वैज्ञानिक एमसीओ1 नाम के एक लाइट-सेंसिंग प्रोटीन से नेत्रहीन चूहों की दृष्टि कुछ हद तक रीस्टोर करने में कामयाब हो गए हैं। अमेरिका के नेशनल आई इंस्टीट्यूट में हुए इस अध्ययन के तहत वैज्ञानिकों ने जीन थेरेपी की मदद से चूहे की रेटीना के बाइपोलर सेल्स से प्रोटीन को अटैच कर यह कारनामा किया है। बीते हफ्ते इस स्टडी से जुड़े परिणाम नेचर जीन थेरेपी नामक जर्नल में प्रकाशित हुए थे। इसमें बताया गया है कि ट्रायल में शामिल चूहे पूरी तरह अंधे थे। वे रौशनी के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं कर सकते थे। लेकिन इलाज के जरिये इन चूहों के रेटीनल फंक्शन और विजन को सफलतापूर्वक बहाल करने में कामयाबी मिली है। अध्ययन में हुए मानक विजुअल परीक्षणों में पता चला है कि ट्रीटमेंट के बाद चूहों की दृष्टि क्षमता में तेजी से सुधार हुआ। टेस्ट में मालूम हुआ कि वे भूलभुलैया से निकलने में मदद करने वाले नेविगेशन या मार्गदर्शन को फॉलो कर रहे थे और गति परिवर्तनों को भी पहचान पा रहे थे।

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दरअसल, विजुअल पर्सेप्शन के लिए आंखों को जिन संकेतकों की जरूरत होती है, उनमें ऑप्सिन्स प्रोटीन एक जरूरी भूमिका निभाते हैं। सामान्य आंखों में ऑप्सिन्स रेटीना के रॉड और कोन फोटोरिसेप्टर्स में पाए जाते हैं। रौशनी में ये फोटोरिसेप्टर एक्टिव हो जाते हैं और अन्य रेटीनल न्यूरॉन, ऑप्टिक नर्व और ब्रेन न्यूरॉन के जरिये सिग्नल भेजते हैं। आंख से जुड़ी सामान्य समस्याएं, जैसे बुढ़ापे में होने वाला अंधापन यानी मैक्युलर डीजेनरेशन और रेटीनाइटिस पिगमेन्टोसा, फोटोरिसेप्टर्स को डैमेज कर देती हैं। इससे आई विजन में खराबी आ सकती है। हालांकि फोटोरिसेप्टर्स के पूरी तरह संचालित नहीं होने के बाद भी अन्य रेटीनल न्यूरॉन काम करते रहते हैं। इनमें विशेष प्रकार के बाइपोलर सेल्स भी शामिल होते हैं। अध्ययन के जरिये वैज्ञानिकों ने एक ऐसा तरीका निकाला है, जिनसे बाइपोलर सेल्स को क्षतिग्रस्त फोटोरिसेप्टर्स के कुछ कामों को ठीक करने में इस्तेमाल किया जा सके।

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इस तरीके या थेरेपी के बारे में बात करते हुए अध्ययन के एक लेखक समरेंद्र मोहंती कहते हैं, 'सरलता हमारी रणनीति की खास बात है। बाइपोलर कोशिकाएं फोटोरिसेप्टर्स के प्रवाह की ओर होती हैं। इसलिए जब एमसीओ1 ऑप्सिन जीन को गैर-संचालित फोटोरिसेप्टर्स के साथ रेटीना में स्थित बाइपोलर सेल्स से जोड़ा जाता है तो इससे लाइट सेंसिटिविटी (रौशनी के प्रति संवेदनशीलता) रीस्टोर हो जाती है।' 

शोध में प्राप्त परिणामों के आधार पर अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इस रणनीति से रेटीनल रीजेनरेशन के इलाज से जुड़े अन्य विकल्पों के सामने आने वाले चुनौतियों से पार पाया जा सकता है। स्टडी से जुड़ी रिपोर्ट के मुताबिक, इस थेरेपी में आंख में एक बार इंजेक्शन लगाया जाता है और किसी तरह की मशीनरी का इस्तेमाल नहीं होता। एमसीओ1 प्रोटीन परिवेशी प्रकाश (आसपास की रौशनी) या एम्बियंट लाइट के प्रति संवेदनशील होता है, लिहाजा थेरेपी के समय आंखों में तेज लाइट डालने की जरूरत नहीं पड़ती। शोधकर्ताओं को विश्वास है कि एमसीओ1 प्रोटीन की मदद से यह थेरेपी डीजेनरेटिव रेटीनल संबंधी कई बीमारियों के इलाज में काम आ सकती है, क्योंकि इसके लिए फोटोरिसेप्टर का सर्वाइवल जरूरी नहीं है।

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शोधकर्ताओं का कहना है कि चूहों का इलाज करते हुए अध्ययन में सुरक्षा संबंधी कोई चिंताजनक समस्या सामने नहीं आई। जांच-पड़ताल के दौरान पुष्टि हुई कि ट्रीटमेंट के कारण चूहों के ब्लड और ऊतकों में इन्फ्लेमेशन के कोई संकेत नहीं दिखे थे और थेरेपी ने अपेक्षित परिणाम दिए थे। यानी एमसीओ1 ऑप्सिन से केवल बाइपोलर कोशिकाएं ही प्रभावित हुई थीं। कुल मिलाकर अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि इस थेरेपी से नेत्रहीन मरीजों का 20/60 विजन वापस आ सकता है। इसका मतलब है कि जहां सामान्य आंखों से 60 फीट दूर देखा जा सकता है, वहीं इस थेरेपी की मदद से कोई नेत्रहीन 20 फीट तक की दूरी से देखने लायक हो सकता है। हालांकि इस रीस्टोर्ड विजन की सामान्य विजन से कैसे तुलना की जाएगी, इस बारे में कोई योजना या तकनीक फिलहाल नहीं है।

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