विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य और अच्छा पर्यावरण देने की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। उसने यूनिसेफ और 'द लांसेट' पत्रिका के सहयोग से इस रिपोर्ट को तैयार किया है। इसमें बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी तमाम चेतावनियों के बावजूद कोई भी देश इस ओर सकारात्मक कदम उठाने में सफल नहीं हो पाया है।

खबर के मुताबिक, डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ 'द लांसेट' ने पहल करते हुए एक आयोग का गठन किया था। इनमें दुनिया के 40 से अधिक विशेषज्ञों को शामिल किया गया जो छोटे बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य के मुद्दे पर वर्षों से काम कर रहे थे। इन विशेषज्ञों ने बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं की बारीकी से जांच की। इसके बाद निष्कर्ष निकालते हुए बताया गया कि दुनिया का कोई भी देश बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य, उनके पर्यावरण और उन्हें बेहतर भविष्य देने में सफल नहीं हो पा रहा है।

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बच्चों में शराब और तंबाकू की लत
डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों के स्वास्थ्य पर केवल पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन का खतरा नहीं मंडरा रहा, बल्कि वे काफी तेजी से गलत आदतें भी अपना रहे हैं। उनमें हानिकारक फास्ट फूड, ड्रिंक, शराब और तम्बाकू सेवन की लत बढ़ती जा रही है। इससे उनका भविष्य भी संदेह के घेरे में आता दिखा रहा है। शोध में इसे लेकर हैरानी जताई गई है कि इस ओर न तो सरकारें कुछ कर रही हैं और न ही सर्वसमाज के हित के बारे में सोचने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं ही कुछ कर पा रही हैं।

करोड़ों बच्चों पर मंडरा रहा खतरा
रिपोर्ट तैयार करने वाले आयोग की सदस्य और न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री हेलेन क्लार्क का कहना है, 'पिछले 20 वर्षों में बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य में सुधार के बावजूद उनके विकास में कई रुकावटें आई हैं। इससे हालात ठीक होने के बजाय और खराब हो रहे हैं।' अध्ययन के आधार पर क्लार्क ने अनुमान के तहत बताया कि गरीब देशों में रहने वाले पांच साल से कम उम्र के लगभग 25 करोड़ बच्चों का भविष्य खतरे में है। गरीबी के कारण ही उनकी विकास क्षमता प्रभावित हो रही है। क्लार्क ने कहा, 'लेकिन इससे भी बड़ी चिंता का विषय यह है कि दुनिया का हर बच्चा अब जलवायु परिवर्तन और व्यावसायिक दबावों के अस्तित्व के खतरों का सामना कर रहा है।'

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कैसे किया गया शोध?
डब्ल्यूएचओ द्वारा गठित आयोग ने 180 देशों का अध्ययन किया। इसमें बच्चों के जीवन को स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण जैसी बाल कल्याण योजनाओं व उपायों के आधार पर आंका गया। साथ ही, अध्ययन में गैस उत्सर्जन के प्रभाव और वेतन संबंधी अंतर को भी जोड़ा गया है। इन बिंदुओं से जुड़े आंकड़ों पर विश्लेषण करने के बाद आयोग ने कहा कि सबसे गरीब देशों को अपने बच्चों के स्वास्थ्य और उनकी क्षमता पर ज्यादा काम करने की आवश्यकता है। उसने कहा कि विकसित देशों के मुकाबले इन देशों में अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है। इसके कारण जलवायु प्रभावित होती है और बच्चों के स्वास्थ्य तथा भविष्य को खतरा पैदा होता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ग्लोबल वार्मिंग अगले 80 सालों में (साल 2100 तक) चार डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाती है, तो इससे समुद्र का जलस्तर, गर्म हवा, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां तथा कुपोषण जैसी समस्या खतरनाक स्तर पर बढ़ जाएंगे। रिपोर्ट में इसे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए 'विनाशकारी' बताया गया है।

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बच्चों को कैसे दिया जाए बेहतर स्वास्थ्य और भविष्य
हालात बिगड़ते देख डब्ल्यूएचओ ने कुछ अहम सुझाव दिए हैं। इनमें बताया गया है कि कैसे जलवायु परिवर्तन और खराब पर्यावरण से होने वाले खतरे से बच्चों की रक्षा की जाए। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को तुरंत रोका जाए।
  • स्थायी विकास में बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य को सबसे पहले रखा जाए।
  • बाल स्वास्थ्य और अधिकारों की दिशा में काम करने के लिए सभी क्षेत्रों में नई नीतियां अपनाई जाएं और निवेश किया जाए।
  • नीतिगत फैसले लेने से पहले उनमें बच्चों की सलाह को भी शामिल किया जाए।
  • बच्चों के अधिकार और उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हानिकारक व्यवसायों (गुटखा और शराब संबंधी) को बंद करने की आवाज उठाई जाए।
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