सिकलिंग टेस्ट क्या है?

यह एक प्रकार का ब्लड टेस्ट होता है, जिसकी मदद से सिकल सेल डिजीज (एससीडी) या सिकल सेल से जुड़े लक्षणों का पता लगाया जाता है। 

एससीडी लाल रक्त कोशिकाओं से जुड़ा एक प्रकार का विकार है जो कि माता-पिता द्वारा बच्चों में आ सकता है। इस बीमारी में व्यक्ति के शरीर में असाधारण तरह का हीमोग्लोबिन बनने लगता है जिसे हीमोग्लोबिन एस (Haemoglobin S) कहते हैं। यह उस जीन में म्यूटेशन होने के कारण विकसित होता है, जो हीमोग्लोबिन को बनाने की प्रक्रिया से संबंधित होती है। इसके कारण लाल रक्त कोशिकाओं की आकृति भी विशेष प्रकार की हो जाती है ये सख्त और चिपचिपी हो सकती है। ये ब्लड क्लॉट का खतरा बढ़ा सकते हैं और इसके कारण लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में कमी आ जाती है।

  1. सिकलिंग टेस्ट क्यों किया जाता है - Sickling Test Kyu Kiya Jata Hai
  2. सिकलिंग टेस्ट से पहले - Sickling Test Se Pahle
  3. सिकलिंग टेस्ट के दौरान - Sickling Test Ke Dauran
  4. सिकलिंग टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब है - Sickling Test Ke Parinam Ka Kya Matlab Hai

सिकलिंग टेस्ट किसलिए किया जाता है?

सिकलिंग टेस्ट सामान्य तौर पर नवजात शिशुओं में किया जाता है। ऐसा बच्चों में जन्म के तुरंत बाद एससीडी के जल्दी परीक्षण के लिए किया जाता है। यह शिशु थोड़ा बड़ा हो जाने के बाद और वयस्कों में भी किया जा सकता है जिनमें एससीडी के निम्न लक्षण दिखाई देते हैं:

सिकलिंग टेस्ट का उपयोग सिकल सेल संबंधी विशेषताओं (सिकल सेल ट्रेट्स) का पता लगाने के लिए भी किया जाता है, उदाहरण के तौर पर यह जानने के लिए कि व्यक्ति के जीन में एससीडी है या नहीं। हो सकता है कि ऐसे व्यक्तियों में कोई लक्षण दिखाई न दें लेकिन ये बीमारी उनकी संतानों तक पहुंच सकती है।

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सिकलिंग टेस्ट की तैयारी कैसे करें?

इस टेस्ट के लिए किसी विशेष तैयारी की जरूरत नहीं होती। हालांकि, यह जान लेना जरूरी है कि जो व्यक्ति ये टेस्ट करवा रहा है यदि उसने पिछले 90 दिनों में रक्ताधान (खून देना या चढ़वाना) करवाया है तो टेस्ट के रिजल्ट गलत आ सकते हैं। 

इसीलिए यदि आपने हाल ही में रक्त लिया या दिया है तो इसके बारे में डॉक्टर को बताएं ताकि परिणाम गलत न आएं।

सिकलिंग टेस्ट कैसे किया जाता है?

ब्लड सैंपल निम्न तरीके से लिया जाता है:

  • रक्त के प्रवाह को रोकने के लिए डॉक्टर व्यक्ति की बांह में इलास्टिक बैंड बांधते हैं। इससे नसें बड़ी और साफ नजर आती हैं जिससे सुई लगाने में आसानी होती है 
  • जिस जगह सुई लगाई जानी है उस जगह को अल्कोहॉल युक्त दवा से साफ किया जाता है।
  • इसके बाद नस में सुई लगाई जाती है। कभी-कभी एक से ज्यादा सुई की जरूरत हो सकती है। 
  • ब्लड सैंपल लेने के लिए सुई से एक ट्यूब जुड़ी होती है। पर्याप्त रक्त मिल जाने पर बैंड हटा दिया जाता है। 
  • सुई लगी जगह पर रुई लगाई जाती है और हल्का सा दबाव लगाकर वहां बैंडेज लगा दी जाती है। 

बांह में बैंड के बंधने से थोड़ा सा कसाव महसूस हो सकता है। कुछ लोगों को सुई लगने से बिलकुल दर्द नहीं होता वहीं कुछ लोगों को इससे चुभन जैसी संवेदना हो सकती है। 

इस टेस्ट से बहुत ही कम खतरे जुड़े हैं। कुछ अन्य रिस्क निम्न हैं:

  • सैंपल लेने में कठिनाई आना 
  • रक्त निकालते समय अत्यधिक रक्त स्त्राव होना 
  • बेहोश होना 
  • हीमेटोमा (त्वचा के अंदर रक्त का जमाव)
  • सुई लगी जगह पर संक्रमण 

हालांकि यदि उचित सावधानियों का प्रयोग किया जाए तो ये खतरे आसानी से कम किए जा सकते हैं।

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सिकलिंग टेस्ट के परिणाम क्या बताते हैं?

  • नार्मल रिजल्ट को नेगेटिव रिजल्ट कहा जाता है। जिसका मतलब है कि व्यक्ति का हीमोग्लोबिन सामान्य है। हालांकि, पॉजिटिव रिजल्ट इस बात की तरफ संकेत कर सकते हैं कि व्यक्ति के शरीर में सिकल सेल या एससीडी है। 
  • यदि टेस्ट के रिजल्ट पॉजिटिव आते हैं तो डॉक्टर आपसे हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट करवाने के लिए कह सकते हैं। इस टेस्ट से स्थिति की सही जानकारी मिल जाएगी। 

संदर्भ

  1. Illinois Department of Public Health. Sickle Cell Disease and Sickle Cell Carrier Status. Chicago, U.S.
  2. National Heart, Lung, and Blood Institute [Internet]: U.S. Department of Health and Human Services; Sickle Cell Disease
  3. National Newborn Screening and Global Resource Center. History and Overview of Newborn Screening. Austin, Texas
  4. MedlinePlus Medical Encyclopedia: US National Library of Medicine; Sickle cell test
  5. Genetic home reference. Sickle cell disease. USA.gov U.S. Department of Health & Human Services [internet].
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