डिगोक्सिन टेस्ट क्या है?

डिगोक्सिन एक दवा है जो कि हार्ट फेलियर (कंजेस्टिव हार्ट फेलियर) और हृदय की गति से संबंधित असामान्यताओं (एट्रियल फिब्रिलेशन और एट्रियल फ्लटर के कारण दिल की धड़कनें अनियमित हो जाना) के ट्रीटमेंट के लिए प्रयोग की जाती है। यह हृदय की गति को कम करता है, हृदय की मांसपेशियों के सिकुड़ने के बल को बढ़ाता है और हृदय के सिकुड़ने में मदद करने वाले विद्युत संवेग गुजरने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है।

डिगोक्सिन टेस्ट एक ब्लड टेस्ट है, जो कि डिगोक्सिन के स्तर को मापता है और रक्त में इसके पदार्थों को (मेटाबॉलिट्स) के टूटने की जांच करने के लिए किया जाता है। चूंकि इस ड्रग की अत्यधिक मात्रा शरीर के लिए हानिकारक होती है, इसीलिए यह दवा देने के बाद इस टेस्ट को नियमित अंतराल में किया जाता है। ऐसा इस ड्रग की खुराक पर नजर रखने और हार्ट फेलियर व एरिथिमिया से पीड़ित लोगों में इसके विषाक्त प्रभावों को होने से बचाने के लिए किया जाता है।

  1. डिगोक्सिन टेस्ट क्यों किया जाता है - Digoxin Test Se Pahle
  2. डिगोक्सिन टेस्ट से पहले - Digoxin Test Se Pahle
  3. डिगोक्सिन टेस्ट के दौरान - Digoxin Test Ke Dauran
  4. डिगोक्सिन टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज - Digoxin Test Result and Normal Range

डिगोक्सिन टेस्ट क्यों किया जाता है?

यह टेस्ट डिगोक्सिन दवा की खुराक को व्यक्ति की उम्र, बीमारी की गंभीरता और व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार निश्चित करने के लिए किया जाता है ताकि दवा के परिणाम अपेक्षा के अनुसार आएं। इस प्रक्रिया को थेराप्यूटिक ड्रग मॉनिटरिंग (टीडीएम) कहते हैं। डिगोक्सिन के टीडीएम से यह पता लगाने में भी मदद मिलती है कि व्यक्ति किसी अन्य स्वास्थ्य स्थिति से ग्रस्त है या ऐसी दवाएं ले रहा है जिनके कारण डिगोक्सिन के स्तर बढ़ रहे हैं। बढ़ती उम्र, कम वजन, अधिक कैल्शियम, रक्त में पोटैशियममैग्नीशियम के कम स्तर और किडनी रोगों आदि स्थितियों में डिगोक्सिन की विषाक्तता होने का अधिक खतरा होता है। डिगोक्सिन टेस्ट की सलाह डॉक्टर डिगोक्सिन की विषाक्तता के निम्न लक्षण दिखने पर देते हैं:

किडनी के विकार, उच्च कैल्शियम और रक्त में पोटेशियम और मैग्नीशियम के कम स्तर एक्यूट डिगोक्सिन टॉक्सिसिटी के खतरे को बढ़ा देती है।

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डिगोक्सिन टेस्ट की तैयारी कैसे करें?

इस टेस्ट के लिए किसी विशेष तैयारी की जरूरत नहीं होती। यदि आप हाई कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्त चाप (कैल्शियम के चैनल बलॉकर) या हृदय की समस्याओं के लिए दवा अथवा विशेष संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक ले रहे हैं तो इनके बारे में डॉक्टर को बता दें। ऐसी दवाएं जिनमें ऐमियोडैरोन, वेरापेमिल, डिलटीएजेम (diltiazem), सिक्लोस्पोरिन, क्विनाइन और एटोर्वास्टेटिन होता है उनसे भी रक्त में डिगोक्सिन के स्तर बढ़ जाते हैं। 

डिगोक्सिन टेस्ट कैसे किया जाता है?

डॉक्टर या नर्स एक लाल ढक्कन की ट्यूब में ब्लड सैंपल ले लेंगे और इसके बाद सैंपल को जांच के लिए जल्द से जल्द लैब में भेज देंगे। 

दवा (डिगोक्सिन) को निगल कर लेने के बाद पहला सैंपल छह से बारह घंटे में लिया जाता है वहीं जब इंजेक्शन द्वारा दवा दी जाती है तो सैंपल चार से छह घंटे बाद लिया जाता है। बाद के सैंपल चौबीस घंटे और एक घंटे के पश्चात रक्त में इस दवा के थेराप्यूटिक स्तर को देखने के लिए इकट्ठे किए जा सकते हैं इससे कोई भी हानिकारक प्रभाव नहीं होगा। 

पोटेशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम के स्तर की जांच करने के लिए ब्लड टेस्ट डिगोक्सिन टेस्ट से पहले किए जाते हैं। डिगोक्सिन टेस्ट के बाद मामूली साइड इफ़ेक्ट जैसे संक्रमण, रक्त स्त्राव और सुई लगी जगह की त्वचा के नीचे रक्त का जमाव (हीमेटोमा) आदि समस्याएं देखी जा सकती हैं।

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डिगोक्सिन टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज

सामान्य परिणाम : 
रक्त में डिगोक्सिन की सामान्य थेराप्यूटिक रेंज या सामान्य स्तर 0.5-2 ng/mL और 1.5-2.5 ng/mL हैं। 0.5-2 ng/mL स्तर फेलियर के लिए और 1.5-2.5 ng/mL एरिथिमिया के इलाज में लाभदायक होते हैं। 

असामान्य परिणाम :
सामान्य से अधिक वैल्यू निम्न की ओर संकेत करती है:

  • डिगोक्सिन की विषाक्तता 
  • किडनी के रोग 
  • कुछ विशेष दवाओं का उपयोग जैसे एमिनोडैरोन, कैल्शियम चैनल ब्लॉकर, एंटीबायोटिक (सिक्लोस्पोरिन, क्विनाइन आदि) और अन्य दवाएं जिनमें डिगोक्सिन होता है।

संदर्भ

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