शरीर में मौजूद एक एंजाइम एसआईआरटी1 लंबे जीवनकाल में अहम भूमिका निभाता है। लेकिन यह एंजाइम खुद को खत्म करने की प्रवृत्ति के लिए भी जाना जाता है। अगर इस एंजाइम को ऐसा करने से रोक दिया जाए तो बढ़ती उम्र के साथ होने वाली मेडिकल समस्याओं से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पिनसेल्वेनिया द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है, जिसे मेडिकल पत्रिका नेचर सेल बायोलॉजी ने हाल में प्रकाशित किया है। इसमें बताया गया है कि एसआईआरटी1 का सेल्फ-ईटिंग सेल्युलर प्रोसेस, जिसे ऑटोफेजी कहते हैं, कोशिकाओं और ऊतकों में इस एंजाइम को कम या गायब करने का काम करता है। वैज्ञानिकों ने चूहों पर किए परीक्षणों के आधार पर यह जानकारी दी है। उनका कहना है कि अगर इस एंजाइम को सही तरीके से टार्गेट कर इसके स्वभक्षी बर्ताव को ब्लॉक या रोक दिया जाए तो उम्र के साथ होने वाली समस्याओं के खिलाफ बेहतर चिकित्सा विकसित की जा सकती है।

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यूनिवर्सिटी ऑफ पिनसेल्वेनिया के पोस्टडॉक्टरल रिसर्चर लू वांग बताते हैं, 'इस पाथवे (सेल्फ ईटिंग) को ब्लॉक करके एसआईआरटी1 के स्तर को रीस्टोर किया जा सकता है, जिससे मरीजों का इलाज करने या ज्यादा आयु वाले ऑर्गन और गिरते इम्यून सिस्टम को रोकने में मदद मिल सकती है।' वांग का कहना है कि आयु संबंधी मेडिकल क्षेत्र के लिए ये परिणाम दिलचस्प हो सकते हैं, क्योंकि इम्यून सेल्स में एसआईआरटी1 एंजाइम के लिए ऑटोफेजी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इस बारे में पहले ज्यादा शोध परिणाम सामने नहीं आए हैं। उन्होंने कहा, 'इस मकैनिज्म का उपयोग करने से हमें इम्यून फंक्शन को बहाल करने की एक नई संभावना का पता चला है।'

वैज्ञानिकों का कहना है कि कोशिकाएं उन नलों की तरह होती हैं, जिनमें से प्रोटीन और एंजाइम पानी की तरह लीक होते रहते हैं। इनमें एसआईआरटी1 एंजाइम भी शामिल है, जो उम्र के साथ कोशिकाओं से निकलने लगता है। इससे अलग-अलग प्रकार की दीर्घकालिक बीमारियां, अंगों की क्षमता में गिरावट और संक्रमणों के खिलाफ इम्यून रेस्पॉन्स देने की क्षमता कमजोर होने जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं। इस रिसाव को रोकने के लिए और एसआईआरटी1 की पुनः पूर्ति के लिए वैज्ञानिकों ने नए तरीके निकालें हैं, जिनका डेमोन्स्ट्रेशन किया गया है। इस काम में कार्डियवस्क्युलर रिसर्चर्स ने भी योगदान दिया है। यह अपनी तरह का पहला अध्ययन और प्रयास है, जो बताता है कि कैसे कोशिकाओं के नए सेल्स बनाने की प्राकृतिक प्रक्रिया के बाधित या बंद (जिसे सनेसन्स कहते हैं) होने में ऑटोफेजी एक भूमिका निभाती है।

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अध्ययन से वैज्ञानिकों को पता चला है कि सेल मेटाबॉलिज्म और इम्यून रेस्पॉन्स में एसआईआरटी1 का रोल अहम होता है। चूहों के जरिये डेमोन्स्ट्रेशन कर यह भी पता चला है कि इसकी एंजाइम की मात्रा को ज्यादा करने पर जीवनकाल बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है। सनेसन्स के दौरान एसआईआरटी1 का मकैनिज्म एक तरह से खत्म हो जाता है। उन्होंने पता लगाया है कि सनेसन्ट कोशिकाओं में एटीजी7 नामक ऑटोफेजिक प्रोटीन को निष्प्रभावी करने से एसआईआरटी1 का स्तर पहले की तरह बना रहता है। इससे मालूम हुआ है कि ऑटोफेजी के कारण इस एंजाइम का बर्ताव स्वभक्षी हो जाता है और यह खुद को खत्म कर लेता है। यह भी जानने में आया है कि ऑटोफेजी प्रोसेस से जुड़ा एक प्रोटीन एलसी3 भी सनेसन्ट कोशिकाओं और ऊतकों में एसआईआरटी1 को गायब होने के लिए प्रेरित करता है।

ऐसे में एक ऑटोफेजी इनहिटिबटर यानी अवरोधक का इस्तेमाल कर कोशिकाओं में प्रोटीनों के ब्रेकडाउन को ब्लॉक किए जाने की बात शोधकर्ताओं ने की है। इस काम के लिए अध्ययन में लाइस05 नामक एक ऑटोफेजी इनहिबिटर का जिक्र किया गया है। शोधकर्ताओं की मानें तो चूहों पर किए परीक्षण में इस अवरोधक ने एसआईआरटी1 को कोशिकाओं से गायब होने से बचा लिया। उन्होंने मानव कोशिका सीडी8 टी सेल्स को लाइस05 और एक प्रोटीजम इनहिबिटर के साथ ट्रीटमेंट दिया। इससे साफ हुआ कि लाइस05 अवरोधक से एंजाइम का लेवल बढ़ता है।

इस अध्ययन के निष्कर्ष में वैज्ञानिकों ने कहा है कि परिणामों से संकेत मिलता है कि उम्र के साथ एसआईआरटी1 एंजाइम अलग-अलग समय में विकृत होता जाता है। ऐसा इन्सानों में टी सेल्स की बढ़ती उम्र के साथ ऑटोफेजी-लाइजोसम प्रक्रिया के जरिये होता है। हालांकि इसी मकैनिज्म के जरिये वयोवृद्ध इम्यून सेल्स को रीप्रोग्राम होने के लिए सूचित किया जा सकता है।

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