भारतीय वैज्ञानिकों ने देश में एक अलग तरह के वायरस का पता लगाया है। ये वायरस एविएन इन्फ्लुएंजा और बर्ड फ्लू को फैलाने का अहम कारक है। दिसंबर 2019 के इमर्जिंग इन्फेक्शियस डिजीज के संस्करण में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) पुणे ने एविएन इन्फुलेएंजा ए यानि एच9एन2 वायरस इन्फेक्शन के बारे में रिपोर्ट छापी थी। ये वायरस महाराष्ट्र में 17 महीने के एक बच्चे में पाया गया है। जानते हैं इस वायरस के घातक प्रभावों के बारे में और इसका फैलाव।

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क्या है ए (एच9एन2) वायरस
एच9एन2 वायरस इन्फ्लुएंजा ए वायरस का सबटाइप है। ये वायरस इंसानों में इन्फ्लुएंजा और बर्ड फ्लू फैलाने का एक मुख्य कारक है। सबसे पहले 1966 में एच9एन2 सबटाइप को विस्कॉन्सिन अमेरिका में टर्की पक्षियों के झुंड में देखा गया था। यूएस नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन के अनुसार ये वायरस पूरे विश्व में सिर्फ पक्षियों में पाया जाता है और पॉल्ट्री में एक महामारी की तरह फैलता है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन के शोधकर्ता टी पी पिकॉक की रिपोर्ट के अनुसार, एच9एन2 वायरस अगली इन्फ्लुएंजा महामारी फैला सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पॉल्ट्री में फैल रहे एविएन इन्फ्लुएंजा से इन्फेक्शन होने का खतरा रहता है। दूषित वातावरण और संक्रमित पॉल्ट्री के संपर्क में आने से इंसानों में भी इस तरह के मामले देखने को मिल सकते हैं। इंसानों में इसके मामले उभर कर आना आम है।

एच9एन2 से इंसानों में संक्रमण के कम मामले देखने को मिले हैं
एच9एन2 वायरस का संक्रमण इंसानों में दुर्लभ है, इसके लक्षण बहुत ही कम दिखाई देते हैं। इंसानों में इस वायरस के मामले हॉन्ग-कॉन्ग, चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान और मिस्र में देखे गए हैं। हाल ही में ओमान से एक नया मामला सामने आया है। 

सबसे पहला इंसानी केस 1998 में हॉन्ग कॉन्ग में देखा गया था। दिसंबर 2015 तक चीन में इस वायरस से हो रहे संक्रमण के 28 मामले दर्ज किए जा चुके हैं।

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भारत में एच9एन2 का पहला मामला
फरवरी 2019 में महाराष्ट्र के मेलघाट जिले के 93 गांवों की कोर्कु जनजाति पर जब सामुदायिक निगरानी की गई तब इस वायरस का पहला मामला सामने आया। एनआईवी के वैज्ञानिक दो साल से कम उम्र के बच्चों में रेस्पिरेटरी सिंक्टिअल वायरस की वजह से हो रही मौतों के कारणों की छानबीन कर रहे थे। इन बच्चों में बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ और खाना खाने का मन न करने जैसे लक्षण दिखाई दे रहे थे।

31 जनवरी 2019 के इन सब मरीजों को जब रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला ट्रीटमेंट दिया गया, तो ये ठीक होने लग गए। लगातार टेस्ट करने के बाद पिछले महीने इस बीमारी की पुष्टि कर दी गई। इस जांच को सही नतीजे तक पहुंचाने में एनआईवी के वरिष्ठ डॉक्टर वर्षा, प्रज्ञा यादव और एम एस चड्ढा का बहुत बड़ा हाथ है।

बच्चे में देखे गए लक्षण
महाराष्ट्र के संक्रमित बच्चे की जब जांच की गई तो पता चला कि बच्चा पहले किसी भी तरह से पॉल्ट्री के संपर्क में नहीं था। बीमारी के लक्षण दिखने से एक सप्ताह पहले वो अपने माता-पिता के साथ एक धार्मिक अनुष्ठान में गया हुआ था। उसके पिता में भी बीमारी के वही लक्षण देखने को मिले हैं पर उनका अभी तक सेरोलॉजिक टेस्ट यानि ब्लड टेस्ट नहीं किया गया है।

बीमारी से बचाव के लिए आसपास के वातावरण की कड़ी निगरानी रखें
एनआईवी के वैज्ञानिकों के अनुसार एच9एन2 वायरस को पॉल्ट्री में पहले भी कई बार देखा गया था, लेकिन इंसानों में पहली बार इसका फैलाव हुआ है। ऐसे में इंसानों और जानवरों पर निगरानी बढ़ा देनी चाहिए, ताकि इस बीमारी को बढ़ने से पहले ही रोका जा सके।

जब ओमान में इस तरह का पहला मामला सामने आया था, तब वहां के हेल्थ डायरेक्ट्रेट ने इस पर चिंता जताते हुए कहा था कि इस सबटाइप की पैथोजैनेसिटी (फैलाव) बहुत कम है, इसके बावजूद ये रह रहकर इंसानों और जानवरों में वापिस आ रहा है। इससे बचाव के लिए हमें सख्त बहुस्तरीय स्वास्थ्य कदम उठाने पड़ेंगे। उस समय ये संक्रमण ओमान में 14 महीने की एक बच्ची में देखा गया था।

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