दिल्ली जैसे शहरों में आमतौर पर रविवार को लोगों की सुबह देर से होती है। लोग खुश होते हैं कि आज काम पर नहीं जाना होगा और तरह-तरह के पकवानों के साथ ही घूमने-फिरने की प्लानिंग भी होती है। दुर्भाग्य से रविवार 8 दिसंबर 2019 की सुबह कुछ लोगों के लिए ऐसी खुशनुमा नहीं थी। रविवार तड़के दिल्ली के फिल्मिस्तान इलाके की अनाज मंडी में लगी भीषण आग ने 43 लोगों की जान ले ली। इन मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है इसकी जांच पुलिस और एजेंसियां करेंगी। मिली जानकारी के अनुसार इस दुर्घटना में ज्यादातर लोगों की जान दम घुटने के गई। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि ऐसा क्यों हुआ? इसके लक्षण क्या हैं और ऐसे हालात से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए? 

क्यों गई इतने लोगों की जान
इस दुर्घटना की जांच के लिए पहुंची एनडीआरएफ की टीम ने गैस डिटेक्टर की मदद से वहां मौजूद विषैली गैस की मौजूदगी का पता लगाया। टीम को पता चला कि वहां कार्बन मोनोऑक्साइड की मौजूदगी थी। यानि ज्यादातर लोगों की मौत कार्बन मोनोऑक्साइड गैस के कारण दम घुटने से हुई। बताया जा रहा है कि शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लगी और देखते ही देखते इसने कई परिवारों को उजाड़ दिया।

आपके लिए सबक
इस दर्दनाक दुर्घटना से आपके लिए सबक यह है कि आप कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में आने से बचें। सर्दियों का मौसम है और अगर आप अंगीठी (कोयला, लकड़ी) और रूम हीटर जलाकर अपने कमरे को गर्म रखते हैं तो सावधान! अंगीठी या रूम हीटर से भी आपके कमरे में कार्बन मोनोऑक्साइड बनती है। इसलिए अपने कमरे की कोई खिड़की खुली रखें, ताकि यह जहरीली गैस बाहर निकल सके और कमरे में ऑक्सीजन का स्तर बरकरार रहे। इनके अलावा गैस वाटर हीटर, गैस या डीजल से चलने वाले जेनरेटर, सिगरेट का धुंआ, स्प्रे पेंट, पेंट रिमूवर से भी कार्बन मोनोऑक्साइड निकलती है।

क्यों और कैसे बनती है यह गैस
गैस, पेट्रोल, डीजल, कोयला या लकड़ी इन सभी प्रकार के ईंधन के जलने से यह गैस पैदा होती है। यह भी ध्यान देने लायक बात है कि ऑक्सीजन की मौजूदगी में ही कोई ईंधन जलता है, ऑक्सीजन उपलब्ध न हो तो ईंधन नहीं जलता। जब भी कोई ईंधन पूरी तरह से नहीं जलता तो प्राण घातक कार्बन मोनोऑक्साइड गैस पैदा होती है।

जहरीली गैस बनने का पता कैसे करें
कार्बन मोनोऑक्साइड गैस का न तो कोई रंग होता है और न ही इससे किसी तरह की गंध (बदबू) आती है। इसलिए इस गैस के बनने का पता करना आसान नहीं है। इतना समझ लें कि डीजल इंजन की गाड़ियों के एक्जहॉस्ट से यह गैस सबसे ज्यादा निकलती है, इसीलिए तमाम देशों की सरकारें डीजल गाड़ियों का इस्तेमाल कम करने में जुटी हुई हैं। इस गैस के संपर्क में आने पर ऐसे लक्षण दिखते हैं - 

सांसों का तेज होना
मितली आना / उल्टी होना
सिरदर्द और बेचैनी (घबराहट)
देखने में परेशानी
चक्कर आना
कानों में तेज आवाज सुनाई देना
मांसपेशियों में कमजोरी
थकावट महसूस होना
चलने-फिरने में दिक्कत

सांस के साथ ज्यादा मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड अंदर जाने पर ये लक्षण दिखते हैं -
सांस लेने में तकलीफ होना
शरीर पीला पड़ जाना
चक्कर आना
कमजोरी महसूस होना

लंबे समय तक अधिक कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में रहने से दिल की बीमारियां हो सकती हैं। जो लोग बच भी जाते हैं तो उनमें स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं बनी रहती हैं। कोमा की स्थिति में श्वसन अंगों के फेल होने से मृत्यु भी हो सकती है।

गैस कैसे लेती है जान
हमारे शरीर में कार्बन मोनोऑक्साइड के बढ़ने से हमारे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। लाल रक्त कणिकाएं (रेड ब्लड सेल) शरीर के हर हिस्से में ऑक्सीजन पहुंचाती हैं, इन्हें ऑक्सीहीमोग्लोबिन कहा जाता है। कार्बन मोनोऑक्साइड इनके साथ मिलकर कार्बोऑक्सीहीमोग्लोबिन तत्व बनाती है, जो खून में ऑक्सीजन को मिलने से रोक देती है। दिमाग, नर्वस टिश्यू और दिल जैसे कई महत्वपूर्ण अंग ऑक्सीजन के आभाव में काम करना बंद कर देते हैं। हीमोग्लोबिन में इस गैस के 2.5 फीसदी तक पहुंचने पर इसका असर दिखना शुरू होता है और 40 फीसद तक पहुंचने पर इंसान की मौत हो सकती है। बच्चों और गर्भ में पल रहे मासूमों पर यह गैस सबसे ज्यादा असर दिखाती है।

इलाज क्या है?
अगर कोई व्यक्ति इस जहरीली गैस के संपर्क में आ गया है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। ब्लड टेस्ट से डॉक्टर असली स्थिति का पता लगा सकते हैं। इसके बाद पीड़ित को ऑक्सीजन का हाई डोज दिया जाता है। आम तौर पर इसके लिए एक फेसमास्क लगाया जाता है, जिसके जरिए ऑक्सीजन उसके फेफड़ों तक सीधे पहुंचाई जाती है।

बचाव
सर्दी से बचने के लिए अंगीठी जलाई है तो खिड़की दरवाजे खुले रखें
कमरा गर्म हो जाने के बाद अंगीठी को बुझाकर ही सोएं
खड़ी गाड़ी में एसी चलाकर न छोड़ें, शीशा खुला रखें।

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