स्पेन के शोधकर्ताओं ने लंग कैंसर (फेफड़ों का कैंसर) को बढ़ाने और इसके इलाज में बाधा पैदा करने वाले एक नॉन-कोडिंग आरएनए मॉलिक्यूल का पता लगाया है। यह महत्वपूर्ण खोज जानी-मानी मेडिकल पत्रिका जर्नल ऑफ सेल बायोलॉजी में प्रकाशित हुई है। पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, इस आरएनए मॉलिक्यूल को टार्गेट करके लंग कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली इम्यूनोथेरेपी के प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है। फिलहाल ये थेरेपी फेफड़ों के कैंसर के केवल 20 प्रतिशत मरीजों पर ही कामयाब रहती हैं। स्पेन के वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने जिस मॉलिक्यूल को आइडेंटिफाई किया है, उसे टार्गेट करके इस तरह की कैंसर थेरेपी की सफलता की दर बढ़ाई जा सकती है।

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दरअसल, कैंसरकारी कोशिकाओं में कई तरह के जेनेटिक बदलाव (म्यूटेशन) होते हैं, जिससे कैंसर को बढ़ने और बने रहने में मदद मिलती है। इस बीमारी के इलाज के संबंध में वैज्ञानिकों ने आमतौर पर वंशाणुओं और आरएनए आधारित मॉलिक्यूल्स में होने वाले म्यूटेशन्स पर ही फोकस किया है। हालांकि कई प्रकार के म्यूटेशन जीनोम (वंशाणुओं का समूह) के दूसरे हिस्सों को भी प्रभावित करते हैं। ये हिस्से असल में इस तरह के डीएनए होते हैं, जो ऐसे आरएनए मॉलिक्यूल पैदा करते हैं, जिनसे प्रोटीन बढ़ाने में कोई मदद नहीं मिलती। इन्हीं को नॉन-कोडिंग आरएनए मॉलिक्यूल कहा जाता है। कैंसर के संंबंध में इस तरह के मॉलिक्यूल्स की भूमिका की विस्तृत जानकारी नहीं है।

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लेकिन स्पेन की नवारा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस ओर ध्यान दिया है। यहां के प्रोफेसर मेत हुआर्ते और उनके सहयोगियों ने 7,000 से ज्यादा ट्यूमरों का विश्लेषण किया है। इसमें उन्होंने पाया है कि कई कैंसरकारी कोशिकाओं में नॉन-कोडिंग आरएनए आधारित एक लंबी जीन एनकोडिंग होती है। शोधकर्ताओं ने इसे 'एलएनसीआरएनए' (lncRNA) नाम दिया है और जाना कि यह एएलएएल-1 नामक लंग कैंसर से जुड़ा है। चूहों पर किए गए परीक्षणों में प्रोफेसर हुआर्ते और उनकी टीम ने पाया है कि एएलएएल-1 आरएनए को कम करके  कैंसरकारी कोशिकाओं को बढ़ने से रोका जा सकता है और ट्यूमर की ग्रोथ रोकी जा सकती है। इस बारे में प्रोफेसर हुआर्ते कहते हैं, 'हमारे डेटा से संकेत मिलता है कि एएलएएल-1 एक कार्यात्मक एलएनसीआरएनए है, जो लंग कैंसर को बढ़ाने का काम करता है।'

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क्या है फेफड़ों का कैंसर?
फेफड़ों की कोशिकाओं का अनियंत्रित होकर बढ़ना फेफड़ों के कैंसर का कारण होता है। ये अनियंत्रित कोशिकाएं बढ़ते-बढ़ते ट्यूमर का निर्माण करती हैं। दुनियाभर में कैंसर से होने वाली कई मौतें लंग कैंसर के कारण होती हैं। माना जाता है कि ज्यादातर मामलों में फेफड़े का कैंसर सिगरेट पीने की वजह से होता है। बताया जाता है कि कार्सिनोजेन्स सिगरेट के धुएं में पाए जाने वाले रसायन लंग कैंसर की वजह बनते हैं। हालांकि इन दिनों उन लोगों में भी लंग कैंसर देखने को मिल रहा है, जिन्होंने कभी भी धूम्रपान नहीं किया है। खांसी को लंग कैंसर का सबसे सामान्य लक्षण माना जाता है, जो धीरे-धीरे गंभीर होती जाती है और ठीक नहीं होती। इसके अलावा, निमोनिया, ब्रांगकाइटिस, वजन कम होना, भूख में कमी, थकान, सांस लेने में तकलीफ, आवाज का बदलना आदि भी लंग कैंसर के लक्षणों में गिने जाते हैं।

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