ब्रिटेन में करीब दो दशक पहले पैर और मुंह की बीमारी (एफएमडी) की वजह से लाखों दुर्बल मवेशियों को मारना पड़ा था। तब इसके चलते ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को अरबों का नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन अब इसी बीमारी से सबसे घातक अग्नाशय के कैंसर (पैनक्रिएटिक कैंसर) का इलाज ढूंढने का रास्ता खुला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एफएमडी जिस प्रकार से मवेशियों को संक्रमित करता है, उसी में कहीं कैंसर के इलाज का रास्ता छिपा है।

दरअसल, क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में हुए कैंसर के इलाज से जुड़े एक अध्ययन से यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक, मुंह और पैर की बीमारी (एफएमडी) के वायरस में एक ऐसा प्रोटीन होता है जो सामान्य कैंसर से लेकर सबसे जानलेवा अग्नाशय के कैंसर के ट्यूमर सेल्स को मार सकता है। मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि अगर वैज्ञानिक इससे संबंधित प्रयोगों में पूरी तरह सफल रहते हैं तो कैंसर के इलाज के लिए नई तरह के उपचारों का रास्ता खुल सकता है। बता दें कि इस समय हर 20 कैंसर मरीजों में से केवल एक ही व्यक्ति बीमारी की पहचान होने के पांच साल बाद जीवित बच पाता है।

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एफएमडी वायरस में शामिल पेप्टाइड से इलाज संभव
वैज्ञानिकों को एफएमडी वायरस में एक पेप्टाइड या प्रोटीन का एक अंश मिला है जो 'वी 6' नामक मॉलिक्यूल को मारता है। यह मॉलिक्यूल अग्नाशय कैंसर की सेल्स की सतह पर पाया जाता है। इस बारे में यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक जॉन मार्शल ने बताया, 'एफएमडी वायरस 'वी 6' (मॉलिक्यूल) का इस्तेमाल कर मवेशियों को संक्रमित करता है। हमने (जानवरों पर प्रयोग के जरिये) इस वायरस प्रोटीन के टुकड़ों को 'वी 6' से मिला कर पैनक्रिएटिक कैंसर के लिए दवा तैयार करने का तरीका विकसित कर लिया है।' प्रोफेसर जॉन मार्शल आगे बताते हैं, 'हमारे पिछले शोध में यह पता चला था कि अग्नाशय कैंसर के 84 प्रतिशत मरीजों में काफी मात्रा में 'वी 6' मॉलिक्यूल होता है।'

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वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में विकसित किए गए सेल्स और जिंदा चूहों पर कई टेस्ट किए थे। इनमें वैसे ही कैंसर सेल्स का इस्तेमाल किया गया जो आनुवंशिक रूप से इंसानों को होने वाले कैंसर के सेल्स जैसे थे। इन सेल्स को मारने या खत्म करने के लिए चूहों में पेप्टाइड के जरिये एक शक्तिशाली ड्रग 'टेसिरिन' पहुंचाया गया। पता चला कि चूहे के शरीर में उत्पन्न ट्यूमर को इस प्रोटीन ने पूरी तरह से खत्म कर दिया था।

शोधकर्ताओं ने एक टेस्ट में कैंसर सेल्स में 'वी 6' मॉलिक्यूल को शामिल किया था और दूसरे में ऐसा नहीं किया गया। परिणाम में पाया गया कि जिन सेल्स में पेप्टाइड और संबंधित दवा का मिश्रण मिलाया गया था, उनमें सुधार पाया गया। वहीं, जिन सेल्स को ठीक करने में पेप्टाइड का इस्तेमाल नहीं किया गया, उनमें 'वी 6' को मारने के लिए हाई डोज का इस्तेमाल करना पड़ा।

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रोडेन्ट प्रजातियों पर सफल रहा प्रयोग
शोधकर्ताओं का कहना है कि चूहे की प्रजाति से मिलते-जुलते (कुतरने वाले या रोडेन्ट) अन्य जीवों में यह प्रयोग काफी सफल रहा। उनकी मानें तो जिन चूहों में 'वी 6' के पॉजिटिव लक्षण पाए गए थे, उन्हें हफ्ते में तीन बार पेप्टाइड और संबंधित दवा का मिश्रण देने से कैंसर ट्यूमरों का विकास पूरी तरह रुक गया था। वहीं, हफ्ते में दो बार बढ़ी हुई डोज देने पर सभी ट्यूमर पूरी तरह गायब हो गए थे। प्रोफेसर मार्शल का कहना है कि अगर वैज्ञानिक अग्नाशय के कैंसर के लिए इसी तरह का तरीका विकसित कर लें तो उससे इस बीमारी को ठीक करने में काफी मदद मिल सकती है। फिलहाल शोधकर्ता आगे के प्रयोगों की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि उनके प्रयास सफल रहेंगे और वे जल्दी ही क्लिनिकल ट्रायल की स्टेज तक पहुंच जाएंगे।

कैंसर क्या होता है?
इन्सानी शरीर कई तरह की कोशिकाओं से बना होता है। ये कोशिकाएं शरीर की जरूरतों के हिसाब से नियंत्रित और विभाजित होती रहती हैं। लेकिन कई बार कोशिकाएं जरूरत के बिना ही बढ़ती रहती हैं। आमतौर पर ऐसा किसी असामान्य कोशिका की वजह से होता है। इस असामन्य विकास को कैंसर कहते हैं, जिसमें कोशिकाएं अपना नियंत्रण खो देती हैं। ऐसी कोशिकाओं का समूह आसपास के ऊतकों यानी टिशुओं पर आक्रमण कर शरीर के दूसरे हिस्सों में पहुंचता है और रक्त के माध्यम से शरीर के बाकी हिस्सों में फैल जाता है। बढ़ते-बढ़ते ये कैंसर कोशिकाएं एक समूह का रूप ले लेती हैं जिसे ट्यूमर कहते हैं। यह ट्यूमर आसपास के ऊतकों पर हमला कर उन्हें नष्ट कर देता है। बता दें कि ट्यूमर कैंसरयुक्त हो भी सकते हैं और नहीं भी।

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