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केंद्र सरकार ने गर्भपात कराने की समयसीमा बढ़ाने का फैसला किया है। इससे संबंधित प्रस्ताव को उसने मंजूरी दे दी है। देश में गर्भपात कराने की अंतिम समयसीमा अब 24 हफ्ते होगी। पहले यह 20 हफ्ते की थी। इस संबंध में सरकार अगले संसदीय सत्र में संशोधन बिल लाएगी ताकि मौजूदा 'मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्‍नेंसी एक्‍ट, 1971' में बदलाव किया जा सके।

हालांकि ये बदलाव विशेष परिस्थितियों के लिए ही होगा। फाइनैंशियल एक्सप्रेस ने सरकार के आधिकारिक बयान के हवाले से यह जानकारी दी है। इसके मुताबिक सरकार ने 'विशेष' महिलाओं को ही 24 हफ्तों तक गर्भपात कराने की अनुमति देने का फैसला किया है। इनमें बलात्कार पीड़िताएं, विकलांग, रिश्तेदार से गर्भवती हुई महिला और बच्चियां शामिल हैं।

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गर्भपात या अबॉर्शन क्या है?
सामान्य शब्दों गर्भावस्‍था को खत्‍म करना या भ्रूण को नष्‍ट करने को गर्भपात या अबॉर्शन कहते हैं। यह दवाओं या सर्जरी के जरिए किया जा सकता है। गर्भावस्‍था की शुरुआत में अबॉर्शन कराने पर यह काम दवाओं की मदद से हो जाता है। लेकिन ज्यादा वक्त बीतने पर महिला को सर्जरी का सहारा लेना पड़ सकता है। मेडिकल जानकार कहते हैं कि गर्भपात की प्रक्रिया जितनी जल्दी होगी, उतनी ही आसान होगी।

20वें हफ्ते में भ्रूण की स्थिति
प्रेग्नेंसी का 20वां हफ्ता गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के बीच का समय होता है। इस हफ्ते में भ्रूण का वजन लगभग 318 ग्राम और लम्बाई साढ़े 7 इंच से ज्यादा हो सकती है। इस दौरान बच्चे के फेफड़े परिपक्व या पूरी तरह विकसित नहीं होते हैं, लेकिन बच्चा सांस ले रहा होता है। myUpchar से जुड़ी डॉक्टर फातमा परवीन के मुताबिक, 20 हफ्ते की गर्भावस्था के समय अबॉर्शन कराने से मां को खतरा कम होता है।

कैसे किया जाता है गर्भपात?
डॉक्टर फातमा के मुताबिक अबॉर्शन से पहले महिला को कुछ दवाइयों की एक किट दी जाती है। इससे बच्चेदानी का मुंह खुल जाता है और गर्भाशय में एक दबाव पैदा होता है। इस दबाव के चलते बच्चा गर्भाशय से बाहर निकल जाता है। दरअसल, इन दवाओं के असर से बच्चा गर्भाशय की दीवार से अलग हो जाता है। योनि के रास्ते उसके बाहर आने के कुछ क्षण बाद उसकी मौत हो जाती है।

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24 हफ्तों के बाद भ्रूण की स्थिति
गर्भावस्था के 24वें सप्ताह में भ्रूण की लम्बाई लगभग एक फुट और वजन करीब 680 ग्राम का होता है। मस्तिष्क के विकास के साथ-साथ उसके फेफड़े भी विकसित हो रहे होते हैं। इस समय तक फेफड़े और अन्य कोशिकाएं विकसित होने लगती हैं।

24वें हफ्ते में कैसे किया जाता है गर्भपात?
myUpchar से जुड़ीं डॉक्टर अर्चना निरूला के मुताबिक, 20 और 24 हफ्ते में होने वाले अबॉर्शन की प्रक्रिया एक जैसी होती है। इसमें भी पहले महिला को कुछ दवाई दी जाती है और इसके बाद गर्भपात किया जाता है। डॉक्टर फातमा परवीन की मानें तो इस स्थिति में गर्भपात करना काफी कठिन होता है, क्योंकि इससे मां को असहनीय दर्द होता है। इतना ही नहीं, इससे मां को हैवी ब्लीडिंग हो सकती है और यूट्रस की मांसपेशियों में खिंचाव आ सकता है। इसके कारण कभी-कभी बड़े ऑपरेशन की भी जरूरत पड़ जाती है। इसके अलावा संक्रमण का भी खतरा होता है।

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अबॉर्शन करना क्यों जरूरी?
डॉक्टर अर्चना के मुताबिक बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास से जुड़ी कुछ जानकारी गर्भावस्था के 22वें हफ्ते के दौरान ही मिलती है। इस दौरान होने वाले लेवल-2 अल्ट्रासाउंड के माध्यम से बच्चे की मानसिक स्थिति का पता लगाया जाता है। अगर इस दौरान बच्चे के दिमाग में पानी भरा मिलता है तो ऐसी स्थिति में बच्चा पैदा होने के बाद एक सामान्य जीवन नहीं जी सकेगा। साथ ही माता-पिता को भी कई तरह की समस्या का सामाना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कानून मां को गर्भापात की अनुमति देता है। 

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