचते हैं।

2 अलग-अलग स्टडी ग्रुप की जांच की गई
इसके लिए अनुसंधानकर्ताओं ने 2 अलग-अलग स्टडी ग्रुप की जांच की- शंघाई वीमेन्स हेल्थ स्टडी और शंघाई मेन्स हेल्थ स्टडी जिसमें 1 लाख 35 हजार से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया था और साल 1996 से 2006 के बीच हर 2-3 साल के अंतराल पर सभी लोगों की सेहत की निगरानी की गई। इस दौरान अनुसंधानकर्ताओं ने स्टडी ग्रुप में सिर्फ उन्हीं लोगों की निगरानी की जो जीवनभर नॉन-स्मोकर थे और जिन्हें स्टडी के शुरू होने से लेकर 2 साल तक कोई कैंसर नहीं था। स्टडी में नामांकन के वक्त सभी प्रतिभागियों ने कुल्ला किया और उस वक्त मुंह में मौजूद बैक्टीरिया के प्रोफाइल की जानकारी दी। साथ ही साथ अपनी जीवनशैली, डाइट, मेडिकल हिस्ट्री, वर्कप्लेस और वातावरण से जुड़े फैक्टर्स की भी जानकारी दी। ये सभी वे कारण थे जो बीमारी के खतरे को प्रभावित कर सकते थे।

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90 महिलाओं और 24 पुरुषों को हुआ लंग कैंसर
स्टडी के दौरान औसतन 7 साल के समय में 90 महिलाओं और 24 पुरुषों को लंग कैंसर हुआ। इन मामलों को एक समान उम्र और लिंग वाले 114 नॉन स्मोकर्स के साथ मैच किया गया। इन लोगों ने भी पहले अपने मुंह के कुल्ले का सैंपल दे रखा था। इस तुलनात्मक ग्रुप में किसी को भी लंग कैंसर नहीं था, लेकिन इनका शैक्षणिक लेवल और लंग कैंसर का पारिवारिक इतिहास एक समान था। कुल्ले के जरिए मुंह के बैक्टीरिया के जो 2 सैंपल लिए गए- एक नॉन स्मोकर्स के जिन्हें लंग कैंसर था और दूसरा कंट्रोल ग्रुप वाले नॉन स्मोकर्स जिन्हें लंग कैंसर नहीं था- उसमें यह देखने को मिला कि दोनों ग्रुप के सूक्ष्मजीवों के बीच काफी अंतर था। जब बात बैक्टीरिया की आती है तो इसमें 2 फैक्टर्स सबसे उपयुक्त थे- बैक्टीरिया की प्रकृति और उसकी विविधता।

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बैक्टीरियोडाइटिस का संबंध लंग कैंसर के कम जोखिम से है
शरीर में अलग-अलग प्रकार और प्रजाति के बैक्टीरिया की उच्च मात्रा के होने का संबंध फेफड़ों का कैंसर विकसित होने के कम जोखिम से जुड़ा था। बैक्टीरिया के विशिष्ट प्रजाति की बात करें तो- बैक्टीरियोडाइटिस और स्पाइरोकेट्स- इन 2 प्रजाति के बैक्टीरिया के मौजूद रहने का संबंध लंग कैंसर के कम जोखिम से था। बैक्टीरियोडीटिस सामान्य रूप से पाचन मार्ग (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट) में पाया जाता है और स्पाइरोकेट्स एक तरह का घुमावदार आकार का बैक्टीरिया है। तो वहीं, जिन लोगों के मुंह में फर्मिक्यूट्स प्रजाति का बैक्टीरिया अधिक था उसका संबंध लंग कैंसर के अधिक जोखिम से था। 

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यह एक ऑब्जर्वेशनल (निगरानी या पर्यवेक्षण के आधार पर की गई) स्टडी थी इसलिए इसमें मुंह के बैक्टीरिया की वजह से लंग कैंसर होने के कारण को स्थापित नहीं किया गया है और स्टडी के शोधकर्ता इसमें कई तरह की रुकावटों को भी स्वीकार करते हैं। इस बारे में बात करते हुए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के डॉ डेविड क्रिस्टियानी कहते हैं कि मुंह में मौजूद बैक्टीरिया क्रॉनिक इन्फ्लामेशन को उत्तेजित कर सकता है, कोशिकाओं की तीव्र वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है और कोशिकाओं की मृत्यु को रोक सकता है, डीएनए में होने वाले बदलाव को प्रोत्साहित कर सकता है और कैंसर जीन्स व उन्हें होने वाली खून की सप्लाई को भी शुरू कर सकता है। ये सारी बातें स्टडी के नतीजों को समझाने में मदद करती हैं।

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