केरल के कन्नूर जिले में मलेरिया के एक दुर्लभ प्रकार से एक जवान के बीमार होने का पता चला है। खबर के मुताबिक, यह जवान इसी साल सूडान से वापस लौटा था। वहां शांति बनाए रखने के लिए भारत की ओर से चलाए जा रहे सैन्य ऑपरेशन के तहत करीब एक साल तक उसकी तैनाती की गई थी। डॉक्टरों का अनुमान है कि स्वदेश लौटने से पहले जवान दुर्लभ मलेरिया 'प्लैसमोडियम ओवले' की चपेट में आया होगा। यह बीमारी एनफोलीज नाम के मादा मच्छर के काटने के कारण होती है। खबर के मुताबिक, पीड़ित में बीमारी के लक्षण भारत वापस आने के काफी समय बाद दिखाई दिए हैं। हालांकि इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि जवान अब रिकवर हो चुका है।

भारत में प्लैसमोडियम ओवले का केस सामने आना दुर्लभ बताया जा रहा है। यहां सामान्यतः दूसरे प्रकार के मलेरिया के मामले देखने को मिलते हैं। इनमें प्लैसमोडियम फाल्सिपरुम और प्लैसमोडियम वाइवैक्स जैसे मलेरिया शामिल हैं, जो लोगों को बीमार करते हैं और जिनके परिणाम ज्यादा गंभीर माने जाते हैं। जवान के जरिये सूडान से भारत आया मलेरिया यहां के लोगों के लिए कितना घातक है, यह अभी देखना होगा। लेकिन जानकारों की मानें तो वहां पीड़ित जवान की तैनाती के दौरान इस बीमारी ने क्षेत्र विशेष में महामारी का रूप ले लिया था।

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इस मामले की जानकारी देते हुए कन्नूर के जिला अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. राजीवन ने बताया, 'जवान इस साल जनवरी में सूडान से भारत लौटा था और दिल्ली में रह रहा था। एक महीना पहले वह केरल आया था। इसके कुछ ही समय बाद उसमें बुखार और अन्य लक्षण दिखने लगे। हमने उसका कोविड-19 टेस्ट किया था, जो नेगेटिव निकला।' डॉ. राजीवन ने आगे कहा, 'चूंकि वह दिल्ली से आया था, इसलिए हमने उसका परीक्षण करने का फैसला किया। इसमें हमने उसकी लाल रक्त कोशिका के नमूने में रोगाणु देखे हैं। केरल में हम सामान्यतः प्लैसमोडियम फाल्सिपरुम और प्लैसमोडियम वाइवैक्स जैसे मलेरिया के मामले देखते हैं। इसलिए हमने इस मामले में रोगाणु के स्ट्रेन को डिटेक्ट करने के लिए पीड़ित का रैपिड एंटीजन टेस्ट किया। लेकिन दोनों ही प्रकार के मलेरिया डिटेक्ट नहीं हुए। जब हमने आगे और जांच की तो प्लैसमोडियम ओवले का पता चला।'

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रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. राजीवन ने कहा है कि यह संभव है कि मच्छर के काटने के बाद कोई रोगाणु लिवर में लंबे समय तक बना रहे। उनकी मानें तो ऐसा सालों तक भी चल सकता है और बाद में जाकर पीड़ित में बीमारी (मलेरिया) के लक्षण दिखाई दें। डॉक्टर का अनुमान है कि हो सकता है भारतीय जवान के मामले में ऐसा ही हुआ हो। यानी वह संक्रमित सूडान में हुआ, लेकिन भारत वापस आने तक रोगाणु उसके शरीर में बना रहा और बाद में जाकर मरीज में बीमारी के लक्षण दिखाई दिए।

उधर, मामले का पता चलने के बाद केरल के इंटीग्रेटिड डिजीजेज सर्विलेंस प्रोग्राम के तहत तमाम प्रोटोकॉल का पालन करते हुए मरीज का इलाज शुरू किया गया और बीमारी को और फैलने से रोकने के प्रयास किए गए। इस बारे में केरल की स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने बयान जारी कर बताया कि मरीज में दुर्लभ मलेरिया होने का समय रहते पता लगाकर उसका तुरंत इलाज शुरू किया गया, जिससे बीमारी फैलने से रुक गई। यहां बता दें कि मलेरिया का इन्सानों से इन्सानों में फैलना असंभव होता है, लेकिन मच्छरों के जरिये यह कई लोगों को बीमार कर सकता है।

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वहीं, डॉ. राजीवन ने बताया कि मरीज केरल आने के बाद से ही क्वारंटीन में था। इससे वह दूसरों के संपर्क में नहीं आया, जिससे बीमारी और लोगों में नहीं फैली। उन्होंने कहा कि ऐसा होने की संभावना बहुत ही कम है। चूंकि मरीज का डायग्नॉसिस जल्दी हो गया था, इसलिए उसका सफल इलाज कर उसे डिस्चार्ज भी कर दिया गया है। वह अब पूरी तरह रिकवर हो चुका है।

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