माता-पिता हमेशा यही चाहते हैं कि उनके बच्चे सुरक्षित रहें, उन्हें कभी किसी तरह की कोई परेशानी छू भी न पाए। बच्चों को सुरक्षित रखने के इसी प्रयास में माता-पिता को कई तरह के शारीरिक और भावनात्मक कार्यों से गुजरना पड़ता है। लेकिन कोई भी माता-पिता इसे 'काम या कार्य' समझकर नहीं करते। जीवन में काफी आगे चलकर और खासकर तब जब जीवन में कोई गंभीर परिवर्तन हो रहा हो उस वक्त माता-पिता को यह महसूस होता है कि बच्चे का ध्यान रखने (चाइल्डकेयर) के इस काम में भी दृष्टिकोण की जरूरत होती है।

लिहाजा बेहद जरूरी है कि माता-पिता भावनात्मक रूप से थकान महसूस होने के इन संकेतों को पहचानें:

1. लंबे समय तक चिड़चिड़ापन महसूस होना
भावनात्मक थकान का सबसे बड़ा संकेत ये है कि जितनी देर आप जगे रहते हैं उनमें से ज्यादातर वक्त आपका मूड खराब रहता है और चिड़चिड़ापन महसूस होता है। पैरंट होने के नाते जब आप छोटी-छोटी चीजों पर नाराज होने लगे, चिड़चिड़ापन दिखाने लगें तो समझ लीजिए कि वक्त आ गया है जब आप थोड़ा ठहरें और अपनी परिस्थिति पर एक नजर डालें।  

2. गुस्से का प्रकोप
अगर आप गुस्से में आकर बच्चे को गलत बातें कहें या फिर उस पर हाथ उठाएं- दोनों ही स्थितियां भावनात्मक थकान का नतीजा होती हैं। व्यक्ति का गुस्सा इस बात से ताल्लुक रखता है कि वह मौजूदा समय में जो बातचीत या संदर्भ चल रहा है उससे खुद को दूर और अलग करना चाहता है। जब भी हम गुस्से में किसी को कुछ कहते या हाथ उठाते हैं तो हम अपनी निराशा या कुंठा की स्थिति और स्त्रोत को बंद करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में गुस्से का प्रकोप हमारे इस उद्देश्य को अच्छी तरह से पूरा करता है। लोग आपसे दूर चले जाते हैं और आपको असुविधा के स्त्रोत से राहत मिल जाती है।

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3. भावनात्मक रूप से सुन्न हो जाना
जब किसी व्यक्ति की भावनात्मक ऊर्जा घटने लगती है तो व्यक्ति के जीवन में ऐसा समय आ जाता है जब वह भावनात्मक रूप से सुन्न हो जाता है। व्यक्ति ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है जहां उसे कुछ भी महसूस नहीं होता। जब उससे पूछा जाता है कि क्या हुआ, तो व्यक्ति को अपने अंदर की भावनाएं और वह कैसा महसूस कर रहा है इसे बयां करने के लिए शब्द ही नहीं मिलते। ऐसा लगता है मानो भावनात्मक स्थान एक तरह से खाली हो गया हो।

4. दूसरों से बातचीत न करना और अलग रहने के बारे में सोचना
जब हम परिस्थितियों के वशीभूत हो जाते हैं तो यह हमारे मन की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जिसमें हम दूसरों की बातों को अनसुना करने लगते हैं और किसी ऐसी जगह पर रहना चाहते हैं जहां अशांति और हलचल कम हो। ऐसे में दूसरों से बातचीत न करना, इस उद्देश्य को पूरा करता है।

5. निराशावादी दृष्टिकोण
व्यक्तिगत, पारिवारिक और पेशेवर स्थितियों के बारे में आशाहीन होने की व्यापक भावना, इस बात का एक और संकेत है कि व्यक्ति एक ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां वह भावनात्मक रूप से थकान और अक्रियाशीलता का अनुभव कर रहा है। एक संभावित धारणा ये भी हो सकती है कि व्यक्ति का जीवन एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गया है जहां से स्थिति बेहतर नहीं हो सकती, मुद्दे हल नहीं हो सकते। निराशा की ऐसी स्थिति में किसी का ऐसा दृष्टिकोण भी हो सकता है कि अब कोई भी इस स्थिति में हमारी मदद नहीं कर सकता और उथल-पुथल की इसी दिशा में सबकुछ आगे जारी रहेगा।

6. एकाग्रचित न हो पाना
अगर आपका ध्यान या फोकस बाकी दिनों में तो बेहतर रहता है लेकिन इस परिस्थिति में आपका दिमाग एक जगह पर स्थिर नहीं है और साथ ही ऊपर बताए गए कई संकेत भी आपको खुद में नजर आ रहे हैं तो यह आपको सतर्क करने का सुझाव है कि आपको यहां पर रुक जाना चाहिए और सेल्फकेयर यानी खुद की देखभाल की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए।

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खुद की देखभाल की दिशा में काम करना- इस मूलभूत आधार वाक्य पर भरोसा करें क्योंकि जब आप अपना ख्याल रख पाएंगे तभी आपके अंदर वह क्षमता आएगी जिसकी मदद से आप दूसरों का भी ध्यान रख पाएंगे।

1. शारीरिक देखभाल से करें शुरुआत
जब कोई व्यक्ति नाउम्मीदी के बिंदु से शुरुआत कर रहा हो तो ऐसा लगता है मानो जीवन बेहद दुर्गम हो गया है। आखिर कहां से शुरुआत करें इसका फैसला करना सबसे मुश्किल होता है। ऐसे में शारीरिक आत्म-देखभाल या फिजिकल सेल्फ-केयर रूटीन अपनाना एक तरह से शुरुआती बिंदु हो सकता है जिसके जरिए हमारी भावनात्मक संवेदनशीलता जो पहले से ही दर्द में है, उस पर और बोझ नहीं बढ़ता है।

2. वैसे कार्य जो आपके नियंत्रण में हैं उन्हें पहचानें
जब हमें दूसरों का ख्याल रखने का प्रभारी बनाया जाता है तब हम अक्सर ऐसी परिस्थिति में फंस जाते हैं जिसमें दूसरों के जीवन में देखभाल करने वाला केयरिंग व्यक्ति बनने के दौरान हमें उन लोगों की भी मदद और सहयोग की जरूरत होती है। जब आपके पास वह सहयोग होगा तब उसे पहचानने के लिए आपको कुछ अवलोकन करने की जरूरत होगी। अगर आप खुद को ऐसी परिस्थिति में पाएं जिसमें परिवार का कोई सदस्य या बच्चा, आपके प्यार और देखभाल को हासिल नहीं कर पा रहा तो आपको इस बारे में चिंतन करना चाहिए कि, 'आप इस बारे में क्या कर सकते हैं?' 'ऐसे कौन से कार्य हैं जिन्हें दूसरों से आदान-प्रदान की जरूरत नहीं है और फिर भी आपको वह पालन-पोषण प्रदान करने की अनुमति देता है जो आपकी देखभाल की भावना के साथ प्रतिध्वनित हो।'    

3. अधूरे कार्यों के साथ जीना सीखें
याद रखें कि एक दिन में सिर्फ 24 घंटे ही होते हैं। ऐसे में आपकी शारीरिक और भावनात्मक हदें हैं जिसमें रहते हुए ही आप अपने कार्यों को पूरा कर सकते हैं। दिन खत्म होने पर कोई न कोई काम ऐसा रह जाएगा जिसे आपको करना चाहिए था लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया। 

4. शारीरिक और मानसिक थकान महसूस होने पर 'जाने दो' ऐसा सोचें
आपका शरीर आपसे क्या कह रहा है, क्या संकेत दे रहा है, इसे समझना सीखें। ऐसा करने से आप उन पलों में सतर्क हो जाएंगे जब आप सबकुछ अभी ही करना है, ऐसा सोचने की बजाए, हाथ में आए कार्यों को 'जाने दो' की फीलिंग के साथ दिन को खत्म कर देंगे।

5. रात में अच्छी नींद आए इसके लिए प्रयास करें
अब तक हो चुके कई अध्ययनों में नींद की उपचार संबंधी शक्तियों के बारे में बताया गया है। आसान शब्दों में समझें तो पर्याप्त और अच्छी नींद आपको बेहतर स्वास्थ्य देने में मदद कर सकती है। लिहाजा रोजाना सोने से पहले एक निश्चित रूटीन बनाएं जैसे- गर्म पानी से नहाना, कुछ अच्छा पढ़ना- फिर चाहे किताब हो, कहानियां या फिर नॉवेल, संगीत सुनना आदि। आपकी पसंद क्या है उसके आधार पर ही आपको अपनी रूटीन सेट करनी चाहिए।

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6. परिवार के सदस्यों से मदद मांगने में संकोच न करें
जब हम प्राइमरी स्कूल में थे तब हम कृपया, धन्यवाद, माफ कीजिए जैसे शब्दों को पर्याप्त मात्रा में और उदारता के साथ इस्तेमाल करते थे। वयस्क होने पर और अभिभावक बनने के बाद तो जीवन में शायद ही ऐसा फेज कभी आया हो जब हमने कृपया या प्लीज इस शब्द का वास्तव में जो इसका अर्थ है वैसे इसका इस्तेमाल किया हो। 

7. परिवार के काम में हाथ बंटाने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करें
हम सब जीवनभर कुछ न कुछ सीखते रहते हैं। लिहाजा बच्चों के लिए भी यह सीखना जरूरी है कि परिवार का रूटीन भी जीवन का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है। खाना पकाना, अपने घर को साफ रखना, कपड़े धोना, परिवार के बाकी सदस्यों का ख्याल रखना- यह सब संतोषप्रद जीवन जीने का अहम हिस्सा है। यह सब करना कोई अतिरिक्त काम नहीं है। वैसे भी पारिवारिक रूटीन में हाथ बंटाने से बच्चों का भी थोड़ा शारीरिक परिश्रम हो जाता है क्योंकि पढ़ाई के दौरान किए जाने वाले बौद्धिक प्रयासों से उन्हें किसी भी तरह का शारीरिक तनाव नहीं मिलता।

8. गलतियां होंगी, इसलिए इसे पहले ही स्वीकार कर लें
जब कोई चीज गलत होती है तो इसका मतलब है कि हम जिस चीज की उम्मीद कर रहे थे उससे अलग नतीजे भी हो सकते हैं और हमारा जीवन इस तरह के नतीजों से भरा पड़ा है। लिहाजा किसी भी तरह की गलती होने पर खुद को याद दिलाएं कि यह सिर्फ एक परिस्थिति है। अभी तो आपको लंबा जीवन जीना है और आप फिर से से नई शुरुआत कर सकते हैं। ऐसा करने से आपके अंदर उम्मीद की नई किरण जगेगी। आखिरकार, किसी को भी ये सारी चीजें पहले से पता नहीं होतीं और कोई भी व्यक्ति माता-पिता बनने की पहले से ट्रेनिंग लेकर नहीं आता।

माता-पिता को भी है भावनात्मक देखभाल की जरूरत के डॉक्टर
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