एक स्वस्थ जीवन के लिए स्वस्थ हवा का होना बहुत जरूरी है। स्वच्छ ऑक्सीजन हमारे जीवन और स्वास्थ्य को लंबे समय तक बेहतर बनाती है। अगर वायु प्रदूषित हो, तो इससे हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, जिससे दिल और फेफड़ों की बीमारी से लेकर स्ट्रोक और तनाव के साथ कई तरह के स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाते हैं।

वैश्वित आंकड़ों के एक सिस्टेमेटिक रिव्यू से पता चला है कि प्रदूषित हवा के संपर्क में रहने वाले लोगों में अवसाद और आत्महत्या की दर अधिक है। शोधकर्ताओं के अनुसार दुनियाभर में प्रदूषण के स्तर को यूरोपीय संघ के प्रदूषण मानकों के अनुसार नियमित किया जाए तो लाखों लोगों को डिप्रेशन से बचाया जा सकता है। उनका मानना है कि ज़हरीली हवा के संपर्क में आने से अवसाद के मामले बढ़ रहे हैं, जबकि वैज्ञानिकों के मुताबिक यह एक आशंका है, क्योंकि संदेह से अलग इसे साबित करना मुश्किल है। अध्ययन से पता चला है कि वायु में इस तरह का विशेष प्रदूषण उद्योगों, घरों और वाहनों में जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण होता हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस विषय पर नए मजबूत तथ्य मिले हैं, जिसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खराब हवा को ‘साइलेंट पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी’ बताया है। 

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रिसर्च में मिले जेहरीली हवा के साथ अवसाद और आत्महत्या के बीच संबंध 
जर्नल एनवायरनमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स में 2017 तक प्रकाशित हुए 16 देशों के आंकड़े इकठ्ठा करके एक अनुसंधान डाटा प्राप्त किया गया था। इस रिपोर्ट में ज़हरीली हवा के साथ अवसाद और आत्महत्या के बीच एक मजबूत सांख्यिकीय संबंध का पाया गया है। नई रिसर्च में डेटा को विश्लेषित करते हुए बताया गया कि अवसाद वायु प्रदूषण में मौजूद 2.5 माइक्रोमीटर कणों से संबंधित है। (2.5 माइक्रोमीटर ‘0.0025 मिलीमीटर’ के बराबर है, जिसे 2.5 पीएम के रूप में भी जाना जाता है)।

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एक वर्ष या उससे अधिक समय में पीएम 2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (ug/m^3) की वृद्धि से इसके संपर्क में आने वाले लोगों में अवसाद के 10 प्रतिशत अधिक जोखिम थे। भारत के दिल्ली शहर में पीएम 2.5 का स्तर 114 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (114ug/m^3) से अधिक है, जबकि ओटावा और कनाडा में सिर्फ 6 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (6ug/m^3) तक है। 2017 में यूनाइटेड किंगडम के शहरों में पीएम 2.5 का स्तर 13 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (13ug/m^3) था। शोधकर्ताओं ने डब्ल्यूएचओ से इसे कम करके 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (10ug/m^3) की सीमा में रखने की सिफारिश की है, इससे शहरवासियों में अवसाद को लगभग 2.5 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। आत्महत्या के जोखिम पर उपलब्ध डाटा 10 माइक्रोमीटर (पीएम10) तक के कणों के लिए था। शोधकर्ताओं ने एक अल्पकालिक प्रभाव पाया, जिसमें तीन दिनों में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (10ug/m^3) के बढ़ने से आत्महत्या के जोखिम 2 प्रतिशत तक बढ़े थे।

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परिणाम 
रिपोर्ट प्रदूषित हवा के साथ आत्महत्या और अवसाद के बीच मजबूत संबंध को बताती है, लेकिन एक रिसर्च जो इसके कारण और इनके बीच संबंध को साबित कर सकती है, उसकी पुष्टि करना कठिन है। क्योंकि एक नैतिक प्रयोग के लिए जान-बूझकर लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता है। यह बात इस रिपोर्ट में भी कही गई है।

अध्ययन का विश्लेषण करते समय कई कारकों पर ध्यान दिया गया, जो मानसिक स्वास्थ को प्रभावित कर सकते हैं, जिसमें घर का स्थान, आय, शिक्षा, धूम्रपान, रोजगार और मोटापा शामिल हैं, लेकिन वे इन सभी से होने वाले अलग-अलग प्रभावों को जानने में सक्षम नहीं थे, जो प्रभाव अक्सर वायु प्रदूषण के साथ होते हैं, जिसे मनोवैज्ञानिक प्रभाव के लिए जाना जाता है।

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