वेल-फेलिक्स टेस्ट क्या है?

वेल-फेलिक्स टेस्ट रिकेटसियल इंफेक्शन का परीक्षण करने के लिए किया जाने वाला टेस्ट है। रिकेटसियल संक्रमण रिकेट्सिए (रिकेट्सिया) नामक बैक्टीरिया से होता है। यह टेस्ट आपके सीरम में रिकेटसिए के खिलाफ बने एंटीबॉडीज की जांच करता है और रिकेटसियल संक्रमण की पुष्टि करता है। एंटीबॉडीज हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा बने विशेष प्रोटीन होते हैं जो कि हानिकारक पदार्थों जैसे सूक्ष्मजीवों से लड़ने में शरीर की मदद करते हैं।

रिकेटसियल इंफेक्शन वैसे तो दुनियाभर में आमतौर पर कई लोगों को होता है लेकिन कुछ जगहों पर इसके विशेष प्रकार पाए जाते हैं। उदाहरण के तौर पर भारत में "स्क्रब टाइफस" और "इंडियन टिक टाइफस" सबसे सामान्य हैं। रिकेट्सिया केवल जीवित कोशिकाओं के अंदर ही रह सकते हैं। यह चुहे, घुन, पिस्सू, जूं और टिक (विशेष प्रकार के कीट व कीड़े) आदि में पाया जाता है। यह संक्रमण आमतौर पर संक्रमित सूक्ष्मजीव द्वारा काटे जाने पर फैलता है।

वेल-फेलिक्स टेस्ट का आधार यह है कि कुछ प्रोटियस बैक्टीरिया और रिकेट्सिया के एंटीजन एक जैसे होते हैं। एंटीजन वे प्रोटीन हैं जिनके द्वारा आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी पदार्थों की पहचान करती है। यह आमतौर पर सूक्ष्मजीवों के शरीर पर पाए जाते हैं।

जब प्रोटियस एंटीजन सस्पेंशन को संक्रमित व्यक्ति के सीरम में मिलाया जाता है, तो सीरम में मौजूद रिकेटसियल एंटीबॉडीज, प्रोटियस एंटीजन के साथ रिएक्ट करते हैं जिससे गांठ (एग्ल्यूटिनेशन) बन जाती हैं। एग्ल्यूटिनेशन ये संकेत करता है कि व्यक्ति को रिकेटसियल इंफेक्शन हुआ है।

सीरम में रिकेटसियल एंटीबॉडीज की जांच निम्न प्रोटियस स्ट्रेन (सब टाइप) से की जाती है : 

  • प्रोटियस वुल्गैरिस (ओएक्स-19 स्ट्रेन) - यह स्पॉटेड फीवर और टाइफस के विरोध में बने एंटीबॉडीज के साथ तेजी से प्रतिक्रिया करता है।
  • प्रोटियस वुल्गैरिस (ओएक्स-2 स्ट्रेन) - यह स्पॉटेड फीवर के एंटीबॉडीज के प्रति बहुत ज्यादा प्रतिक्रिया करता है।
  • प्रोटियस वुल्गैरिस (ओएक्स के स्ट्रेन) - यह स्क्रब टाइफस के प्रति तेजी से प्रतिक्रिया करता है।

आजकल वे फेलिक्स टेस्ट की तुलना में कुछ ऐसे टेस्टों को अधिक प्राथमिकता दी जाती है, जो तुरंत बैक्टीरिया की जांच कर लेते हैं जैसे पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर)। इसके अलावा कुछ अन्य टेस्ट भी हैं, जो कम समय में रिकेटसियल एंटीजन के विरुद्ध बने एंटीबॉडीज को तुरंत प्रदर्शित कर देते हैं, जैसे इनडायरेक्ट इम्यूनोफ्लोरेसेंस ऐस्से और लेटेक्स एग्गलूटिनेशन टेस्ट। हालांकि, जिन जगहों पर अधिक लैब की सुविधाएं नहीं होती हैं, वहां रिकेटसियल रोग की जांच के लिए वेल-फेलिक्स टेस्ट बहुत ही लाभदायी स्क्रीनिंग टूल है।

  1. वेल-फेलिक्स टेस्ट क्यों किया जाता है - Why Weil felix test is done in Hindi
  2. वेल-फेलिक्स टेस्ट से पहले - Before Weil felix test in Hindi
  3. वेल-फेलिक्स टेस्ट के दौरान - During Weil felix test in Hindi
  4. वेल-फेलिक्स टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब है - What does Weil felix test result mean in Hindi

वेल-फेलिक्स टेस्ट किसलिए किया जाता है?

यदि आपके शरीर में रिकेटसियल संक्रमण के लक्षण और संकेत दिखाई देते हैं या हाल ही में आपका संपर्क रिकेटसियल संक्रमण से हुआ है तो डॉक्टर वेल-फेलिक्स टेस्ट करने की सलाह दे सकते हैं। यह टेस्ट संक्रमण के लक्षण दिखाई देने के पांच से सात दिनों बाद एंटीबॉडीज की पहचान करने के लिए किया जाता है। ये एंटीबॉडीज मुख्य रूप से आईजीएम (इम्यूनग्लोब्युलिन एम) हैं। आईजीएम एंटीबॉडीज किसी भी संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर द्वारा बनाए जाने वाले सबसे पहले एंटीबॉडीज होते हैं।

रिकेटसियल संक्रमण एक सामान्य बीमारी या एक जीवनघातक रोग की तरह भी हो सकता है। इसमें पीलिया, निमोनिया, मायोकार्डिटिस (हृदय की मांसपेशियों में सूजन), मल्टीपल ऑर्गन फेलियर और शॉक जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं।

रिकेटसियल संक्रमण के लक्षण अस्पष्ट होते हैं। ये वायरल व बैक्टीरियल संक्रमण की तरह दिखाई पड़ सकते हैं। ये आमतौर पर संक्रमण के संपर्क में आने के एक से दो हफ्ते बाद दिखाई देते हैं और रिकेटसियल संक्रमण के प्रकार के अनुसार अलग हो सकते हैं लेकिन आमतौर पर इसमें निम्न शामिल होते हैं :

यदि इसकी पहचान जल्दी कर ली जाती है तो एंटीबायोटिक्स की मदद से इसका इलाज किया जा सकता है। अन्य विशेषताएं जिनके कारण डॉक्टर को जल्दी परीक्षण करने में मदद मिल सकती है, उनमें निम्न शामिल हैं :

  • पहले कभी आपको टिक ने काटा हो
  • ऐसी जगहों पर यात्रा करना जहां यह संक्रमण फैला हुआ हो
  • परिवार के सदस्यों, साथ काम करने वाले लोगों और आस-पास रहने वाले पालतू जानवरों में यही संक्रमण होना
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वेल-फेलिक्स टेस्ट की तैयारी कैसे करें?

वेल-फेलिक्स टेस्ट से पहले किसी भी तरह की तैयारी करने की आवश्यकता नहीं होती है।

वेल-फेलिक्स टेस्ट कैसे किया जाता है?

रिकेटसियल एंटीबॉडीज की जांच करने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है। जिसमें निम्न तरीके से ब्लड सैंपल लिया जाता है :

  • डॉक्टर सबसे पहले आपकी ऊपरी बांह में एक इलास्टिक बैंड (टूनिकेट) बांध देते हैं।
  • आपसे मुट्ठी बनाने के लिए कहा जाएगा। इससे आपकी बांह की नसें ठीक तरह से दिखाई देंगी।
  • सुई लगने वाली जगह को एंटीसेप्टिक से साफ किया जाएगा।
  • डॉक्टर इसके बाद आपकी बांह में एक सुई लगाएंगे और ब्लड सैंपल एक कंटेनर में ले लेंगे।
  • सैंपल लेने के बाद टूनिकेट निकाल दिया जाएगा और सैंपल को लैब में टेस्ट के लिए भेज दिया जाएगा।

सुई के लगने से आपको हल्का सा दर्द हो सकता है जो कि जल्द ही ठीक हो जाएगा। ब्लड टेस्ट के बाद हल्का सा नील पड़ना भी सामान्य है। यदि सुई लगी जगह पर संक्रमण या किसी भी तरह की तकलीफ दिखे, तो इसके बारे में डॉक्टर को बताएं।

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वेल-फेलिक्स टेस्ट के परिणाम क्या बताते हैं?

सामान्य परिणाम

यदि टेस्ट में कोई भी एग्ल्यूटिनेशन दिखाई नहीं देता है तो यह रिकेटसियल एंटीबॉडीज की अनुपस्थिति की ओर संकेत करता है जिसका मतलब है कि आपको रिकेटसियल संक्रमण नहीं है। ये लक्षण अन्य किसी स्थिति से जुड़े हो सकते हैं।

हालांकि, एग्ल्यूटिनेशन एंटीबॉडीज का पता संक्रमण के दूसरे हफ्ते में ही लगाया जा सकता है, इसलिए रोग के शुरुआती हफ्ते में किए गए टेस्ट के परिणाम भी नेगेटिव आ सकते हैं। संक्रमण के शुरुआती चरणों में किया गया इलाज प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को धीमा कर सकता है।

असामान्य परिणाम

थक्के या गांठ से संबंधित एंटीबॉडीज दिखाई देने का मतलब है कि परिणाम पॉजिटिव हैं, जो यह संकेत करता है कि आपको रिकेटसियल इंफेक्शन है।

एंटीबॉडी टेस्ट के परिणाम एक निश्चित टाइटर से कम या फिर अधिक लिखे जाते हैं। यदि दो अलग-अलग हफ्तों में किए गए टेस्ट में सिंगल टाइटर 1 से 320, उससे अधिक या फिर उससे चार गुना अधिक बढ़ गया है, तो रिजल्ट को पॉजिटिव कहा जा सकता है। 1 से 80 से उच्च टाइटर, संक्रमण का संकेत है।

बैक्टीरिया जैसे साल्मोनलाए, प्रोटियस और स्ट्रेप्टोकॉकस पायोजिनस से भी परिणाम गलत तरह से पॉजिटिव आ सकते हैं। गलत तरीके से पॉजिटिव आने का मतलब है कि आपको संक्रमण नहीं है लेकिन फिर भी परिणाम पॉजिटिव आए हैं।

डॉक्टर आपके लक्षणों, पिछली स्वास्थ्य स्थितियों और अन्य टेस्ट के परिणामों के आधार पर, इस टेस्ट के रिजल्ट व उसके मतलब के बारे में समझाएंगे।

यदि दो अलग-अलग हफ्तों में किए गए टेस्ट में सिंगल टाइटर 1: 320, उससे अधिक या फिर उससे चार गुना अधिक बढ़ गया है, तो रिजल्ट को पॉजिटिव कहा जा सकता है।

संदर्भ

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