अमेरिका स्थित कोलंबिया इंजीनियरिंग एंड वैंडरबिल्ड यूनिवर्सिटी (सीईवीयू) करे वैज्ञानिकों ने फेफड़ों के ट्रांसप्लांटेशन के लिए एक ऐसा क्रॉस-सर्कुलेशन सिस्टम तैयार किया है, जिसकी मदद से बुरी तरह क्षतिग्रस्त डोनर लंग्स (यानी किसी और व्यक्ति द्वारा दान किए गए फेफड़े) को ठीक करके के कई लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है।

श्वसन संबंधी बीमारियों को दुनियाभर में हर साल होने वाली मौतों की तीसरी सबसे बड़ी वजह बताया जाता है। मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, जिन लोगों की सांस की बीमारी अंतिम स्टेज पर पहुंच जाती है, उनके लिए फेफड़ों का ट्रांसप्लांटेशन जीवित रहने का एकमात्र उपाय है। लेकिन यह काम आसान नहीं है। इसके कई कारण हैं। एक तो यह कि मेडिकल क्षेत्र में तकनीकी रूप से काफी विकास होने के बाद भी स्वस्थ फेफड़ों वाले डोनर (दानकर्ता) मिलना आसान नहीं है। वहीं, जो लोग अपने फेफड़े दान करते भी है, वे गंभीर अथवा फिर से होने वाली इंजरियों के चलते ट्रांसप्लांट के लिए इस्तेमाल नहीं किए जा पाते।

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इस दूसरी समस्या को हल करने के लिए डोनर के फेफड़ों को शरीर के बाहर रखते हुए कुछ हद तक ठीक करने की कोशिश की जाती है। इस तकनीक या मेथड को एक्स वीवो लंग पर्फ्यूजन (ईवीएलपी) कहा जाता है। हालांकि इस काम के लिए डॉक्टरों के पास केवल छह से आठ घंटों का ही समय होता है। यह अवधि ज्यादा गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त फेफड़ों को रिकवर करने के लिए काफी कम है। लेकिन अब एक बेहतर विकल्प सामने आया है।

दरअसल, कोलंबिया इंजीनियरिंग एंड वैंडरबिल्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने डेमोन्स्ट्रेशन कर के दिखाया है कि कैसे एक विशेष सिस्टम की मदद से गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त फेफड़ों को शरीर के बाहर रखकर ठीक या रिपेयर किया जा सकता है। इन वैज्ञानिकों ने एक जानवर और एक डोनर लंग के बीच खून का क्रास-सर्कुलेशन कर इस सिस्टम को कारगर साबित करके दिखाया है। रिपोर्ट के मुताबिक, यह इतिहास में पहली बार है जब एक ऐसे क्षतिग्रस्त फेफड़े को 24 घंटों के दौरान सफलतापूर्वक ठीक कर दिया गया है, जिसे पारंपरिक ईवीएलपी मेथड से रिकवर नहीं किया जा सका था। इस शोध से जुड़ा अध्ययन नेचर मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है।

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इस कामयाब प्रयोग का नेतृत्व सीईवीयू के प्रोफेसर गोर्डाना वुनजक-नोवाकोविच ने किया। उनके साथ वैंडरबिल्ट लंग इंस्टीट्यूट के सर्जिकल डायरेक्टर मैथ्यू बचेटा भी थे। वहीं, शोध के अध्ययन से जुड़े लेखकों और यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अहमद हुसैन और जॉन ओनिल का कहना है कि शोधकर्ता लंबे समय के दौरान तैयार किए गए इंट्रिंसिक बायोलॉजिकल रिपेयर मकैनिज्म (आंतरिक जैविक जीर्णोद्धार प्रक्रिया) की मदद से ऐसे फेफड़ों को रिकवर करने में कामयाब रहे, जिन्हें शायद बचाया नहीं जा सकता था।

पिछले आठ सालों से भी ज्यादा समय से ये शोधकर्ता ऑर्गेन ट्रांसप्लांटेशन के लिए भटक रहे मरीजों को ज्यादा से ज्यादा लंग्स मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं। इस प्रयास के तहत साल 2017 में इन्होंने क्रॉस-सर्कुलेशन सपोर्ट सिस्टम की बदौलत एक पूरे फेफड़ों को शरीर के बाहर चलाकर इस सिस्टम की क्षमता का नमूना पेश किया था। फिर 2019 में सूअरों के क्षतिग्रस्त फेफड़ों को उनके शरीर के बाहर रीजनरेट कर क्रॉस-सर्कुलेशन सिस्टम की क्षमता का एक और उदाहरण पेश किया गया था। वहीं, इसी साल वैज्ञानिकों ने क्रॉस-सर्कुलेशन सपोर्ट सिस्टम को चार दिन तक चला कर इसकी एक और क्षमता को उजागर किया था, जो अपनेआप में अभूतपूर्व है।

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और अब इसी तकनीक की मदद से ऐसे फेफड़ों को भी ठीक करके दिखाया गया है, जिन्हें ट्रांसप्लांटेशन के योग्य नहीं माना गया था। शोधकर्ताओं के मुताबिक, उन्होंने जिन फेफड़ों को ठीक किया है, उनमें सूजन काफी ज्यादा थी और तरल पदार्थ भर गया था। यूनिवर्सिटी लाने से पहले कई मेडिकल संस्थानों ने इस फेफड़े को ट्रांसप्लांट करने से इनकार कर दिया था। आखिरकार इसे शोध के लिए चुना गया। इसी दौरान ये लंग्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को मिले। तब तक यह फेफड़ा कोल्ड इस्कीमिया यानी स्थानिक अरक्तता की स्थिति से दो बार गुजर चुका था। इस कंडीशन में शरीर के किसी भाग के ऊतकों में खून की सप्लाई कम हो जाती है। इसके चलते कोशिकाओं में ऑक्सीजन और ग्लूकोज की कमी हो जाती है। लेकिन इसके बावजूद वैज्ञानिक अपने क्रॉस सर्कुलेशन सिस्टम की मदद से इसे रिकवर करने में कामयाब रहे। हालांकि इसे क्लिनिकल रिएलिटी में बदलने से पहले वे और आगे के स्तर पर शोध करने की वकालत करते हैं।

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